Magazine - Year 1954 - Version 2
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Language: HINDI
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आगामी कार्यक्रम की रूपरेखा
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अपनी आत्मा का कल्याण करने के लिए हमें अपने पारिवारिक उत्तरदायित्वों को पूर्ण करने के साथ साथ आध्यात्मिक साधना तथा लोक सेवा के दो महान कर्त्तव्यों को भी पूरा करना है। लोक सेवा के अनेक कार्य हैं, सभी का महत्व है, पर साँस्कृतिक पुनरुत्थान का लोक सेवी कार्यक्रम ऐसा है जिसकी महानता अन्य सभी कार्यक्रमों से अधिक है। गरीबी और बेकारी के लिए उद्योग का विकास होना चाहिए, अस्वस्थता और दुर्बलता निवारण के लिए पौष्टिक खाद्य और व्यायाम का प्रसार होने की आवश्यकता है। सरकार पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा बहुत से उपयोगी कार्य प्रारम्भ कर रही है। अनेक संस्थाएं, राजनैतिक पार्टियाँ अपने-अपने ढंग से जनता की सुख-सुविधाओं को बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील है। ये सभी कार्य सराहनीय हैं। अच्छी भावना, अच्छी बुद्धि और अच्छी प्रक्रिया के साथ प्रारम्भ किया हुआ प्रत्येक कार्य उत्तम ही होता है। इन उत्तम कार्यों में सर्वोत्तम कार्य यह है जिसके ऊपर मनुष्य जाति का आधार और भविष्य निर्भर है। भावना की दृष्टि से यदि राष्ट्र गिरा हुआ रहेगा तो शारीरिक, आर्थिक, बौद्धिक, राजनैतिक, दृष्टि से होते हुए भी सुखी रहना संभव न हो सकेगा। निकृष्ट भावनाओं, पतित विचारधाराओं वाले मनुष्य आत्म अभ्यास, आत्मगौरव तथा आत्मज्ञान खो बैठते हैं फलस्वरूप उनकी साँसारिक उन्नतिशीलता गरम तवे पर पानी का बूंदों की तरह नष्ट हो जाती है। और उनके हिस्से में केवल क्रोध ही शेष रहता है।
इसलिए सब प्रकार की उन्नति एवं सब प्रकार लोक सेवा में सर्वश्रेष्ठ जनसाधारण की मानसिक स्थिति को व्यवस्थित करना है, इसी का नाम साँस्कृतिक पुनरुत्थान है। इसी के कारण हम लोग भूतकाल में महान थे और इसी आधार पर भविष्य में अपने खोये हुए गौरव को प्राप्त करने में समर्थ हो सकेंगे। हम लोगों के लिए इसी कार्यक्रम की भूमिका को सम्पादन करना उचित होगा।
गत मास की अखण्ड-ज्योति में साँस्कृतिक पुनरुत्थान की व्यवहारिक योजना प्रस्तुत की जा चुकी है। बीस सूत्री कार्यक्रम विस्तार पूर्वक बनाया जा चुका है। उन्हें कार्यान्वित करने के लिए हमें जन साधारण के सामने अपनी संस्कृति की उपयोगिता सिद्ध करनी पड़ेगी क्योंकि यह बुद्धि प्रधान युग है किसी को कोई बात तर्क, प्रमाण, उदाहरण, विज्ञान, आदि के आधार पर उपयोगी सिद्ध नहीं कर दी जाती तब तक केवल प्राचीनता के आधार पर उसे मानने के लिए तैयार नहीं किया जा सकता। किसी व्यक्ति को किसी तथ्य के संबंध में यदि गहरी मनोभूमि तक प्रभावित कर दिया जाय तो वह उस पर अमल करने को तत्पर हो सकता है। एक प्रकार का वातावरण बना देने पर ही कई व्यक्ति प्रभावित होते हैं और उस दिशा में चलने को उत्साहित हो जाते हैं। स्पष्टतः स्थूल से सूक्ष्म की शक्ति अधिक है। पहले हर वस्तु विचार रूप में होती है फिर क्रिया रूप में आती है। काम विचार का ही फलितार्थ है। पहले कोई बात विचार भूमिका में आती है और तत्पश्चात् अवसर पाकर वह कार्य रूप में परिणत हो जाती है। साँस्कृतिक पुनरुत्थान की प्रक्रिया पहले जनसाधारण के बुद्धि क्षेत्र में संचारित करनी पड़ेगी तभी उसका कार्यरूप में परिणत होना संभव हो सकेगा।
(1) भारतीय संस्कृति की महत्ता और उपयोगिता प्रतिपादन करने के लिए तर्क, प्रमाण, विज्ञान, उदाहरण, लाभ आदि के आधार पर गंभीर अन्वेषण करना।
(2) उस अन्वेषण के निष्कर्षों को वाणी तथा लेखनी द्वारा जनता के मस्तिष्क में गहराई तक प्रवेश कराना।
(3) स्वयं उन आदर्शों के अनुकूल चलने का प्रयत्न करना और दूसरों को उस मार्ग पर चलने के लिए प्रोत्साहन देना।
यह तीन ही कार्य क्रम ऐसे हैं जिनकी आवश्यकता एवं परिस्थिति के अनुसार अनेक प्रकार के आयोजन किये जा सकते हैं। (1) सभाओं द्वारा इन तथ्यों का प्रचार (2) साप्ताहिक, पाक्षिक या पारिवारिक सत्संगों का जगह-जगह आयोजन करके उन विचारों का विस्तार (3) समय-समय पर व्यक्तिगत वार्तालाप द्वारा उन विषयों की चर्चा (4) इन विषयों पर खोजपूर्ण समस्त साहित्य की रचना (5) उन पुस्तकों को स्वयं मंगा कर लोगों को पढ़ कर बताते रहने की सेवा व्यक्तिगत रूप से उसी प्रकार करते रहना जैसे कोई चलता-फिरता पुस्तकालय कर सकता है। (6) ऐसे साहित्य को बेचने के लिए उसी प्रकार फेरी लगाना जिस प्रकार ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए अमीर तथा ऊंचे अफसर भी पैसे दो-दो पैसे की पुस्तकें बेचने निकलते हैं और इसमें कोई शर्म न समझकर एक परमार्थ समझते हैं। (7) षोडश संस्कारों में से जितने संस्कार आसानी से हो सकें उन्हें अधिक लोगों के घरों में कराने की ऐसी व्यवस्था करना जो अधिक खर्चीली न हो (8) त्यौहारों पर सामूहिक सभाएं करना और उस पर्व की महत्ता को समझाना (9) ऐसे पण्डित और उपदेशक तैयार करना जो संस्कार, त्यौहार, कथा, प्रवचन आदि द्वारा उन साँस्कृतिक रहस्यों को भली प्रकार समझा सकें। (10) जप यज्ञ आदि के सामूहिक आयोजन करना (11) गायत्री मन्त्र लेखन तथा नियमित उपासना पर अधिक बल देना (12) समय-समय पर ऐसे शिक्षण शिविरों का आयोजन जिनमें शिक्षार्थियों को साँस्कृतिक पुनरुत्थान के संबंध में सभी बातें भली प्रकार समझाई जावें (13) संगीत, प्रदर्शनी, एकाँकी नाटक, वार्ता, प्रदर्शन, मैजिक लालटेन, कीर्तन, कथा, प्रवचन, प्रतियोगिता, गोष्ठी सभा आदि द्वारा साँस्कृतिक सिद्धान्तों की ओर लोगों की चित्त वृत्तियाँ मोड़ना! (14) कार्यक्रमों की पूर्ति के लिए आर्थिक व्यवस्था करना इस प्रकार के कार्यों में हम सब लोग विशेष रुचि लें और अपनी परिस्थिति के अनुसार जो कार्य बन सके उसके अनुसार अपने-अपने क्षेत्र में कार्य आरम्भ करें तो निश्चय ही बहुत कार्य हो सकता है। हमारा परिवार इतना बड़ा है कि यदि सब लोग सच्चे मन से इस दिशा में कदम उठावें तो आशाजनक कार्य हो सकने में सफलता मिल सकती है।
साँस्कृतिक प्रचार हमारा मुख्य कार्यक्रम होना चाहिए। धर्म का संदेश अधिक से अधिक विस्तृत जन समुदाय तक पहुँचाने के लिए जो जितना परिश्रम एवं त्याग कर सकता हो उतना अवश्य ही करना चाहिए। मथुरा का केन्द्र इस दिशा में बहुत कार्य करने जा रहा है। (1) घोर परिश्रमपूर्वक साँस्कृतिक महत्ता को प्रतिपादन करने वाला अनुसंधान (2) उन सिद्धान्तों को फैला सकने वाले कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण (3) कठोर साधनाओं तपश्चर्याओं द्वारा वह शक्ति उत्पन्न करना जिससे यह महान साँस्कृतिक अभियान सफल हो सके। प्रधान रूप से यह तीन कार्यक्रम मथुरा में आरम्भ होने जा रहे हैं। इनके और भी सहायक कार्य समय-समय पर होते रहेंगे।
मनुष्य जीवन के उत्तरदायित्व को पूर्ण करने के लिए, आत्मकल्याण के लिए साँस्कृतिक पुनरुत्थान की पुनीत लोक सेवा में हम सब को प्रयत्नशील होना है। हम अपने सभी परिजनों को इस युग परिवर्तनकारी राष्ट्र निर्माण कार्य के लिए आह्वान करते हैं। हम लोग कंधे से कंधा मिलाकर इस दिशा में कार्य संलग्न होंगे और एक आदर्श की स्थापना करेंगे ऐसी भागवत प्रेरणा हमें प्रत्यक्ष दिखाई दे रही है।
महान कार्य ही जीवन के सदुपयोग के प्रतीक हैं। उसका मनुष्य जीवन सफल है जो जीवन को सत्कार्यों में लगा सके। पेट पालने में तो पशु और कीड़े मकोड़े भी प्रवीण होते हैं। मनुष्य जन्म इससे ऊँचे कार्य करने के लिए प्राप्त होता है। अपना और दूसरों का कल्याण करने में जिसकी प्रवृत्ति है समझना चाहिए कि वही मनुष्य मनुष्य जन्म की महत्ता को समझ सका है। आइये हम सब मनुष्य जीवन का महत्व समझें और उसे माता के चरणों में अर्पण करके अपने को धन्य बना दें।