Magazine - Year 2003 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
गुरु धारण करने से पहले गुरु की परीक्षा (Kahani)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
मिलान के आर्क बिशप पोप पाल उन दिनों आर्थिक तंगी का जीवन जी रहे थे। उन्हीं दिनों अकाल की भी स्थिति थी। एक दिन एक समाजसेवी व्यक्ति उनके पास पहुँचे और बोले, “अभी भी बहुत लोगों तक खाद्य सामग्री पहुँच नहीं पाई, जबकि कोष में एक भी पैसा नहीं बचा।”
पोप पाल ने कहा, “कोष रिक्त हो गया, ऐसा मत कहा, अभी मेरे पास बहुत-सा फर्नीचर व सामान पड़ा है, इन्हें बेचकर काम चलाओ, कल की कल देखेंगे।”
आज का काम भी रुका नहीं, कल आने तक उनकी यह परदुखकातरता दूसरे श्रीमंतों को खींच लाई और सहायता कार्य फिर द्रुत गति से चल पड़ा।
रामकृष्ण परमहंस महान संत थे। उन्हें धन-दौलत से एकदम घृणा थी। वे रुपये-पैसे, सोना-चाँदी को छूते तक न थे। नरेंद्रदत्त को इस पर विश्वास नहीं हुआ। वे सोच भी नहीं सकते थे कि ऐसा भी मनुष्य हो सकता है, जो रुपये-पैसे को छुए भी नहीं। उन्होंने गुरु की परीक्षा लेने का निश्चय किया। रामकृष्ण परमहंस बाहर गए हुए थे तो उन्होंने चुपचाप उनके बिस्तर के नीचे एक रुपया रख दिया। फिर आकर अन्य लोगों के बीच बैठ गए।
रामकृष्ण जी आए और बिस्तर पर बैठ गए। अचानक वह हड़बड़ाकर उठ बैठे। सभी लोग इधर-उधर देखने लगे कि वे इस प्रकार क्यों खड़े हो गए हैं, परंतु उनकी समझ में कुछ न आया। तब रामकृष्ण परमहंस ने बिस्तर हटाया। नीचे एक रुपया पड़ा था। सभी दंग रह गए। उधर नरेंद्रदत्त सिर झुकाए गंभीर मुद्रा में बैठे थे। रामकृष्ण परमहंस उनकी शरारत समझ गए। वे मुस्कुराकर बोले, “नरेंद्र! गुरु की परीक्षा कर रहे थे? ठीक ही है। गुरु धारण करने से पहले गुरु की परीक्षा अवश्य करनी चाहिए।”