मनुष्य को मनुष्य बनाने वाला धर्म
“मेरे देशवासियों! विषम परिस्थितियों का अन्त आ गया। काफी रो चुके, अब रोने की आवश्यकता नहीं रही। अब हमें अपनी आत्म शक्ति को जगाने का अवसर आया है। उठो, अपने पैरों पर खड़े हो और मनुष्य बनो। हम मनुष्य बनाने वाला ही धर्म चाहते हैं। सुख, सफलता ही क्या सत्य भी यदि शरीर, बुद्धि और आत्मा को कमजोर बनाये तो उसे विष की भाँति त्याग देने की दृढ़ता आप में होनी चाहिए।”
“जीवन-शक्ति विहीन धर्म कभी धर्म नहीं हो सकता। उसका तो स्वरूप ही बड़ा पवित्र, बलप्रद, ज्ञानयुक्त है। जो शक्ति दे, ज्ञान दे हृदय के अन्धकार को दूर कर नव स्फूर्ति भर दे। आओ, हम उस सत्य की, धर्म की वन्दना करें। कामना करें और जन जीवन में प्रवाहित होने दें। तोता बोल बहुत सकता है। पर वह आबद्ध कुछ कर नहीं सकता। हम रागद्वेष, काम, क्रोध, मद, मत्सर, अज्ञान, कुत्सा, कुविचार, दुष्कर्म के पिंजरे में आबद्ध न हों। अच्छी बात मुँह से कहें और उसे जीवन में उतारें भी। हमारे मस्तिष्कों में जो दुर्बलता भर गई है उसे निकाल कर शक्तिशाली बनने के लिए कटिबद्ध हो जाना चाहिये।
~स्वामी विवेकानन्द
अखण्ड ज्योति 1967 सितम्बर पृष्ठ 1
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रचनात्मक उमंग जागे
सृजन एक मनोवृत्ति है, जिससे प्रभावित हर व्यक्ति को अपने समय के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए कुछ न कुछ कार्य व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से निरंतर करना होता है। उसके बिना उसे चैन ही नहीं मिलता। किस परिस्...
कबीर दास जी के एक-एक दोहे हजार धर्मशास्त्रों पर भारी
बनारस की गलियों में घूमते नन्हें कबीर बचपन से ही एक तीखी दृष्टि रखते थे। वस्तुओं को देखने के उनके अपने नजरिए थे। उन्हें बचपन में ही आचार्य स्वामी के यहां शिक्षित होने का अवसर प्राप्त हुआ था। परंतु ...
स्वाध्याय एक अनिवार्य दैनिक कृत्य
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जाग्रत् आत्माओं से याचना
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सर्वभूत हितरेता:
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बिना आधार के सनातन धर्म भी नहीं है। स...
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विभूतियाँ महाकाल के चरणों में समर्पित करें
प्रचारात्मक, संगठनात्मक, रचनात्मक और संघर्षात्मक चतुर्विधि कार्यक्रमों को लेकर युग निर्माण योजना क्रमशः अपना क्षेत्र बनाती और बढ़ाती चली जायेगी। निःसन्देह इसके पीछे ईश्वरीय इच्छा और महाकाल की विधि ...
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मनुष्य को मनुष्य बनाने वाला धर्म
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