Motivational Process of celebrating
Ganeshotsava Festivals Celebrated from Ganesh Chaturthi to Anant Chaturdashi(10 days). This year we celebrate from September 5th to September 15th. In our culture the tradition of festival celebration was established to spread the message of good deeds, harmony, peace. Over time the true meaning of festival was lost, and became mere expensive occasions. Yug Rishi, our Gurudev- pt. Shree Ram Sharma Acharya started to revive festivals true meaning and inspired millions.
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पर्वों की प्रेरक प्रक्रिया
ऋषियों-मनीषियों ने पर्व-समारोहों की परम्परा समाज में सत्प्रवृत्तियों के विकास के लिए चलायी थी। कालान्तर में उनका स्वरूप विकृत हो गया और वे दिशाहीन खर्चीले समारोह बनकर रह गये। युगऋषि ने उन्हें पुनः प्रेरक एवं जनसुलभ स्वरूप देने का अभियान प्रारम्भ किया। उसके सत्परिणाम भी उभरने लगे हैं; फिर भी अभी उस दिशा में बहुत कुछ करने की जरूरत है।
गणेशोत्सव गणेश चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी तक (१० दिन) मनाया जाता है। यह इस बार ५ सितम्बर से १५ सितम्बर तक चलेगा।
समारोहों के साथ श्रद्धा
गणेशोत्सव और नवरात्रि उत्सव के समारोह जगह-जगह बहुत धूमधाम से मनाये जाने लगे हैं। मुहल्लों-मुहल्लों में, चौराहों-चौराहों पर गणेश जी की मूर्तियों की स्थापना, दुर्गा एवं काली की प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है। सुबह-शाम पूजा-आरती का क्रम भी चलता है। अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किये जाते हैं, जिनमें बड़ी संख्या में आबालवृद्ध, नर-नारी भाग लेते हैं। अधिकांश समारोहों में प्रदर्शन-मनोरंजनपरक उत्साह ही अधिक दिखाई देता है। श्रद्धा-साधनापरक गतिविधियाँ बहुत कम होती हैं। प्रयास यह किये जाने चाहिए कि सभी समारोहों के साथ श्रद्धा-साधनापरक कार्यक्रम भी जुड़ें।
श्रद्धा का अर्थ है उत्कृष्ट आदर्शों के प्रति असीम प्रेम। श्रद्धा होने पर श्रद्धास्पद के अनुरूप स्वयं को गढ़ने-ढालने की साधना स्वाभाविक रूप से जुड़ने लगती है।
गणपति बुद्धि-विवेक के देवता हैं। वे गण-समूह के नायक अर्थात् आदर्श, प्रेरक, मार्गदर्शक हैं। ऐसे व्यक्ति को सहज रूप से ऋद्धि-सिद्धियों की प्राप्ति होती है। गणपति उत्सव में भाग लेने वाले व्यक्तियों को गणपति के सही अनुयायी बनने, बुद्धि-विवेक की कसौटी पर कस कर ही गतिविधियाँ अपनाने, वृत्तियाँ विकसित करने की साधना करने की प्रेरणा दी जानी चाहिए।
Highlights
Contribute / Participate
• साधकगण इस दस दिन की अवधि में गणपति मंत्र अथवा गणेश गायत्री मंत्र के जप/लेखन की विशेष साधना करें। इस अवधि में इन्द्रिय संयम रखने, सात्विक और सुपाच्य आहार सीमित मात्रा में लेने, ब्रह्मचर्य व्रत लेने, नित्य निर्धारित समय तक मौन रहने या मित भाषण का क्रम अपनाने के नियम बनायें-अपनायें।
• समारोह करने वाले विभिन्न समाज, वर्ग, अपने समाज एवं क्षेत्र में प्रचलित अविवेकपूर्ण, रूढ़िवादी परम्पराओं-कुरीतियों को दूर करने, विवेकसम्मत श्रेष्ठ प्रचलन चलाने के लिए विशेष प्रयास करें। प्रस्ताव पास करें, विशेष आन्दोलन चलायें।
विवेक-विज्ञान सम्मत क्रम
• मूर्तियाँ पर्यावरण को ठीक रखने वाली (ईको फ्रैण्डली) बनायी जायें। जहरीले पदार्थों का प्रयोग न करने के लिए प्रेरित-प्रशिक्षित किया जाय।
• आयोजकों, पंडित-पुरोहितों को POP तथा जहरीले रंग-वार्निश वाली मूर्तियाँ न खरीदने और उनकी प्राण-प्रतिष्ठा न कराने के लिए संकल्पित कराया जाय।
• मूर्ति विसर्जन के लिए नदी, जलाशयों आदि के पास अलग से जलकुण्ड बनाने अथवा उन्हें भू-समाधि देने (साफ-सुथरी भूमि में गाढ़ देने) की परम्परा डाली जाय।
• सांस्कृतिक कार्यक्रमों के नाम पर देर रात तक हो-हल्ला करना, लोगों की नींद हराम करना और छात्र-छात्राओं का पढ़ना-लिखना मुश्किल कर देना भी विवेक और विज्ञान के विरुद्ध है। समारोहों को साधना प्रधान बनाने से इन दुःखदायी गतिविधियों से सहज ही मुक्ति पायी जा सकती है।