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परिवर्तन की प्रसव पीड़ा
वारी तेरे नाउँ पर जित देखूँ तित तू
हवा युग परिवर्तन के अनुकूल ही बह रही है
प्रयास यांत्रिक नहीं चेतनात्मक उत्कर्ष की दिशा में चले
दरिद्रता की दवा पारस नहीं
मनुष्य है, जीता-जागता एक बिजली घर
हर जीवात्मा के लिए सुनिश्चित एक साधना-समर
संयम बरतें, सम्पन्न बनें
सनकों से भरी ये वसीयतें
शरीरमाद्यम् खलु धर्म साधनम्
शरीरमाद्यम् खलु धर्म साधनम्
मांगलिक प्रतीकः स्वस्तिक
नरमेध यज्ञ
गायत्री छन्दसामहम्
मानवी व्यक्तित्व के सूक्ष्मतम सूत्रधार
दृश्यमान वैभव-विस्तार ही सब कुछ नहीं
विपन्नताओं से उबरने का एक मात्र उपचार
नर-पिशाचों की नृशंसताएँ
प्रशिक्षण से प्रतिभा परिष्कार सम्भव
मूर्त्तिकार की तरह गढ़ता है, गुरु
सौम्य, निरापद दक्षिणमार्गी-साधना ही श्रेयस्कर
जीवन ऊर्जा का अनावश्यक अपव्यय रोकें
नवयुग की गंगोत्री, जिसमें भरी है विशिष्ट प्राणऊर्जा
संस्कृति-संदेश, मातृ-वंदना
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी (६ अप्रैल १९७६ को शान्तिकुञ्ज परिसर में दिया गया-उद्बोधन)
यज्ञ ऊर्जा के बहुआयामी लाभ
धारावाहिक विशेष लेखमाला-१३, युग पुरुष पूज्य गुरुदेव
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-
Year 1994 - Version 1
Media: SCAN
Language: HINDI
धारावाहिक विशेष लेखमाला-१३, युग पुरुष पूज्य गुरुदेव
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Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
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Version 1
Type: SCAN
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