Magazine - Year 1986 - Version 2
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Language: HINDI
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इस वर्ष का महत्वपूर्ण कार्यक्रम एक लाख यज्ञ एवं सामूहिक मंत्रोच्चारण
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युग सन्धि की गतिविधियां अब क्रमशः तीव्र से तीव्रतम होती जा रही है। संसार बिखरा हुआ है इसलिए जो दुर्घटनाएं, दुरभिसन्धियाँ घटित हो रही हैं, उनका छितराया हुआ स्वरूप वैसा दृष्टिगोचर नहीं होता, जैसा कि यह सब एकत्रित होने पर दीख पड़ता है। फिर भी विश्व में जो कुछ इन दिनों घटित हो रहा है, निकट भविष्य में जो घटित होने जा रहा है, वह भयावह है। उसे एकत्रित करके देखा जाय तो प्रतीत होगा कि सृजन से पूर्ववर्ती होने वाला ध्वंस क्रमशः आगे ही बढ़ रहा है। पीछे नहीं हट रहा।
इसके पीछे अदृश्य वातावरण, प्रकृति का प्रकोप और मनुष्य समुदाय का विकृत अन्तःकरण है। कारण गहरे भी हैं और विषम भी। इसलिए स्थिति की गम्भीरता हमें समझनी चाहिए और विनाश के प्रतिरोध में जो करना चाहिए, वह करना चाहिए।
प्रस्तुत विपन्नताओं का निराकरण कैसे हो? इसके उत्तर में एक ही उपाय हाथ रहता है कि दुर्भावनाओं का समाधान कर सकने में समर्थ अध्यात्म उपचारों का आश्रय लिया जाय। आग ईंधन से नहीं, पानी डालने से बुझेगी।
भौतिक समस्याओं का भौतिक प्रयत्नों से समाधान होता है। लाठी का लाठी से, घूँसे का घूँसे से, धन का धन से, बल का बल से जवाब दिया जा सकता है। किन्तु आज की समस्या सूक्ष्म जगत तक जा पहुँची है। उसका निराकरण अन्तःकरण की गहराई में सन्निहित शक्ति के सहारे ही सम्भव है। वृत्रासुर की शक्ति से जब देवता भी न जीत सके तो ऋषि की अस्थियों से बना वज्र उस संकट को टालने में समर्थ हो सका। इन दिनों भी कुछेक की महती साधना तपश्चर्या चल रही है। पर इस बार उतना ही पर्याप्त न होगा। इन दिनों तो सामूहिक संकल्प शक्ति से महिषासुर वध की कथा ही पुनरावृत्ति के रूप में दुहरानी पड़ेगी।
प्रज्ञा परिवार एक समूचा देव परिवार है। उसमें जन्मान्तरों के संचित संस्कारों वाली आत्माएं ही प्रयत्नपूर्वक एकत्रित की गई हैं। आवश्यकता सभी के समन्वित प्रयत्न की है। अब तक जप और पाठ का ही क्रम चला है अब इसमें यज्ञ प्रक्रिया भी सम्मिलित करनी होगी। सम्भव हो तो हर रविवार या पूर्णिमा को सामूहिक यज्ञ का क्रम चलायें। जन्म दिनों के अवसर पर एक कुण्डी यज्ञ होता रहे तो भी इतने बड़े समुदाय के जन्म दिनों की संख्या एक लाख होती है। इतने तो अपने वरिष्ठ प्रज्ञा पुत्र ही हैं। उन सबका जन्मदिन मनाने से एक वर्ष में एक लाख यज्ञ हो जाते हैं। इसमें सामूहिक मंत्रोच्चार से उत्पन्न प्राण ऊर्जा का समावेश होगा। अतएव उसकी शक्ति और भी अधिक बढ़ जायेगी। कुण्डों की और आहुतियों की संख्या से ही यज्ञ शक्ति की गरिमा नहीं बढ़ती वरन् सुपात्र मन्त्रोच्चारणकर्त्ताओं की कितनी प्राण-शक्ति सम्मिलित हुई, यह भी देखा जायेगा। चूँकि हर जन्म दिन में बड़ी उपस्थिति होती है और सभी मन्त्रोच्चारण करते हैं अतएव इन यज्ञों में वेदी एक ही होने और आहुतियों की संख्या सीमित रहने पर भी मन्त्रोच्चारण अधिक होने से स्वभावतः उसकी शक्ति बढ़ जायेगी। वातावरण संशोधन हेतु इस समवेत शक्ति की ही आवश्यकता है।
आजकल हमारे स्वयं के प्रवचन और मन्त्रोच्चारण नहीं होते, पर टेप रिकार्डर के माध्यम से हम अपने मनोभावों को दूसरों तक पहुँचाने की प्रक्रिया अपनाते हैं। बैखरी वाणी की सीमा इतनी ही है। मध्यमा, परा, पश्यन्ति वाणियों को प्रयोग इन दिनों भी होता है। पर वह होगा टेप रिकार्डर के माध्यम से। 24 गायत्री मन्त्रों का हमारी वाणी में एक लयबद्ध टेप रिकार्ड हुआ है। यह परा पश्यंति वाणी का है। जिन यज्ञों में हमारी वाणी भी सम्मिलित करनी हो वे इस टेप उच्चारण के साथ अपना उच्चारण भी मिला दें। इस प्रकार उसकी शक्ति और भी कई गुनी बढ़ जायगी। इस वर्ष 1 लाख यज्ञ होने और उसमें 24 लाख से भी कई गुने अधिक हमारे उच्चारण सम्मिलित रहने का आयोजन है। जिन्हें आवश्यकता है वे हमारे द्वारा उच्चारण किये टेपों को भी मँगा सकते हैं। वैसे बिना यज्ञ के भी हमारे उच्चारण में अपना उच्चारण मिलाकर दैनिक या साप्ताहिक अथवा जन्मदिन आदि के अवसर पर इस उपाय को सम्मिलित किया जा सकता है।