Magazine - Year 1991 - Version 2
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पूज्यवर की स्मृति में एक विशेष डाक टिकट का विमोचन
भारत सरकार के संचार विभाग द्वारा 27 जून, 91 गुरुवार के दिन सायं 5 बजे तालकटोरा स्टेडियम में परम पूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी की पावन स्मृति में एक डाक टिकट का उपराष्ट्रपति महोदय की उपस्थिति में विमोचन होने जा रहा है। प्रवेश आमंत्रित अतिथियों के लिए कार्ड के माध्यम से होगा। वन्दनीया माताजी भी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगी।
साधारण समय और विशेष समय में, साधारण व्यक्ति और विशेष व्यक्ति में, यही विशिष्ट अंतर होता है। तत्काल निर्णय व कदम उठाने तक की प्रक्रिया इतनी तेजी से विशिष्ट समय पर सम्पन्न होती है कि सोच विचार का, अनुकूल अवसर की तलाश का, साथियों की सलाह लेने का कोई अवसर ही नहीं मिल पाता! “डू ऑर डाई” “करना या मरना”, “करिष्ये वा मरिष्ये वा” की रीति-नीति ही अपनानी पड़ती है, नहीं तो मुहूर्त निकल जाने व फिर सिर धुन-धुन कर पछताने का ही उपक्रम हाथ लगता है।
यह समय आदर्शवादी साहसिकता अपनाने वाले, समय को पहचान कर अपनी चाल बदलने वाले, अग्रगामी पुरुषार्थ कर दिखा सकने वाले, अन्तः प्रेरणा का अनुसरण कर तुरन्त कदम उठाने वाले उदारचेताओं की प्रतीक्षा कर रहा है। महाकाल का निमंत्रण उन्हीं के लिए है और उसी से समाज रूपी दूध के कड़ाह में उबल कर उछलकर मलाई की तरह ऊपर आकर तैरने का आह्वान किया जा रहा है। आशा की जानी चाहिए कि जहाँ कहीं भी ऐसी विशिष्टता होगी, दूध के ऊपर तैरती दिखाई देने लगेगी।
शाँतिकुँज को परम पूज्य गुरुदेव ने इक्कीसवीं सदी के नवयुग की गंगोत्री की उपमा दी है। यह शाँतिकुँज है महाकाल का घोंसला है। बहुविधि उत्तरदायित्व, जो युग सृजन के अभियान के अंतर्गत यहाँ हाथ में लिये गये हैं, पूरे हों, इसके लिए हर योग्यता के भावनाशील, कर्मनिष्ठ व्यक्तियों की यहाँ आवश्यकता है। अपनी शर्तें न लादकर दिये जाने वाले दायित्वों को निभा सकने वाले विनम्र और समर्पित व्यक्ति ही युग देवता की इस महत्वपूर्ण आवश्यकता को पूरा कर सकते हैं।
जिनके मन में समय के साथ जुड़कर कुछ विशिष्टता को प्राप्त कर सकने की हूक उठती हो, जो महाकाल के अवतारी रूप को कुछ-कुछ समझ पाये हों व समाज के प्रति अपने दायित्व को निभाने की वरिष्ठता प्रसुप्त रूप में जिनके अंदर विद्यमान हो, ऐसे पूर्ण अथवा आँशिक समयदानी कार्यकर्ताओं की शाँतिकुँज में आवश्यकता अनुभव की जा रही है। संख्या एक हजार हो तो भी कम है एवं एक लाख हो तो भी कम। कार्य क्षेत्र अति व्यापक है। बहुविधि क्रियाकलाप चलने हैं। समाज का मार्गदर्शन करने वाला, राजनीति को दिशा देने वाला एक समग्र तंत्र विकसित होना है। सभी एकटक निगाह लगाये इसी ओर देख रहे हैं। अब किसी भी स्थिति में राजतंत्र को, समाज तंत्र को उपेक्षित नहीं छोड़ा जा सकता। विभिन्न भाषाओं से लेकर देव संस्कृति के अतिव्यापक क्षेत्र में कार्य करने वाले अगणित प्रतिभाशाली इस कार्य में झोंकने पड़ सकते हैं। घर-घर अलख जगाने के लिए अनेकानेक परिव्राजकों को प्रशिक्षित कर केन्द्र से भारत व विश्व के कोने-कोने में भेजना पड़ सकता है।
आह्वान उनका है जो जानबूझ कर गरीबी ओढ़ने को तैयार हों। जिनकी मनःस्थिति ब्राह्मणोचित निर्वाह में रहकर पूरे मन से युग-नियंत्रण में अपने को खपा देने की हो। जिन के पास अपनी निज की व्यवस्था हो व दायित्वों से मुक्त हों, वे विचार विनिमय के बाद यहाँ आने की भूमिका आरंभ कर सकते हैं। कुछ के पास निजी व्यवस्था सीमित स्तर की हो, वे न्यूनतम निर्वाह लेकर भी यहाँ आने का सोच सकते हैं। तीसरे वे हो सकते हैं जिनके दायित्व तो सीमित हों परन्तु स्वयं की व्यवस्था न हो। उनके लिए ब्राह्मणोचित निर्वाह की यहाँ व्यवस्था की गयी है। योग्यता न्यूनाधिक हो सकती हो पर सर्वाधिक महत्व भावनाशीलता व अनुशासन प्रियता को दिया गया है। कुछ कर गुजरने व परम पूज्य गुरुदेव के ब्रह्मनिष्ठ जीवन के निमित्त जीने की जिनकी उमंग हो, उन सभी को प्रस्तुत गायत्री जयंती पर्व पर शाँतिकुँज का भावभरा आमंत्रण है।