अपनों के साथ दुर्व्यवहार
‘आप लोग मुझे क्षमा करें। आपको आज मैं “महिलाओं”, शब्द से संबोधन कर रहा हूँ। सचमुच हम लोग शताब्दियों से गुलामी करते-करते स्त्री जैसे हो गये हैं। आप लोग इस देश या दूसरे किसी देश में जाइए। आप देखेंगे कि यदि एक स्थान पर तीन स्त्रियाँ 5 मिनट के लिए भी इकट्ठी होंगी तो झगड़ा कर बैठेंगी। पाश्चात्य देशों में बड़ी-बड़ी सभाएं करके स्त्रियों की क्षमता और अधिकारों की घोषणा से आकाश को गूंजा देती हैं पर उसके दो दिन बीतते न बीतते आपस में झगड़ा कर बैठती हैं तब कोई पुरुष आकर प्रभुत्व जमा लेता है।
सभी जातियों में आप ऐसा ही देखेंगे। स्त्रियों को शासन में रखने के लिये अब भी पुरुषों की आवश्यकता है। हम लोग भी इसी तरह स्त्रियों के समान हो गये हैं। अगर कोई स्त्री आकर उनका नेतृत्व करने लगती है तो सब मिलकर उसकी बड़ी आलोचना करने लगती है। उसे बोलने नहीं देतीं जबरदस्ती बिठा देती हैं। लेकिन यदि कोई पुरुष आकर उन के प्रति कुछ कठोर व्यवहार करें बीच-बीच में बुरा भला भी कहता जाय तो उन्हें अच्छा लगेगा क्योंकि वे लोग इस प्रकार के व्यवहारों की अभ्यस्त हो गई हैं।
संसार की जादूगरों और वशीकरण मंत्र जानने वालों से भरा हुआ है। शक्तिशाली पुरुष सदा इस प्रकार दूसरों को वश में करते हैं। हम लोगों के संबंध भी यही हुआ है। अगर आपके देश का कोई मनुष्यता बढ़ना चाहता है तो आप सब लोग मिलकर उसे दबाते हैं लेकिन एक विदेशी आकर अगर लाठी भी मारे उसे अनायास ही सहने को प्रस्तुत होते हैं। आप लोग इसी के अभ्यस्त हो गये हैं इसीलिये दासता बन्धनों में पड़े हुए हैं। अपनों के साथ दुर्व्यवहार करना दासता की एक अचूक निशानी है?
स्वामी विवेकानन्द
अखण्ड ज्योति- अगस्त 1943 पृष्ठ 6
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