देसंविवि व आईएई हैदराबाद के बीच अनुबंध
दोनों संस्थान मिलकर छात्रों और शिक्षकों के लिए ज्ञान-वृद्धि और व्यवसायिक विकास के वैश्विक मंच प्रदान करेंगे।
हरिद्वार 24 सितंबर।
जीवन विद्या के आलोक केन्द्र देवसंस्कृति विश्वविद्यालय प्रतिकुलपति डॉ चिन्मय पण्ड्या जी के नेतृत्व में विवि अपने अभियान को विस्तारित करने में जुटा है। यही कारण है कि देश विदेश के अनेक शैक्षणिक, चिकित्सकीय आदि संस्थानों से देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के अनुबंध हो रहे हैं। विवि शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में भी अभिनव पहल के लिए जाना जाता है।
विवि के मीडिया विभाग ने बताया कि देवसंस्कृति विश्वविद्यालय और इंस्टीट्यूट फॉर एकेडमिक एक्सीलेंस (आईएई), हैदराबाद के बीच महत्त्वपूर्ण विषयों को लेकर अनुबंध पत्र में हस्ताक्षर हुए। देसंविवि की ओर से प्रतिकुलपति युवा आइकान डॉ चिन्मय पण्ड्या जी एवं आईएई, हैदराबाद की ओर से निदेशक श्री के. वेंकटेश ने अनुबंध पत्र में हस्ताक्षर किये। इस अनुबंध के तहत शैक्षिक उत्कृष्टता, अनुसंधान के नए अवसरों और आधुनिक शिक्षण विधियों को प्रोत्साहित करना है । दोनों संस्थान मिलकर छात्रों और शिक्षकों के लिए ज्ञान-वृद्धि और व्यवसायिक विकास के वैश्विक मंच प्रदान करेंगे। यह अनुबंध शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता, नवाचार एवं विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
Recent Post
सार्वभौम सर्वजनीन-माँ की उपासना
दुनिया में जितने धर्म, सम्प्रदाय, देवता और भगवानों के प्रकार हैं उन्हें कुछ दिन मौन हो जाना चाहिए और एक नई उपासना पद्धति का प्रचलन करना चाहिए जिसमें केवल “माँ” की ही पूजा हो, माँ को ही ...
सच्चा आत्म-समर्पण करने वाली देवी
थाईजेन्ड ग्रीनलैण्ड पार्क में स्वामी विवेकानन्द का ओजस्वी भाषण हुआ। उन्होंने संसार के नव-निर्माण की आवश्यकता का प्रतिपादन करते हुए कहा- ‘‘यदि मुझे सच्चा आत्म-समर्पण करने वाले बीस लोक-से...
व्यर्थ का उलाहना
हे प्रभु ! हे जगत्-पिता, जगन्नियन्ता कैसे आप मौन, मन्दिर में बैठे हैं। क्या आप देख नहीं रहे हैं कि बाहर संसार में अन्याय और अनीति फैली हुई है। अत्याचारियों के आतंक और त्रास से संसार त्राहि-त्...
अपनों के साथ दुर्व्यवहार
‘आप लोग मुझे क्षमा करें। आपको आज मैं “महिलाओं”, शब्द से संबोधन कर रहा हूँ। सचमुच हम लोग शताब्दियों से गुलामी करते-करते स्त्री जैसे हो गये हैं। आप लोग इस देश या दूसरे किसी देश में ...
पवित्र, श्रद्धालु और धार्मिक बनें
इस संसार को माया इसलिए कहा गया है कि यहाँ भ्रान्तियों की भरमार है। जो जैसा है, वैसा नहीं दीखता। यहाँ हर प्रसंग में कबीर को उलटबांसियों की भरमार हैं। पहेली बुझाने की तरह हर बात पर सोचना पड़ता है। प्...
अन्धकार को दीपक की चुनौती
अन्धकार की अपनी शक्ति है। जब उसकी अनुकूलता का रात्रिकाल आता है, तब प्रतीत होता है कि समस्त संसार को उसने अपने अञ्चल में लपेट लिया। उसका प्रभाव- पुरुषार्थ देखते ही बनता है। आँखें यथा स्थान बनी रहती ...
मानव-जीवन को प्रभावित करने वाले दो आधार
धर्मतंत्र और राजतंत्र, दो ही मानव-जीवन को प्रभावित करने वाले आधार हैं। एक उमंग पैदा करता है तो दूसरा आतंक प्रस्तुत करता है। एक जन-साधारण के भौतिक जीवन को प्रभावित करता है और दूसरा अन्त:करण के मर्मस...
व्यक्ति नहीं, व्यक्तित्व
व्यक्ति की शरीर रचना तो माता-पिता के सम्भोग से अन्य प्राणियों की ही भाँति हो जाती है, किन्तु व्यक्तित्व की रचना बड़ी सावधानी और सूझ-बूझ के साथ करनी होती है।
दार्शनिकों से लेकर वै...
मस्तिष्क वृक्ष की जड़ों के समान
गीता में मनुष्य की तुलना एक ऐसे पीपल के वृक्ष के साथ की है जिसकी जड़ें ऊपर और शाखा, पत्ते नीचे हैं। मस्तिष्क ही जड़ है और शरीर उसका वृक्ष। वृक्ष का ऊपर वाला भाग दिखाई पड़ता है, जड़ें नीचे जमीन में ...
आन्तरिक निकटता चाहिए
दूसरों की तरह हमारे भी दो शरीर हैं, एक हाड़-मांस का, दूसरा विचारणा एवं भावना का। हाड़-मांस से परिचय रखने वाले करोड़ों हैं। लाखों ऐसे भी हैं जिन्हें किसी प्रयोजन के लिए हमारे साथ कभी सम्पर्क करना...