Magazine - Year 1954 - Version 2
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विश्वा द्वेषाँसि प्रमुमुग्ध्स्मत्। ऋग. 4।1। 4
हे प्रभो! हम से सब द्वेषों को पूरी तरह छुड़ा दो।
अश्रद्धामनृतेष्दधात श्रद्धाँ सत्ये प्रजापतिः।
यजु. 19/77 ।
प्रभु ने झूँठ में अश्रद्धा को और सत्य में श्रद्धा को रखा है।
अशितावत्यतिथौ अश्नीयात्। अथर्व 9। 6। 8
अतिथि को खिला देने पर ही स्वयं खावे।