Books - गुरुवर की धरोहर (द्वितीय भाग)
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Language: HINDI
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शक्ति भंडार से स्वयं को जोड़ कर तो देखें
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(गुरु पूर्णिमा की पूर्वबेला में शांतिकुंज परिसर में 1977 को दिया गया उद्बोधन)
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात् ।
मनुष्य की सामान्य शक्ति सीमित है। प्रत्येक प्राणी को भगवान ने इतना ही समान दिया है कि वह अपने जीवन का गुजारा कर ले। कीड़ों-मकोड़ों और पशु-पक्षियों को सिर्फ इतना ही ज्ञान, साधन, शक्ति और इंद्रियां मिली हैं ताकि वे अपना पेट भर लें और प्रकृति की इच्छा पूरी करने के लिए अपनी औलाद पैदा करते रहें। इससे ज्यादा कुछ उनके पास है नहीं, लेकिन आपके पास है। अगर आपको इससे कुछ ज्यादा जानना और प्राप्त करना है, तो आपको वहां जाना पड़ेगा जहां शक्तियों के भंडार भरे पड़े हैं। एक जगह ऐसी भी है जहां बहुत शक्ति भरी पड़ी है, जहां संपत्तियों का कोई ठिकाना नहीं। जहां समृद्धि की अनंतशक्ति है। सारे विश्व का मालिक कौन है? भगवान। यह उसी का तो सामान है जिससे उन्होंने दुनिया को बना दिया। यहां जो कुछ भी वैभव आप देखते हैं, वह भगवान के भंडार का एक छोटा सा चमत्कार है। पृथ्वी के अलावा और भी लोक हैं। उन सबमें भी भगवान का भंडार भरा पड़ा हुआ है। बड़ा संपत्तिवान है भगवान। आपको यदि संपत्तियों की, सफलताओं की, विभूतियों की जरूरत है, तो अपना पुरुषार्थ इस काम में खर्च करिए कि उस भगवान के साथ में अपना रिश्ता बना लीजिए। उसके साथ जुड़ने में अगर आप समर्थ हो सके तो यह सबसे बड़ा पुरुषार्थ होगा। आप भगवान के साथ में अपना रिश्ता बना लें तो मजा आ जाए।
मालदार आदमी से रिश्ता बना लेने पर क्या हो सकता है? लालबहादुर शास्त्री का नाम सुना है आपने, वे बिल्कुल एक छोटे से आदमी थे। लेकिन पंडित नेहरू के साथ में उन्होंने अपने घनिष्ठ संबंध बना लिए जिसकी वजह से वे एम.पी. हो गए। उनकी सहायता से वे यू.पी. के मिनिस्टर भी हो गए और फिर मरने के पश्चात उनके उत्तराधिकारी भी हो गए। बहुत शानदार थे लालबहादुर शास्त्री, यह उनके अपने पुरुषार्थ का उतना फल नहीं था, जितना कि नेहरू जी के सहयोग का। उनकी निगाह में उनकी इज्जत जम गई थी। उन्होंने देख लिया था कि यह आदमी बड़ा उपयोगी है, उसकी सहायता करनी चाहिए। उसकी सहायता करने से उनने भी लाभ उठाया, इसलिए पंडित नेहरू ने उनकी भरपूर सहायता की। ठीक यही बात हर जगह लागू होती है। भगवान एक सर्वशक्तिमान सत्ता है। उसके साथ अगर आप अपना संबंध जोड़ लें तब आपकी मालदारी का कोई ठिकाना न रहेगा। तब आप इतने संपन्न हो जाएंगे कि मैं आपसे क्या-क्या कहूं। आप बापा जलाराम के तरीके से संपन्न हो सकते हैं, आप सुदामा के तरीके से मालदार भी हो सकते हैं, विभीषण और सुग्रीव के तरीके से मुसीबतों से बचकर के फिर से अपना खोया हुआ राजपाट पा सकते हैं। नरसी मेहता के तरीके से हुंडी भी आप पर बरस सकती है। यहां कुछ कमी है क्या? यहां कोई कमी नहीं है। इसलिए यहां जो आपको बुलाया गया है उसका एक कारण यह भी है कि आप से कहा जाए कि आप भगवान से रिश्ता जोड़ लें। आप जो पूजा करते हैं, उपासना करते हैं, भजन करते हैं, उसका मतलब यह है कि आप इन उपायों के माध्यम से अपना रिश्ता भगवान से जोड़ लें। एक गरीब घर की लड़की की यदि किसी मालदार पति के साथ में शादी हो जाए तो वह दूसरे ही दिन से उसकी मालकिन हो जाती है, क्योंकि उसने उससे रिश्ता मिला लिया।
रिश्ता मिलाने के लिए क्या करना पड़ता है? बस यही तो मुझे आपसे कहना था। रिश्ता मिलाने में आप ख्याल करते हैं कि रिश्वत देनी पड़ती है, चापलूसी करनी पड़ती है, पर इस ख्याल को आप हटा दीजिए। रिश्वत देकर के भगवान को आप मित्र बना सकते हैं, उसका अनुग्रह प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा मत कहिए। साथ ही आप यह विचार मत कीजिए कि जीभ की नोक से कुछ मीठी बातें, कुछ चापलूसी की बातें और स्तोत्र पाठ करने के बाद में भगवान को आप अपना बना सकते हैं। भगवान की साझेदारी पर आप यकीन कीजिए और यह समझिए कि भगवान आपकी जुबान को नहीं, आपकी नीयत को देखता है, दृष्टिकोण को देखता है, चरित्र को देखता है, चिंतन को देखता है और आपकी भावनाओं को देखता है। अगर आप इस क्षेत्र में सूने हैं तो आपके कर्मकांड कोई बहुत ज्यादा कारगर नहीं हो सकते। आप देखते हैं न कि कितने पंडित लोग हैं जो तरह-तरह के विधि-विधान और कर्मकांड जानते हैं, पर सब खाली हाथ रहते हैं। आपने देखा है न कि साधु-महात्मा तरह-तरह के जाप करते हैं, पूजा-पाठ करते हैं, स्नान-ध्यान करते हैं, तीर्थ यात्रा करते हैं, लेकिन उनकी नियति, भावना और दृष्टिकोण अगर ऊंचा न हुआ, व्यक्तित्व ऊंचा न हुआ, अंतःकरण ऊंचा न हुआ, तब उनका लाल-पीले कपड़े पहन लेना, तरह-तरह के आडंबर बना लेना और तरह-तरह के क्रियाकृत्य कर लेना बिल्कुल बेकार चला जाता है और सामान्य स्तर के नागरिकों से भी गई बीती जिंदगी जीते हैं।
भगवान की कृपा कहां मिलती है? भगवान को प्राप्त करने का जो असली रहस्य है, उसे आपको जानना ही चाहिए। क्या करना होगा? आपको भगवान के साथ जुड़ जाना होगा। जुड़ जाने को ही उपासना कहते हैं। उपासना का मतलब ही है जुड़ जाना, पास बैठना। किस तरह से जुड़ जाएं। मैं आपको कुछ थोड़े से उदाहरण बताऊंगा। जुड़ना किसे कहते हैं? आपने आग में लकड़ी को गिरते हुए देखा है न। उस लकड़ी की क्या कीमत है—दो कौड़ी की, जिसे आप पैर के नीचे फेंक दीजिए तो क्या, या तोड़कर फेंक दीजिए तो क्या, इधर से उधर करते रहिए। उसकी कोई कीमत नहीं हो सकती, पर आग के साथ में यदि उसको मिला दिया जाय तो आप देखेंगे कि थोड़ी ही देर में लकड़ी गरम होने लगती है और आग हो जाती है। तब आप उसे छू भी नहीं सकते और जो गुण अग्नि देवता के हैं वही गुण उस नाचीज लकड़ी में भी आ जाते हैं। ठीक यही तरीका व्यक्ति को, जीवात्मा को परमात्मा के साथ मिलाने का है। क्या करें? नजदीक तो आइए आप। नजदीक आने का बस एक ही तरीका है—अपने आपको सौंप देना, होम देना। भगवान की इच्छा पर चलना। लकड़ी अपने आपको सौंप देती है और होम देती है। आग जब उसको जलाती है तो जलने में वह रजामंद हो जाती है। उसी के साथ जब वह घुल गई तो वह उसी का रूप हो जाती है। हमारी और आपकी नियति यह हो कि हम भगवान के साथ में घुल जाएंगे। घुलने का मतलब है सौंप देंगे। उनको अपने में नहीं मिला लेंगे, अपनी मर्जी के ऊपर नहीं चलाएंगे, वरन हम अपने को उनकी मर्जी के मुताबिक चलाएंगे। इसी का नाम समर्पण है। इसी का नाम विलय और विसर्जन है। इसी का नाम शरणागति है। बहुत से नाम इसको दिए गए हैं। उपासना का तत्वज्ञान इसी पर टिका हुआ है कि आप भगवान के अनुयायी होते हैं कि नहीं, उसका अनुशासन मानते हैं कि नहीं। आप भगवान की इच्छानुसार चलते हैं कि नहीं, उसके बताए हुए इशारे एवं संकेत पर चलते हैं कि नहीं। उपासना के साथ जुड़ा हुआ एकमात्र यही प्रश्न है और कोई दूसरा नहीं।
यह ख्याल ठीक नहीं है कि आप अपनी मनमर्जी पर चला सकते हैं और चलाएंगे। भगवान आपकी मर्जी पर क्योंकर चलने लगे? भगवान के अपने कुछ नीति-नियम हैं, मर्यादा और कायदे हैं। आपकी खुशामद की वजह से आपकी मनोकामना पूरी करने के लिए भगवान अपने नीति-नियम को छोड़ देंगे, मर्यादा और कायदे-कानून को छोड़ देंगे और अपने आपको पक्षपाती होने का इल्जाम लगवायेंगे, कलंक लेंगे क्या? नहीं, ऐसा भगवान कर नहीं सकेंगे। अगर आपके मन में यह ख्याल हो कि मिन्नतों और खुशामदों से भगवान को कहीं नजदीक ला सकते हैं और उपासना कर सकते हैं तो आप यह ख्याल छोड़ दीजिए। तब क्या करना पड़ेगा कि आप अपने आपको भगवान को सौंप दीजिए। अपने आपको उनके हाथ की कठपुतली बना लीजिए, फिर देखिए भगवान क्या से क्या करवाते हैं। पानी दूध में मिल जाता है और उसकी हैसियत दूध के बराबर हो जाती है। छोटी सी नाचीज बूंद समुद्र में गिरती है और अपनी हस्ती को उसी में विसर्जित कर देती है और समुद्र की कीमत की हो जाती है। छोटी सी बूंद की हैसियत समुद्र के बराबर हो जाती है। दो कौड़ी का गंदा, कीचड़ से भरा हुआ नाला जब नदी में शामिल हो जाता है, तब वह नदी बन जाता है। उसका पानी नदी की तरह से पूजा जाता है। गंगा में गिरे हुए नाले का गंदा जल भी गंगाजल कहलाता है। यह कैसे हो गया? नाले ने अपने आपको समर्पित कर दिया। किसको? नदी को। यदि समर्पित न करता तब? तब आपकी मनःस्थिति का होता और गंगा जी से कहता—आप नाला बन जाइए और हमारी मर्जी पूरी कीजिए। हमारे साथ-साथ रहिए। पर ऐसा हो नहीं सकता। भगवान को आप अपने जैसा नहीं बना सकते। अपनी मर्जियां पूरी कराने के लिए उन्हें मजबूर नहीं कर सकते। आपको ही उनके पीछे चलना पड़ेगा।
मित्रो, पारस के बारे में आप लोगों ने सुना होगा कि पारस को छूकर लोहा सोना हो जाता है, बदल जाता है। यदि लोहा वैसा ही रहे और पारस से कहे कि आप लोहा बन जाइए, तो यह संभव नहीं। पारस लोहा नहीं बन सकता। लोहे को ही बदलना पड़ेगा। चंदन के पास उगे हुए पौधे चंदन की सी खुशबू देते हैं और चंदन बन जाते हैं। पर आप तो यह चाहते हैं कि चंदन को ही हम जैसा बनना चाहिए। चंदन आप जैसा नहीं बन सकता। छोटी झाड़ियों को ही चंदन जैसा खुशबूदार बनना चाहिए। चंदन बदबूदार झाड़ी नहीं बन सकता। भगवान पर दबाव मत डालिए। तब क्या करना पड़ेगा? आप उसके साथ में घुल जाइए, लिपट जाइए। बेल देखी है न आपने, वह पेड़ के साथ में लिपट जाती है और जितना ऊंचा पेड़ है, उतनी ऊंची होती चली जाती है। यदि बेल अपनी मनमर्जी से फैलती तो सिर्फ जमीन पर फैल सकती थी, और ऊंचा उठना मुमकिन नहीं था। परंतु इतनी ऊंची कैसे हो गई? क्योंकि वह पेड़ से गुथ गई, लिपट गई। आप भी भगवान से गुथ जाइए, लिपट जाइए, फिर देखिए कि आपकी ऊंचाई भी पेड़ पर लिपटी हुई बेल के बराबर होती है कि नहीं। भगवान बहुत ऊंचा है, आप उसके साथ जुड़कर के देखिए, उसके अनुशासन को पालिए। उसकी इच्छा के साथ चलिए, फिर आप देखिए कि भगवान के बराबर बन जाते हैं कि नहीं। पतंग अपने आपको बच्चे के हाथ में सौंप देती है। बच्चे के हाथ में उस बंधी हुई डोरी का एक सिरा होता है जिसे वह झटका देता रहता है और पतंग आसमान में जा पहुंचती है। पतंग अपनी डोरी को बच्चे के सुपुर्द न करे तब, उसे जमीन पर पड़ा रहना पड़ेगा।
आप अपने जीवन की बागडोर और जीवन का आधार भगवान के हाथ में न सौंपे, उसकी मर्जी के अनुसार न चलें तो आप पतंग की तरीके से आसमान पर उड़ने की अपेक्षा मत कीजिए। आपने दर्पण देखा है न, उसके सामने जो चीज आती है वह दर्पण में वैसे ही दिखाई पड़ने लगती है। आपके जीवन में चारों ओर से दोष-दुर्गुण एवं कल्मष छाए हुए हैं, इसलिए आपका दर्पण भी, मानसिक स्तर भी, वैसा ही बन गया है। लेकिन अगर आप भगवान को सामने रखें, उसके नजदीक जाएं तो आप देखेंगे कि आपके जीवन में भी भगवान की आभा, भगवान की शक्ति उसी तरीके से बन जाती है जैसे कि दर्पण के सामने खड़े हुए आदमी की बन जाती है। वंशी अपने आपको पोली कर देती है और खाली कर देती है। पोली और खाली कर देने के बाद में फिर बजाने वाले के पास जा पहुंचती है और उससे कहती है कि आप बजाइए, जो आप कहेंगे वहीं मैं गाऊंगी। बजाने वाला फूंक मारता जाता है और वह बजती जाती है। भगवान को फूंक मारने दीजिए, और आप बजने के लिए तैयार हो जाइए।
कठपुतली को आपने देखा होगा। उसके धागे बाजीगर के हाथ में लगे होते हैं। बाजीगर इशारे करता जाता है, और कठपुतली बिना कुछ कहे नाचना शुरू कर देती है। दुनिया को दिखाई पड़ता है कि कठपुतली का नाच कितना शानदार हुआ। पर वस्तुतः यह कठपुतली का नाच नहीं वरन बाजीगर का कमाल है। कठपुतली ने तो अपने शरीर के हिस्सों में धागे बंधवाए और उनको बाजीगर के हाथ में सौंप दिया, समर्पण कर दिया। बस, यही आपको भी करना पड़ेगा। कठपुतली के तरीके से अगर आप बाजीगर के हाथ में अपनी जिंदगी की नाव सौंप सकते हों, अपनी इच्छाएं और आकांक्षाएं सौंप सकते हों, तो फिर देखिए कि कैसा मजा आ जाता है। आप उस जेनरेटर से संबद्ध हो जाइए जिसके साथ में जुड़ने के बाद ही बल्ब जलता है। पंखे तभी चलते हैं जब उनका संबंध बिजलीघर से जुड़ जाता है। अगर आप सुनेंगे नहीं, जुड़ेंगे नहीं, तब आप रखे रहिए, आपकी कीमत ढाई रुपये है। आप प्रकाश नहीं दे सकते। आपकी हैसियत है तो ठीक है, वह आपको मुबारक, लेकिन अगर आप अनंत शक्ति के साथ न जुड़े तो सब बेकार है। अनंत शक्ति के साथ अगर आप जुड़ेंगे तो फिर देखेंगे कि कितना कमाल कर सकते हैं। इसलिए आदमी की सबसे बड़ी समझदारी यह है कि अपने आपको भगवान के साथ में जोड़ लें। उसकी शक्तियों के साथ में अपनी सत्ता को मिला दें। यह काम जरा भी कठिन नहीं है, वरन् बहुत सरल है। नल आपने देखा है न, जब वह टंकी के साथ जुड़ जाता है जिसमें पानी भरा हुआ है तो उसको बराबर पानी मिलता रहता है। अपने आप में अकेला नल कुछ भी तो नहीं है, लेकिन जब टंकी के साथ में रिश्ता मिला लिया तो उसकी कीमत बढ़ गई। उस नल से अब आपको बराबर पानी मिलता रहेगा।
वक्त छोटा हो तो क्या, नाचीज हो तो क्या, यदि आपने सच्चे मन से भगवान के साथ अपने आपको जोड़कर रखा है, तो भगवान की जो संपदा है, जो विभूतियां हैं, वह भक्त की अपनी हो जाती हैं और बराबर उसको मिलती चली जाती हैं। इसके लिए क्या करना पड़ेगा? अपने आपको सौंपना पड़ेगा। और क्या करना पड़ेगा? भगवान को बहकाना, फुसलाना और अपनी मर्जी पर चलाना बंद करना पड़ेगा। आपको ही उसका कहना मानना पड़ेगा, आपको ही समर्पण करना पड़ेगा। बीज अपने आप को ही बनाना पड़ेगा। भगवान के खेत में अपने आपको बोइए, फिर देखिए कैसी फसल आती है। मक्का का एक दाना खेत में बो देते हैं और उसका पौधा खड़ा हो जाता है, भुट्टे आ जाते हैं और एक-एक भुट्टे में हजार-हजार दाने होते हैं। इस तरह एक बीज के हजारों दाने हो जाते हैं। आप अपने आपको भगवान के खेत में बोइए, गलिए, फिर देखिए आपकी स्थिति कहां से कहां पहुंच जाती है। गलने का मन है नहीं, हिम्मत है नहीं, तो फिर काम कैसे चलेगा। आप गलने की हिम्मत नहीं करेंगे, बीज को जिंदगी भर अपनी पोटली में रखे रहेंगे और यह अपेक्षा करते रहेंगे कि जमीन हमारे खेत लहलहा दे और हमको नहीं गलना पड़े, ऐसा कहीं हुआ है क्या? ऐसा नहीं होगा। आपको गलना पड़ेगा। अगर आप नहीं गलेंगे तब आप भगवान से क्या उम्मीद करेंगे?
आपने सुना है न कि भगवान की आदत कुछ ऐसी है कि मांगते रहते हैं। पहले हाथ पसारते हैं, बाद में कुछ देने की बात कहते हैं। उनके हाथ पर आप कुछ रख नहीं सकते तो फिर आप क्या पाएंगे? चावलों से, धूपबत्ती से आप भगवान को खरीद नहीं सकेंगे। आप आरती करके पा नहीं सकेंगे। जीभ की नोक से स्तोत्र पाठ करके या छोटे-बड़े कर्मकांड करके भगवान के अनुग्रहों के आप अधिकारी नहीं हो पाएंगे। तो फिर क्या करना पड़ेगा? आपको अपना दृष्टिकोण, चिंतन और चरित्र, भावना और लक्ष्य सब का सब भगवान के साथ में जोड़ना पड़ेगा। जिस दिन आप यह करने को तैयार हो जाएंगे तो उस दिन आप देखिएगा क्या-क्या होता है। भगवान की मर्जी तो पूरी करिए फिर देखिए आपको कुछ मिलता है या नहीं। भगवान नीयत देखते हैं। अभी मैंने सुदामा का नाम लिया था। सुदामा ने अपनी पोटली दे दी थी, बाद में भगवान ने उन्हें जो दिया वह आप जानते हैं। जिसके पास भी भगवान जाते हैं, मांगते जाते हैं, देते हुए नहीं। शबरी के पास भगवान गए थे तो कोई सोना-चांदी या हीरे-मोती लेकर नहीं गए थे। वे मांगते हुए गए थे कि अरे हम बहुत भूखे हैं कुछ खाना खिलाइए। शबरी के पास जूठे बेर थे, जो कुछ भी था भगवान के सुपुर्द कर दिया। गोपियों के पास भी गए थे। गोपियों से भगवान प्यार करते थे और उनसे यही पूछते थे—लाइए आप कुछ दीजिए। कुछ नहीं तो छाछ ही मांगते थे। कर्ण से भी मांगने गए थे, बलि से भी मांगने गए थे। हर जगह भगवान मांगते ही चले आते हैं। भगवान कहीं भी जाते हैं तो मनुष्य की पात्रता को परखने के लिए, उसकी महानता को विकसित करने के लिए एक ही दबाव डालते हैं कि आपके पास क्या है, उसे सुपुर्द कीजिए। भगवान की आदत को आप जानेंगे नहीं तो मुश्किल पड़ेगा और अपने आप को सौंपने के लिए आमादा न होंगे तो आप भगवान को अपना नहीं बना सकेंगे।
भगवान की भक्ति किसे कहते हैं? समर्पण को, पर आपने तो उसे कठपुतली के तरीके से चलाने और भक्ति से उचित और अनुचित जो कुछ भी फायदे होते हों, उठा लेने को मान लिया है। आप अपनी भक्ति की इस परिभाषा को बदल दीजिए। भक्ति कैसी होती है? इसकी एक कहानी सुनाता हूं आपको। लैला-मजनू की कहानी सुनी है न आपने, न सुनी हो तो सुनिए। एक मजनू था जो लैला को प्यार करता था और चाहता था कि उससे शादी हो जाए। लेकिन उसका बाप तैयार नहीं था। उसने कहा-हम भिखारी के साथ अपनी बेटी की शादी नहीं करेंगे। तब लैला ने सोचा—चलो मैं ही अपनी मर्जी से शादी कर लेती हूं, लेकिन पहले देखूं तो सही कि ऐसे ही अपनी खुदगर्जी के लिए, मतलब के लिए ही मुझे अपने शिकंजे में कसना चाहता है, या वास्तव में मुझे प्यार करता है। प्यार करने का अर्थ होता है—देना। सो उसने सोचा चलो उसकी परीक्षा लेनी चाहिए। उसने अपनी एक बांदी को भेजा। उसने मजनू से कहा कि लैला बहुत बीमार है, तो वह बहुत दुःखी हुआ। बांदी ने कहा—दुःखी होने से क्या फायदा। कर सकते हो तो कुछ मदद कीजिए। अगर प्यार करते हैं तो कुछ कीजिए न। तो उसने कहा—क्या दूं? बांदी ने कहा कि डाक्टरों ने कहा है कि लैला की नसों में खून चढ़ाया जाएगा। तो क्या आप अपना खून देंगे जिससे लैला की जान बचाई जा सके। मजनू फौरन तैयार हो गया और चांदी का जो कटोरा बांदी लाई थी उसे अपने खून से लबालब भर दिया और बोला—बांदी जल्दी आना अभी मेरे शरीर में जितना भी रक्त है मैं सब उसके सुपुर्द कर दूंगा। मैं उसे मुहब्बत करता हूं और मुहब्बत का अर्थ होता है—देना। इसलिए मैं तो देने ही देने वाला हूं। बांदी रक्त का कटोरा लेकर चली गई। शेष नकली मजनुओं को भगा दिया गया। लैला ने अपने बाप से कहा कि जो मुझसे इतनी मुहब्बत करता है और जो मुहब्बत की कीमत समझता है उसके साथ तो मैं रहूंगी ही। लैला की मजनू के साथ शादी हुई थी। आपकी भी शादी भगवान के साथ हो सकती है, आप जरूर भगवान के साथ शादी कर सकते हैं।
इसके लिए करना क्या चाहिए? एक ही बात करनी चाहिए—भगवान की मर्जी पर चलने के लिए आमादा हो जाइए। जो कुछ आप चाहते हैं, वह आप कीजिए। आप चाहते हैं ठीक है, लेकिन जो आप चाहते हैं उससे पहले भगवान ने बहुत कुछ दे दिया है। उसने आपको इन्सान की ऐसी बेहतरीन और समर्थ जिंदगी दी है कि इसके आधार पर आप अपनी मनमर्जी पूरी कर सकते हैं। मनमर्जी के लिए कोई कमी नहीं है। आपके हाथ कितने बड़े हैं, अक्ल कितनी बड़ी है, आपके आंखें और जुबान कितनी शानदार है। आप अपनी दैनिक जरूरतों की, जिनकी भगवान से अपेक्षा करते हैं, उनके लिए अपेक्षा मत कीजिए। आप जो पुरुषार्थ से कमाते हैं उसमें संतोष कर सकते हैं अथवा कम से काम चला सकते हैं। आप अपनी हवस और अपनी ख्वाहिशें, तमन्नाएं और इच्छाएं अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए क्या भगवान को दबोचेंगे? भगवान को मजबूर करेंगे क्या? क्या वह कर्तव्य की बात को छोड़ दें और आपके लिए पक्षपात करने लगें और कर्मफल की महत्ता का परित्याग कर दें? आप ऐसा मत कीजिए, भगवान को न्यायाधीश रहने दीजिए। आप भगवान को बेइज्जत मत कीजिए। आप अपनी मर्जी के लिए उनको पक्षपाती मत बनाइए। ऐसा वे करेंगे भी नहीं। आप बनाना चाहें तो भी वे नहीं करेंगे।
इसलिए तरीका सिर्फ एक ही है कि आप उस शक्ति के भंडार के साथ में अपने आपको मिला लीजिए, जोड़ लीजिए। मिलाने और जोड़ने का तरीका वही है अर्थात् आपको उनकी मर्जी पर चलना पड़ेगा। आप अपनी मरजियां खत्म कीजिए, अपनी आकांक्षाएं खत्म कीजिए, अपनी इच्छाएं खत्म कीजिए। आप उन्हीं के हो जाइए और उन्हीं के साथ रहिए। जब आप भगवान के साथ हो जाते हैं तो वे आपके हो जाते हैं। आप उनके हो जाइए और अपना बना लीजिए। राजा हरिश्चंद्र बिके थे एक बार, डोमराजा खरीद ले गया था उन्हें। भगवान भी चौराहे पर बिकने के लिए खड़े हैं। वे आवाज लगाते हैं कि हम बिकने के लिए खड़े हैं कि हमको खरीद लिया जाए। जो हमको खरीद लेगा, उसी की सेवा करेंगे, उसी के साथ-साथ रहेंगे। आप चाहें तो उनको खरीद सकते हैं। क्या कीमत है? आप अपने आपको उनके हाथों बेच दीजिए और उन्हें अपने हाथों खरीद लीजिए। स्त्री अपने हाथों अपने आपको अपने पति के हाथों सौंप देती है, अपने आपको बेच देती है और इसकी कीमत पर पति को खरीद लेती है। बस यही मित्रता का रास्ता है, यही भगवान की भक्ति का रास्ता है। आपको अपने जीवन में हेर-फेर करना ही पड़ेगा और करना ही चाहिए। आप अपने घिनौने चिंतन को बदल दीजिए, छोटे दृष्टिकोण को बदल दीजिए। लोभ ओर लालच से बाज आइए और भगवान की सुंदर दुनिया को ऊंचा बनाने के लिए, शानदार बनाने के लिए, उनके राजकुमार के तरीके से उनकी संपदा को, उनकी सृष्टि को ऊंचा और अच्छा बनाने के लिए कमर कसकर खड़े हो जाइए। आप समर्पित हो जाइए, शरणागति में आइए, विलय कीजिए, विसर्जन कीजिए, फिर देखिए आप क्या पाते हैं? बीज के तरीके से गल जाइए और पेड़ के तरीके से उगने की तैयारी कीजिए। आप त्याग नहीं करेंगे तो पा कैसे लेंगे। जो त्याग करना है उसमें जप करना ही काफी नहीं है, जरूरी तो हैं, पर काफी नहीं। भगवान को चावल चढ़ा देना, धूपबत्ती उतार देना, आरती उतारना जरूरी तो है, पर काफी नहीं है। ज्यादा करने के लिए आप अपना कलेजा चौड़ा कीजिए और तैयारी कीजिए। आज मुझे यही निवेदन करना था, आप सब लोगों से।
ॐ शांतिः ।