Magazine - Year 1965 - Version 2
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Language: HINDI
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छह प्रान्तों में युग-निर्माण सम्मेलनों की शृंखला
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युग-निर्माण योजना का उद्देश्य स्वरूप, सन्देश और कार्यक्रम ‘अखण्ड-ज्योति’ परिवार के सभी परिजनों और उसके संपर्क में आने वाले विचारशील लोगों को समझाने के लिए हमने आगामी शीत ऋतु में चार महीने का दौरा करने का निश्चय किया है। माघ सुदी प्रतिपदा से पूर्णिमा तक तो 15 दिन का शिविर तपोभूमि में चलेगा इन 15 दिनों को छोड़कर कार्तिक मार्गशीर्ष पौष, और माघ इन चार महीनों में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात इन छह प्रान्तों में जहाँ व्यवस्था और आवश्यकता होगी वहाँ जाने का प्रयत्न करेंगे। मार्गशीर्ष का पूरा महीना उत्तर प्रदेश । पौष में 15 दिन बिहार । पौष सुदी प्रतिपदा से माघ की अमावस्या तक एक महीने मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र, तथा फाल्गुन का महीना राजस्थान और गुजरात के लिए रखने का विचार किया गया है।
एक महीने में एक क्षेत्र का कार्यक्रम रहने से एक स्थान से दूसरे स्थान को जाने में समय और खर्च की बचत होती है। इसलिये कार्यक्रम शृंखलाबद्ध ही बनाये जाने चाहिए।
यह छोटे सम्मेलन वस्तुतः विचारगोष्ठियों के रूप में होने चाहिए। इन्हें और उस क्षेत्र के ‘अखण्ड-ज्योति’ परिवार के परिजनों एवं विचारशील लोगों को विशेष रूप से निमन्त्रण पत्र भेजकर बुलाया जाय। उनके ठहरने, खाने-पीने आदि का प्रबन्ध किया जाय। प्रातःकाल एक कुण्डी या पाँच कुण्ड हवन भी रखा जा सकता है। पर उसमें सवेरे का थोड़ा ही समय लगाया जाय ताकि बाकी समय विचार विनियम के लिये रह सके। सम्मेलन दो दिन का रहना पर्याप्त है। जिन्हें सम्मिलित होना हो वे दोनों दिन उपस्थित रहें ऐसा प्रबन्ध किया जाना चाहिये। यदि दूर से लोग आने हों तो उन्हें सम्मेलन के पूर्व ही शाम तक आ जाना चाहिये ताकि पूरी बात सुनना और समझना उनके लिए सम्भव हो सके।
अपने निजी गाँव में ही सम्मेलन बुलाने की खींचतान नहीं करनी चाहिए वरन् स्थान ऐसा रखा जाना चाहिए जहाँ यातायात की सुविधा हो और इस क्षेत्र में दूर-दूर से आने वाले लोग बिना किसी कठिनाई के आ सकें, उन्हें सवारी की सुविधा हो सके। जहाँ यातायात के साधन नहीं है ऐसे गहराई में अवस्थित देहातों में दूर के लोग नहीं पहुँच पाते और फलतः उस आयोजन का उद्देश्य ही नष्ट हो जाता है। जहाँ तक हो सके रेलवे स्टेशनों के समीप ही स्थान रखा जाय। बसों में लम्बी यात्रा करने में हमें उलटी आती है और बीमार पड़ जाते हैं, इसलिये जहाँ लम्बी यात्रा हो वहाँ भी कार्य न रक्खे जाय।
जिन शाखाओं को अपने यहाँ इस प्रकार के सम्मेलन बुलाने की सुविधा हो, उन्हें अपने निमन्त्रण हमें इस जुलाई मास में ही भेज देने चाहिए। ताकि उन सब की शृंखला जोड़कर अगस्त में तिथियाँ निश्चित कर सकना हमारे लिये सम्भव हो सके। निश्चित रूप से शाखाएं ऐसे सम्मेलन उत्साहपूर्वक अधिक संख्या में बुलाना चाहेंगी और अपना समय सीमित ही रहेगा, इसलिये सभी के निमन्त्रण स्वीकार नहीं किये जा सकेंगे। बहुतों को अगले वर्षों के लिये भी स्थगित रखना होगा इसलिये जहाँ अधिक उत्साह और व्यवस्था हो उन शाखाओं को अपना निमन्त्रण योजना में आवश्यक विलम्ब न करके जुलाई में ही परस्पर परामर्श करके अपने निश्चय की सूचना दे देना चाहिये। निश्चित प्रोग्राम बन जाने पर उसमें परिवर्तन करना सम्भव नहीं रहता। इसलिये समय से पीछे आये अनुरोधों को स्वीकार कर सकना आशक्य हो जाता है।
इस दौरे में हम इन छह प्रान्तों के प्रायः सभी परिजनों से, उनके परिवार वालों से मिलना चाहेंगे। इसलिए तिथियों के प्रोग्राम 15 अगस्त तक निश्चित कर दिये जायेंगे और उनकी सूचना 1 सितम्बर के अंक में छाप दी जायगी, जिससे इस क्षेत्र के सब प्रदेशों के लोग वहाँ पहुँचने की तैयारी कर सकें।
युग-निर्माण की महत्ता और उसमें ‘अखण्ड-ज्योति’ परिजनों का योग यह दोनों ही तथ्य अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। इसके द्वारा ऐतिहासिक परिवर्तन होने वाले हैं। इसलिये यह प्रचार यात्रा कार्यक्रम की विशेषता एवं उपयोगिता की दृष्टियों से बहुत-चढ़ी सिद्ध होगी।