होली पर्व सारे भारत में हर्षोल्लास का पर्व है, जिसमें छोटे- बड़े का भेद भुलाकर जनमानस एकाकार होकर तरङ्गित होने लगता है।
यह यज्ञीय पर्व है। सामूहिक यज्ञ के रूप में होली जलाकर नवीन अन्न का यज्ञ करके, उसके बाद में उपयोग में लाने का क्रम बनाया गया है।
यह राष्ट्रीय चेतना के जागरण का पर्व है। जहाँ वर्गभेद है, वहाँ समस्त साधन होते हुए भी क्लेश और अशक्तता ही रहेगी, जिनमें भ्रातृत्व सहकार है, वे अल्प साधनों में भी प्रसन्न और अजेय रहेंगे, इसलिए इसे समता का पर्व भी मानते हैं।
आदर्श सत्याग्रही, भक्त प्रह्लाद के दमन के लिए हिरण्यकशिपु के छल- प्रपञ्च सफल न हो सके, उसे भस्म करने के प्रयास में होलिका जल मरी और प्रह्लाद तपे कञ्चन बन गये। इस कथा की महान् प्रेरणाओं को होली के यज्ञीय वातावरण में उभारा जाना उपयुक्त है।
होली में दोषदहन का क्रम चलाएँ। दोष लिखी हुई पर्चियाँ एक साथ होली में जलाएँ। अश्लील चित्र, कलैण्डर आदि एकत्रित कर वह भी झोंकें, इस क्रम को बड़ा प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
होलिका दहन के दूसरे दिन सबेरे लोग धूल- कीचड़ उछालते हैं, इसे सामूहिक सफाई का रूप दिया जा सकता है। गन्दगी की अर्थी निकालने, सामूहिक जुलूस आदि से कुछ साहसी समाजसेवी आसानी से कर सकते हैं। ऐसी स्थिति न दीखे, तो केवल पर्व पूजन से ही सन्तोष किया जा सकता है।
॥ पूर्व व्यवस्था॥
सूर्यास्त के बाद किसी निर्धारित देवस्थल पर सभी लोग एकत्रित हों। पूजन मञ्च आकर्षक हो, उस पर नृसिंह भगवान् का चित्र भी हो। सामान्य पूजन सामग्री के साथ समतादेवी के पूजन के लिए चावल की तीन ढेरियाँ पूजा मञ्च पर पहले से लगाकर रखें। मातृभूमि पूजन के लिए मृत्तिका पिण्ड (मिट्टी का छोटा ढेला) भी रखें। नवान्न यज्ञ के लिए गेहूँ की बाल, चने के बूट आदि तैयार रहें, इन्हें भूनकर चीनी की गोलियाँ इलायची दाने के साथ मिलाकर प्रसाद बाँटा जा सकता है।
पूजन क्रम समाप्ति के बाद अथवा होली जलाने पर परस्पर मृत्तिका- भस्म लगाकर प्रणाम करें, गले मिलें।
॥ नृसिंह पूजन॥
दुष्टजनों के अन्याय और अत्याचार से पीड़ित व्यक्तियों की रक्षा, सेवा तथा उद्धार करने वाला व्यक्ति नृसिंह कहलाता है। हम इन बातों को जीवन में उतार कर अन्याय,अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाएँ, इससे पीड़ित लोगों का उद्धार करें। इसके लिए प्रतीक में नृसिंह पूजन किया जाता है।
हाथ में अक्षत पुष्प लेकर- नृसिंह भगवान् का आह्वान मन्त्र बोलें। भावना करें कि दुर्बल, साधनहीन, आदर्शवादियों के समर्थक, समर्थ, सम्पन्न, अनाचारियों के काल भगवान् नृसिंह की चेतना यहाँ अवतरित हो रही है।
ॐ नृसिंहाय विद्महे, वज्रनखाय धीमहि। तन्नो नृसिंहः प्रचोदयात्॥ ॐ श्री नृसिंहभगवते नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि। - नृ०गा०
॥ मातृभूमि पूजन॥
मातृभूमि स्वदेश के लिए अपनी श्रद्धा- निष्ठा को व्यक्त करने के लिए उसकी रज का पूजन, उसको मस्तक पर धारण करना, उसके प्रति कर्त्तव्यों का सङ्कल्प लेना आवश्यक होता है। मृत्तिका पूजन करने के लिए एक मिट्टी की वेदी पर मृत्तिका पिण्ड को पुष्प, रोली, कलावा, चन्दनादि से भली- भाँति सुसज्जित करना चाहिए। तत्पश्चात् निम्र मन्त्र बोलते हुए उसकी पूजा करें।
ॐ मही द्यौः पृथिवी च न ऽ, इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। पिपृतां नो भरीमभिः। ॐ पृथिव्यै नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि। -- ऋ० १.२२.१३
॥ त्रिधासमतादेवीपूजन॥
भेद- भाव मिटाकर समता को अपनाना मानव समाज के उत्थान, विकास एवं कल्याण के लिए आवश्यक होता है। जो समाज जितना संगठित होगा, वह उतना ही उन्नति की ओर बढ़ेगा। समाज की शक्ति समता में, एकता में और संगठन में निहित है।
चावलों की तीन ढेरियाँ बना ले। एक लिङ्ग भेद को मिटाने की दूसरी जाति भेद और तीसरी अर्थ भेद अर्थात् असमानताओं को दूर करने की प्रतीक है। इस प्रकार इन तीन असमानताओं के प्रतीक के रूप में यह पूजन किया जाता है। भावना करें कि पूजन के साथ विषमता को निरस्त करने वाले समत्व भाव का, सबमें सञ्चार हो रहा है।
ॐ अम्बेऽअम्बिकेऽम्बालिके, न मा नयति कश्चन।
ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां, काम्पीलवासिनीम्॥ -- २३.१८
पूजन के बाद यदि समय हो, तो यज्ञ करें, अन्यथा दीपयज्ञ करके आगे का क्रम वहीं पूरा कर लें। यदि होली के स्थल पर भीड़ को नियन्त्रित रखते हुए प्रेरणा सञ्चार की स्थिति हो, तो ही वहाँ के लिए अगले क्रम जोड़ें अन्यथा पूजा स्थल पर सारे उपचार भाव भरे वातावरण में करा लें। होली परम्परागत ढंग से ही जलने दें। स्थिति के अनुरूप ही निर्धारण करें।
॥ क्षमावाणी॥
स्मरण रहे होली समता का पर्व है। इस असवर पर छोटे- बड़े, स्त्री- पुरुष, ऊँच- नीच, गरीब- धनवान् का भेद भुलाकर सबसे अपने अपराधों की, दुष्कर्मों की क्षमा माँगना, भविष्य में ऐसा न करने का व्रत लेना तथा अपनी भूलों पर पश्चात्ताप करना समता के भावों को बलवान् और जागरूक बनाने के लिए उपयोगी सिद्ध होता है। सभी लोग अपने- अपने हाथों को अञ्जलिबद्ध करके निम्र मन्त्र बोलते हुए द्वेष- दुर्भाव छोड़ने के रूप में जलाञ्जलि दें।
ॐ मित्रस्य मा चक्षुषेक्षध्वमग्रयः, सगराः सगरास्थ सगरेण नाम्रा, रौद्रेणानीकेन पात माऽग्रयः। पिपृत माग्रयो गोपायत मा नमो, वोऽस्तु मा मा हि सिष्ट॥ -- ५.३४
॥ रज- धारण॥
मातृभूमि की रज मस्तक पर धारण करके हम उसके प्रति अपना सम्मान ही प्रकट नहीं करते; वरन् अपना जीवन- धन्य बनाते हैं। उसे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान देने के लिए मस्तक, कण्ठ, हृदय, भुजाओं में धारण करते हैं, इससे तात्पर्य यह है कि उन अङ्गों के रहते हुए हम मातृभूमि के प्रति कर्त्तव्य उत्तरदायित्व से विलग न हों।
सबके बाएँ हाथ में थोड़ी- थोड़ी मिट्टी पहुँचाएँ। मन्त्र के साथ ललाट, बाहु, कण्ठ एवं हृदय आदि में लगाएँ।
ॐ त्र्यायुषं जमदग्रेः, इति ललाटे।
ॐ कश्यपस्य त्र्यायुषम्, इति ग्रीवायाम्।
ॐ यद्देवेषु त्र्यायुषम्, इति दक्षिणबाहुमूले।
ॐ तन्नो अस्तु त्र्यायुषम्, इति हृदि॥ -- ३.६२
॥ नवान्न यज्ञ॥
भारतीय आदर्शों के अनुसार प्रत्येक शुभ पदार्थ या नई वस्तु भगवान् को समर्पित करके, उनके प्रसाद रूप में, यज्ञावशिष्ट रूप में ग्रहण की जाती है। होली के अवसर पर आये नवान्न को भी हम भगवान् का प्रसाद बनाकर ग्रहण करें, इसलिए यज्ञ में नवान्न की आहुतियाँ दी जाती हैं। इसे नवसस्येष्टि कहते हैं। नवान्न को निम्र मन्त्र बोलते हुए यज्ञाग्रि में भून लें-
ॐ अन्नपतेऽन्नस्य नो, देह्यनमीवस्य शुष्मिणः।
प्रप्रदातारं तारिषऽऊर्जं, नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे॥ -११.८३
तत्पश्चात् प्रसाद और जयघोष के बाद क्रम समाप्त किया जाए।