कबीर दास जी के एक-एक दोहे हजार धर्मशास्त्रों पर भारी
बनारस की गलियों में घूमते नन्हें कबीर बचपन से ही एक तीखी दृष्टि रखते थे। वस्तुओं को देखने के उनके अपने नजरिए थे। उन्हें बचपन में ही आचार्य स्वामी के यहां शिक्षित होने का अवसर प्राप्त हुआ था। परंतु दिक्कत यह कि वे अन्य बच्चों की तरह नहीं थे। वे हर बात पर ना सिर्फ शंका किया करते थे, बल्कि बात-बात पर सवाल भी बहुत पूछा करते थे।
एक दिन ऐसा हुआ कि उनके गुरु के पिता का श्राद्ध था। श्राद्ध का अर्थ एक ऐसी परंपरा है जिसके तहत पंडितों को बुलाकर भरपेट भोजन कराया जाता है, ताकि जिस मृत रिश्तेदार का श्राद्ध मनाया जा रहा हो उस तक इन पंडितों को खिलाया जाने वाला भोजन पहुंच जाए। सो अपने मृत पिता तक भोजन पहुंचाने हेतु गुरु ने काफी पंडितों को भोजन पर बुलवाया। और इधर अपने शिष्यों को सुबह से ही तैयारियों में भी भिड़ा दिया। कबीर के जिम्मे दूध ले आने का कार्य आया।
गुरु की आज्ञा थी, कबीर एक बाल्टी लेकर दूध लाने निकल पड़े। पर जाने क्या हुआ कि सुबह के निकले कबीर दोपहर चढ़ते-चढ़ते भी वापस नहीं आए। इधर गुरु को बिना दूध के ही पंडितों का भोजन निपटाना पड़ा। यह तो ठीक पर कार्यक्रम निपटने के बाद गुरु को चिंता पकड़ी। वे अपने दो-चार शिष्यों के साथ बनारस की तंग गलियों में कबीर को खोजने निकल पड़े। जल्द ही उन्हें एक मरी हुई गाय के पास बाल्टी हाथ में लिए व सर पे हाथ रखकर बैठे नन्हें कबीर दिख गए। गुरु के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उन्होंने तत्क्षण जिज्ञासावश पूछा- यह यहां क्या कर रहे हो?
कबीर बड़ी मासूमियत से बोले- गाय के दूध देने का इंतजार कर रहा हूँ। इस पर गुरु बड़े लाड़ से कबीर का गाल सहलाते हुए बोले- अरे मेरे भोले, मरी गाय भी कहीं दूध देती है?
यह सुन कबीर बड़े नटखट अंदाज में बोले- जब आपके मृत पिता तक भोजन पहुंच सकता है तो मरी गाय भी दूध दे ही सकती है।
आचार्य स्वामी का तो पूरा नशा ही उतर गया। उन्होंने कबीर को गले लगा लिया। और तुरंत बोले- आज तुमने मेरी आंखें खोल दी। तू तो अभी से ही परमज्ञान की ओर एक बड़ा कदम बढ़ा चुका है।
खैर, कबीर ने तो कदम बढ़ा लिया पर हम और आप कब बढ़ाएंगे? यदि आप वाकई ज्ञान की ओर कदम बढ़ाना चाहते हैं तो बातों का अंधा अनुसरण करना बंद करें, और हर बात को अपनी भीतरी विवेक के तराजू पर तौलें। क्योंकि ज्ञानी होना व ज्ञान पाना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है।
इसी सन्दर्भ में परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा लिखित साहित्य पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
मृतक भोज की क्या आवश्यकता?
Recent Post
मैं व्यक्ति नहीं विचार हूँ
यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि पारमार्थिक कार्यों में निरन्तर प्रेरणा देने वाली आत्मिक स्थिति जिनकी बन गई होगी, वे ही युग-निर्माण जैसे महान कार्य के लिए देर तक धैर्यपूर्वक कुछ कर सकने वाले होंगे। ऐसे ह...
रचनात्मक उमंग जागे
सृजन एक मनोवृत्ति है, जिससे प्रभावित हर व्यक्ति को अपने समय के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए कुछ न कुछ कार्य व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से निरंतर करना होता है। उसके बिना उसे चैन ही नहीं मिलता। किस परिस्...
कबीर दास जी के एक-एक दोहे हजार धर्मशास्त्रों पर भारी
बनारस की गलियों में घूमते नन्हें कबीर बचपन से ही एक तीखी दृष्टि रखते थे। वस्तुओं को देखने के उनके अपने नजरिए थे। उन्हें बचपन में ही आचार्य स्वामी के यहां शिक्षित होने का अवसर प्राप्त हुआ था। परंतु ...
स्वाध्याय एक अनिवार्य दैनिक कृत्य
मानव जीवन में सुख की वृद्धि करने के उपायों में स्वाध्याय एक प्रमुख उपाय है। स्वाध्याय से ज्ञान की वृद्धि होती है। मन में महानता, आचरण में पवित्रता और आत्मा में प्रकाश आता है। स्वाध्याय एक प्र...
जाग्रत् आत्माओं से याचना
ज्ञानयज्ञ के लिए समयदान, यही है प्रज्ञावतार की जाग्रत् आत्माओं से याचना, उसे अनसुनी न किया जाए। प्रस्तुत क्रिया-कलाप पर नए सिरे से विचार किया जाए, उस पर तीखी दृष्टि डाली जाए और लिप्सा में निरत जीवन...
सर्वभूत हितरेता:
आधार उसे कहते हैं, जिसके सहारे कुछ स्थिर रह सके, कुछ टिक सके। हम चारों ओर जो गगनचुम्बी इमारत देखते हैं, उनके आधार पर नींव के पत्थर होते हैं।
बिना आधार के सनातन धर्म भी नहीं है। स...
सेवा और प्रार्थना
तुम मुझे प्रभु कहते हो, गुरु कहते हो, उत्तम कहते हो, मेरी सेवा करना चाहते हो और मेरे लिए सब कुछ बलिदान कर देने को तैयार रहते हो। किन्तु मैं तुम से फिर कहता हूँ, तुम मेरे लिये न तो कुछ करते हो...
विभूतियाँ महाकाल के चरणों में समर्पित करें
प्रचारात्मक, संगठनात्मक, रचनात्मक और संघर्षात्मक चतुर्विधि कार्यक्रमों को लेकर युग निर्माण योजना क्रमशः अपना क्षेत्र बनाती और बढ़ाती चली जायेगी। निःसन्देह इसके पीछे ईश्वरीय इच्छा और महाकाल की विधि ...
विचारों का अवतार
इस वक्त लोगों की इच्छा हो रही है कि भगवान अवतार लें जिसे मैं पुरानी भाषा में अवतार प्रेरणा कहता हूँ। तुलसीदास ने वर्णन किया है कि पृथ्वी संत्रस्त होकर गोरूप धारण कर भगवान से प्रार्थना करती है कि हे...
मनुष्य को मनुष्य बनाने वाला धर्म
“मेरे देशवासियों! विषम परिस्थितियों का अन्त आ गया। काफी रो चुके, अब रोने की आवश्यकता नहीं रही। अब हमें अपनी आत्म शक्ति को जगाने का अवसर आया है। उठो, अपने पैरों पर खड़े हो और मनुष्य बनो।...