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जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम
स्वभाव वश
इन्दि्रयाँ आत्मा का शत्रु नहीं, सेवक
आसक्ति भटकाती है हमें मौत के बाद
एक रूप ईसा का- एक शैतान का
पुनर्जन्म पर अब भी अविश्वास?
धन्य-धन्यः संत समागम
जीवन शक्ति के संवर्द्धन के निमित्त एक विलक्षण उपचार
कृपणता की कीच से उबरकर परामर्थ का अवलम्बन
विद्या विस्तार बनाम सद्ज्ञान संवर्द्धन
आइए! आत्मावलोकन करें
भविष्य वक्ता बना जा सकता है यदि..............
अपने लिए विनाशकारी अंजाम ही क्यों चुनें?
सृष्टि के अणु-अणु में सक्रिय परमात्म-सत्ता
ईस्टर द्वीप के विशाल प्रस्तर खण्डों का रहस्य
पंचतत्त्वों की इस काया को निरोग ऐसे रखें
चेत गया वह, जिसने यह मर्म जान लिया
नेत्रों को स्वस्थ व सशक्त कैसे बनाएँ रखें?
काश! अंतःकरण में महानता अवतरित हो सके
विकासवाद की अवधारणा मात्र चेतनात्मक ही
आप तो मात्र कर्म कीजिए
जगायें तो सही इस प्रसुप्त जखीरे को
श्रद्धा जगाती है सिद्धपीठों के संस्कारों को
परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- शक्ति भण्डार से स्वयं को जोड़कर तो देखें (गुरु पूणमा की पूर्व वेला में शान्तिकुञ्ज परिसर में १९७७ में दिया गया उद्बोधन)
अ. सविता! तुमको है नमन (कविता), ब. गुरुसत्ता के अंशज हैं हम (कविता)
विशेष धारावाहिक लेखमाला-१६, परम पूज्य गुरुदेव पं( श्रीराम शर्मा आचार्य- जो ब्राह्मणत्व का आदर्श निभाने इस धरित्री पर आए
अपनों से अपनी बात- (गुरु पर्व पर विशेष) अनुदानों की यह वर्षा सतत होती ही रहेगी
विनाश नहीं, सतत विकास ही एक मात्र नियति
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Magazine
-
Year 1994 - Version 1
Media: SCAN
Language: HINDI
पंचतत्त्वों की इस काया को निरोग ऐसे रखें
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Other Version of this book
Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...
Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...
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इन्दि्रयाँ आत्मा का शत्रु नहीं, सेवक
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काश! अंतःकरण में महानता अवतरित हो सके
विकासवाद की अवधारणा मात्र चेतनात्मक ही
आप तो मात्र कर्म कीजिए
जगायें तो सही इस प्रसुप्त जखीरे को
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परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- शक्ति भण्डार से स्वयं को जोड़कर तो देखें (गुरु पूणमा की पूर्व वेला में शान्तिकुञ्ज परिसर में १९७७ में दिया गया उद्बोधन)
अ. सविता! तुमको है नमन (कविता), ब. गुरुसत्ता के अंशज हैं हम (कविता)
विशेष धारावाहिक लेखमाला-१६, परम पूज्य गुरुदेव पं( श्रीराम शर्मा आचार्य- जो ब्राह्मणत्व का आदर्श निभाने इस धरित्री पर आए
अपनों से अपनी बात- (गुरु पर्व पर विशेष) अनुदानों की यह वर्षा सतत होती ही रहेगी
विनाश नहीं, सतत विकास ही एक मात्र नियति