Magazine - Year 1997 - Version 2
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Language: HINDI
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“भूत होते हैं” क्या इसमें अब भी कोई संदेह है?
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मानिए या न मानिए, फिर भी सच तो यही है कि भूत-प्रेत होते हैं, जो यह साबित करते हैं कि मरने के बाद भी इनसान का अस्तित्व रहता है। भूत-प्रेतों की ये घटनायें एक और भय एवं आतंक पैदा करती हैं, तो दूसरी ओर रोमांच कहीं-कहीं तो वे करुणा का पाठ बन जाते हैं। जान केनिंग ने अपने अध्ययन ‘फिफ्टी ग्रेट घोस्ट स्टोरीज’ में भूत-प्रेतों की कुछ ऐसी घटनाओं का संग्रह-संकलन किया है, जिसमें यह स्पष्ट होता है कि अनगढ़ मनःस्थिति किस प्रकार हमें मरने के बाद भी विक्षुब्ध-परेशान कर सकती है। अतृप्ति की यह आग करने के बाद भी जलाती-झुलसाती रहती है।
विडा मेरी द्वारा उल्लेखित एक घटना की नायिका का भूत ऐसा ही था। कायसो इंग्लैण्ड के अति सुन्दर व्यक्ति थे। अपने किसी राजकार्य के लिए वह इटली गये। वहाँ के शहर फ्लोरेंस में तुसकेनी के ग्रान्ड ड्यूक की पत्नी से उनका प्रेम हो गया। राजनैतिक कारणों से कायसो को मारने का षड्यंत्र रचा गया, जिसका पता चलते ही वह फ्लोरेंस छोड़कर वापस इंग्लैण्ड भाग गये। जल्दबाजी और भाग निकलने की अफरा-तफरी में उनका अपनी प्रेमिका से मिलना नहीं हो सका। कायसो के इस विश्वासघात से दुःखी व ड्यूक के अत्याचार से तंग आकर, प्रेमिका ने आत्महत्या कर ली और भूत बन गयी। भूत बनकर उसने इंग्लैण्ड में अपने प्रेमी कायसो को चेतावनी दी कि वह शीघ्र ही द्वन्द्व युद्ध में मारा जायेगा व तब तक वह इन्तजार करती रहेगी व उसे पश्चाताप करना पड़ेगा। शायद उसे मालूम नहीं है कि उसके बिना बताये अलग होने के विछोह के एक-एक पल को उसने कितनी पीड़ा से बिताया है।
कायसो के कानों में ये शब्द गूँजते रहे। रोज रात को उसकी प्रेमिका का भूत प्रकट होता व चेतावनी देता। कायसो भयभीत रहने लगा। अधिक भयभीत होने के कारण वह अपना रात का समय शहर के एक शराबघर में बिताने लगा। एक रात एक दूसरे शराबी के साथ कायसो का झगड़ा हो गया। झगड़ा द्वन्द्व युद्ध में परिवर्तित हो गया, जिसमें कायसो की मृत्यु हो गयी। देखने वालों ने मृत शरीर के ऊपर एक सफेद छाया देखी, जो उसकी प्रेमिका का भूत था। अपनी अतृप्त इच्छा की तीव्रता एवं आसक्ति की अधिकता के कारण वह अब तक कायसो के इर्द-गिर्द मंडराती रही थी।
ऐसी ही घटना ट्रेन चालक जिम राबर्सन के बारे में है, जिसने अपने मित्र ब्रीएर्ली के कृत्यों से आशंकित होकर आत्महत्या कर ली थी। हुआ यूँ कि राबर्सन और ब्रीएर्ली दोनों अच्छे मित्र थे। जिम की शादी के बाद भी इन दोनों का मिलना- जुलना जारी रहा। जिम के रात्रि ट्रेन चालक होने की वजह से ब्रीएर्ली जिम की पत्नी व बच्चों का हाल-चाल पूछते, अक्सर उनके घर जाते रहते थे। शंकालु जिम को यह घनिष्ठता पसन्द नहीं आयी और उसने अपने मित्र से सम्बन्ध- विच्छेद कर दिया। यदा-कदा पत्र व्यवहार द्वारा ब्रीएर्ली अपने हृदय की व्यथा जिम की पत्नी तक पहुँचा देता। गलती से एक ऐसा ही पत्र जिम के हाथों लग गया। आवेश के वशीभूत होकर पहले तो जिम ने अपनी पत्नी-बच्चों की हत्या की, बाद में स्वयं को ही समाप्त कर लिया।
इसी बीच ब्रीएर्ली की पदोन्नति हो गयी और वह लम्बी दूरी की रेलगाड़ी चलाने लगा। संयोग से उसे वही इंजन मिला, जिसे जिम चलाता था। पहले दिन से ही इसमें भूत लीला होने लगी। पहली बार जब ब्रीएर्ली गाड़ी में सवार हुआ, तो उसे लगा कि इंजन में जिम जो पहले से ही हाजिर है, क्योंकि इंजन के सारे कल-पुर्जे अपने आप ही चलने लगे। ट्रेन चलने का समय हो जाने पर ब्रीएर्ली के हाथ लगाने से पूर्व ही ट्रेन स्वतः ही चलने लगी व तेजी से आगे बढ़ने लगी। जिम के मकान के समीप वाले मोड़ पर चाहते हुए भी ब्रीएर्ली गाड़ी को धीमी नहीं कर पाया। कई दिनों तक लगातार यही क्रम चलता रहा।
एक रात अनहोनी घटना घट गयी। जिम के मकान के समीप ट्रेन की गति धीमी करने का प्रयास चल रहा था, ताकि ब्रीएर्ली एक बार जिम की पत्नी से मिल सके। उसी समय उसके सहयोगी चिल्ला उठे। किसी अदृश्य व्यक्ति का हाथ इंजन में भाप निकालने वाले ढक्कन को खोल रहा था, जिससे भयंकर दुर्घटना हो सकती थी। ब्रीएर्ली ने उस अदृश्य हाथ को रोकने का भरसक प्रयास किया, लेकिन वह तो और अधिक ताकत के साथ ढक्कन खोलता जा रहा था तथा मोड़ पर गाड़ी की गति और तीव्र हो रही थी। यही नहीं, ट्रेन भी दूसरी पटरी पर जा चुकी थी। कुछ समय बाद हाथ अदृश्य हो गया और ट्रेन भी पटरी पर आ गयी। एक भयंकर ट्रेन दुर्घटना अकस्मात् होते-होते बच गयी।
हर रात यही घटना दुहरायी जाने लगी। अदृश्य हाथ उत्तरोत्तर अधिक ताकत के साथ इंजन का ढक्कन खोलने का प्रयास करता। ब्रीएर्ली रोज के इन घटनाक्रमों से घबराकर अपने तबादले की पुरजोर कोशिश कर रहा था। यह उसका इस मार्ग पर अन्तिम दिन था। उस रात उसकी पत्नी व छोटी लड़की भी इंजन से लगे पहले डिब्बे में बैठे थे। ट्रेन अपने आप ही स्टार्ट होकर चल पड़ी और इसकी गति नियंत्रण से बाहर हो गयी थी। भाप तेजी से बाहर निकल रही थी। न गति नियंत्रण में थी और न ही भाप। जिम के मकान के समीप ट्रेन पटरी से उतर गयी व मकान से टकरा गयी। ब्रीएर्ली, उसकी पत्नी व लड़की तीनों छिटक कर बाहर गिर पड़े व वहीं दम तोड़ गये। बड़े आश्चर्य की बात यह रही कि उनके सहयोगी व अन्य लोगों को कुछ नहीं हुआ। वहाँ के समाचारों ने इस समाचार को बड़े ही मोटे अक्षरों में मुख पृष्ठ पर छापा- “जिम के भूत का बदला पूरा हुआ।”
ऐसी ही एक अन्य कथा जीएन नामक युवती के भूत की है। सन् 1670 में रॉबर्ट स्टुअर्ट नामक युवक आलान बेंक से अपनी पढ़ाई के लिए इटली आया। यहाँ उसे जीएन नामक युवती से प्रेम हो गया। रॉबर्ट युवती के प्रति अधिक समय तक वफादार न रह सका। वह उसकी उपेक्षा-अवहेलना करने लगा। बेचारी जीएन इस कारण भारी दुःखी रहती व विलाप करती रहती। जीएन उससे शादी करना चाहती थी, लेकिन स्टुअर्ट इसके लिए तैयार न था। एक दिन दोनों के बीच खूब झगड़ा हुआ, स्टुअर्ट ने उसे छोड़ दिया।
जब स्टुअर्ट उसे हमेशा- हमेशा के लिए छोड़कर आनी घोड़ा बग्घी से घर वापस जा रहा था, उसी समय लगभग बिलखते हुए जीएन ने उसे चेतावनी दी कि वह किसी भी महिला को उससे शादी न करने देगी। यदि उसकी शादी किसी तरह हो भी गयी, तो वह निश्चय ही बीच में आकर उनके दाम्पत्य जीवन को समाप्त कर देगी। यह कहते हुए वह गाड़ी के पहिये से लगभग लिपट-सी गयी व गाड़ी पर चढ़ने का प्रयास करने लगी। स्टुअर्ट ने उसे अनसुना कर चालक को गाड़ी चलाने को कहा। इसी बीच जीएन का हाथ फिसल गया और वह घोड़ा-गाड़ी के सामने गिर गयी। बग्घी उसका सिर कुचलते हुए आगे बढ़ गयी। जीएन ने वहीं दम तोड़ दिया।
इधर स्टुअर्ट घर पहुँचने ही वाला था कि घर से 30 गज दूरी पर गाड़ी में अचानक गड़गड़ाहट की आवाज होने लगी। गाड़ी खींचने वाले घोड़े भयभीत होकर हिनहिनाने लगे व पीछे हट गये। स्टुअर्ट ने बग्घी की खिड़की से आश्चर्य चकित करने वाला दृश्य देखा- जीएन उसका स्वागत करने के लिए अपने दोनों हाथ उठाये खड़ी थी और उसका कुचला हुआ मस्तक झुका हुआ था, जिसे स्टुअर्ट ने आते समय अपनी बग्घी से कुचल दिया था।
आलान बेंक का महल वैसे ही काफी सुनसान था, फिर रात्रि के नीरव माहौल की वजह से वहाँ अजीब भय-सा व्याप्त हो गया था। स्टुअर्ट ने आने से पूर्व ही यहाँ आश्चर्यचकित करने वाली घटनायें घटने लगी थीं। मध्य रात्रि को यहाँ के दरवाजे स्वयं खुल जाते व तेज आवाज के साथ स्वयं ही बन्द हो जाते। कभी-कभी डरावनी आवाजें भी सुनायी देतीं। यदा-कदा तो रक्त की बूँदें गिरते हुए दिखायी देतीं। घर के सामान बिना किसी व्यक्ति की सहायता से इधर-उधर चलने लगते। महल का सारा परिवार इन घटनाओं से त्रस्त था। घर के नौकरों को सामान व्यवस्थित करना मुश्किल हो गया था। हालाँकि इन सब में राबर्ट को ही सबसे अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ा।
1687 में स्टुअर्ट ने एक महिला से विवाह कर लिया। स्टुअर्ट अब आलान बेंक के छोटे नवाब के पद पर थे। जीएन के भूत को महल के लोग ‘पिएर्लिन जीन’ कहा करते थे। स्टुअर्ट की शादी के बाद भूत अधिक कोपाकुल दिखने लगा। उसका उत्पात दो गुना बढ़ गया। स्टुअर्ट जीएन के भूत को निकालने की योजना बनाने लगे, लेकिन सभी तरह के धार्मिक उपचार असफल रहे। अंत में जीएन की चेतावनी को स्मरण करके स्टुअर्ट ने उसका एक चित्र बनाकर उसे अपने व पत्नी के चित्र के बीच लगा दिया।
इसके बाद जीएन का भूत अपेक्षाकृत शान्त हो गया तथा दुबारा नहीं दिखा। धीरे-धीरे सभी कुछ शान्त हो रहा था व सभी चैन की नींद सोने लगे थे। सब यही सोच रहे थे कि अब जीएन का भूत शान्त हो गया है, अतः उसका फोटो हटा दिया गया। सारे उत्पात पुनः शुरू हो गये। समग्र आलान बेंक के लोग भूत ग्रस्त होने लगे। यही नहीं स्टुअर्ट का दाम्पत्य जीवन भी दुःख से भर गया। अब तो जीएन के भूत का कार्यक्षेत्र कमरे, बरामदे के अतिरिक्त आस-पास की भूमि व बगीचे में भी फैल गया।
उग्रता के कारण सामान फेंकने वाले भूत असुविधा एवं भय को बढ़ा देते हैं, पर उनकी यही लीला जब सराय जैसे सार्वजनिक स्थान में शुरू हो जाये, तो भय और आतंक सौगुना बढ़ जाता है। बर्सेस्ट शीयर के डडले क्षेत्र मेँ ‘द जाली कुलिया’ नाम की एक सराय है, जो अपने समय में भूतों के उत्पात का केन्द्र बनी हुई थी। यहाँ भूतों द्वारा सराय में ठहरने वाले यात्रियों को बिस्तर से फेंक दिया जाता था। खड़े लोगों को धक्के मारकर कमरे से बाहर निकाल दिया जाता। मिट्टी के बर्तनों को तोड़-फोड़ दिया जाता। कमरे की घण्टी लम्बे समय तक बजती रहती। सराय में ऐसी भयंकर स्थिति उत्पन्न हो गयी थी कि कोई भी थोड़ी देर चैन से नहीं रह सकता था।
इस सराय के मालिक जमींदार की पत्नी की मृत्यु हो गयी थी। वह एक पुत्री छोड़ गयी। जमींदार का व्यवसाय मंदा हो गया, उधार बढ़ने लगा। उधार बढ़ने के कारण उसे बन्दी बनाने की धमकियाँ आने लगीं। इस सबसे थक-हारकर जमींदार ने पुत्री की हत्या कर दी व स्वयं आत्महत्या कर बैठा। मृत्यु के बाद जमींदार के भूत ने सराय को अपना आश्रय-स्थल बनाया और वहाँ का उत्पात और उग्र हो गया, जो अब तक बना हुआ है।
कभी-कभी भूतों को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की ऐतिहासिक भूमिका निभाते भी देखा गया है। माइकल एवं मौली हाइबिक्क ने जान केनिंग की पुस्तक में बर्लिन की सफेद महिला के नाम से प्रख्यात ऐसे ही एक भूत का उल्लेख किया है। बर्लिन के अन्टरडेन लिन्डेन क्षेत्र में अन्तिम छोर में ओल्ड पैलेस नामक एक मुहल्ला है। पर्शिया के प्रथम राजा फ्रेडारिक ने 1611 में इसका निर्माण किया था। यहाँ शक्तिशाली होहेन जाँलर्न जाति के लोग रहते थे। इनके अत्याचार के कारण बनी एक भूत युवती बर्लिनवासियों को दिखी है जो सफेद महिला के नाम से प्रख्यात हो गयी।
इस भूत का एक ही लक्ष्य था- फ्रेडरिक के वंशजों को आने वाली विपत्ति के बारे में सचेत करना। लोगों को कहना है कि जिस भाव से उस युवती की मूर्ति महल में रखी गयी है, उसी भाव में सफेद घाघरा व चुनर पहने हुए वह दिखती है। जान सिगिसमण्ड के शासनकाल में वह पहली बार 1619 में दिखी। जब ओल्ड पैलेस में सेवारत एक लड़का बरामदे में गिर गया, जान सिगिसमण्ड उसकी सहायता के लिए मुड़े तो एक कोने में उस सफेद छाया से आमना-सामना हो गया। छाया घूँघट डाले थी व सिसकते हुए उनकी तरफ आ रही थी। जॉन उसे पहचान गये व मन में भयभीत हो गये, लेकिन जब बरामदे में गिरा लड़का नहीं दिखा, तो सिगिसमण्ड उस छाया के मार्ग में खड़े हो गये व जाँच- पड़ताल करने लगे। सफेद महिला एक हाथ में बालक को रखे थी व दूसरे हाथ में वह बड़ी कुँजी थी, जिससे राजमहल के 600 ताले खुल सकते थे। हाथों को बाहर निकालते ही बालक जमीन पर गिर गया व तुरन्त मर गया। कुँजी छोड़कर सफेद महिला वहीं अदृश्य हो गयी। अगले दिन जॉन सिगिसमण्ड भी मर गये।
फ्रेडरिक की मृत्यु के बाद उनका भतीजा फ्रेडरिक विलियम-द्वितीय ओल्ड पैलेस के राजा बने। फ्राँस की क्रान्ति के दौर में शेम्पेअन पर विजय के बाद, उन्होंने अपनी सेना को पेरिस की दीवार के नीचे जमा होने का निर्देश दिया व स्वयं वरडन की सराय में ठहरे। वहाँ उनके चाचा फ्रेडरिक का भूत सामने आया व बोला कि यदि वह पर्शिया सेना को पेरिस से वापस नहीं ले जाते, तो उन्हें राजा के रूप में कोई सम्मान नहीं करेगा। भयग्रस्त फ्रेडरिक द्वितीय इसका अर्थ न समझ सके। पुनः फ्रेडरिक का भूत बोला- ओल्ड पैलेस की सफेद महिला के बारे में तुम जानते हो, वह तुम्हें चैन से जीने नहीं देगी। फ्रेडरिक इस चेतावनी को गम्भीरता से ले वापस चले गये तथा पाँच वर्ष तक सफलतापूर्वक शासन किया। इस घटना से पता चलता है कि सफेद महिला फ्राँस के ऊपर विशेष निगरानी रखती थी।
1807 की शरद ऋतु में सफेद महिला जेनेवा युद्ध के कुछ दिन पहले पुनः दिखी, जब पर्शियन सेना ने नेपोलियन सेना को वापस जाने की चेतावनी दे डाली थी। एक पार्टी में पर्शिया के राजकुमार लूयान ने एक युवती से पियानो पर इतनी ध्वनियाँ बजाने को कहा, जितनी बार वह फ्रांसीसियों को वह अगले दिन मारेगा। युवती शाम तक बजाती गयी। राजकुमार अगले दिन नेपोलियन को रौंदने चल पड़ा, लेकिन अगली रात वह मरा पाया गया, जबकि फ्रेडरिक विलियम द्वितीय सफेद महिला के संकेत को समझ गये व बर्लिन से भाग गये। नेपोलियन स्वयं ओल्ड पैलेस आये व दो माह तक ठहरे। सफेद महिला अब शान्त थी, शायद फ्राँसीसियों के राज्य से वह सन्तुष्ट थी।
1914 के जून माह में सफेद महिला पुनः दिखी। उस समय ओल्ड पैलेस के शासक केइसर विलियम द्वितीय थे। इस बार वह 1918 के इंग्लैण्ड और जर्मनी के बीच युद्ध की चेतावनी देने आयी थी, जो बाद में सत्य निकली। होहेन जॉलर्न के शासन का दुखद अन्त भी इसी समय हो गया। एक बार पुनः यह सफेद महिला 1945 के अप्रैल माह की 29 तारीख को देखी गयी, जब बर्लिन पर संयुक्त सेना ने गोलाबारी की। सफेद महिला ओल्ड पैलैस गयी। इस बार वह शायद संयुक्त सेना को चेतावनी देने आयी थी। यही कारण था कि फ्राँस और इंग्लैण्ड में परस्पर मित्रता बढ़ गयी और जर्मनी का महत्व अधिक ऊँचा हो गया।
ये भूत जिस प्रकार बड़ों के होते हैं, उसी प्रकार बच्चों के भी। बहुत पहले वेलेण्ड वुड क्षेत्र में दो बच्चे अपने चाचा नरफाँक के साथ घूमने गये थे। दोनों बच्चों को नरफाँक ने स्थानीय हत्यारों को बलि के लिए सौंप दिया। आज तक दोनों बच्चों के भूत वेलेण्ड वुड में विलाप करते हुए दुःख प्रकट करते हुए दिखाई देते हैं। ऐसी ही कहानी युवराज एडवर्ड्स और उसके उसके छोटे भाई रिचार्ड ड्यूक की है, जिनकी आयु क्रमशः 12 और 10 साल की थी। दोनों ही एक किले में रहते थे। यह माना जाता है कि दोनों बच्चों की हत्या उनके सम्बन्धी रिचर्ड तृतीय के निर्देश पर की गयी थी। दोनों बच्चों को सोते समय तकिया द्वारा दम घोट कर मारा गया था, तब से आज तक वह दुर्ग दोनों बच्चों के करुण क्रन्दन से गूँज रहा है।
बच्चे भूत कभी-कभी बड़े लोगों के भूत के साथ देखे गये हैं, ज्यादा तर अपनी माँ के साथ। मध्ययुग में यार्कशायर स्थित बाटन एवं आश्रम में संन्यासी और तपस्विनी आश्रयस्थल बनाकर रहा करते थे। दोनों के भिन्न-भिन्न संकल्प एवं सतीत्व होने के कारण दोनों समुदायों के बीच एक सिर कटी तपस्विनी का भूत देखा गया। विश्वास किया जाता है कि यह सुन्दर एल्फ्रेडा का भूत है। उसका सम्बन्ध दीवार के उस पार स्थित एक संन्यासी से हो गया था। दोनों के मिलन से एक सन्तान का जन्म हुआ। 17वीं सदी के आस-पास एल्फ्रेडा व उसकी सन्तान की हत्या कर दी गयी। तभी से दोनों के भूत बाटन एबे में विनाश का अड्डा बनाये हुए हैं।
महिला भूत को गोद में बच्चा लिये कई स्थानों पर देखा गया है। ऐसा ही महिला भूत इंग्लैण्ड के साउथ वेल्स स्थित एबी वेल्स गिरजाघर के नजदीक कब्रिस्तान में भी देखा गया है। उसको देखने वालों का कहना है कि वह सफेद कपड़े दिखती है तथा बाँहों में झूला लटकाये हुए जाती है, जिसमें कीमती वस्तुएँ रहती हैं। वह धीमे-धीमे सीधे चलती है, न बायें देखती है और न दायें। वह प्रायः एबी वेल्स के कारखाने वाली सड़क पर ही दिखती है। वहीं पुलिया के समीप के मोड़ पर अचानक अदृश्य हो जाती है और उसकी बाँहों में एक बच्चा होता है। अन्ततः महिला एवं बच्चे के भूत एबेवेल्स के कब्रिस्तान तक पहुँचते हैं। वहाँ के द्वार के बाहर जाने वाले लगे मार्ग पर कुछ देर जाने के बाद अदृश्य हो जाते हैं।
एक बार हेनरी अष्टम के निर्देश पर ट्रिनिटी चर्च से लगे माइकेल गेट महिला आश्रम पर डाका डाला गया। आश्रम की महिलाओं ने वीरता पूर्वक सैनिकों को सामना किया व बोलीं- केवल हमारे मृत शरीर के ऊपर से ही तुम लोग जा सकते हो। यदि हम मर भी गयीं तो भूत बनकर जीवन भर तुम लोगों से लड़ती रहेंगी, जब तक कि यहाँ नया आश्रम नहीं बन जाता। यह सुनते ही सैनिकों ने उन्हें मार दिया तथा आश्रम की सम्पत्ति लूटकर ले गये। एक छोटा-सा बच्चा भी छिपकर देख रहा था, उसे भी सैनिकों ने मार दिया। तब से आज तक उस आश्रम के क्षेत्र तथा पवित्र ट्रिनिटी चर्च में महिला भूतों एवं बच्चे के भूत ने अपना आश्रय-स्थल बना रखा है।
इस तरह भूतों को विविध कृत्यों से जुड़ा देखा गया है, जो उनके मरते समय की प्रबल इच्छा और संवेग के अनुरूप होता है। इसके अलावा भूतों को ये सत्य घटनायें मरणोत्तर जीवन की सत्यता को सिद्ध करती हैं। शरीर छूटने भर से जीवन का अन्त नहीं होता, बल्कि वह अपने भूत संवेग एवं वृत्तियों को समेटे किसी सूक्ष्मलोक में विचरण करता रहता है। सूक्ष्म रूप का यह जीवन हमारी वर्तमान भाव वृत्तियों के अनुरूप ही होता है। अतएव समझदारी इसी में है कि वर्तमान चिन्तन एवं भाव वृत्तियों को परिशोधित कर उन्हें ईश्वरोन्मुखी किया जाए।