Magazine - Year 1948 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
हमारे बापू अमर हैं
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
‘राष्ट्रपिता- महात्मा गान्धी-विगत 30 जनवरी को मर गये।’ यह समाचार जितना सत्य है उतना ही असत्य भी है। आत्माएं मरा नहीं करती। शरीर मरते हैं। जिस दिन प्राणी जन्म लेता है उसी दिन से उसकी आँशिक मृत्यु आरंभ हो जाती है और एक दिन आता है कि किसी रोग दुर्घटना आदि के बहाने उसका अन्त हो जाता है। अन्त के साथ ही आरंभ भी हो जाता है। मृत्यु और जीवन एक दूसरे से अविच्छिन्न रूप से सम्बद्ध हैं।
जो जन्मा है उसका मरण निश्चित है। यह बात केवल इस पंच भौतिक शरीर के लिए कही जाती है। शरीर आत्मा का एक परिधान मात्र है। वस्त्र फट, टूट या नष्ट हो जाने पर भी शरीर नष्ट नहीं होता, इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाने पर भी आत्मा का नाश नहीं होता। उसका अस्तित्व सदा एक समान रहता है।
बापू का शरीर मर गया पर उसकी आत्मा अब भी पूर्ववत् जीवित है और उसका कार्य पूर्ववत् जारी है। ऐसी महान आत्माएं कभी मरा नहीं करतीं। क्या हरिश्चन्द्र मर गए? नहीं उनका कार्य अभी भी जारी है, अपने जीवन काल में उन्होंने जितने व्यक्तियों को सत्य का अनुयायी बनाया था- अपनी मृत्यु से लेकर अब तक वे उससे कहीं अधिक अनुयायी बना चुके हैं। प्रहलाद, दधीचि, मोरध्वज, राम, कृष्ण के जीवन भौतिक ज्यों के त्यों प्रकाशवान् हैं और संसार का पथ प्रदर्शन कर रहे हैं।
महात्मा गान्धी का शरीर न रहा- वे जिन आदर्शों के लिए जीवित थे उन्हीं आदर्शों की वेदी पर उन्होंने अपने रक्त की अंजलियाँ चढ़ा दी। इस महान अनुष्ठान ने उनकी महानता को और भी अधिक प्रकाशवान बना दिया है। तारे बुझ सकते हैं, सूर्यचन्द्र बुझ सकते हैं पर उस अमर आत्मा का प्रकाश नहीं बुझ सकता। जीवन भर वे जो शिक्षा देते रहे वे शिक्षाएं अनन्तकाल तक अबाध गति से देते रहेंगे। सुनने वाले उसी श्रद्धा से उनके उपदेशों को सुनते रहेंगे जैसे कि उनके मुख से निकले हुए प्रवचनों को सुनते थे। और उसी प्रकार शिक्षा ग्रहण करते रहेंगे जिस प्रकार उनके द्वारा उस जीवन काल में ग्रहण करते थे।
विष का प्याला पीकर भी सुकरात मरे नहीं हैं, क्रूस पर लटकाये जाने के बाद भी ईसामसीह का अन्त नहीं हुआ, अपने जीवन काल में उनके उपदेशों को स्वीकार करने वाले उंगलियों पर गिनने लायक शिष्य थे, पर क्रूस के लटकाये हुए मसीहा की शक्ति अत्यधिक बढ़ गई और आज लगभग आधी दुनिया ने उनका शिष्यत्व स्वीकार किया हुआ है। महात्मा गान्धी ने अपने जीवन काल में असंख्यों को प्रकाश दिया पर इस बलिदान के बाद तो उनकी शक्ति ईसामसीह की भाँति अनेक गुनी बढ़ गई है और वे अपने सिद्धान्तों को, आदर्शों को जनसाधारण के हृदयों में बिठाने के लिए अधिक तत्परता से कार्य करेंगे।
यह सच है कि बापू के उठ जाने से हमारी आँखों के आगे अन्धकार आ गया है चारों ओर सूना-सूना दिखाई पड़ रहा है। पर यह भी सच है कि वह ज्योति और भी अधिक प्रकाश के साथ दीप्तिमान हो रही है और जिन स्थानों तक वह प्रकाश अब तक नहीं पहुँच पाया था वहाँ भी उस अलौकिक आभा की किरणें जगमगाने लगी हैं।
बापू का अभाव, उनकी निर्मय हत्या, हत्यारे का उन्माद यह तीनों ही बातें हमें दारुण दुख दे रही हैं, हमारे हृदयों में अपार वेदना उमड़ रही है फिर भी हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं हैं बापू हमारे बीच में से गये नहीं हैं, उनकी स्थूल वाणी अब सूक्ष्म होकर अधिक शक्ति के साथ मानव हृदयों में स्फुरता उत्पन्न कर रही है। उनकी हत्या हमारे लिए कितनी ही लज्जा की बात क्यों न हो पर स्वयं बापू के लिए वैसी ही शानदार है जैसा उनका जीवन शानदार था। इस हत्या ने उनके महाप्रताप और उज्ज्वल यश को हजारों-लाखों गुना बढ़ा दिया है।
हत्यारे का उन्माद गान्धी जी के शरीर के लिए जितना घातक सिद्ध हुआ उससे असंख्य गुना घातक उन उद्देश्यों के लिए सिद्ध हुआ जिनको पूरा करने के लिए वह हत्या करने आया था। आज साम्प्रदायिकता बेमौत मर रही है। वह इसलिए नहीं मर रही है कि सरकार उसका दमन कर रही है या करेगी वरन् इसलिए मर रही है कि बापू की हत्या के साथ साथ हर व्यक्ति के मन में उनके लिये घोर घृणा उत्पन्न हो गई है। जो लोग कल तक साम्प्रदायिकता से सहानुभूति रखते थे आज उनके हृदय पलट गये हैं वे स्वयमेव उसकी हानि को अनुभव कर रहे हैं और उसका परित्याग कर रहे हैं। जो लोग स्वभावतः कट्टर पंथी थे वे अब लुँज पुँज हो गए क्योंकि जन साधारण के मन में उमड़े हुए विरोध के सम्मुख अब वे अपनी बात प्रकट करने का साहस नहीं कर सकते। इस प्रकार हत्यारा जिन उद्देश्यों को परिपुष्ट एवं विजयी बनाने के लिए गान्धी के ऊपर आक्रमण करने चला था, उसके आक्रमण से उन उद्देश्यों की ही अन्त्येष्टि हो गई। बापू जीवित रहकर सांप्रदायिक उन्माद पर उतना काबू नहीं पा सकते थे जितना कि अब अपना रक्त तर्पण करके उस पर काबू पा रहे हैं-उसका नाश कर रहे हैं।
हमारे बापू महाप्रयाण कर गये हम उनके लिए रो रहे हैं, हमारी आँखें खारे जल की अविरल धारा से उनके लिए श्रद्धाँजलियाँ अर्पण कर रहीं हैं, रह रह कर कलेजे में उठने वाली हूक हमारा छाती को खाली किये दे रही है, पर इस विषम वेला में भी हमें एक प्रकाश दीख रहा है वह है बापू की अमर आत्मा का, अखण्डज्योति का, प्रकाश। उनका बल अनेक गुना बढ़ गया है, अब वे सीमित शरीर बन्धनों से मुक्त होकर विमुक्त वातावरण में विचरण कर रहे हैं और हमारा पथ प्रदर्शन पहले की अपेक्षा और भी अधिक दृढ़ता से कर रहे हैं।
बापू सत्य के शोधक थे, प्रेम के पुजारी थे, न्याय के देवता थे। जिसे उन्होंने सत्य समझा उसके लिए अगाध श्रद्धा और अटूट दृढ़ता रखी। वे पाप से घृणा करते थे पर पापियों के लिए भी उनके हिमालय से उच्च हृदय में प्रेम की, करुणा की दया की, क्षमा की अजस्र धारा बहती थी। न्याय के लिए - पददलित भारत पुत्रों के लिए वे ब्रिटिश सरकार जैसी सत्ता से खाली हाथ होते हुए भी लड़े। अछूतों के लिए वे सारे समाज से लड़े। कन्ट्रोलों को तुड़वाने के लिए वे सरकार से लड़े और अन्तिम दिनों में वे धर्म का पक्ष लेकर साम्प्रदायिक उन्माद से लड़ रहे थे। जिन उद्देश्यों के लिए वे जीवित थे उन्हीं के लिए जूझ गये।
बापू, हमें प्रकाश दो, हम भी तुम्हारे आदर्शों के लिए, सत्य के लिए, प्रेम के लिए, न्याय के लिए जीवित रहना चाहते हैं उनके लिए ही-आपकी भाँति हम भी अपना उत्सर्ग करना चाहते हैं। बापू हमें प्रकाश दो-और अधिक प्रकाश दो।
----***----