उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जनपद में अखिल विश्व गायत्री परिवार की जनपद इकाई के द्वारा करारी नगर में 24 ...
*क्या आप अत्याधिक चिन्तनशील प्रकृति के हैं? सारे दिन अपनी बाबत कुछ न कुछ गंभीरता से सोचा ही करते हैं...
बुराई की शक्ति अपनी सम्पूर्ण प्रबलता के साथ टक्कर लेती है। इसमें सन्देह नहीं है। ऐसे भी व्यक्ति संसा...
निंदा, क्रोध और घृणा ये सभी दुर्गुण हैं, लेकिन मानव जीवन में से अगर इन दुर्गुणों को निकल दीजिए, तो स...
यहाँ एक बात याद रखनी चाहिए कि संस्कृति का माता की तरह अत्यंत विशाल हृदय है। धर्म सम्प्रदाय उसके छोटे...
अरस्तू ने एक शिष्य द्वारा उन्नति का मार्ग पूछे जाने पर उसे पाँच बातें बताई। (1) अपना दायरा बढ़ाओ, ...
पानी जैसी जमीन पर बहता है, उसका गुण वैसा ही बदल जाता है। मनुष्य का स्वभाव भी अच्छे बुरे लोगों के अनु...
अहिंसा को शास्त्रों में परम धर्म कहा गया है, क्योंकि यह मनुष्यता का प्रथम चिन्ह है। दूसरों को कष्ट, ...
बड़े बुद्धिमान, ज्ञानवान, शरीरधारी प्राणियों को दुख देने, दण्ड देने या मार डालने या हिंसा करने के सम...
यह सोचना गलती है कि दुख देना हिंसा और आराम देना अहिंसा है। तत्वतः काम के परिणाम और करने वाले की नियत...
आज दिल्ली बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री श्री जेपी नड़्डा जी से डॉ. चिन्मय प...
बरघाट, सिवनी। मध्य प्रदेश गायत्री शक्तिपीठ बरघाट में सामूहिक श्राद्ध, तर्पण संस्कार के आयोजन में नगर...
चित्तौड़गढ़। राजस्थान हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी चित्तौड़गढ़ और आसपास के गाँवों से लोग अपने पितरों का श...
रायपुर। छत्तीसगढ़ गायत्री शक्तिपीठ समता कॉलोनी में सर्व पितृमोक्ष अमावस्या के दिन 100 से अधिक भाई-बहि...
अलीराजपुर। मध्य प्रदेश गायत्री शक्तिपीठ अलीराजपुर में 2 अक्टूबर को 70 परिजनों ने श्राद्ध, तर्पण संस्...
उज्जैन। मध्य प्रदेश गायत्री शक्तिपीठ उज्जैन में प्रतिदिन सामूहिक श्राद्ध, तर्पण संस्कार हुए, 1500 से...
अखिल विश्व गायत्री परिवार के अत्यंत सरल, सुगम विधि-विधान और के कर्मकाण्ड के तर्क, तथ्यपूर्ण प्रतिपा...
ज्योति कलश रथ के पीछे चलते श्रद्धालु ग्वालपारा। असम : दिनांक 26 और 27 सितंबर 2024 को ग्वालपारा से प...
मिटठौली में यज्ञ संचालन करती आँवलखेड़ा की टोली मिटठौली, मॉट, मथुरा। उत्तर प्रदेश तहसील मॉट के गाँव मि...
A delegation of six esteemed visitors from Myanmar (Burma) and Uzbekistan arrived at Dev Sanskriti V...
Thought Revolution
The illuminated ascent to a higher level of consciousness leads to the transmutation of society, thus altering the trends of time creating a better world.
Model of new era
Shantikunj is a fountain-head of global movement Yug Nirman Yojna (Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.
Siksha and Vidya
A unique Man making university – DSVV, Bal Sanskar Shala, BSGP – Awareness for school students
Social Development Qualitative Changes in Society Rural Management. Self Reliant Trainings, Disaster management, De-addiction, Eradicating evil customs etc..
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Written by Vedmurti, Taponistha Pt. Shriram Sharma Acharya.
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less for self has been culture of India.
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Healthy living tips from Vedas
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Physical, Mental, Spiritual and Social Health
Initiate with simple steps of Gayatri Meditation,
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Refinement of life by adopting four disciplines - spiritual practice (Upasana/Sadhana), self-study (swadhayaya), self-restraint (sanyam) and social service (seva).
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Purification of inherent tendencies. Performed and explained scientifically at Shantikunj.
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Continuous Gayatri 1Mantra Jap along with Akhand Deepak since 1926.Daily Yagya by thousands present a memorable sight in the morning hours.
Higher-level research on Gayatri Mantra and the scientific effects of Yagya.
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illuminating mind of millions since 1940
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At the age of 15- Self-realization on Basant Panchanmi Parva 1926 at Anwalkheda (Agra, UP, India), with darshan and guidance from Swami Sarveshwaranandaji.
More than 2400 crore Gayatri Mantra have been chanted so far in its presence. Just by taking a glimpse of this eternal flame, people receive divine inspirations and inner strength.
It was started in 1938 by Pt. Shriram Sharma Acharya. The main objective of the magazine is to promote scientific spirituality and the religion of 21st century, that is, scientific religion.
The effect of sincere and steadfast Gayatri Sadhana is swift and miraculous in purifying, harmonizing and steadying the mind and thus establishing unshakable inner peace and a sense of joy filled calm even in the face of grave trials and tribulations in the outer life of the Sadhak.
आचार्य जी ने सिद्धांत और साधना को आधुनिक युग के अनुकूल तर्क व शब्द देकर सामाजिक परिवर्तन का जो मार्ग दिखाया है, उसके लिए आने वाली पीढ़ियाँ युगों-युगों तक कृतज्ञ रहेंगी।
मुझे ज्ञात है कि इस विश्वविद्यालय ने स्वतंत्रता सेनानी और लगभग ३००० पुस्तकों के लेखक पंडित श्रीराम शर्मा आचार्यजी के स्वप्न को साकार रूप दिया है। इन्हें भारत में ज्ञान क्रांति का प्रवर्तक कहना उपयुक्त होगा। आचार्यश्री का विचार था कि अज्ञानता ही निर्धनता और बीमारी आदि सभी समस्याओं की जड़ है।
आचार्य जी का एकाकी पुरुषार्थ सारे संत समाज की सम्मिलित शक्ति के स्तर का है, उनने गायत्री व यज्ञ को प्रतिबंध रहित करने निमित्त जो कुछ भी किया वह शास्त्रों के अनुसार ही था। मेरा उन्हें बारम्बार नमन है।
श्रद्धेय आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने जो कार्य कर दिखाया वह अद्भुत है, युग के लिए नितांत आवश्यक है। आचार्य जी के साहित्य से मैं बहुत प्रभावित हूँ। प्रज्ञा पुराण ने विशेष रूप से मुझे अपने कार्यों में बहुत बल प्रदान किया है। उनका चिंतन राष्ट्र को शक्तिशाली बनाता और मानव मात्र को सही दिशा प्रदान करता है।
आचार्य जी द्वारा भाष्य किए गए उपनिषदों का स्वाध्याय करने के बाद उन्होंने कहा कि- ‘‘काश! यह साहित्य मुझे जवानी में मिल गया होता तो मेरे जीवन की दिशाधारा कुछ और ही होती; मैं राजनीति में न जाकर आचार्य श्री के चरणों में बैठा अध्यात्म का ज्ञान ले रहा होता।’’
विनोबा जी ने वेदों के पूज्यवर द्वारा किए गए भाष्य को ग्वालियर मेंं एक सार्वजनिक सभा में अपने सिर पर धारण करते हुए कहा- "ये ग्रन्थ किसी व्यक्ति द्वारा नहीं, शक्ति द्वारा लिखे गये हैं।"
सुप्रसिद्ध सन्त देवरहा बाबा एक सिद्ध पुरुष थे। उनने एक परिजन से कहा- ‘‘बेटा! उनके बारे में मैं क्या कहूँ? यह समझो कि मैं हृदय से सतत उनका स्मरण करता रहता हूँ। गायत्री उनमें पूर्णतः समा गयी है एवं वे साक्षात् सविता स्वरूप हैं।’’
‘‘आचार्यश्री ने गायत्री को जन-जन की बनाकर महर्षि दयानन्द के कार्यों को आगे बढ़ाया है। गायत्री और ये एकरूप हो गये हैं।’’
अपने भावभरे उद्गार पूज्यवर के सम्बन्ध में इस रूप में व्यक्त किए थे- ‘‘आचार्य जी इस युग में गायत्री के जनक हैं। उनने गायत्री को सबकी बना दिया। यदि इसे मात्र ब्राह्मणों की मानकर उन्हीं के भरोसे छोड़ दिया होता तो अब तक गायत्री महाविद्या सम्भवतः लुप्त हो गयी होती।’’