Books - गुरुवर की धरोहर (द्वितीय भाग)
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
कैसे हो आध्यात्मिक कायाकल्प?
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(भाग-3)
(कल्प साधना सत्र 1981 के महत्वपूर्ण उद्बोधन)
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात् ।
दो दिनों से आप यह सुन रहे हैं कि कायाकल्प क्या है? कल्प के लिए आपको क्या करना पड़ेगा? कल्प के लिए दूसरे भी आपकी सहायता करेंगे, पर आप यह मानकर चलिए कि आपको भी कुछ करना पड़ेगा। अगर आप कुछ नहीं करेंगे, केवल पूजा ही करते रहेंगे, भीतर वाले हिस्से को ठीक नहीं करेंगे, केवल कर्मकांड तक ही सीमित रह जाएंगे तो उद्देश्य कैसे पूरा होगा? यह कल्प कोई शारीरिक थोड़े ही है जो क्रियाओं भर से पूरा हो जाएगा। यह आंतरिक कायाकल्प है, इसके लिए आपको अपनी मनःस्थिति को, अपने चिंतन को, अपनी विचारणाओं को, आस्थाओं को, दृष्टिकोण को भी बदलना पड़ेगा। यदि यह कर सकें तो समझिए कि बाहर की सहायता भी आपको जरूर मिलकर रहेगी।
आमतौर से लोग यह समझते हैं कि देवताओं की खुशामद करके और उनसे कुछ प्राप्त करके हम अपना फायदा उठा लेंगे। अध्यात्म इसी का नाम है। पर लोगों का यह ख्याल गलत है। देवताओं का अनुग्रह मिलता तो है, यह मैं नहीं कहता कि नहीं मिलता लेकिन बिना शर्त नहीं मिलता। कुपात्रों को भी नहीं मिलता। पात्रता पहले साबित करनी पड़ती है, इसके बाद में ही कहीं ऐसा होता है कि देवता कोई सहायता कर सकें और किसी भक्त या साधक को लाभ पहुंचाने में मददगार बन सकें। आपको भी यही विचार करके चलना चाहिए। आपको देवानुग्रह की आशा तो करनी चाहिए, गुरुजी के आशीर्वाद की आशा तो करनी चाहिए, गायत्री माता की कृपा की आशा तो करनी चाहिए, लेकिन उस आशा के साथ में जो एक शर्त जुड़ी है, उसे भूल नहीं जाना चाहिए। वह शर्त यह है कि आप अगर अपनी पात्रता साबित करेंगे तो देवता आपकी सहायता जरूर करेंगे और यदि आप अपनी पात्रता साबित नहीं कर सकते तो फिर यह विश्वास रखिए कि आपको निराश ही होना पड़ेगा। देवता से किसी ऐसी कृपा की आशा मत कीजिए जो कुपात्रों को भी मिल सकती है। देवता बड़े होशियार होते हैं, मंत्र भी बहुत होशियार होते हैं। आप कर्मकांड करें, यह अच्छी बात है, लेकिन कर्मकांडों को देखकर देवता थोड़े ही प्रसन्न होते हैं। वे तो कर्मकांडों के पीछे छिपी हुई साधक की भावनाओं को देखते हैं और अगर भावनाएं सही हैं तो निश्चित रूप से वही फल देते हैं जैसा कि आपने सुना है।
इस संदर्भ में आप एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। बादलों को आप देखते हैं न, वे कितनी कृपा करते हैं। बादलों के बराबर उदार देवता कौन सा हो सकता है? वह बिना कीमत पानी बरसाता है और चाहे जितना बरसाता है वह समुद्र से लाता है और प्यासी जमीन को पानी पूरा करने के लिए कितना पानी बरसाता है। लेकिन आपको ध्यान है क्या कि उस पानी से कौन लाभ उठा पाता है? आप यह बताइए कि उससे हर कोई फायदा उठा लेता है क्या? हर कोई फायदा नहीं उठा सकता। बादलों से हर जगह हरियाली हो जाती है, लेकिन जो चट्टानें हैं, उन चट्टानों पर एक तिनका भी पैदा नहीं होता। आप नदी में पड़े हुए पत्थरों को जरा देखिए न। नदी के पानी से किनारे गीले हो जाते हैं, जमीन गीली हो जाती है, सब जगह गीले हो जाते हैं, पर जो चट्टान-पत्थर का टुकड़ा नदी के बीच में सैकड़ों वर्षों से पड़ा हुआ है, जरा उसे तोड़-फोड़ कर देखिए। नदी का उस पर कोई अनुग्रह नहीं दीख पड़ेगा, क्योंकि वह पत्थर है। बादलों के अनुग्रह से भी उसे कोई लाभ नहीं हो सका, क्योंकि वह चट्टान है। जब कि आप देखते हैं कि बादलों के पानी से भूमि में हरियाली पैदा हो जाती है, पर चट्टान में क्यों नहीं पैदा होती। छात्रवृत्ति के बारे में आप जानते हैं कि वह फर्स्ट डिवीजन में पास होने वाले छात्रों को सरकार की ओर से दी जाती है। थर्ड डिवीजन में पास होने वाले को दी जाती है क्या? फेल होने वाले को मिलती है क्या? नहीं। साहब, हम पर दया कीजिए, उदारता कीजिए, यह मत कहिए। इस दुनिया में दया का, उदारता का कोई खास महत्व नहीं है।
दुनिया में सर्वत्र पात्रता का महत्व है, उसी की परख की जाती है। आपने देखा होगा कि किसी खूबसूरत लड़की को, कन्या को बहुत से पड़ोसी, आवारा लड़के यह मांग सकते हैं कि आप अपनी लड़की हमारे हवाले कर दीजिए और हमसे शादी कर दीजिए। इस संबंध में आपका क्या ख्याल है कि कोई अपनी जवान लड़की को, जो पढ़ी-लिखी भी है, सुंदर-सुयोग्य भी है, किसी मांगने वाले के सुपुर्द कर देगा क्या? नहीं करेगा। यद्यपि बेचारा प्यासा फिर रहा है कि कोई अच्छा जमाई मिल जाए तो हम पैसे भी देंगे, कपड़ा भी देंगे, खुशामद भी करेंगे, बारात भी आएगी। वह कितना तलाश करता फिरता है। क्यों साहब, तलाश क्यों करते हैं आप जमाता को, जबकि आपके पड़ोस में ही पचास जमाता हैं और इसके लिए तैयार हैं कि हम भी आपके जमाई बनेंगे। हमको भी आप अपनी लड़की दे दीजिए, फिर बेटी का बाप क्यों नहीं देता? क्यों लड़ने-झगड़ने के लिए आमादा हो जाता है? क्यों अच्छे लड़के के पास जाता है, खुशामद करता है, पैसा भी देता है, मिन्नतें भी करता है। ऐसा क्या होता है? क्या बता सकते हैं आप? सिर्फ एक ही वजह है कि वह जमाता इस लायक है, उसमें इतनी पात्रता है कि वह उस लड़की का गुजारा कर सके, भरण-पोषण कर सके, उस लड़की की ठीक देखभाल कर सके। इसलिए लड़की का बाप ऐसे जमाता को तलाश करता है जो कि इसके योग्य हो। ठीक बिल्कुल ठीक यही बात समझिए कि देवताओं के अनुग्रह हर एक के हिस्से में नहीं आ सकते। गुरुओं के अनुग्रह हर एक के हिस्से में नहीं आ सकते। रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद को अनुग्रह दिया था। मांगने वाले तो हजारों आदमी उनके पास आते थे और अपनी छोटी-मोटी जरूरतें पूरा करा करके भाग खड़े होते थे। लेकिन वह जो देना चाहते थे वह केवल उनने विवेकानंद को ही दिया, क्योंकि उसके अंदर पात्रता का अंश पाया इसलिए अपनी आध्यात्मिक संपदा उन्हीं के सुपुर्द कर दी। माता समझती है कि बच्चे को कितना दूध चाहिए, वह उसी के अनुरूप उसे देती है। माता उसकी पात्रता को समझती है।
बादल कहां बरसते हैं? वहां बरसते हैं जहां कि घनी हरियाली होती है। बादल वहां बरसने से इन्कार कर देते हैं जहां पेड़ नहीं होते। रेगिस्तानों में पानी कहां बरसता है? पेड़ अपनी चुंबक शक्ति से बादलों को बरसने के लिए मजबूर कर देते हैं। यही कारण है कि जहां पेड़ नहीं होते हैं वहां कम पानी बरसता है। लीबिया में कुछ दिन पहले ऐसा ही हुआ था। पेड़ काट डाले गए और उसका परिणाम यह हुआ कि पानी बरसना बंद हो गया और सूखा पड़ गया। जब फिर से पेड़ लगाए गए तब बादलों ने बरसात की, मतलब यह है कि बादल पेड़ों के चुंबकत्व से खिंचते चले आते हैं। खदानें कैसे बनती हैं, आप जानते हैं क्या? खदानों में कहीं थोड़ा सा लोहा, थोड़ा पीतल, चांदी, सोना वगैरह होता है और वे अपने चुंबकत्व से दूर-दूर फैले हुए अपने सजातीय कणों को अपनी ओर घसीटते रहते हैं और बड़ी खदानें बनती-बढ़ती रहती हैं। यदि इस साल सौ टन लोहा है तो अगले वर्ष दो सौ टन हो जाएगा, उससे अगले साल तीन सौ टन हो जाएगा। क्योंकि वह खदान जो है चारों ओर से खींचती रहती है और जमा करती रहती है। ठीक यही बात देवताओं की कृपा के बारे में है। उनकी कृपा को घसीटा जा सकता है, बुलाया जा सकता है। देवता अपने आप देंगे? नहीं! अपने आप कौन दे देगा? आप अपने पैसे किसी को दे देंगे क्या? नहीं! बैंक वाला चाहे किसी को रुपये दे देगा क्या? नहीं! क्यों? क्योंकि बैंक वाला उधार देने से पहले हजार बार यह तलाश करता है कि जिस आदमी को दिया जाने वाला है, वह उस पैसे का ठीक इस्तेमाल करेगा कि नहीं करेगा। बैंक का पैसा वापस मिलेगा कि नहीं मिलेगा। यह विश्वास न हो तो कोई देने को तैयार ही नहीं हो सकता। आपने देखा है न समुद्र को, समुद्र के पास कितनी सारी नदियां अपना सामान लेकर भागती हैं और उससे कहती हैं कि यह सब हमारा पानी लीजिए। क्यों लीजिए? क्योंकि वे समझती हैं कि हमारे पानी को जमा करने की शक्ति इसमें है और जब जब अपने पानी को जमा करती हैं तो वह एक मुनासिब जगह पर जमा ही नहीं हो जाएगा, हमें वापस मिलता भी रहेगा, वाष्पीभूत बादलों से वर्षा के रूप में।
नदियों के तरीके से दैवी शक्तियां भी देती तो हैं, पर हर एक को नहीं दे सकतीं। आप यह भूल मत जाइए कि जो कोई मांगेगा, देवता उसी को दे देंगे। जो नारियल चढ़ा देगा उसी को दे देंगे। ग्यारह सौ जप कर देगा तो उसी को दे देंगे, पाठ कर देगा उसी को दे देंगे। इस तरह बरगलाने और फुसलाने से आप देवता के अनुग्रह नहीं प्राप्त कर सकते। कपड़े के तरीके से, कलेवर के तरीके से क्रियाएं आवश्यक तो हैं। क्रियाएं आवश्यक तो हैं चाकू की तरीके से, लेकिन सामान तो हो आपके पास। चाकू से कैसे काटेंगे कर्म को? इसलिए केवल क्रियाएं बहुत थोड़ा सा ही काम करती हैं। जो कर्मकांड आप करते हैं, जप करते हैं और क्रिया करते हैं, यह हैं तो महत्वपूर्ण और जरूरी भी, लेकिन आप यह ख्याल मत कीजिए कि केवल जप करने से या अन्न कम खाने से आप कोई लंबे-चौड़े फायदे उठा सकेंगे। आपको अपनी मनःस्थिति को जरूर बदलना पड़ेगा। फूल जब खिलता है तब आपने देखा होगा कि उसके ऊपर कितने भौंरे आकर बैठ जाते हैं। कितनी तितलियां और शहद की मधुमक्खियों के गुच्छे मंडराने लगते हैं। कब आते हैं? जब फूल खिलता है तब। फूल के तरीके से अगर आप अपने जीवन को खिला सकते हों,अपनी पात्रता को विकसित कर सकते हों, अपनी मनःस्थिति में हेर-फेर कर सकते हों तो आपको हम यकीन दिला सकते हैं कि देवताओं के अनुग्रह आपको जरूर मिलेंगे जो आप यहां प्राप्त करने आए हैं। आपको गुरुओं के आशीर्वाद, हमारे आशीर्वाद मिलेंगे और दूसरे गुरु भी आपके पास आएंगे और आपकी आवश्यकता को जरूर पूरी कर देंगे।
पात्रता की परख हर जगह होती है। आप इस ख्याल में मत रहिए, मिन्नतें मत मांगिए, नाक मत रगड़िए, झोली मत फैलाइए और यह उम्मीदें मत कीजिए कि कोई आदमी या देवता आपकी पात्रता को देखे बिना केवल आपकी क्रिया-कृत्यों से ही प्रसन्न हो करके आपको निहाल कर जाएगा। ऐसा हो नहीं सकता। आपको इतिहास मालूम है न। शिवाजी को ‘भवानी’ नाम की एक तलवार मिली थी। क्यों मिली थी? इसलिए मिली थी कि उसने अपनी पात्रता स्थापित की थी। उनके गुरु ने सिंहनी का दूध दुहे के लिए परीक्षा ली थी और कहा था आप जाइए सिंहनी का दूध लाइए। देखा गया कि वह इतना निष्ठावान है कि अपने कर्तव्य के लिए अपने प्राण भी दे सकता है तो भवानी से उन्होंने प्रार्थना की कि आप ऐसी तलवार दीजिए जो कि अजेय हो-अक्षय हो। अर्जुन को गांडीव कहां से मिला था? इंद्र देवता ने दिया था। अर्जुन को ही क्यों दिया, औरों को क्यों नहीं दिया। इंद्र ने अर्जुन को देने से पहले इम्तहान लिया था कि इतनी कीमती चीज विश्वस्त आदमी को, प्रामाणिक आदमी को ही दी जाए, हर एक को नहीं दी जाए। आपको याद होगा कि जब अर्जुन वहां गए थे तो उनका इम्तहान लेने के लिए इंद्रलोक की सबसे खूबसूरत युवती उर्वशी को भेजा गया था। वह ऐसे हाव-भाव करने लगी और उससे शादी की बात कहने लगी। अर्जुन ने कहा-‘‘आप तो हमारी मां के बराबर हैं और हम आपके चरणों की धूल अपने सिर पर रखते हैं। आप यह समझ लीजिए कि हम ही आपकी संतान हैं।’’ इस जवाब से प्रसन्न होकर इंद्र ने यह समझ लिया कि यह व्यक्ति इस लायक है कि इसको गांडीव दे देना चाहिए। इंद्र को जब यह विश्वास हो गया था कि अर्जुन गांडीव के लायक है तो उन्होंने उसे प्रसन्नतापूर्वक दे दिया था।
आपको बापा जलाराम की कहानी मालूम है न। भगवान उनके यहां आए थे और उनको एक झोली दे गए थे जिसमें से अक्षय अन्न के भंडार निकलते थे। यह वरदान भगवान ने दिया था जो अभी भी है। आप यदि गुजरात की वीरपुर नामक गांव में कभी पहुंचे तो आपको एक सिद्ध पुरुष जलाराम बापा का एक स्थान मिलेगा। वहां अन्न की एक झोली अभी भी टंगी हुई है जो भगवान ने उन्हें दी थी। जलाराम बापा की इच्छा थी कि हमारे दरवाजे पर से कोई भी खाली हाथ न जाने पाए। भगवान ने उनकी इच्छा पूरी की। उन्हीं की क्यों पूरी की, औरों की क्यों नहीं की? इच्छाएं, मनोकामनाएं तो सभी करते हैं, पर उनकी इच्छा पूरी क्यों नहीं करते भगवान? क्योंकि जलाराम बापा इम्तहान में पास हो गए थे। उन्होंने दो प्रतिज्ञाएं की थीं कि जलाराम मेहनत-मजूरी करेंगे और खेती में से अनाज उगाएंगे और उनकी पत्नी ने प्रतिज्ञा की थी कि पेट भरने के बाद में जो कुछ भी अनाज हमारे पास बचेगा, उसे दुखियारों को, संतों को खिलाते रहेंगे। उनकी स्त्री खाना पकाती रहती थी सारा दिन और बापा जलाराम खेती-बाड़ी करते रहते थे। वह अनाज पैदा करते थे और उनकी धर्मपत्नी खिलाती रहती थीं। इसी बीच पेट भरने के लिए जो मिल गया उसी से गुजारा कर लिया, बस। संत की यह निशानियां हैं कि उसका चरित्र ऊंचा होना चाहिए। भक्त का चरित्र ऊंचा न हुआ तब? तब सभी कथा-कीर्तन, भजन-पूजन, जप-तप, अनुष्ठान बेकार हैं। नहीं साहब, हम तो अखंड कीर्तन करते हैं, जप-तप करते हैं। आप यह सब करते हैं तो आपको मुबारक, लेकिन पहले आप सिर्फ एक जवाब दीजिए कि आप अपनी पात्रता को विकसित करते हैं कि नहीं? भगवान सिर्फ दो ही बातें देखते रहते हैं और वे आपकी मानसिक पवित्रता और अपनी पूजा तो अपने मन को धोने का एक तरीका है।
मित्रो, भगवान को बरगलाया नहीं जा सकता, उसे फुसलाया नहीं जा सकता। भगवान के साथ में ब्लैकमेलिंग नहीं की जा सकती। भगवान के साथ में जुड़ने का एक ही सीधा रास्ता है कि अपनी पात्रता साबित करें भगीरथ के तरीके से। भगीरथ गंगा जी को मांगने गए थे। उन्हें पानी की जरूरत थी अपनी फसल के लिए और अपने बाप-दादाओं का उद्धार करने के लिए भी, साथ में इससे भी बड़ी जरूरत थी कि सारे संसार को पानी मिलना चाहिए। भगीरथ निःस्वार्थ थे, उनने तप किया। यदि यह कारण रहा होता कि भगीरथ गंगाजी को अपने पास बुलाएंगे, पानी को स्टोर करेंगे, हर आदमी से पैसा वसूल करेंगे और गंगाजी से अपना उल्लू सीधा करेंगे तो आप विश्वास रखिए तब गंगाजी कभी भी भगीरथ के चंगुल में फंसने के लिए तैयार न हुई होतीं। उनने कारण की खोज की और उस आदमी की नीयत को जाना। नीयत का अर्थ है पात्रता, चिंतन का अर्थ है पात्रता, चरित्र का अर्थ है पात्रता। पात्रता, आपको विकसित करनी ही चाहिए। देवताओं के अनुग्रह में कोई कमी नहीं है, यदि कमी है तो आपमें पात्रता की। गंगा हिमालय से जब निकल कर चलीं और बोलीं कि अब हम लोगों की प्यास बुझाएंगी, पशु-पक्षियों की प्यास बुझाएंगी, खेती में हरियाली पैदा करेंगी, अब हिमालय में रहने और आपकी गोदी में ठहरने का हमारा जरा भी मन नहीं है, तब हिमालय ने बहुतेरा समझाया कि आप तो यहीं रहिए यहां क्या कष्ट है आपको? गंगा ने कहा—नहीं, कष्ट का सवाल नहीं है, पर अब हमारी आत्मा नहीं मानती है। हमारी आत्मा कहती है कि हमको अपने को श्रेष्ठ कामों में खपा देना चाहिए, लगा देना चाहिए। बस, चल पड़ीं गंगा। लोगों ने यह भी कहा कि आप सूख जाएंगी, खाली हो जाएंगी और आप दिवालिया हो जाएंगी। लेकिन गंगा ने कहा—तो दिवालिया होने में क्या कोई हर्ज है? जिंदगी एक अच्छे काम में लग जाए तो कोई हर्ज है क्या? जब वह चल पड़ी तो हिमालय ने देखा कि ऐसी शानदार छोकरी, ऐसा शानदार उसका मन, ऐसी शानदार उसकी भावना, इसको कमी नहीं पड़ने देना चाहिए। हिमालय ने उसको यकीन दिलाया कि बेटी! तुम बराबर बहती रहना, तुम्हारे जलस्रोत को सूखने का कभी भी मौका नहीं आएगा। हमारी बर्फ बराबर गलती रहेगी और तुम्हारा पेट और तुम्हारी जरूरतों को पूरा करती रहेगी। लाखों वर्ष हो गए गंगा को बहते हुए, पर कभी कुछ कमी पड़ी क्या? कमी नहीं पड़ी। देवताओं के अनुग्रह पाने के यही तरीके हैं।
आप देवताओं का अनुग्रह पाने के लिए कल्प साधना कर रहे हैं आपको विश्वास होगा कि गायत्री माता का हम जाप करेंगे तो गायत्री माता अनुग्रह करेंगी। जरूर अनुग्रह करेंगी। गायत्री माता का स्वभाव ही है कि वह जरूर सहायता करती हैं। यह भी आपको विश्वास होगा कि गुरुदेव आशीर्वाद देंगे, अपने पुण्य का एक अंश देंगे। बिल्कुल यकीन रखिए, हमने जिंदगी भर अपने पुण्य के अंश बांटे हैं। हमें बांटने में बड़ी खुशी होती है और लोगों को खाने में खुशी होती है, पर हमको खिलाने में खुशी होती है। हमारे ऊपर एक और शक्ति छाई हुई है जिसकी वजह से ब्रह्मवर्चस बना है और यह शांतिकुंज बना है। जिसकी प्रेरणा से यह कल्प साधना शिविर लगाए हैं और जिनकी इच्छा से आपको यहां बुलाया गया है। वह आपको खाली हाथ जाने देंगे क्या? नहीं, यह तीनों शक्तियां ऐसी हैं जो बराबर आपकी सहायता करने के लिए आमादा हैं और सच्चे मन से चाहती हैं कि आपको कुछ दें। गाय सच्चे मन से चाहती है कि हम अपने बच्चे को अपना सारा का सारा दूध पिला दें। जो भी कुछ वह खाती है और जितना दूध बनता है वह चाहती है कि हम अपने बच्चे को पूरा का पूरा दूध पिला दें। लेकिन बच्चा तो उसका होना चाहिए। बच्चा किसी और का हुआ तब? कुत्ते, बिल्ली का बच्चा हुआ तब? गधी का बच्चा हुआ तब? तो क्यों पिलाएगी गाय। वह गाय का ही बच्चा होना चाहिए। आपको संत का बच्चा होना चाहिए। आपको ऋषियों का बच्चा होना चाहिए। आपको अध्यात्म का बच्चा होना चाहिए अर्थात् आपका चिंतन, चरित्र और आपका व्यक्तित्व ऐसा होना चाहिए जिससे कि देवता हमेशा आपकी सहायता करते हुए चले जाएं। इससे कम में बात बनेगी नहीं। इसके लिए आपको त्याग करना ही चाहिए। आपको अपनी बुराइयां छोड़नी ही चाहिए, आपको उदार होना ही चाहिए और आपको अपने दृष्टिकोण में महानता साबित करनी ही चाहिए।
मित्रो, भगवान को हम क्या कहें, वह देता तो बहुत है, लेकिन वह उस परीक्षा के बिना कहां देता है। आपको सुदामा जी का किस्सा याद होगा कि वह एक बार श्रीकृष्ण भगवान से कुछ मांगने के लिए गए थे और सुदामा जी के मांगने से पहले ही श्रीकृष्ण ने उनकी यह परीक्षा ले ली थी कि यह हमको भी कुछ दे पाएंगे कि नहीं। उनकी पोटली में चावल रखा हुआ था, जिसे देखते ही कृष्ण भगवान ने कहा—पहले चावल की पोटली हमारे हवाले कर दीजिए, फिर बाद में करना बात। आप अपनी पोटली नहीं खाली कर सकते, तो हम क्यों आपके लिए खाली करेंगे? हम क्यों आपको सहायता देंगे? उन्होंने चावल की पोटली को उनके हाथों से छीन लिया और छीनने के बाद में उसको अपने पास रखा। बस वही चावल बढ़ते हुए चले गए और उन्हीं चावलों के बदले सुदामा जी को वह धन मिल गया जिसके बारे में आपने सुना होगा कि द्वारका जी से सारा धन सुदामा जी के पास चला गया था। वे चावल भगवान के खेत में बोए गए थे। यदि वह चावल लेकर सुदामा जी द्वारका नहीं गए होते, तब उनको खाली हाथ आना पड़ता। आप देंगे नहीं तो ले कहां से जाएंगे? इसलिए पहले देने की बात पर विचार कीजिए, परिशोधन की बात सोचिए, पवित्रता की बात सोचिए। अपने व्यक्तित्व को ऊंचा उठाने की बात सोचिए। इतना अगर आप सोच सकते हों, तो फिर आप देखना किस कदर आपको भगवान की सहायता मिलती है? आपके मंत्र कैसे चमत्कारी सिद्ध होते हैं? आपको व्रत और अनुष्ठान से कितना ज्यादा फायदा मिलता है? भगवान तो ऐसे ही हैं जो सबको निहाल कर देते हैं। उनने द्रौपदी को निहाल कर दिया था। आपको ध्यान है कि नहीं, भगवान ने द्रौपदी को कितना वस्त्र दिया था? लेकिन अगर आप मांगे तो क्या आपको मिलेगा? नहीं देंगे। तो फिर ऐसा पक्षपात क्यों? मित्रो, एक ही बात है कि द्रौपदी ने यह साबित कर दिया था कि उसको मिलने का हक है। आप भी साबित करिए कि आपको भी मिलने का हक है। आपने द्रौपदी के जीवन की वह घटना सुनी होगी कि जब एक बार वह जमुना स्नान कर रहीं थीं, तो पास में ही एक महात्मा जी स्नान कर रहे थे। उनके पास एक लंगोटी नहाने की थी और एक पहनने की। हवा का एक झोंका आया और एक लंगोटी बह गई। जिसको पहने थे वह फट गई। द्रौपदी ने देखा कि महात्मा जी की एक लंगोटी बह गई और दूसरी फट गई है और वह शर्म के मारे शरीर को छिपाकर झाड़ी के पीछे बैठ गए हैं। द्रौपदी का मन पिघल गया कि उनकी सहायता करनी चाहिए। उन्होंने अपनी साड़ी के दो टुकड़े किए और आधा टुकड़ा महात्मा जी को दे दिया और कहा—आप इससे अपने लिए दो लंगोटियां बना लीजिए। आपकी भी लज्जा ढक जाएगी और आधी साड़ी से हमारा भी काम चल जाएगा।
यह क्या थी? द्रौपदी की उदारता थी जो उनके कपड़े के साथ में जुड़ी थी। कपड़े की कीमत क्या हो सकती है? कपड़ा तो जरा सी कीमत का था, लेकिन सब भगवान के भंडार में चला गया तो लाखों गुना हो गया। भगवान ने देखा कि जो आदमी उदार है, उसके लिए उदार होना चाहिए। जो आदमी दयालु है, उसके लिए दयालु होना चाहिए। जो आदमी चरित्रवान है उसके लिए चरित्रवान होना चाहिए। जब दुःशासन उसे नंगी कर रहा था तो भगवान ने द्रौपदी के लिए कितना सारा कपड़ा भेजा था, कितनी सारी सहायता की थी, यह आपने भी पढ़ा-सुना होगा। आपसे मुझे यही कहना था कि आप यहां देवता का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए आए हैं और अगर आपको अनुदान पाने की इच्छा है तो आपकी यह इच्छा मुनासिब है, सही है। आप किसी गलतफहमी में नहीं हैं, किसी अंधविश्वास में जकड़े हुए नहीं हैं। प्राचीन काल के असंख्य इतिहास ऐसे हैं, जिसमें देवताओं ने सहायता की है, अनुग्रह किए हैं। आपको जरूर सहायता मिलेगी, पर एक शर्त को भूलिएगा मत। अगर आप उस शर्त को भुला देंगे तो आप घाटे में रहेंगे, आप निराश होंगे। फिर आप गाली देंगे और सोचेंगे कि मंत्र मिथ्या होते हैं, देवता मिथ्या होते हैं। क्यों मिथ्या होते हैं? अगर आपने अपनी पात्रता का विकास नहीं किया तब। चिंतन, चरित्र, व्यवहार को उत्कृष्ट और उदार नहीं बनाया, तब आप घाटे में रहेंगे। इसके लिए ही हम आपको यह अनुष्ठान करा रहे हैं ताकि आपका चिंतन बदले, व्यक्तित्व परिष्कृत हो और आपके भीतर का कायाकल्प हो जाए, तभी देवता आपकी सहायता करेंगे। आप अपने भीतर को बदलने की कोशिश कीजिए। अपना चिंतन बदलिए, अपना चरित्र बदलिए, अपने जीवन का ढांचा और ढर्रा बदलिए। फिर देखिए आपकी बदली हुई परिस्थितियों में जो देवता नाखुश थे, मुंह मोड़े हुए थे, किस तरह आपके गुलाम हो जाते हैं, कैसी आपकी सहायता करते हैं? कैसे आपको छाती से लगाते हैं? कैसे आपको निहाल करते हैं? यही अनुभव हमारे जीवन का भी है और इससे आपको भी लाभ उठाना चाहिए। आप अपने आपको खाली कीजिए और निहाल होकर जाइए। बस इतना ही कहना था मुझे आप से।
ॐ शांतिः ।