रचनात्मक उमंग जागे
सृजन एक मनोवृत्ति है, जिससे प्रभावित हर व्यक्ति को अपने समय के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए कुछ न कुछ कार्य व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से निरंतर करना होता है। उसके बिना उसे चैन ही नहीं मिलता। किस परिस्थिति का, किस योग्यता का व्यक्ति, नवनिर्माण के लिए क्या रचनात्मक कार्य करे यह स्थानीय आवश्यकताओं को देखकर ही निर्णय किया जा सकता है। युग निर्माण योजना के ‘शत-सूत्री’ कार्यक्रमों में इस प्रकार के संकेत विस्तार पूर्वक किए गए हैं। रात्रि पाठशालाएँ, प्रौढ़ पाठशालाएँ, पुस्तकालय, व्यायामशालाएँ, स्वच्छता, श्रमदान, सहकारी संगठन, सुरक्षा, शाक- पुष्प-फल उत्पादन आदि अनेक कार्यों की चर्चा उस संदर्भ में की जा चुकी है।
प्रगति के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हर नागरिक के मन में यह दर्द उठता रहे कि विश्व का पिछड़ापन दूर करने के लिए, सुख-शांति की संभावनाएँ बढ़ाने के लिए उसे कुछ न कुछ रचनात्मक कार्य करने चाहिए। यह प्रयत्न कोटि-कोटि हाथों, मस्तिष्कों और श्रम सीकरों से सिंचित होकर इतने व्यापक हो सकते हैं कि सृजन के लिए सरकार का मुँह ताकने और मार्गदर्शन लेने की कोई आवश्यकता ही न रह जाए।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, जून 1971 पृष्ठ 60
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कबीर दास जी के एक-एक दोहे हजार धर्मशास्त्रों पर भारी
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जाग्रत् आत्माओं से याचना
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सर्वभूत हितरेता:
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बिना आधार के सनातन धर्म भी नहीं है। स...
सेवा और प्रार्थना
तुम मुझे प्रभु कहते हो, गुरु कहते हो, उत्तम कहते हो, मेरी सेवा करना चाहते हो और मेरे लिए सब कुछ बलिदान कर देने को तैयार रहते हो। किन्तु मैं तुम से फिर कहता हूँ, तुम मेरे लिये न तो कुछ करते हो...
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