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अमरत्व का शैशवकाल- जीवन
तं पश्यते निष्कलं ध्यायमानः
देवत्व है अन्तिम लक्ष्य जिसका, वह है मनुष्य
माता शबरी की सच्ची भक्ति
दिग्भ्रान्त मनुष्यता को दिशा सुझाती उपनिषदों की वाणी
विज्ञान अध्यात्म में विभेद नहीं, अभेद है
कायसत्ता के तीन कलेवर एवं उनका अनावरण
मरने पर व्यर्थ का बवाल क्यों?
मानवी काया एक उच्चस्तरीय विद्युत् भाण्डागार
सम्पदा का अनर्थकारी प्रलोभन
कैसा था पुरातन कालीन सतयुग
सुसंतति का वरदान
शून्य में समाया अनन्त का वैभव
रसायन बदलेंगे अब मनुष्य का स्वभाव
अग्निहोत्र से समूह चिकित्सा
प्राणऊर्जा से उपचार का विज्ञानसम्मत आधार
सिद्धों की सहायता सदैव पुण्यजनों के लिए
सफलता आत्मविश्वासी को मितली है
संगीत से होता है सद्भावनाओं का उभार
यह भ्रान्ति मिटनी ही चाहिए
समझ्िाये अपने मन की भाषा को
परमार्थ के लिए अनिवार्य है साहस
क्षमताओं की दृष्टि से पीछे नहीं हैं अन्यान्य जीव भी
स्फूर्तिदायिनी योगनिद्रा अभ्यास का अंग बने
एक अनसूलझा प्रश््न
प्रकाशरश्मियों की प्रभावकारी सार्मथ्य
पुण्यतोया गंगा कहीं लुप्त न हो जाय
अन्यान्य धर्म भी देते हैं पुनर्जन्म की साक्षी
मनुष्य द्विज बनते हैं संस्कार से
नवसृजन हेतु सक्रिय प्रज्ञा परिकर
अपनों से अपनी बात ः प्रज्ञापीठें सजीव रहें, सक्रिय बनें
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AMRITVANI
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-
Year 1988 - Version 1
Media: SCAN
Language: HINDI
अपनों से अपनी बात ः प्रज्ञापीठें सजीव रहें, सक्रिय बनें
First
71
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Other Version of this book
Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
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Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
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