Magazine - Year 1974 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
ब्रह्मवेत्ता याज्ञवल्क्य (kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
राजा जनक ने ब्रह्मवेत्ता याज्ञवल्क्य से पूछा—भगवन्, यदि संसार से सूर्य लुप्त हो जाय तो फिर मनुष्य किसकी ज्योति का आश्रय लेकर जीवित रहेंगे?
महर्षि ने सहज स्वभाव उत्तर दिया—उस स्थिति में चन्द्रमा से भी काम चलता रह सकता है।
यदि चन्द्रमा भी लुप्त हो जाय तब? —जनक ने फिर पूछा।
तब अग्नि की ज्योति के सहारे संसार का काम चलता रहेगा। याज्ञवल्क्य ने नया समाधान बताया।
जनक का समाधान तब भी न हुआ। महर्षि के उत्तरों के बाद उनकी शंकायें फिर भी उठती रहीं। अग्नि के न रहने पर वाक् शक्ति को विकल्प बताया गया और कहा वाणी भी अग्नि के समान ही तेजस्वी है लोग उसका आश्रय लेकर भी जीवित रह सकते हैं।
जनक का आग्रह ऐसी ज्योति का विकल्प ढूंढ़ना था जिसका अन्त कभी भी न होता हो और जिसके कभी भी लुप्त होने की आशंका न हो।
याज्ञवल्क्य ने अत्यन्त गम्भीर होकर कहा—राजन् वह आत्म−ज्योति ही है जो कभी भी नहीं बुझती। उससे प्रकाश ग्रहण करने वाले को कभी भी अन्धकार का कष्ट नहीं सहना पड़ता।