सम्पदा को रोकें नहीं
परमात्मा के अनन्त वैभव से विश्व में कमी किसी बात की नहीं। भगवान् आपके हैं और उसके राजकुमार के नाते सृष्टि की हर वस्तु पर आपका समग्र अधिकार है। उसमें से जब जिस चीज की जितनी आवश्यकता हो, उतनी लें और आवश्यकता निबटते ही अगली बात सोचें। संसार में सुखी और सम्पन्न रहने का यही तरीका है।
बादल अपने, नदी अपनी, पहाड़ अपने और वन खाद्यान्न अपने। इनमें से जब जिसके साथ रहना हो, रहें। जिसका जितना उपयोग करना हो करें। कोई रोक- टोक नहीं है। नदी को रोक कर यदि अपना बनाना चाहेंगे और किसी दूसरे को पास न आने देंगे, उपयोग न करने देंगे, तो समस्या उत्पन्न होगी। एक जगह जमा किया हुआ पानी अमर्यादित होकर बाढ़ के रूप में उफनने लगेगा और आपके निजी खेत- खलिहानों को ही डुबो देगा। बहती हुई हवा कितनी ही सुरभित क्यों न हो, उसे आप अपने ही पेट में भरना चाहेंगे, तो पेट फूलेगा, फटेगा, औचित्य इसी में है कि जितनी जगह फेफड़ों में हो उतनी ही श्वास में और बाकी हवा दूसरों के लिये छोड़ दें। मिल- बांटकर खाने की यह नीति ही सुखकर है।
श्रीराम शर्मा आचार्य
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