Magazine - Year 1945 - Version 2
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Language: HINDI
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जीवन संग्राम में डटे रहो।
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(महात्मा जेम्स ऐलन)
निश्चल और सुस्त जीवन में पड़े-पड़े लोग निश्चेष्ट और डरपोक हो जाते हैं। शत्रु पर विजय प्राप्त करने के लिए जो प्रयत्न किये जाते हैं उनका आनन्द ऐसे मनुष्यों को स्वप्न में भी दुर्लभ है। ‘संग्राम का आनन्द’ इस वाक्य को सुनकर ऐसे लोग भौंचक से रह जाते हैं; परन्तु सच पूछो तो इस अकर्मण्यता का छा जाना ही मृत्यु का निशान है। समझ लेना चाहिए कि ऐसे मनुष्यों की मृत्यु अब निकट ही है। यदि जड़ संसार की ये बातें सत्य हैं तो चैतन्य संसार में भी इन्हें सत्य समझो। विचारशील मनुष्य यदि अपने हृदय में देखे तो उसे महाभारत का सच्चा दृश्य दिखाई दिये बिना न रहेगा। पाप वासनाओं और आत्मिक शक्तियों का घोर संग्राम मानव हृदय में सदैव ही मचा रहता है। दुर्बल आत्मा वासनाओं से पराजित होकर उनके दास बन जाते हैं। इसके विपरीत बलवान आत्मा इन वासनाओं को पराजित कर उन्हें अपने काबू में रखते हैं। इस घोर युद्ध में विजय प्राप्त करने का अनुपम आनन्द उन्हीं विजयी आत्माओं को प्राप्त होता है।
जो मनुष्य अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट हो अकर्मण्य बन रहे हैं उन लोगों से न तो कुछ लौकिक उन्नति ही हो सकती है और न पारलौकिक ही। उन्नति का मूलमंत्र यही है कि मनुष्य के हृदय में असंतोष हो। अपनी वर्तमान स्थिति में जो-जो दोष हैं, जो-जो असुविधाएं अथवा तकलीफें हैं उनसे हृदय में जब तक सच्चा असंतोष न पैदा हो जाय तब तक उन्नति की कल्पना ही नहीं हो सकती। जब तक हम लोग अपने अवनत और गिरे हुए चरित्र को देख उससे असंतुष्ट होकर उसकी उन्नति का उपाय न करेंगे तब तक सुख की बातों से कोसों दूर हैं।