अत्यंत हर्ष का विषय है कि ऋषियों की महानतम धरोहर योग की महत्ता को स्वीकार करते हुए पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2015 से 21 जून को ''अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस" के रूप में आयोजित करने का निर्णय लिया है।
भारतीय संस्कृति ने सदैव से ही सबके हित और सबके सुख की कामना की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी शारीरिक, मानसिक, आत्मिक और सामाजिक स्तर पर संतुलित जीवन को समग्र स्वास्थ्य माना है। इन चारों आधारों पर मानवीय स्वास्थ्य को स्थिर रखने की क्षमता योग में है। इसी आधार पर प्राचीन काल में भारत समर्थ राष्ट्र एवं जगद्गुरु रहा है। इन दिनों अधिकतर योग का प्रचलन शारीरिक संदर्भ में ही हो रहा है, परन्तु इसे समग्र जीवन की सफलता के मार्ग के रूप में आगे ले जाने की आवश्यकता है। ऋषियों ने इसे एक समग्र जीवन शैली के रूप में ही हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है। इसका लक्ष्य मात्र रोगोपचार नहीं, वरन् आरोग्य की रक्षा और समग्र विकास है।
भगवद्गीता के अनुसार-''योग: कर्मसु कौशलम्" अर्थात् कर्म की कुशलता योग है। योग के अनुसार यह कुशलता शारीरिक व्यायाम से लेकर अन्त:करण के शोधन तथा आत्मा-परमात्मा के मिलन-संयोग तक ले जाने में समर्थ होती है। ईश्वर सद्गुणों का समुच्चय है, अत: योग हमें सद्गुणों से सम्पन्न सत्कर्मशील बनने की तथा निष्काम कर्म करने की कुशलता प्रदान करता है, साथ ही स्वस्थ-समृद्ध जीवन से महामानव स्तर तक विकसित करता है।
''योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:" अर्थात् चित्तवृत्तियों को अनुशासित रखना योग है। चित्तवृत्तियों की उथल-पुथल को रोककर योग हमारी प्रज्ञा-दूरदर्शी विवेकशीलता का जागरण करता है। यम-नियम के वैयक्तिक और सामाजिक अनुशासन के पालन से लेकर धारणा, ध्यान और समाधि की यौगिक जीवन शैली तथाकथित आधुनिक विकसित कहे जाने वाले मनुष्य के सामने खड़ी अनेकानेक समस्याओं का सार्वभौमिक समाधान है। मनुष्य के चिन्तन का दुष्प्रवृत्तियों से सम्बद्ध हो जाना कुयोग है और सत्प्रवृत्तियों से सम्बद्धता सुयोग है। योग हमारे जीवन को कुयोग से बचाकर सुयोग की ओर बढऩे का मार्ग प्रशस्त करता है।
ऋषियों की इस अनुपम देन को विज्ञान और अध्यात्म दोनों का भरपूर समर्थन प्राप्त है। आज योग विश्व पटल पर एक उत्कृष्ट जीवन शैली के रूप में प्रतिष्ठित है। व्यक्तिगत जीवन में स्वास्थ्य और संस्थागत जीवन में आदर्श प्रबंधन के रूप में योग का प्रयोग इन दिनों हो रहा है। रोगोपचार से लेकर गहन समाधि की उच्चतम अवस्था योग से सम्भव है। योग एक निरापद एवं अचूक प्रयोग है।
स्वामी विवेकानंद एवं महर्षि अरविंद ने योग को जीवन का आधार माना है। इसी क्रम में युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने स्वयं योगमय जीवन जिया और करोड़ों व्यक्तियों को योग के पवित्र व्यावहारिक मार्ग पर आगे बढ़ाया है।
भारत की पहल पर योग को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है, अत: आईये ! हम-सब मिलकर इसे व्यापक बनाने की जिम्मेदारी भी उठायें। सच्चे योग साधक बनें, जीवन की शक्तियों को कुयोग से बचायें-सुयोग में लगायें।
Invitation
योग दिवस मनायें और उसे सफल-सार्थक बनाने की समुचित तैयारी करें अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) के संदर्भ में राष्ट्रीय योजना के अनुसार अपने संगठन द्वारा अपनायी जाने वाली रीतिनीति को स्पष्ट किया गया है। उसी में आम जनता की भागीदारी के लिए प्रचार पत्रक का प्रारूप भी दिया गया है। उसी निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार आयोजन के संचालन, उस क्रम में दिये जाने वाले उद्बोधन तथा भागीदारों से कराये जाने वाले संकल्पों का प्रारूप भी दिया जा रहा है। प्राणवान परिजन इसी आधार पर अपनी तैयारी को प्रभावशाली बनायें, ऐसी अपेक्षा है। कार्यक्रम से सम्बंधित प्रचार सामग्री यहाँ से डाउनलोड करें -
संपर्क सूत्र - 9258360785, 9258360962 ईमेल - youthcell@awgp.org
Highlights
Special Attraction
- प्रचार एवं जन-जन को नियमित योगाभ्यास के लिए प्रोत्साहित करना ।
- नियमित योगाभ्यास के संकल्प कराना ।
- समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन के सूत्र व्यक्तियों तक पहुंचाना । इस हेतु समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन की कार्यशालाएं आयोजित करना ।
- साथ ही मिशन के विभिन्न रचनात्मक कार्यक्रमों में रूचि अनुसार सहभागिता हेतु भी निवेदन करना ।
Contribute / Participate
आप भागीदार बन सकते है यदि आप
- विद्यालय अथवा महाविद्यालय में विद्यार्थी या अध्यापक है ।
- चिकित्सक है ।
- व्यवसायी है या नौकरी कर रहे है ।
- प्रज्ञा/महिला/युवा/संस्कृति मंडलों के सदस्य हो ।
- किसी गैर सरकारी संगठन के संचालक या सदस्य है ।
- किसी सामाजिक संगठन के कार्यकर्ता है ।
- वर्तमान में योग केंद्र चलाते है ।
- अपने देशवासी भाई-बहनों को योग से होने वाले लाभ से परिचित करना चाहते है।
Program Schedule
प्रात: 06:45 से 06:55 | गायत्री मंत्र से प्रारम्भ - प्रार्थना |
प्रार्थना | हे प्रभु ! अपनी कृपा की छाँह में ले लीजिए। कर दूर खोटी बुद्धि सबको, नेक नियति दीजिए॥ हम आपके होकर रहें, शुभ प्रेरणा लें आपसे। सुख बाँटकर दु:ख ले बँटा, प्रभु भाव यह दे दीजिए॥ करते रहें नित पुण्य हम, बचते रहें हर पाप से। उजला चरित्र बना हमें, उज्ज्वल भविष्यत दीजिए॥ |
प्रात: 06:55 से 07:00 | गायत्री मंत्र या इष्ट नाम का पाँच मिनट जप |
प्रात: 07:00 से 07:30 | राष्ट्रीय मानक के अनुसार यौगिक क्रियाएँ |
प्रात: 07:30 से 07:45 | प्रज्ञायोग व्यायाम (16आसनों की 3 आवृत्तियाँ या क्षमतानुसार सूक्ष्म व्यायाम।) |
प्रात: 07:45 से 08:05 | उद्बोधन-''सबके लिए सुलभ व्यावहारिक समग्र योग" (लक्ष्य:- योग द्वारा स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन तथा सभ्य-सुसंस्कृत समाज की उपलब्धि। आधार:- आत्मबोध, तत्वबोध, आत्मचिंतन, आत्मशोधन, आत्मनिर्माण एवं आत्मविकास) |
प्रात: 08:05 से 08:10 | संकल्प क्रम |
प्रात: 08:10 से 08:50 | वृक्षारोपण (सुविधानुसार संकल्पित व्यक्तियों को तैयार पौध दी जाये, वे मौसम अनुकूल होने पर उसे उचित स्थान पर रोपित करें।) |
प्रात: 08:50 से 09:30 | "योग रैली'-'योग यात्रा' |
नोट - | योग रैली अपनी सुविधा अनुसार एक दिन पूर्व भी कर सकते हैं। आवश्यक सूचनाएँ एवं शान्तिपाठ |