Magazine - Year 1984 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
पुरुषार्थ देव की अभ्यर्थना-आराधना
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
बीमारियों को सभी ने दुत्कारा तो वे पहाड़ के पास गईं और वे बोलीं, आपकी सहनशीलता और उदारता प्रख्यात है। हमें सभी दुत्कारते हैं, आप हमें आश्रय दें, तो यहीं रहकर दिन गुजारें।
पहाड़ ने स्वीकार कर लिया। वे चैन से रहने लगीं। रोज ही पूछती, पिताजी कोई सेवा हो तो बताना। पहाड़ हँस भर देता।
एक बार उस क्षेत्र के किसानों का मन आया कि पहाड़ काटकर खेत बनाये और नई जमीन हथियाएँ। एक ओर से किसानों की सफलता देखकर चारों ओर लोग चिपट गये और पहाड़ का बहुत-सा हिस्सा कट गया। बीच का टीला भी गिरने जैसा हो गया।
पहाड़ चिन्ता में बैठा था। बीमारियों ने चिन्ता का कारण पूछा और कोई सेवा हो तो बतायें, सदा की भांति पूछा।
पहाड़ को एक सूझ सूझी। बीमारियों से कहा। तुम लोग इन काटने वालों से चिपट पड़ो और यहाँ से भाग दो। नहीं तो हमारा सफाया हो जायगा। तुम्हें भी भगाना पड़ेगा।
बीमारियाँ बहुत दिन से ठाली बैठी थीं। उत्साह पूर्वक चल पड़ीं और पहाड़ काटने वालों से पूरी तरह चिपट गईं। फिर भी पहाड़ कटता रहा। काटने वालों ने हार नहीं मानी।
कितने ही दिन बीत गये। पहाड़ ने बीमारियों से पूछा- लड़कियों, इतने दिन में क्या किया? एक भी बीमार नहीं पड़ा और खुदाई ज्यों की त्यों चलती रही।
बीमारियों ने अपनी हार पर बड़ी लज्जा प्रकट की और कहा- यह लोग इतना पसीना बहाते हैं कि उनके साथ साथ हमें भी बाहर निकलना पड़ता है, ठहरने की जगह ही नहीं मिलती।
** ** **
एक श्रमिक पत्थर काटते-काटते थक गया तो सोचने लगा कि किसी बड़े मालिक का पल्ला पकड़े ताकि अधिक लाभ मिले और कम मेहनत पड़े।
सोचते-सोचते वह पहाड़ पर चढ़ गया और शिखर अवस्थित देवों की प्रतिमा से याचना करने लगा। उसने भी बात सुनी नहीं, तो सोचा बड़े देवता की आराधना करें। बड़ों में बड़प्पन अधिक होता है।
बड़ा कौन? यों उसे सूर्य सूझा। सूर्य की आराधना करने लगा। एक दिन बादल आये और सूर्य को अपने अंचल में छिपा लिया। श्रमिक सोचने लगा- सूर्य से बादल बड़ा है। यों उसने अपना इष्ट देव बदला और बादलों की अभ्यर्थना करने लगा।
फिर सोचा बादल तो पहाड़ से टकराते और सिर फोड़कर वहाँ समाप्त हो जाते हैं। इसलिए पहाड़ का भजन क्यों न करें।
बाद में सूझा कि पहाड़ को तो रोज हमीं काटते हैं। अपने आपको सबसे बड़ा क्यों न माने।
इसके बाद वह सबको छोड़कर अपने आप को सुधारने लगा और कुछ दिन बाद पुरुषार्थ के सहारे उस क्षेत्र के बड़ों में गिना जाने लगा।
** ** **
देवता, चिरकाल से अनुरोध करते रहे कि लक्ष्मी जी असुरों के यहाँ न रहें। पर लक्ष्मीजी ने असुर परिकर छोड़ा नहीं। एक दिन अनायास ही लक्ष्मी जी देवलोक में आ गईं। देवताओं ने असमंजस व्यक्त किया कि वे असुरों को छोड़कर चल क्यों पड़ीं।
लक्ष्मी ने कहा- सुर और असुर होने का पुण्य पाप भगवान देखते हैं। मेरा काम पराक्रम और पुरुषार्थ की जाँच पड़ताल करना है। अब वे बदल गये हैं आलस्य और दुर्व्यसन अपनाने लगे हैं। ऐसे लोगों के साथ मेरा निर्वाह कैसे हो सकता था।