जाग्रत् आत्माओं से याचना
ज्ञानयज्ञ के लिए समयदान, यही है प्रज्ञावतार की जाग्रत् आत्माओं से याचना, उसे अनसुनी न किया जाए। प्रस्तुत क्रिया-कलाप पर नए सिरे से विचार किया जाए, उस पर तीखी दृष्टि डाली जाए और लिप्सा में निरत जीवन क्रम में साहसिक कटौती करके उस बचत को युग देवता के चरणों पर अर्पित किया जाए। सोने के लिए सात घंटे, कमाने के लिए आठ घंटे, अन्य कृत्यों के लिए पाँच घंटे लगा देना सांसारिक प्रयोजनों के लिए पर्याप्त होना चाहिए। इनमें २० घंटे लगा देने के उपरांत चार घंटे की ऐसी विशुद्ध बचत हो सकती है जिसे व्यस्त और अभावग्रस्त व्यक्ति भी युग धर्म के निर्वाह के लिए प्रस्तुत कर सकता है।
जो पारिवारिक उत्तरदायित्वों से निवृत्त हो चुके हैं, जिन पर कुटुंबियों की जिम्मेदारियाँ सहज ही हलकी हैं, जिनके पास संचित पूँजी के सहारे निर्वाह क्रम चलाते रहने के साधन हैं, उन्हें तो इस सौभाग्य के सहारे परिपूर्ण समयदान करने की ही बात सोचनी चाहिए। वानप्रस्थों की, परिब्राजकों की, पुण्य परंपरा की अवधारणा है ही ऐसे सौभाग्यशालियों के लिए। जो जिस भी परिस्थिति में हो समयदान की बात सोचे और उस अनुदान को नवजागरण के पुण्य प्रयोजन में अर्पित करे।
प्रतिभा, कुशलता, विशिष्टता से संपन्न कई विभूतिवान व्यक्ति इस स्थिति में होते हैं कि अनिवार्य प्रयोजनों में संलग्न रहने के साथ-साथ ही इतना कुछ कर या करा सकते हैं कि उतने से भी बहुत कुछ बन पड़ना संभव हो सके। उच्च पदासीन, यशस्वी, धनी-मानी अपने प्रभाव का उपयोग करके भी समय की माँग पूरी करने में अपनी विशिष्ट भूमिका निभा सकते हैं। विभूतिवानों का सहयोग भी अनेक बार कर्मवीर समयदानियों जितना ही प्रभावोत्पादक सिद्ध हो सकता है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, अगस्त 1979, पृष्ठ 56
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