Books - परिष्कृत मनःस्थिति ही स्वर्ग है
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परिष्कृत मनःस्थिति ही स्वर्ग है
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गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो, भाइयो!
भगवान् की समीपता और कृपा पाने के लिए जिन दो कार्यों की आवश्यकता होती है, उनका विवेचन हम इन शिविरों में करते आ रहे हैं। इन सबका एक ही उद्देश्य है कि आप लोग जो यहाँ आये, अब यहाँ से जाने के साथ- साथ भगवान् के साथ रिश्ता मजबूत बनाते हुए जाएँ। रिश्ता मजबूत करने के साथ- साथ उनकी कृपा भी प्राप्त करें। भगवान् का रिश्ता अपनाना केवल धार्मिक कर्मकाण्ड ही नहीं है, केवल परलोक की तैयारियाँ ही नहीं है, मरने के बाद मुक्त या स्वर्गलोक प्राप्त करने का आधार ही नहीं है, बल्कि इसी जीवन में सुख और शान्ति से ओतप्रोत होने का रास्ता है। मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा या नहीं? यह हम नहीं जानते, लेकिन इसी जीवन में स्वर्ग स्थापित कर सकते हैं, आध्यात्मिक साधना के मार्ग पर चलते हुए।
मित्रो, साधना नकद धन है, यह उधार नहीं! कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिनका परिणाम तुरंत मिलता है, लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिनका परिणाम तुरंत नहीं मिलता। विद्या पढ़ने का परिणाम शायद तुरंत न मिले, लेकिन जहर खाने का परिणाम तुरंत ही मिल जाता है। गलत काम करने का परिणाम देर से मिले, लेकिन आपके दोष और दुर्गुणों के परिणाम तुरंत ही मिल जाते हैं। इसी तरीके से अध्यात्म एक ऐसी प्रक्रिया का नाम है, जो मनुष्यों को तुरंत लाभ प्रदान करती है, जिसका परिणाम तुरंत मिल जाता है।
आज हमारे पास नकली अध्यात्म है। नकली अध्यात्म से परिणाम प्राप्त करने में देर लगती है और लम्बा इंतजार करना पड़ता है और यह उम्मीद लगानी पड़ती है कि हमारी मौत आयेगी और भगवान् के यहाँ जायेंगे और अध्यात्म का परिणाम इस तरीके से मिलेगा।
स्वर्ग के बारे में यह ख्याल है कि कोई स्थान विशेष है, जगह विशेष है। हमारे ख्याल से जहाँ तक हम समझ पाये हैं कि किसी स्थान का, जगह का नाम स्वर्ग नहीं है! बल्कि स्वर्ग आँखों से देखने का एक तरीका है और नरक भी आँखों से देखने का तरीका है, जैसे फोटोग्राफ लिए जाते हैं। किसी आदमी का हम सामने से फोटोग्राफ लें, तो उसकी आँखें, नाक, कान दिखायी देंगे, चेहरा दिखायी देगा और हँसता हुआ मनुष्य दिखायी देगा, अगर पीछे से किसी आदमी का फोटोग्राफ लें, तो उसके बाल और पीठ दिखायी देगी। उसमें नाक, कान, आँखें, मुँह कुछ भी दिखायी नहीं देता है। फोटोग्राफ आ गया, यह किस आदमी का है, पता ही नहीं। क्योंकि उसकी पूछें- दाढ़ी तो हैं ही नहीं। उसका चेहरा तो है ही नहीं, माथा तो है ही नहीं, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं, कि उसके यह सब चीजें नहीं हैं। पीछे से फोटोग्राफ लेने के कारण ये सब चीजें दिखायी नहीं पड़ती। दुनिया भी ठीक इसी प्रकार से है। हमारा जीवन और समस्याएँ भी इसी प्रकार से हैं और परिस्थितियाँ भी ठीक इसी प्रकार की हैं। जब हम इन सबको देखने का तौर- तरीका या नजरिया बदलते हैं, तो हमें अपनी समस्याएँ, विपत्तियाँ दिखायी पड़ती हैं और सब चीजें उल्टी-पुल्टी दिखायी देती हैं। हमें अपने जीवन में अभाव मालूम पड़ते हैं।
एक आदमी था, जो कह रहा था कि यह अभागा गुलाब ऐसी परिस्थिति में पैदा हुआ कि इसके भाग्य फूट गये। काँटों में पैदा हुआ, क्या कर्म में लिखा कर लाया? जहाँ इसका जन्म हुआ वही काँटे- ही काँटे। दूसरा आदमी कह रहा था- कैसे भाग्यवान काँटे हैं कि गुलाब के साथ पैदा हुए। क्या सुंदर गुलाब है। जो काँटा में उगा है। गुलाब कितना सौभाग्यशाली है, जो कि काँटों के साथ जुड़ा हुआ है। यह देखने का तरीका है। जो लोग जीवन को उल्टे तरीके से देखते हैं, उनको अपना जीवन कठिनाइयों से, अभावों से, संकटों से, विपत्तियों से भरा मालूम पड़ता है। वैसे हमारे सुखों में अभाव नहीं, हमारी शांति में अभाव नहीं है। लेकिन जब हम आसमान की ओर देखते हैं तब हमको बहुत मुसीबत मालूम पड़ती है। हमारा बड़ा वाला अफसर दो हजार रुपये कमाता है और हमको पाँच सौ पचास रुपये भेजता है। बड़ा क्लेश होता है, ईर्ष्या होती है कि बड़ा अफसर हमारे घर के पास रहता है। कितना बढ़िया मकान, मोटरकार, नौकर- चाकर और हमारे पास साइकिल है। हम कहीं भी जाते हैं, तो साइकिल से जाते हैं। कोठरी में रहते हैं। हम कभी देखें, तो दुनिया में हमसे भी ज्यादा परेशान, दुखी लोग हैं। धिक्कार है हमारा जीवन, जो हम दुखी होते है हमसे भी ज्यादा दुखी वे लोग हैं, जो झोपड़-पट्टी में रहते हैं, जिनके पास पहनने को कपड़े नहीं हैं, खाने को अन्न नहीं है। किसी दिन नौकरी मिल जाती है और किसी दिन यदि उनके साथ मुकाबला करें, तब हमको मालूम पड़ेगा कि हमारे सुखों को कोई ठिकाना नहीं है। हम बहुत सुखी हैं।
मित्रो, सुख कोई वस्तु नहीं है। लोगों के देखने का दृष्टिकोण का नाम ही सुख है। लोगों का ख्याल है कि जिसके पास धन- संपत्ति नौकर- चाकर कार- बंगला आदि है। वही सुखी होते हैं। नहीं यह बात गलत है। हमारा संपत्ति वाले लोगों से मिलना- जुलना रहा है। संपत्ति वाले सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा कहीं अधिक दुखी और परेशान नजर आते हैं। केवल हमें मालूम पड़ता है कि ये लोग सुखी हैं। हम भी वही चीजें पाने की कोशिश करते हैं, नकल करते हैं, लेकिन जब इनका दिल खोलकर देखा जाए, समझने की कोशिश की जाए, तो इन्हें सामान्य आदमी से भी ज्यादा दुखी पाते हैं।
हेनरी फोर्ड संसार का सबसे बड़ा आदमी जब मरने लगा, तो उसने अपनी डायरी में एक वृत्तांत लिखा कि मैं अपनी फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों को मोटी- मोटी रोटियाँ खाता हुआ देखता हूँ गहरी नींद में सोता हुआ देखता हूँ, तो मुझे ईर्ष्या होती है, डाह होती है कि मैं हेनरी फोर्ड संसार का सबसे धनी व्यक्ति पर मुझे कभी नींद नहीं आयीं। मुद्दतों से सोया नहीं, खाना भी कभी हजम नहीं हुआ। उन्होंने लिखा- हे भगवान्! जब मुझे मौत आये और मैं जब दुबारा जन्म लूँ, तो मैं चाहूँगा कि मुझे इसी फैक्ट्री में लोहा काटने का काम मिल जाये। मैं मजदूर के साथ काम करूँ। छड़ी चलाऊँ, हथौड़ा चलाता रहूँ, ताकि मेरा पेट ठीक से काम करे, मुझे नींद अच्छी आये। हेनरी फोर्ड समझता था कि मजदूर सबसे सुखी व अमीर आदमी हैं और मजदूर समझते थे कि हेनरी फोर्ड सबसे अमीर व सुखी आदमी है। इसी तरीके से दोनों एक- दूसरे को सुखी व अमीर आदमी समझते थे। कौन सुखी है और कौन दुखी है? जहाँ तक हम समझते हैं कि यह मनुष्य के ख्याल है, जो उसे सुखी व दुखी बनाते हैं।
एक था मल्लाह और एक था उसका पुत्र। दोनों एक बड़ा नाव पर सवार होकर समुद्र में उसे खेते हुए जा रहे थे। थोड़ी देर बाद तूफान आया और नाव डगमगाने लगी। मल्लाह ने अपने बेटे से कहा कि ऊपर जा और अपनी पाल को ठीक तरीके से बाँध दे। पाल को अगर ठीक तरीके से बाँध दिया जाएगा, तो हवा का रुख धीमा हो जाएगा और हमारी नाव डगमगाने से बच जाएगी। बेटा बाँस के सहारे ऊपर चढ़ गया और पाल को ठीक तरीके से बाँधने लगा। उसने जब ऊपर की ओर देखा, तो उसे चारों तरफ समुद्र की ऊँची लहरें दिखायी दे रही थीं। जोरों से हवा चल रही थी। सब ओर सुनसान नजर आ रहा था। अँधेरा छाता जा रहा था। कोई भी व्यक्ति दूर- दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था। यह सब देखकर बेटा चिल्लाया- ‘‘पिता जी! मेरी तो मौत आ गयी, देखिये दुनिया में प्रलय होने जा रही है।’’ तब उसका पिता जी चिल्लाया- बेवकूफ सिर्फ नीचे की ओर नजर रख और इधर- उधर मत देख।’’ बाप उस वक्त हुक्का गुड़गुड़ा रहा था। बेटा नीचे चला आया।
अपने बेटे की तरफ हुक्का बढ़ाते हुए उसने कहा कि अपने से ऊपर देखने वाले महत्त्वाकाँक्षी व्यक्ति दिन- रात जलते रहते हैं। लोकेषणा, वित्तैषणा और पुत्रैषणा वाले मनुष्यों की कामनाएँ असीम और अपार हुआ करती हैं। ऐसे व्यक्ति को न शांति मिलने वाली है और न मुक्ति! मनुष्य का जीवन शांति वाला होना चाहिए, अशांत और विक्षुब्ध नहीं, लेकिन यह सब नहीं होता।
मित्रो, दोनों चीजें मालूम तो पड़ती है एक समान, लेकिन इन दोनों में जमीन- आसमान का अंतर है। जीवन में उन्नति करना एक बात है और प्रगति करना दूसरी बात। इसके लिए आदमी को धैर्य, साहस, मुसकराहट, संतुलन, परिश्रम की जरूरत है। इन पाँचों के सहारे उन्नति के रास्ते खुलते हुए चले जाते हैं और मनुष्य प्रगति करता हुआ चला जाता है। जो छोटे- छोटे आदमी आगे बढ़े हैं और सफलताएँ पायी हैं, भौतिक और आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त की हैं, उनके संबल और सहारे रहे हैं- संतोष उत्साह परिश्रम, संतुलन। इन चीजों के द्वारा ही वे आगे बढ़े हैं। लेकिन जिन्होंने अपने आप को आकांक्षाओं की आग में जलाना शुरू किया कि हमको ये नहीं मिला, हमको वह नहीं मिला, हम तो मर जाएँगे, ये करेंगे, वे करेंगे। जो व्यक्ति परिश्रम से घबराते रहे, बड़बड़ाते रहे, जिन्होंने अपना सारा- का मानसिक संतुलन खो दिया, वे जीवन में क्या कुछ प्राप्त कर सकेंगे? जो वस्तुओं में शांति की तलाश करते रहेंगे, वे अपने गिरह की भी शांति खो बैठेंगे।
मित्रो! अध्यात्म जीवन जीने की प्रणाली है, जीवन जीने की प्रक्रिया है। मरने के बाद स्वर्ग मिलता है कि नहीं, यह मैं नहीं जानता, लेकिन मैं यह जानता हूँ कि आध्यात्मिकता के सिद्धांतों को यदि हम जीवन में समाविष्ट कर सकते हों, तब हमारे चारों ओर स्वर्ग बिखरा हुआ दिखाई पड़ेगा। तस्वीर खींचने का यदि हमको सही ढंग मालूम हो, तो हम इस दुनिया की बेहतरीन तस्वीरें खींच सकते हैं और अपने आप की भी। हमारी भी तस्वीर बेहतरीन है, लेकिन यदि हमने दुनिया की खराब वाली तस्वीर देखना शुरू किया, अपना कैमरा कहीं गलत जगह पर फोकस कर दिया, तब हमको क्या चीजें मिलने वाली हैं? तब सबसे ऊपर की शक्ल या सिर आएगा या फिर पैर आएगा और यदि उसी आदमी को बैठाकर फोटो खींचेंगे, तो मालूम पड़ेगा कि कोई लम्बा- लम्बा भूत खड़ा हुआ है। कैमरे का लेन्स वही है, जिससे आपने व्यक्ति को सामने खड़ा करके फोटो लिया था। कैमरे का लेन्स वही है, जो आपने पीठ पीछे से लिया है, खड़ा करके। आपको दुनिया का नहीं, अपने अंतरंग जीवन का फोटो लेना है और उसके आधार पर अपनी शांति, सुख, समृद्धि का मूल्यांकन करना है। अध्यात्म को अपने जीवन का अंग बनाना है।
साथियो! आध्यात्मिकता एक फिलॉसफी है- एक दर्शन है, सोचने- समझने की प्रणाली है, जीवन जीने की कला है। हमें अपनी समस्याओं के बारे में, कुटुम्ब के बारे में, अपनी महत्त्वाकाँक्षा के बारे में, अपने पुरुषार्थ के बारे में सोचना है। यदि हमारा विचार करने का क्रम ठीक हो, तो हम आपको आशीर्वाद दे सकते हैं कि आपका जीवन सुखों से भरा हुआ हो, आप प्रसन्न रहें, उन्नति करें। आपका जीवन उल्लास से भरा हुआ हो सकता है, यदि आपको सही ढंग से देखना आता हो तब। मान लीजिये किसी के कुटुम्बी की मौत होने वाली है। ठीक है आपको अपना भाई- भतीजा चाचा- ताऊ दादा- दादी प्यारे थे, लेकिन दूसरों को भी आवश्यकता हैं- अपने भाई- भतीजों को गोद में खिलाने की। यदि हम उनको चिपकाकर रखेंगे, तो किसी के घर ढोलक कैसे बजेगी? मिठाई कैसे बाँटी जाएगी? कोई माता अपने लाल को कैसे निहारेगी? अपने लाल को पाकर कैसे धन्य होगी? एक का आनंद- दूसरे का शोक, एक का नफा- दूसरे का नुकसान- यही दुनिया का क्रम है।
यदि हमारे विचार करने का क्रम सही हो जाए तब हमें बढ़िया- से चीजें देखने को मौका मिलेगा। यदि इन आँखों का लेन्स बदल दिया जाय और उस लेन्स से हम उन चीजों को देखें, जो देखने लायक हैं, तो मजा आ जाएगा। हमारे पास में ब्लॉक बनाने वाला रहता है। उसके पास कई तरह के कैमरे रहते हैं। हम उससे तस्वीरें बनवाते रहते हैं, जिनमें कई तरह के रंग मिले रहते हैं। उसके पास कई रंग के ब्लॉक हैं, जिनसे वह तरह- तरह के रंगों से रंग- बिरंगे चित्र तैयार कर लेता है। अलग- अलग तस्वीर की अलग- अलग प्लेटें तैयार करता है और सुंदर चित्र छाप देता है।
इसी तरह मित्रों! मनुष्य के भीतर दुष्टताएँ, कमियाँ, बुराइयाँ और मूर्खताएँ होती हैं, लेकिन दुनिया में कोई भी मनुष्य इस तरीके का नहीं बनाया गया है, जिसके अंदर कमियाँ ही कमियाँ हों, बुराइयाँ ही बुराइयाँ हों। ऐसा इन्सान हमने आज तक नहीं देखा कि जिसमें सिर्फ कमियाँ और बुराइयाँ ही हों, अच्छाइयाँ न हों। कसाई के भीतर भी अच्छाई होती है। वह भी अपने बच्चों से प्यार करता है। डाकू के भीतर भी विशेषता होती है और वह है, उसका साहस। डकैती के कारण उसको परलोक में दंड मिलता है, उसको जेल जाना पड़ता है। वह लम्बी- लम्बी सजाएँ भुगतता है। लेकिन उसके साहस के कारण उसको यश भी मिलता है, और पैसा भी मिलता है। रात को जंगलों में घुसने पर जब हमको भय का भूत सताता है, तब वह अपने कंधे पर बंदूक रखकर लंबे- लंबे डग भरता है। यह उसकी विशेषता है।
मित्रों! हर मानव विशेषताओं से भरा हुआ है। हमारे देखने वाले आँखों के लेन्स यदि सही हों, आँखें सही हो तो हम वह फोटोग्राफ खींच लेते हैं, जैसा कि हमारे पड़ोस में रहने वाला फोटोग्राफर हर ब्लॉक को अलग निकाल लेता है- पीले रंग को अलग निकाल लेता है, लाल रंग को अलग और नीले रंग को अलग निकाल लेता है। यदि फोटोग्राफ हर रंग को अलग कर सकता है, तो हममें से हर मनुष्य यदि अच्छाइयों को देखना शुरू करें और अच्छाइयों को ही प्रोत्साहन दे, अच्छाइयाँ बढ़ने का प्रयत्न करे, तो सर्वत्र अच्छाइयाँ- ही अच्छाइयाँ नजर आएँगी।
आप कहेंगे कि बुराइयों से कैसे लड़ा जाएगा, उनको कैसे खत्म किया जायेगा? बुराइयों से लड़ने के बहुत से तरीके हैं। उनमें से एक तरीका यह है कि उस पर लांछन लगा करके तथा मारपीट करके व गाली- गलौज करके उसको अपमानित करते हैं। अपमानित करने के बाद में उसे ढीठ बनाते हैं। दूसरा तरीका बुराइयों को दूर करने का यह है कि हम अपने आपको सुधारें। अपने आपको सुधारने के लिए बड़े- से बड़े काम किये जा सकते हैं। कुशल डॉक्टर अपना तेज चाकू ले आता है, बड़े प्यार से- मोहब्बत से मरीज को कभी पेट पर चलाता है, तो कभी टाँग के ऊपर, तो कभी सिर के ऊपर चलाता है। जगह- जगह चाकू चलाता है और ऑपरेशन चलता रहता है, परंतु यह सब कुछ वह बिना गुस्से के करता है, बिना घृणा के चाकू चलाता है। डॉक्टर के ऊपर आप मुकदमा नहीं चलाते, उसको सजा नहीं दिलाते, क्योंकि वह आपकी जान बचाता है। पेट में छुरा घोंप देने वाले, मारने वाले को दस साल की सजा हो जाती है, लेकिन ऑपरेशन करने वाले, चाकू चलाने वाले डॉक्टर की तरक्की की जाती है। यह सब नीयत का कमाल है। नीयत अच्छे व्यवहार के लिए भी की जाती है और इसी आधार पर अच्छे लोगों को बदनाम भी किया जा सकता है।
मित्रों! यदि हम सबका दृष्टिकोण बदल जाय, तो क्या- से हो सकता हैं? बेलनगंज, जो कि आगरा शहर का एक मोहल्ला है, वहाँ के एक सम्पन्न व्यक्ति को पन्द्रह दिन से नींद आनी बंद हो गयी। साथ- ही उसे ऐसी शिकायत हो गयी कि दिमाग की नसें फटने लगीं और ऐसा लगने लगा कि उसकी मौत हो जाएगी। आँखें बिलकुल लाल- लाल हो गयीं। यह सब लक्षण देखकर घरवालों को लगने लगा कि सचमुच उसकी मौत हो जाएगी। पन्द्रह दिनों से नींद न आने के कारण उसका बुरा हाल था। किसी ने कहा था कि मथुरा में एक आचार्य जी रहते हैं, उनके पास जाने से कई आदमी अच्छे हो गये हैं, तुम भी उन्हीं के पास चले जाओ। इससे पूर्व उन्नाव की एक महिला, जो एक तहसीलदार की पत्नी थीं और वहीं प्रिंसिपल थी, आयी। उस स्त्री का बुरा हाल था। वह खूब रोया करती थी। किसी ने उससे कहा कि आचार्य जी के पास मथुरा चली जाओ। वह मेरे पास आयी। ऐसे ही किस्से- कहानियाँ किसी ने उसे सुना दिये थे। वह ठीक होकर चली गयी।
हाँ, तो आगरा वाले व्यक्ति को लोग मेरे पास लाये और कहा कि इनको पन्द्रह दिन से नींद नहीं आयी हैं। आँखें सूजकर लाल हो गयी हैं। नसें फटी जा रही हैं। अगर इनको नींद नहीं आयेगी, तो यह मर जाएँगे। महाराज जी, इनका इलाज कीजिए। मैंने कहा कि इनका इलाज किया जा सकता है और इन्हें अच्छा भी किया जा सकता है। उनके साथ आये हुए लोगों को हमने दूसरे कमरे में भेज दिया। फिर उनसे पूछा कि क्या बात है? उन्होंने कहा कि हमारे साथ एक कांड हो गया है। हमारे घर में इनकम टैक्स ऑफिसर ने छापा मारा था, जिसमें दो बही- खाते ले गये थे। यह सब हमारे मुनीम ने कराया था। उसने जाकर ऑफीसर को बताया और अपने साथ सेल्स टैक्स ऑफिसर व इनकम टैक्स ऑफिसर को ले आया। छापा मारने के बाद में हमारे दोनों बही- खातों को पुलिस ले गयी। उसके बाद हमारे ऊपर केस चलाया गया। हमारी गिरफ्तारी हुई। अब हम जेल से छुट गये हैं, लेकिन हमको भय लगता है कि अब न जाने क्या होने वाला है। अब हमारा क्या होगा?
यह सब सुनकर मैंने राहत की साँस ली और कहा कि आप थोड़ी देर आराम से बैठ जाइये। आपकी बीमारी तो दूर हो जाएगी, लेकिन इसके साथ- साथ हम आपको छुटकारा दिलाना चाहते हैं। वह हँसने लगा कि कैसे दिलाएँगे। मैंने पूछा- अच्छा बताइये, आपके असली और नकली बहीखाते में वास्तव में कितने खर्च का अंतर है? उन्होंने कहा- दस लाख रुपये करीब का अंतर है। फिर पूछा- अगर आपको इनकम टैक्स देना पड़े, तब कितना नुकसान भरना पड़ेगा। करीब बीस लाख रुपये का अंतर है। हमें बीस लाख रुपये देने पड़ेंगे। मैंने उनसे सहानुभूति जताई और कहा आपके पास क्या- क्या समान है तथा कितनी संपत्ति व जायदाद है? वह कागज- पेन्सिल लेकर बैठ गये और नोट करने लगे। उन्होंने बताया कि फैक्ट्री व उसमें लगी मशीनों तथा बैंकों में जमा पैसा, इधर- उधर की लेन- देन का, सब मिलाकर कोई पचास लाख रुपये की संपत्ति है। हमने कहा कि इसमें से बीस लाख निकाल दिया जाए तो कितना रुपया बचेगा? उनने कहा- तीस लाख।
मैंने कहा- मेरे पास तीस पैसे भी नहीं हैं, फिर भी देखिये- अगर गवर्नमेन्ट आपके बीस लाख रुपये ले लेती है, तो भी आपके पास तीस लाख बचे रहते हैं। तीस लाख रुपये किसे कहते हैं? तीस लाख रुपये के तीस हजार प्रति महीने ब्याज होगा। आप जब मुकदमे से छूट जाएँ और बीस लाख जुर्माना चुका दें, तब आप मुझे बुला लेना। आपको एक क्वार्टर दिला देंगे और शेष रुपये बैंक में जमा करा देंगे। आपको तीस हजार रुपये महीने की आमदनी उससे मिलता रहेगी और आप घर बैठे आनंद किया करेंगे। बात उनकी समझ में आ गयी। जब मैंने उनसे पूछा कि आपका महीने में कितना खर्च होता है, तो उनने कहा कि पाँच हजार। मैंने कहा एक महीने में कितना बचा रहता है? पच्चीस हजार। मैंने कहा पच्चीस हजार रुपया एक महीना में बच जाता है, तो साल भर में कितना हो जाएगा? उनने कहा तीन लाख रुपये। अगर आप इतना रुपया सात- आठ साल तक बचायें, तो कितना रुपया हो जाएगा? उनने कहा- तीस लाख रुपये।
मैंने कहा कि अगर गवर्नमेन्ट आपका बीस लाख रुपये ले ले, तो आपका क्या हर्ज होगा? आप सोच लीजिएगा कि सात- आठ साल तक आपने कमाया ही नहीं। वह मुस्कराने लगा। फिर मैंने उसे माताजी के पास भेज दिया। मैंने पूछा कि क्या आप पतली रोटी खाते हैं? आप माताजी के हाथ की रोटी खाइए, मोटे हो जाएँगे। उस रात उसे पूरी नींद आयी। लोगों ने कहा- क्या आप इनसे जप वगैरह कराएँगे? मैंने कहा- नहीं उसके जाने के बाद घर वालों की चिट्ठियाँ आयीं की न जाने आपने कौन- सा मंत्र फूँक दिया है कि वह अब एकदम स्वस्थ व प्रसन्नचित्त हैं।
मित्रों! यदि हमारे सोचने का, देखने का ढंग बदल दिया जाय, तो जीवन में आनंद और उल्लास आ जाएगा। तब सारा जीवनक्रम ही बदल जाएगा। लोग मरने के बाद स्वर्ग का, मुक्ति का ख्वाब देखते रहते हैं। मरने के बाद स्वर्ग देखने की इच्छा कम- से मेरे जैसा पसन्द नहीं करेगा। मुसलमानों के स्वर्ग के बारे में मैंने पढ़ा है कि वहाँ पर शराब की नहरें बहती रहती हैं। जब पानी हो तो शराब, कुल्ला करना हो तो शराब, नहाना हो तो शराब। मुसलमानों की जन्नत में सत्तर हूर व बहत्तर गुलमें हैं, जो सेवा करते हैं। मित्रों, अगर हमको इस तरीके की जन्नत मिल जाये, तो मैं मर जाऊँगा। अगर कोई आदमी रेलगाड़ी में बीड़ी पीता है, तो मैं अपना सिर खिड़की से बाहर निकाल लेता हूँ, लेकिन जहाँ सब लोग शराब पीते हों, ऐसी जन्नत में जाकर क्या करूँगा। जिस जन्नत में हूरों के, अप्सराओं के नाच- गाने चलते हों, ऐसी जगह जाना मैं कभी पसंद नहीं करूँगा।
हिंदुओं के स्वर्ग के बारे में भी मैंने पढ़ा है कि वहाँ इंद्र का दरबार लगा रहता है और सुबह शाम तक नाच- गाना ही चलता है। ऐसा स्वर्ग देखने की जरूरत होगी, खाने के लिए बढ़िया- बढ़िया चीजें होंगी और घूमने के लिए मोटरकारें होंगी, तो मैं अशोका होटल, नटराज होटल चला जाऊँगा। दो सौ रुपये रोज का फ्लैट लूँगा, पैसे कमा कर लाऊँगा और खूब मौज करूँगा। जब ऐसा स्वर्ग मुझे इसी जिंदगी में धरती पर मिल सकता है, तो फिर मैं मरने का इंतजार क्यों करूँ। यदि इसी का नाम स्वर्ग है, खाने- पीने की सुविधा, पहनने- ओढ़ने की सुविधा का नाम, नाच- रंग देखने का नाम स्वर्ग है, तो वह स्वर्ग तो यहीं पर है। कम- से मेरे जैसा आदमी जिसने परिश्रम से प्यार किया है, जिसे पसीना बहाये बिना नींद नहीं आती। जो आदमी श्रम के बिना, सेवा के बिना जिन्दा नहीं रह सकता, ऐसा पाया है मैंने मन। मुझे तो उस स्वर्ग में भागना पड़ेगा और कहना पड़ेगा कि कृपा करके मुझे यहाँ से विदा कर दीजिये। क्योंकि मुझे गरीब, पिछड़े, असहाय लोगों की सेवा करनी है।
एक बार भगवान् बुद्ध से पूछा गया कि आपको तो मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा? उन्होंने कहा- नहीं मैं तो स्वर्ग जाने का अधिकारी तब होऊँगा, जब हर व्यक्ति स्वर्ग जाने का अधिकारी होगा, सब को सुख व शांति मिलेगी, सब सुखी होंगे, तब तक मैं अपनी बारी काटकर दूसरे व्यक्तियों को क्यू में लगाता रहूँगा। सबके बाद में ‘मैं’ अंतिम व्यक्ति होऊँगा और स्वर्ग जाने की ख्वाहिश करूँगा। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक मैं लोगों को आगे बढ़ाता हुआ चला जाऊँगा। मित्रो! बुद्ध की वह मनोभूमि, ऋषि- मुनियों की वह मनोभूमि, जिसमें उन्होंने कहा-
न त्वहम् कामये राज्यं न सौख्यं न पुनर्भवं।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनाम् आर्तनाशनम्॥
तात्पर्य यह कि प्राणियों का आर्त और प्राणियों का दुःख निवारण करने के लिए यदि हमें मौका मिल जाता है तो यह हमारे लिए वरदान है और यही हमारा सौभाग्य है।
एक बार कुंती से भगवान् कृष्ण ने कहा कि हे कुंती! वरदान माँग। मैं अब जा रहा हूँ। मैं तो भगवान् हूँ, तू जानती है क्या? कुंती ने कहा- मैं जानती हूँ कि आप भगवान् हैं। मैं आपसे एक ही वरदान माँगती हूँ कि मुझे कष्टसाध्य जीवन दें, गरीब लोगों वाला जीवन जिऊँ ताकि मैं जान सकूँ कि गरीबी क्या होती है? कठिनाइयाँ क्या होती हैं? उनके कष्ट क्या होते हैं? यह सब मैं समझ सकूँ, ताकि उनकी सहायता कर सकूँ।
मित्रो! स्वर्ग, मनुष्य के देखने और सोचने का ढंग में- तरीके में है। यह किसी जगह विशेष का नाम नहीं है। कम- से स्वर्गलोक के उस जगह का पता लगा लिया गया है, चंद्रमा के बारे में जानकारी प्राप्त कर ली गई है कि कभी- कभी वह इतना गरम हो जाता है कि अगर कोई धातु रख दी जाये, तो वह भी पिघल जाएगी। रात में चंद्रमा इतना अधिक ठंडा हो जाता है कि यदि कोई चीज रख दी जाय, तो वह बर्फ बनकर जम जाएगी। ऐसा गरीब चंद्रमा- जहाँ न पानी है, न हवा, वहाँ अगर आपको भेज दिया जाय, तो आप कहेंगे कि गुरुजी आपने हमें कहाँ भेज दिया। हमें वापस बुला लीजिए। लोग चंद्रमा पर गये हैं, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि वहाँ ठहर सकें। वे केवल चंद मिनट चक्कर काटकर वापस आ गये हैं। इसी तरह शुक्रग्रह का पता लगा लिया गया है कि वहाँ कोयले का भंडार है। कार्बन गैस भरी पड़ी है। वहाँ आप बिलकुल जिंदा नहीं रह सकते। वहाँ आपका दम घुट जायेगा।
कुछ लोगों का विश्वास है कि भगवान् के पास जाने से स्वर्ग मिलता है। क्या वास्तव में स्वर्ग है? किसी ने देखा है स्वर्ग को? किसी ने देखा हो या नहीं, लेकिन मित्रो! मैंने स्वर्ग को देखा है और मैं चाहता हूँ कि आपको भी स्वर्ग दिखाऊँ। भगवान् के पास जाने से दो चीजें मिलती हैं- पहला- स्वर्ग दूसरा ‘मुक्ति’। परंतु स्वर्ग केवल देखने वाले तरीके का नाम है। आप चाहें, तो अपने में स्वर्ग का प्रयोग कर सकते हैं। आप कृपा करके उन लोगों का एहसान देखना व मानना शुरू कीजिए, जिनके बोझ से आपका शरीर लदा हुआ है। आप कृपा करके उस बूढ़ी माँ को देखिये। वह कृपा की देवी है, दया की देवी है, जिसने नौ महीने आपको अपने पेट में रखा, रक्त निचोड़ा, अपनी हड्डी गला दी। अपना सारा- का माँस निचोड़ करके हमारा एक पिंड बनाया। जब यह पिंड असहाय था तब और जमीन पर आने के बाद भी वह अपने लाल रक्त को सफेद दूध के रूप में पिलाती रही।
जब कोई व्यक्ति किसी को पचास सी.सी. खून दान दे देता है, तो जन्म भर एहसान करता है और कहता है- जब मरने के लिए बैठे थे, तब हमने आपको खून दिया था, बचाने के लिए। लेकिन मित्रो! जिसने हजारों सी.सी. रक्त आपको दूध के रूप में पिला दिया हो, उसके एहसान का क्या ठिकाना? काश! कभी आपने उस माँ को एहसान की दृष्टि से देखा होता, तो आपको मालूम होता कि देवता और कहीं नहीं हैं, कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है, देवता ‘माँ’ के रूप में आपके घर में ही है। क्या शारदा, सरस्वती को जानने की जरूरत है या लक्ष्मी को देखने के लिए आपको मुम्बई जाने की जरूरत है। नहीं, ‘माँ’ के रूप में आपके घर में ही बैठी हुई है। जहाँ आज हर आदमी मुआवज़ा चाहता है, बदला चाहता है, वहाँ त्याग की देवी- आपकी धर्मपत्नी अपने माता- पिता भाई- बहिन कुटुम्ब- परिवार को छोड़कर आती है और आपकी सेवा में दिन- रात लगी रहती है। आप जिस तरीके से उसे रखते रहे, वह उसी तरीके से रही और जीवन भर अपना सारा श्रम निचोड़ती रही। धर्मपत्नी अपना रूप और यौवन, अपनी भावनाएँ आपके ऊपर निचोड़ती रहती है, परंतु बदले में आपसे कुछ नहीं चाहती।
साथियो! त्याग और बलिदान का देवता आपके घर में बैठा है। उस त्याग और बलिदान के देवता का नाम है— भगतसिंह। उस देवता का नाम है- महर्षि दधीचि। मित्रो! हमने महर्षि दधीचि को तो नहीं देखा, लेकिन दधीचि के रूप में अपनी पत्नी को देखा है, जिन्होंने अपने जीवन का उत्सर्ग कर दिया मकसद के ऊपर। आपकी आँखों में ‘यदि कृतज्ञता के भाव आयें,’ तब आपको यह करना होगा कि नारी के उत्थान के लिए आपको आगे आना होगा। आप जाते तो गायत्री माता के मंदिर में हैं, लेकिन औरत को लातों से मारते हैं। जब वह बेचारी दर्द व शर्म के मारे चिल्लाती है, तब आप उसके मुँह में कपड़ा ठूँस देते हैं। तब वह सिसक- सिसक कर रोती है। धिक्कार है ऐसे लोगों, पर जो ऐसे कुकर्म करते हैं। मन में यह भावना लेकर चले थे गायत्री माता को प्रसन्न करने, उनसे वरदान माँगने चले थे, ऐसे दुष्ट, पिशाच, नीच लोगों को धिक्कार है। ऐसे ही पापी लोग नरक में जाते हैं। ऐसे लोग जहाँ कहीं भी जाएँगे, नरक बना देंगे, घर में भी, बाहर भी वे लोग नरक बना देंगे। घर- बाहर पृथ्वी- आकाश सारी जगह नरक विद्यमान रहेगा उनके लिए।
मित्रो! जो आँखें दुष्टता को देखती रहती हैं, दोष- दुर्गुणों को देखती हैं। जिनके भीतर कभी कोई संवेदना का भाव उत्पन्न नहीं होता। सारे जीवन में त्याग और सेवा के कृतज्ञता के भाव जब तक मनुष्य के जीवन में न आयें, तब तक स्वर्ग नहीं प्राप्त होता है। स्वर्ग अर्थात् कृतज्ञता के भाव। ये भाव जब- जब हमारी आँखों व दिल में आ जाते हैं, तब हमें छोटी- छोटी चीजें देवता के रूप में दिखायी देती हैं। दूसरे लोग हमारे ऊपर हँसा करते हैं, कहते हैं कि ये हैं हिंदू। ये क्या पूजते हैं? पत्थर। ये क्या पूजते हैं? पीपल। ये क्या पूजते हैं? घूरा। बेवकूफ वे लोग हैं, नहीं, हम लोग उनसे ज्यादा बुद्धिमान हैं। महत्त्वपूर्ण यह है कि जिस जानदार या बेजान चीज ने हमारे ऊपर एहसान किया है, उनके चरणों पर हमारा मस्तक झुका रहता है। अगर वह बेजान है, तो उससे हमें क्या मतलब! क्योंकि बेजान चक्की ही हमें अनाज पीस- पीसकर खिलाती है। जिस अन्न को हम ऐसे खा नहीं सकते थे, चबा नहीं सकते थे। उसको पीसकर हमारे खाने लायक बनाया। हमारे लिए पौष्टिक अन्न बनाया, जिसने हमारा पेट भरा। चक्की न हो, तो हम कहाँ से पेट भरेंगे? देवता चक्की नहीं, तो कौन है? जिसने बिना पारिश्रमिक माँगे अपना श्रम जारी रखा। हम उसकी पूजा न करें, तो किसकी पूजा करें। वह पत्थर है अवश्य, लेकिन इनसानों से तो पत्थर अच्छा है। उन देवताओं से तो पत्थर अच्छा है, जो देवता बकरा खाने के बाद, भैंसा खाने के बाद इनसान की सहायता करने को तैयार हो। ऐसे दुष्ट कसाई देवताओं से अच्छा तो पत्थर देवता है, जो हमारे चक्की पीसने के काम में आ जाता है।
घूरा- जो कूड़ा का ढेर भरा हुआ पड़ा रहता है। जिसने गंदगी एक स्थान पर एकत्र कर ली और अपने आपको गला दिया। गलाने के बाद अपने आप को खाद बना डाला, जो कि खेतों में डाली जाती है। जिससे कि अन्न की पैदावार, चावल, गेहूँ, मक्का, जौ, फल, सब्जी आदि अधिक मात्रा में होते हैं। अगर हम घूरे की पूजा नहीं करेंगे, तो किसकी पूजा करेंगे? ये बेजान घूरा है, बेजान चक्की है, पर हम तो बेजान नहीं हैं, हममें तो जान है। हर जानदार का एक फर्ज होता है कि जिन लोगों से हम सहायता लेते हैं और जिन लोगों की सेवाएँ प्राप्त कीं, जिन लोगों का स्नेह प्राप्त किया, उन सबके प्रति कृतज्ञता के भाव रखें। कृतज्ञता का भाव रखना मित्रो, केवल वैचारिक रूप से नहीं हो सकता। जिसके प्रति कृतज्ञता के भाव हैं, उसके प्रति कुछ प्रतिक्रिया- प्रतिध्वनि होनी ही चाहिए। हर ध्वनि की प्रतिध्वनि होती है। जैसे कुएँ में जो आवाज देते हैं, उसकी प्रतिध्वनि होती है और वही आवाज गूँजकर हमें पुनः सुनायी देती है। यहाँ मथुरा में एक प्रसिद्ध जगह है। जिसे पोतराकुण्ड कहते हैं। यहाँ पंडे लोग अपने यजमानों को ले जाते हैं। वहाँ उनसे कहलवाते हैं कि- यशोदा तेरा लाला जागै कि सोवै।’ इसमें अंतिम शब्द ‘सोवै’। अगर आप ऐसे कह दें कि यशोदा तेरा लाल सोवै कि जागै, तो एक सेकेण्ड बाद जागे शब्द की प्रतिध्वनि आयेगी।
मित्रो! कृतज्ञता के भाव जो हमारे अंतरंग में जाकर के टकराते हैं, तो इस शरीर रूपी गुंबद से एक भाव उत्पन्न होता है, एक कल्पना उत्पन्न होती है, एक आकांक्षा होती है कि जिन लोगों ने हमें अनुदान दिये हैं, हमारी सेवा- सहायता की है, उन लोगों के प्रति हमारा कोई फर्ज नहीं है क्या? क्या उनके ऋणों से मुक्ति नहीं पायी जा सकती है? मनुष्य के मन में जिस दिन ये भाव उत्पन्न होते हैं, उस दिन उसे चारों ओर देवता, दिखायी देते हैं। एक देवता वह अध्यापक दिखायी पड़ता है, जिसने प्राइमरी स्कूल में पढ़ाया था। जो रोज मुर्गा बनाता था और मार लगाता था, अगर मारता नहीं, तो आज हम और आप गाय, भैंस, बैल चरा रहे होते। मारा तो क्या हुआ, मुर्गा बनाया तो क्या हुआ, पढ़ाया भी इसी तरीके से कि अच्छी डिवीजन आती रही और पास होता गया। धन्यवाद है उस गुरु को जिसने हमें पढ़ाया। कैसा प्यार भरा गुरु था वह, जिसकी वजह से हमारे जीवन का सबसे स्वर्णिम समय बीता। छोटे- छोटे बालक, छोटे- छोटे स्कूलों में लम्बी- लम्बी जिंदगियाँ व्यतीत कीं, पर वैसा निर्मल और निश्चल प्रेम कहाँ देखा हमने?
हमने आपको कोका-कोला पिला दिया और पान भी खिलाये, लेकिन इस खिलाने, पिलाने के पीछे भी एक चाल थी। आपकी बेटी की शादी है- साड़ी खरीद ले जाइये। कितने दाम की साड़ी है? अरे दाम का क्या सोचना, दाम तो बाद में भी मिल जाएँगे। आप साड़ी ले जाइये, अजी हमारे और आपके पिताजी दोस्त थे। कोका-कोला पिलाया था, तब आपने मेरी जेब काट ली थी। हमने मित्रताएँ तो कर लीं, लेकिन स्वार्थ, छल- कपट और कामनाओं से भरी हुई। शतरंज की बिसात के तरीके से हमारी मित्रताएँ बनी रहीं। जब हमारा काम पूरा हुआ, तो हमने इस तरीके से आँखें फेर लीं, जैसे पिंजरे से निकलने के बाद तोता फेर लेता है। मित्रता का अर्थ हमारे जीवन से चला गया और अन्तःकरण तलाश करता फिर रहा है कि हमें कोई मित्र मिल जाये। परंतु मित्र कहाँ से मिले! मित्र के बिना, सखा के बिना, साथी के बिना पूरा जीवन एकाकी प्रेत- पिशाच सा मरघट में अकेले- अकेले बैठे रहते हैं जिनका अपना कोई भी नहीं।
मित्रो! शिकार खेलने वाले जंगल- जंगल घूमते रहते हैं। जंगलों में रहने वाले जानते हैं कि एक्कड़ नाम का एक जानवर होता है। जो झुण्ड में से निकलकर अलग चला जाता है, वह एक्कड़ कहलाता है। एक्कड़ सुअर बड़ा भयानक होता है। जंगल में जब मैं रहा, तो एक्कड़ जानवर को हमेशा तलाश करता रहा। झुण्ड से बाहर कभी हिरन रहने लगता है, तो वह बड़ा ही खूँखार हो जाता है। जहाँ भी मौका मिलता है, सींग घुसेड़ देता है किसी भी जानवर में। एक्कड़ बड़ा ही भयानक होता है, बड़ा ही खूँखार होता है, ऐसे ही अचानक हमला बोलता है। जंगल के सभी लोग जानते हैं कि इससे कैसे बचना चाहिए। इसी तरह जो व्यक्ति एक्कड़ के तरीके से रहते हैं, वे किसी को अपना सखा बना रहे हैं, किसी को मित्र बना रहे हैं, परंतु वस्तुतः उनका प्रेमी कोई भी नहीं। सब उनके लिए शतरंज की मोहरों के तरीके से हैं। जिनको यहाँ से उठाकर वहाँ रख देते हैं। जिससे गोटी लाल हो जाती है। अगर बात बन जाती है तो ठीक, अगर नहीं बनी तो उसको छोड़ देते हैं और दूसरी गोटी फिट करने की तिकड़म भिड़ाते रहते हैं।
मित्रो! हम याद करते हैं बचपन के उन लोगों को, जो कि ज्वार की रोटी लेकर आते थे और हम गेहूँ की रोटी ले जाया करते थे और आपस में मिल- बैठकर खाते थे। ब्राह्मण, बनिया और नाई सभी साथ बैठे हुए खाते थे। तब न तो किसी को जाति का ध्यान था, न ही ऊँच- नीच का, कि कौन ब्राह्मण है, कौन बनिया है और कौन नाई है? बड़े हो गये, तो जाति- बिरादरी के हमारे सामाजिक बंधनों से हमारा जीवन नष्ट- भ्रष्ट हो गया। बचपन में हमने नाई के लड़के के साथ जो रोटियाँ खायी थीं, याद आता है वह निश्चल प्रेम, कृतज्ञता का भावभरा जीवन। मित्रो, आकांक्षा उत्पन्न होती है और निश्चल प्रेम याद आता है। मन करता है कि वैसा ही प्रेम भरा जीवन दुबारा मिल जाये। ऐसा मालूम होता है कि यह खूबसूरत दुनिया जो न जाने कितने हीरे जवाहरातों से बनायी गयी है। छोटे बालक और अध्यापक जब याद आते हैं, जब हमको अपनी माँ याद आती है, जो हमको गोद में लिए फिरा करती थी, तब मालूम पड़ता है कि दुनिया कितनी खूबसूरत, प्यार से, आनन्द और उल्लास से भरी हुई है। हमको जब समाज का ज्ञान आता है तो मालूम पड़ता है कि न जाने हम कितने लोगों से शिक्षण पाते हुए चले गये। इतने सारे अपना ज्ञान हमारे पास रख गये।
मित्रो! आप एक गीता खरीद करके ले आते हैं, जिसमें भगवान् श्रीकृष्ण की लीला का ज्ञान, जो अर्जुन को मिला था, पढ़ते हैं। धन्य है वह गीता, धन्य है- प्रेस वाले, धन्य है वह छापाखाना वाला और धन्य है वह कागज बनाने वाला टाटा मिल, जो कागज के रीम बनाता हुआ चला गया। धन्य है वह, जिसने छापने की मशीनें बनायीं, जिससे हमें ढाई आने की गीता पढ़ने को मिल गयी। धन्यवाद उन सब लोगों को, जिनने इतना बेहतरीन काम किया, जिसकी वजह से गीता जैसी पवित्र व धार्मिक पुस्तक पढ़ने को मिल गयी। गहराई से सोचता हूँ, तो पता चलता है कि दुनिया में कितने बेहतरीन और खूबसूरत लोग रहते हैं। हमको इन सबसे एक ही बात समझ में आती है कि दुनिया में चारों तरफ प्रेम और सौहार्द्र बिखरा हुआ है। मित्रो, यही अमृत है और इसकी लहरों में आप उड़ते हुए और सरकते हुए चल सकते हैं। स्वर्ग है मक्के की रोटी में, स्वर्ग है फटे कपड़ों में, स्वर्ग है गरीबी में। रेशमी वस्त्र तो अंगारे के समान लगते हैं। मिठाइयाँ जो आप मजे से स्वाद ले- लेकर खाते हैं, उसमें जहर भरा हुआ है- पोटैशियम सायनाइड भरा हुआ है, जो कि आपका पेट फाड़ देगा। इसलिए आपने जो आकांक्षा भौतिकता के रूप में गाड़ रखी है कि मकान आपको मिल जाएगा, चीजें आपको मिल जाएँगी, तो आपको सुख- शांति मिल जाएगी- व्यर्थ है।
मित्रो! इससे आपके भीतर आकांक्षाएँ, तृष्णाएँ बढ़ती हुई चली जाती हैं कि अमुक चीज हमारे पास कम है और यह चीज हमको चाहिए। परंतु उनका उपयोग करना हमको कहाँ आता है? फिर भी उसको हम जोड़ना शुरू कर देते हैं। उसे जोड़ते हुए मुसीबतें हमारे पास आती हैं। बच्चे कहते हैं- माँ जी हमको यह चीज दोगी? वह कहती है- नहीं छोटी बच्ची कहती है- माताजी हमको दोगी? कहती है नहीं। यह तो जमा करके रखा जाएगा। बहुत मुनाफ़ा कमाया जाएगा। हमें वह कहानी याद आती है कि मधुमक्खी शहद जमा करती रही। एक दिन बंदर आया और छत्ता तोड़ करके चला गया। सारा- का शहद गिर पड़ा और सारी मक्खियाँ उसमें चिपककर मर गयीं। हमको जितना लाभ मिलता है, उसका हमको सदुपयोग करना आता है क्या? नहीं, हमको धन का सदुपयोग करना आता नहीं। हमको इतना सुंदर शरीर मिला है, उसका प्रयोग करना, उपयोग करना आता है क्या? नहीं। हमको इतना अच्छा स्वास्थ्य मिला हुआ है, उसका हमने सही उपयोग किया नहीं, फिर हम किस मुँह से ईश्वर के पास माँगने के लिए जाते हैं कि हमारा अच्छा स्वास्थ्य बना दीजिए। आपको जो धन मिला है, उसका क्या आपने सही कामों में उपयोग किया? नहीं। फिर आप किस मुँह से भगवान् के पास धन माँगने के लिए जाते हैं।
साथियो, आपको जो बुद्धि मिली है उसका आपने सही इस्तेमाल किया? नहीं। फिर आप भगवान् से बार- बार क्यों माँगते हैं? आपको इतनी विद्या बुद्धि मिली हुई थी कि आप दुनिया में शांति की धारा बहाते, उसको खूबसूरत बनाते, लेकिन आप तो संग्रह करने में लगे थे। जमा करने की बात सोचते रहे, स्वामी बनने की बात सोचते रहे, मालिक बनने की बात सोचते रहे, लेकिन आपके मन में उपयोग की बातें कहाँ आयीं? यदि उपयोग की बातें आपके मन में आतीं, तो आप सोचते कि जितना आपको मिला है वह पर्याप्त है, बहुत है। अगर आप इन सबका अच्छी तरह से प्रयोग कर सके होते, तो हम सोचते कि जितना भी आपके पास जो विद्या है, स्वास्थ्य है, जो धन है, इतने से ही सदुपयोग करके आप स्नेह- सौहार्द्र की धाराएँ बहा सकते हैं। फिर आनंद, उल्लास और संतोष आपके चारों ओर उमड़ता हुआ चला जा सकता है। कृतज्ञता आपके मन में उमड़ती हुई चली जा सकती है। पर इस्तेमाल करना हमको कहाँ आया?
मित्रो! उस स्वर्ग की कल्पना करना व्यर्थ है, जो कि मरने के बाद मिलता है। क्योंकि आपको यदि स्वर्ग भेज दिया जाए, तो थोड़े ही दिनों में आप स्वर्ग को भी नरक बना देंगे। अपने देश के एक प्रमुख नेता काहिरा मिश्र के एक होटल में ठहराये गये थे। वहाँ का खाना उनको पसंद नहीं आया, तो उन्होंने नौकर से कहा कि स्टोव पर चाय बना दे तथा खाना पका दे। स्टोव के धुएँ से कमरे की एक- दो दीवारें काली हो गयीं, तो उस होटल के मैनेजर ने कहा कि आपने हमारे कमरे की दीवारें गंदी कर दीं। उसने लंबा- चौड़ा बिल बनाकर उन नेता जी के पास भेजा और वह बिल उनको चुकाना पड़ा। यदि हम स्वर्ग नाम के स्थान पर जाएँ, तो वहाँ भी चारों तरफ गंदगी फैला देंगे और वही जगह थोड़े दिनों बाद नरक जैसी लगेगी। वहाँ कूड़े का ढेर लगा जाएगा, लोग गाँजा, चरस- शराब आदि का सेवन भी करेंगे। ये लोग कौन आ गये? ये भक्त आ गये, गायत्री स्तवन करने वाले आ गये। यहाँ लोग मंदिर के पीछे शौचालय की दीवारों पर पेशाब करते हैं। जगह- जगह गंदगी फैलाते हैं। बुरे व गंदे लोग जहाँ भी जाते हैं, वहाँ स्वर्ग को भी नरक बना देते हैं।
कभी- कभी हमें अकेले देहरादून एक्सप्रेस से हरिद्वार जाना पड़ता है। ट्रेन के डिब्बों पर लगी प्लेटो पर लिखा रहता है- बम्बई से देहरादून’ और जब हरिद्वार से मथुरा आना होता है, तो उसी ट्रेन की प्लेटो पर लिखा होता है- देहरादून से बम्बई इसका कारण जब हमने स्टेशन मास्टर से पूछा- तो उन्होंने बताया कि ये इन प्लेटो पर दोनों तरफ लिखा होता है। जब ट्रेन वापस जाती है, तो प्लेटें पलटा दी जाती हैं। विकृत दृष्टिकोण वाले लोगों को यदि स्वर्ग भेज दिया जाये, तो थोड़े ही दिनों में वहाँ की पेंटिंग को भी बदल दिया जाएगा। वहाँ का साइन बोर्ड बदल दिया जाएगा कि यह है- नरक अच्छे दृष्टिकोण वाले लोग चाहे वे गरीबी में रहें, चाहे केवल मक्के की रोटी खाकर जीवित रहें, किसी भी तरीके से रहें, लेकिन वे लोग हर स्थिति में थोड़े ही दिनों में स्वर्ग पैदा कर सकते हैं।
एक संत इमरसन हुए हैं, जिन्होंने अँग्रेजी भाषा में आध्यात्मिक जीवन के ऊपर बहुत- सी किताबें लिखी हैं- उनका एक मंत्र है कि ‘‘मुझे नरक में भेज दो, मैं उसे स्वर्ग बना दूँगा।’’ उनकी हर किताब के पहले पन्ने पर यही लिखा रहता है। किताब पहले पन्ने से शुरू होती है और हर किताब के पहले पन्ने पर लिखा है कि ‘स्वर्ग कहीं होता नहीं है, बनाया जाता है, निर्मित किया जाता है। वह मनुष्य की आँखों में रहता है, भावनाओं में रहता है, अंतःकरण में रहता है।’ आध्यात्मिकता का अंतिम परिणाम यही है। मित्रो! स्वर्ग है- विचार करने का सही तरीका और चीजों का देखने का सही दृष्टिकोण। इसी का अँग्रेजी नाम है- फिलॉसफी और हिंदी में दर्शन। यदि दुनिया को सही ढंग से देखना शुरू करें, तो न जाने क्या देखने को मिलेगा और आप आगे बढ़ते हुए, ऊँचे उठते हुए चले जाएँगे। यही है ईश्वर को प्राप्त करने का, रिश्ता मजबूत बनाने का सीधा व सरल मार्ग।
आज की बात समाप्त।
ॐ शान्तिः
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो, भाइयो!
भगवान् की समीपता और कृपा पाने के लिए जिन दो कार्यों की आवश्यकता होती है, उनका विवेचन हम इन शिविरों में करते आ रहे हैं। इन सबका एक ही उद्देश्य है कि आप लोग जो यहाँ आये, अब यहाँ से जाने के साथ- साथ भगवान् के साथ रिश्ता मजबूत बनाते हुए जाएँ। रिश्ता मजबूत करने के साथ- साथ उनकी कृपा भी प्राप्त करें। भगवान् का रिश्ता अपनाना केवल धार्मिक कर्मकाण्ड ही नहीं है, केवल परलोक की तैयारियाँ ही नहीं है, मरने के बाद मुक्त या स्वर्गलोक प्राप्त करने का आधार ही नहीं है, बल्कि इसी जीवन में सुख और शान्ति से ओतप्रोत होने का रास्ता है। मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा या नहीं? यह हम नहीं जानते, लेकिन इसी जीवन में स्वर्ग स्थापित कर सकते हैं, आध्यात्मिक साधना के मार्ग पर चलते हुए।
मित्रो, साधना नकद धन है, यह उधार नहीं! कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिनका परिणाम तुरंत मिलता है, लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिनका परिणाम तुरंत नहीं मिलता। विद्या पढ़ने का परिणाम शायद तुरंत न मिले, लेकिन जहर खाने का परिणाम तुरंत ही मिल जाता है। गलत काम करने का परिणाम देर से मिले, लेकिन आपके दोष और दुर्गुणों के परिणाम तुरंत ही मिल जाते हैं। इसी तरीके से अध्यात्म एक ऐसी प्रक्रिया का नाम है, जो मनुष्यों को तुरंत लाभ प्रदान करती है, जिसका परिणाम तुरंत मिल जाता है।
आज हमारे पास नकली अध्यात्म है। नकली अध्यात्म से परिणाम प्राप्त करने में देर लगती है और लम्बा इंतजार करना पड़ता है और यह उम्मीद लगानी पड़ती है कि हमारी मौत आयेगी और भगवान् के यहाँ जायेंगे और अध्यात्म का परिणाम इस तरीके से मिलेगा।
स्वर्ग के बारे में यह ख्याल है कि कोई स्थान विशेष है, जगह विशेष है। हमारे ख्याल से जहाँ तक हम समझ पाये हैं कि किसी स्थान का, जगह का नाम स्वर्ग नहीं है! बल्कि स्वर्ग आँखों से देखने का एक तरीका है और नरक भी आँखों से देखने का तरीका है, जैसे फोटोग्राफ लिए जाते हैं। किसी आदमी का हम सामने से फोटोग्राफ लें, तो उसकी आँखें, नाक, कान दिखायी देंगे, चेहरा दिखायी देगा और हँसता हुआ मनुष्य दिखायी देगा, अगर पीछे से किसी आदमी का फोटोग्राफ लें, तो उसके बाल और पीठ दिखायी देगी। उसमें नाक, कान, आँखें, मुँह कुछ भी दिखायी नहीं देता है। फोटोग्राफ आ गया, यह किस आदमी का है, पता ही नहीं। क्योंकि उसकी पूछें- दाढ़ी तो हैं ही नहीं। उसका चेहरा तो है ही नहीं, माथा तो है ही नहीं, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं, कि उसके यह सब चीजें नहीं हैं। पीछे से फोटोग्राफ लेने के कारण ये सब चीजें दिखायी नहीं पड़ती। दुनिया भी ठीक इसी प्रकार से है। हमारा जीवन और समस्याएँ भी इसी प्रकार से हैं और परिस्थितियाँ भी ठीक इसी प्रकार की हैं। जब हम इन सबको देखने का तौर- तरीका या नजरिया बदलते हैं, तो हमें अपनी समस्याएँ, विपत्तियाँ दिखायी पड़ती हैं और सब चीजें उल्टी-पुल्टी दिखायी देती हैं। हमें अपने जीवन में अभाव मालूम पड़ते हैं।
एक आदमी था, जो कह रहा था कि यह अभागा गुलाब ऐसी परिस्थिति में पैदा हुआ कि इसके भाग्य फूट गये। काँटों में पैदा हुआ, क्या कर्म में लिखा कर लाया? जहाँ इसका जन्म हुआ वही काँटे- ही काँटे। दूसरा आदमी कह रहा था- कैसे भाग्यवान काँटे हैं कि गुलाब के साथ पैदा हुए। क्या सुंदर गुलाब है। जो काँटा में उगा है। गुलाब कितना सौभाग्यशाली है, जो कि काँटों के साथ जुड़ा हुआ है। यह देखने का तरीका है। जो लोग जीवन को उल्टे तरीके से देखते हैं, उनको अपना जीवन कठिनाइयों से, अभावों से, संकटों से, विपत्तियों से भरा मालूम पड़ता है। वैसे हमारे सुखों में अभाव नहीं, हमारी शांति में अभाव नहीं है। लेकिन जब हम आसमान की ओर देखते हैं तब हमको बहुत मुसीबत मालूम पड़ती है। हमारा बड़ा वाला अफसर दो हजार रुपये कमाता है और हमको पाँच सौ पचास रुपये भेजता है। बड़ा क्लेश होता है, ईर्ष्या होती है कि बड़ा अफसर हमारे घर के पास रहता है। कितना बढ़िया मकान, मोटरकार, नौकर- चाकर और हमारे पास साइकिल है। हम कहीं भी जाते हैं, तो साइकिल से जाते हैं। कोठरी में रहते हैं। हम कभी देखें, तो दुनिया में हमसे भी ज्यादा परेशान, दुखी लोग हैं। धिक्कार है हमारा जीवन, जो हम दुखी होते है हमसे भी ज्यादा दुखी वे लोग हैं, जो झोपड़-पट्टी में रहते हैं, जिनके पास पहनने को कपड़े नहीं हैं, खाने को अन्न नहीं है। किसी दिन नौकरी मिल जाती है और किसी दिन यदि उनके साथ मुकाबला करें, तब हमको मालूम पड़ेगा कि हमारे सुखों को कोई ठिकाना नहीं है। हम बहुत सुखी हैं।
मित्रो, सुख कोई वस्तु नहीं है। लोगों के देखने का दृष्टिकोण का नाम ही सुख है। लोगों का ख्याल है कि जिसके पास धन- संपत्ति नौकर- चाकर कार- बंगला आदि है। वही सुखी होते हैं। नहीं यह बात गलत है। हमारा संपत्ति वाले लोगों से मिलना- जुलना रहा है। संपत्ति वाले सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा कहीं अधिक दुखी और परेशान नजर आते हैं। केवल हमें मालूम पड़ता है कि ये लोग सुखी हैं। हम भी वही चीजें पाने की कोशिश करते हैं, नकल करते हैं, लेकिन जब इनका दिल खोलकर देखा जाए, समझने की कोशिश की जाए, तो इन्हें सामान्य आदमी से भी ज्यादा दुखी पाते हैं।
हेनरी फोर्ड संसार का सबसे बड़ा आदमी जब मरने लगा, तो उसने अपनी डायरी में एक वृत्तांत लिखा कि मैं अपनी फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों को मोटी- मोटी रोटियाँ खाता हुआ देखता हूँ गहरी नींद में सोता हुआ देखता हूँ, तो मुझे ईर्ष्या होती है, डाह होती है कि मैं हेनरी फोर्ड संसार का सबसे धनी व्यक्ति पर मुझे कभी नींद नहीं आयीं। मुद्दतों से सोया नहीं, खाना भी कभी हजम नहीं हुआ। उन्होंने लिखा- हे भगवान्! जब मुझे मौत आये और मैं जब दुबारा जन्म लूँ, तो मैं चाहूँगा कि मुझे इसी फैक्ट्री में लोहा काटने का काम मिल जाये। मैं मजदूर के साथ काम करूँ। छड़ी चलाऊँ, हथौड़ा चलाता रहूँ, ताकि मेरा पेट ठीक से काम करे, मुझे नींद अच्छी आये। हेनरी फोर्ड समझता था कि मजदूर सबसे सुखी व अमीर आदमी हैं और मजदूर समझते थे कि हेनरी फोर्ड सबसे अमीर व सुखी आदमी है। इसी तरीके से दोनों एक- दूसरे को सुखी व अमीर आदमी समझते थे। कौन सुखी है और कौन दुखी है? जहाँ तक हम समझते हैं कि यह मनुष्य के ख्याल है, जो उसे सुखी व दुखी बनाते हैं।
एक था मल्लाह और एक था उसका पुत्र। दोनों एक बड़ा नाव पर सवार होकर समुद्र में उसे खेते हुए जा रहे थे। थोड़ी देर बाद तूफान आया और नाव डगमगाने लगी। मल्लाह ने अपने बेटे से कहा कि ऊपर जा और अपनी पाल को ठीक तरीके से बाँध दे। पाल को अगर ठीक तरीके से बाँध दिया जाएगा, तो हवा का रुख धीमा हो जाएगा और हमारी नाव डगमगाने से बच जाएगी। बेटा बाँस के सहारे ऊपर चढ़ गया और पाल को ठीक तरीके से बाँधने लगा। उसने जब ऊपर की ओर देखा, तो उसे चारों तरफ समुद्र की ऊँची लहरें दिखायी दे रही थीं। जोरों से हवा चल रही थी। सब ओर सुनसान नजर आ रहा था। अँधेरा छाता जा रहा था। कोई भी व्यक्ति दूर- दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था। यह सब देखकर बेटा चिल्लाया- ‘‘पिता जी! मेरी तो मौत आ गयी, देखिये दुनिया में प्रलय होने जा रही है।’’ तब उसका पिता जी चिल्लाया- बेवकूफ सिर्फ नीचे की ओर नजर रख और इधर- उधर मत देख।’’ बाप उस वक्त हुक्का गुड़गुड़ा रहा था। बेटा नीचे चला आया।
अपने बेटे की तरफ हुक्का बढ़ाते हुए उसने कहा कि अपने से ऊपर देखने वाले महत्त्वाकाँक्षी व्यक्ति दिन- रात जलते रहते हैं। लोकेषणा, वित्तैषणा और पुत्रैषणा वाले मनुष्यों की कामनाएँ असीम और अपार हुआ करती हैं। ऐसे व्यक्ति को न शांति मिलने वाली है और न मुक्ति! मनुष्य का जीवन शांति वाला होना चाहिए, अशांत और विक्षुब्ध नहीं, लेकिन यह सब नहीं होता।
मित्रो, दोनों चीजें मालूम तो पड़ती है एक समान, लेकिन इन दोनों में जमीन- आसमान का अंतर है। जीवन में उन्नति करना एक बात है और प्रगति करना दूसरी बात। इसके लिए आदमी को धैर्य, साहस, मुसकराहट, संतुलन, परिश्रम की जरूरत है। इन पाँचों के सहारे उन्नति के रास्ते खुलते हुए चले जाते हैं और मनुष्य प्रगति करता हुआ चला जाता है। जो छोटे- छोटे आदमी आगे बढ़े हैं और सफलताएँ पायी हैं, भौतिक और आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त की हैं, उनके संबल और सहारे रहे हैं- संतोष उत्साह परिश्रम, संतुलन। इन चीजों के द्वारा ही वे आगे बढ़े हैं। लेकिन जिन्होंने अपने आप को आकांक्षाओं की आग में जलाना शुरू किया कि हमको ये नहीं मिला, हमको वह नहीं मिला, हम तो मर जाएँगे, ये करेंगे, वे करेंगे। जो व्यक्ति परिश्रम से घबराते रहे, बड़बड़ाते रहे, जिन्होंने अपना सारा- का मानसिक संतुलन खो दिया, वे जीवन में क्या कुछ प्राप्त कर सकेंगे? जो वस्तुओं में शांति की तलाश करते रहेंगे, वे अपने गिरह की भी शांति खो बैठेंगे।
मित्रो! अध्यात्म जीवन जीने की प्रणाली है, जीवन जीने की प्रक्रिया है। मरने के बाद स्वर्ग मिलता है कि नहीं, यह मैं नहीं जानता, लेकिन मैं यह जानता हूँ कि आध्यात्मिकता के सिद्धांतों को यदि हम जीवन में समाविष्ट कर सकते हों, तब हमारे चारों ओर स्वर्ग बिखरा हुआ दिखाई पड़ेगा। तस्वीर खींचने का यदि हमको सही ढंग मालूम हो, तो हम इस दुनिया की बेहतरीन तस्वीरें खींच सकते हैं और अपने आप की भी। हमारी भी तस्वीर बेहतरीन है, लेकिन यदि हमने दुनिया की खराब वाली तस्वीर देखना शुरू किया, अपना कैमरा कहीं गलत जगह पर फोकस कर दिया, तब हमको क्या चीजें मिलने वाली हैं? तब सबसे ऊपर की शक्ल या सिर आएगा या फिर पैर आएगा और यदि उसी आदमी को बैठाकर फोटो खींचेंगे, तो मालूम पड़ेगा कि कोई लम्बा- लम्बा भूत खड़ा हुआ है। कैमरे का लेन्स वही है, जिससे आपने व्यक्ति को सामने खड़ा करके फोटो लिया था। कैमरे का लेन्स वही है, जो आपने पीठ पीछे से लिया है, खड़ा करके। आपको दुनिया का नहीं, अपने अंतरंग जीवन का फोटो लेना है और उसके आधार पर अपनी शांति, सुख, समृद्धि का मूल्यांकन करना है। अध्यात्म को अपने जीवन का अंग बनाना है।
साथियो! आध्यात्मिकता एक फिलॉसफी है- एक दर्शन है, सोचने- समझने की प्रणाली है, जीवन जीने की कला है। हमें अपनी समस्याओं के बारे में, कुटुम्ब के बारे में, अपनी महत्त्वाकाँक्षा के बारे में, अपने पुरुषार्थ के बारे में सोचना है। यदि हमारा विचार करने का क्रम ठीक हो, तो हम आपको आशीर्वाद दे सकते हैं कि आपका जीवन सुखों से भरा हुआ हो, आप प्रसन्न रहें, उन्नति करें। आपका जीवन उल्लास से भरा हुआ हो सकता है, यदि आपको सही ढंग से देखना आता हो तब। मान लीजिये किसी के कुटुम्बी की मौत होने वाली है। ठीक है आपको अपना भाई- भतीजा चाचा- ताऊ दादा- दादी प्यारे थे, लेकिन दूसरों को भी आवश्यकता हैं- अपने भाई- भतीजों को गोद में खिलाने की। यदि हम उनको चिपकाकर रखेंगे, तो किसी के घर ढोलक कैसे बजेगी? मिठाई कैसे बाँटी जाएगी? कोई माता अपने लाल को कैसे निहारेगी? अपने लाल को पाकर कैसे धन्य होगी? एक का आनंद- दूसरे का शोक, एक का नफा- दूसरे का नुकसान- यही दुनिया का क्रम है।
यदि हमारे विचार करने का क्रम सही हो जाए तब हमें बढ़िया- से चीजें देखने को मौका मिलेगा। यदि इन आँखों का लेन्स बदल दिया जाय और उस लेन्स से हम उन चीजों को देखें, जो देखने लायक हैं, तो मजा आ जाएगा। हमारे पास में ब्लॉक बनाने वाला रहता है। उसके पास कई तरह के कैमरे रहते हैं। हम उससे तस्वीरें बनवाते रहते हैं, जिनमें कई तरह के रंग मिले रहते हैं। उसके पास कई रंग के ब्लॉक हैं, जिनसे वह तरह- तरह के रंगों से रंग- बिरंगे चित्र तैयार कर लेता है। अलग- अलग तस्वीर की अलग- अलग प्लेटें तैयार करता है और सुंदर चित्र छाप देता है।
इसी तरह मित्रों! मनुष्य के भीतर दुष्टताएँ, कमियाँ, बुराइयाँ और मूर्खताएँ होती हैं, लेकिन दुनिया में कोई भी मनुष्य इस तरीके का नहीं बनाया गया है, जिसके अंदर कमियाँ ही कमियाँ हों, बुराइयाँ ही बुराइयाँ हों। ऐसा इन्सान हमने आज तक नहीं देखा कि जिसमें सिर्फ कमियाँ और बुराइयाँ ही हों, अच्छाइयाँ न हों। कसाई के भीतर भी अच्छाई होती है। वह भी अपने बच्चों से प्यार करता है। डाकू के भीतर भी विशेषता होती है और वह है, उसका साहस। डकैती के कारण उसको परलोक में दंड मिलता है, उसको जेल जाना पड़ता है। वह लम्बी- लम्बी सजाएँ भुगतता है। लेकिन उसके साहस के कारण उसको यश भी मिलता है, और पैसा भी मिलता है। रात को जंगलों में घुसने पर जब हमको भय का भूत सताता है, तब वह अपने कंधे पर बंदूक रखकर लंबे- लंबे डग भरता है। यह उसकी विशेषता है।
मित्रों! हर मानव विशेषताओं से भरा हुआ है। हमारे देखने वाले आँखों के लेन्स यदि सही हों, आँखें सही हो तो हम वह फोटोग्राफ खींच लेते हैं, जैसा कि हमारे पड़ोस में रहने वाला फोटोग्राफर हर ब्लॉक को अलग निकाल लेता है- पीले रंग को अलग निकाल लेता है, लाल रंग को अलग और नीले रंग को अलग निकाल लेता है। यदि फोटोग्राफ हर रंग को अलग कर सकता है, तो हममें से हर मनुष्य यदि अच्छाइयों को देखना शुरू करें और अच्छाइयों को ही प्रोत्साहन दे, अच्छाइयाँ बढ़ने का प्रयत्न करे, तो सर्वत्र अच्छाइयाँ- ही अच्छाइयाँ नजर आएँगी।
आप कहेंगे कि बुराइयों से कैसे लड़ा जाएगा, उनको कैसे खत्म किया जायेगा? बुराइयों से लड़ने के बहुत से तरीके हैं। उनमें से एक तरीका यह है कि उस पर लांछन लगा करके तथा मारपीट करके व गाली- गलौज करके उसको अपमानित करते हैं। अपमानित करने के बाद में उसे ढीठ बनाते हैं। दूसरा तरीका बुराइयों को दूर करने का यह है कि हम अपने आपको सुधारें। अपने आपको सुधारने के लिए बड़े- से बड़े काम किये जा सकते हैं। कुशल डॉक्टर अपना तेज चाकू ले आता है, बड़े प्यार से- मोहब्बत से मरीज को कभी पेट पर चलाता है, तो कभी टाँग के ऊपर, तो कभी सिर के ऊपर चलाता है। जगह- जगह चाकू चलाता है और ऑपरेशन चलता रहता है, परंतु यह सब कुछ वह बिना गुस्से के करता है, बिना घृणा के चाकू चलाता है। डॉक्टर के ऊपर आप मुकदमा नहीं चलाते, उसको सजा नहीं दिलाते, क्योंकि वह आपकी जान बचाता है। पेट में छुरा घोंप देने वाले, मारने वाले को दस साल की सजा हो जाती है, लेकिन ऑपरेशन करने वाले, चाकू चलाने वाले डॉक्टर की तरक्की की जाती है। यह सब नीयत का कमाल है। नीयत अच्छे व्यवहार के लिए भी की जाती है और इसी आधार पर अच्छे लोगों को बदनाम भी किया जा सकता है।
मित्रों! यदि हम सबका दृष्टिकोण बदल जाय, तो क्या- से हो सकता हैं? बेलनगंज, जो कि आगरा शहर का एक मोहल्ला है, वहाँ के एक सम्पन्न व्यक्ति को पन्द्रह दिन से नींद आनी बंद हो गयी। साथ- ही उसे ऐसी शिकायत हो गयी कि दिमाग की नसें फटने लगीं और ऐसा लगने लगा कि उसकी मौत हो जाएगी। आँखें बिलकुल लाल- लाल हो गयीं। यह सब लक्षण देखकर घरवालों को लगने लगा कि सचमुच उसकी मौत हो जाएगी। पन्द्रह दिनों से नींद न आने के कारण उसका बुरा हाल था। किसी ने कहा था कि मथुरा में एक आचार्य जी रहते हैं, उनके पास जाने से कई आदमी अच्छे हो गये हैं, तुम भी उन्हीं के पास चले जाओ। इससे पूर्व उन्नाव की एक महिला, जो एक तहसीलदार की पत्नी थीं और वहीं प्रिंसिपल थी, आयी। उस स्त्री का बुरा हाल था। वह खूब रोया करती थी। किसी ने उससे कहा कि आचार्य जी के पास मथुरा चली जाओ। वह मेरे पास आयी। ऐसे ही किस्से- कहानियाँ किसी ने उसे सुना दिये थे। वह ठीक होकर चली गयी।
हाँ, तो आगरा वाले व्यक्ति को लोग मेरे पास लाये और कहा कि इनको पन्द्रह दिन से नींद नहीं आयी हैं। आँखें सूजकर लाल हो गयी हैं। नसें फटी जा रही हैं। अगर इनको नींद नहीं आयेगी, तो यह मर जाएँगे। महाराज जी, इनका इलाज कीजिए। मैंने कहा कि इनका इलाज किया जा सकता है और इन्हें अच्छा भी किया जा सकता है। उनके साथ आये हुए लोगों को हमने दूसरे कमरे में भेज दिया। फिर उनसे पूछा कि क्या बात है? उन्होंने कहा कि हमारे साथ एक कांड हो गया है। हमारे घर में इनकम टैक्स ऑफिसर ने छापा मारा था, जिसमें दो बही- खाते ले गये थे। यह सब हमारे मुनीम ने कराया था। उसने जाकर ऑफीसर को बताया और अपने साथ सेल्स टैक्स ऑफिसर व इनकम टैक्स ऑफिसर को ले आया। छापा मारने के बाद में हमारे दोनों बही- खातों को पुलिस ले गयी। उसके बाद हमारे ऊपर केस चलाया गया। हमारी गिरफ्तारी हुई। अब हम जेल से छुट गये हैं, लेकिन हमको भय लगता है कि अब न जाने क्या होने वाला है। अब हमारा क्या होगा?
यह सब सुनकर मैंने राहत की साँस ली और कहा कि आप थोड़ी देर आराम से बैठ जाइये। आपकी बीमारी तो दूर हो जाएगी, लेकिन इसके साथ- साथ हम आपको छुटकारा दिलाना चाहते हैं। वह हँसने लगा कि कैसे दिलाएँगे। मैंने पूछा- अच्छा बताइये, आपके असली और नकली बहीखाते में वास्तव में कितने खर्च का अंतर है? उन्होंने कहा- दस लाख रुपये करीब का अंतर है। फिर पूछा- अगर आपको इनकम टैक्स देना पड़े, तब कितना नुकसान भरना पड़ेगा। करीब बीस लाख रुपये का अंतर है। हमें बीस लाख रुपये देने पड़ेंगे। मैंने उनसे सहानुभूति जताई और कहा आपके पास क्या- क्या समान है तथा कितनी संपत्ति व जायदाद है? वह कागज- पेन्सिल लेकर बैठ गये और नोट करने लगे। उन्होंने बताया कि फैक्ट्री व उसमें लगी मशीनों तथा बैंकों में जमा पैसा, इधर- उधर की लेन- देन का, सब मिलाकर कोई पचास लाख रुपये की संपत्ति है। हमने कहा कि इसमें से बीस लाख निकाल दिया जाए तो कितना रुपया बचेगा? उनने कहा- तीस लाख।
मैंने कहा- मेरे पास तीस पैसे भी नहीं हैं, फिर भी देखिये- अगर गवर्नमेन्ट आपके बीस लाख रुपये ले लेती है, तो भी आपके पास तीस लाख बचे रहते हैं। तीस लाख रुपये किसे कहते हैं? तीस लाख रुपये के तीस हजार प्रति महीने ब्याज होगा। आप जब मुकदमे से छूट जाएँ और बीस लाख जुर्माना चुका दें, तब आप मुझे बुला लेना। आपको एक क्वार्टर दिला देंगे और शेष रुपये बैंक में जमा करा देंगे। आपको तीस हजार रुपये महीने की आमदनी उससे मिलता रहेगी और आप घर बैठे आनंद किया करेंगे। बात उनकी समझ में आ गयी। जब मैंने उनसे पूछा कि आपका महीने में कितना खर्च होता है, तो उनने कहा कि पाँच हजार। मैंने कहा एक महीने में कितना बचा रहता है? पच्चीस हजार। मैंने कहा पच्चीस हजार रुपया एक महीना में बच जाता है, तो साल भर में कितना हो जाएगा? उनने कहा तीन लाख रुपये। अगर आप इतना रुपया सात- आठ साल तक बचायें, तो कितना रुपया हो जाएगा? उनने कहा- तीस लाख रुपये।
मैंने कहा कि अगर गवर्नमेन्ट आपका बीस लाख रुपये ले ले, तो आपका क्या हर्ज होगा? आप सोच लीजिएगा कि सात- आठ साल तक आपने कमाया ही नहीं। वह मुस्कराने लगा। फिर मैंने उसे माताजी के पास भेज दिया। मैंने पूछा कि क्या आप पतली रोटी खाते हैं? आप माताजी के हाथ की रोटी खाइए, मोटे हो जाएँगे। उस रात उसे पूरी नींद आयी। लोगों ने कहा- क्या आप इनसे जप वगैरह कराएँगे? मैंने कहा- नहीं उसके जाने के बाद घर वालों की चिट्ठियाँ आयीं की न जाने आपने कौन- सा मंत्र फूँक दिया है कि वह अब एकदम स्वस्थ व प्रसन्नचित्त हैं।
मित्रों! यदि हमारे सोचने का, देखने का ढंग बदल दिया जाय, तो जीवन में आनंद और उल्लास आ जाएगा। तब सारा जीवनक्रम ही बदल जाएगा। लोग मरने के बाद स्वर्ग का, मुक्ति का ख्वाब देखते रहते हैं। मरने के बाद स्वर्ग देखने की इच्छा कम- से मेरे जैसा पसन्द नहीं करेगा। मुसलमानों के स्वर्ग के बारे में मैंने पढ़ा है कि वहाँ पर शराब की नहरें बहती रहती हैं। जब पानी हो तो शराब, कुल्ला करना हो तो शराब, नहाना हो तो शराब। मुसलमानों की जन्नत में सत्तर हूर व बहत्तर गुलमें हैं, जो सेवा करते हैं। मित्रों, अगर हमको इस तरीके की जन्नत मिल जाये, तो मैं मर जाऊँगा। अगर कोई आदमी रेलगाड़ी में बीड़ी पीता है, तो मैं अपना सिर खिड़की से बाहर निकाल लेता हूँ, लेकिन जहाँ सब लोग शराब पीते हों, ऐसी जन्नत में जाकर क्या करूँगा। जिस जन्नत में हूरों के, अप्सराओं के नाच- गाने चलते हों, ऐसी जगह जाना मैं कभी पसंद नहीं करूँगा।
हिंदुओं के स्वर्ग के बारे में भी मैंने पढ़ा है कि वहाँ इंद्र का दरबार लगा रहता है और सुबह शाम तक नाच- गाना ही चलता है। ऐसा स्वर्ग देखने की जरूरत होगी, खाने के लिए बढ़िया- बढ़िया चीजें होंगी और घूमने के लिए मोटरकारें होंगी, तो मैं अशोका होटल, नटराज होटल चला जाऊँगा। दो सौ रुपये रोज का फ्लैट लूँगा, पैसे कमा कर लाऊँगा और खूब मौज करूँगा। जब ऐसा स्वर्ग मुझे इसी जिंदगी में धरती पर मिल सकता है, तो फिर मैं मरने का इंतजार क्यों करूँ। यदि इसी का नाम स्वर्ग है, खाने- पीने की सुविधा, पहनने- ओढ़ने की सुविधा का नाम, नाच- रंग देखने का नाम स्वर्ग है, तो वह स्वर्ग तो यहीं पर है। कम- से मेरे जैसा आदमी जिसने परिश्रम से प्यार किया है, जिसे पसीना बहाये बिना नींद नहीं आती। जो आदमी श्रम के बिना, सेवा के बिना जिन्दा नहीं रह सकता, ऐसा पाया है मैंने मन। मुझे तो उस स्वर्ग में भागना पड़ेगा और कहना पड़ेगा कि कृपा करके मुझे यहाँ से विदा कर दीजिये। क्योंकि मुझे गरीब, पिछड़े, असहाय लोगों की सेवा करनी है।
एक बार भगवान् बुद्ध से पूछा गया कि आपको तो मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा? उन्होंने कहा- नहीं मैं तो स्वर्ग जाने का अधिकारी तब होऊँगा, जब हर व्यक्ति स्वर्ग जाने का अधिकारी होगा, सब को सुख व शांति मिलेगी, सब सुखी होंगे, तब तक मैं अपनी बारी काटकर दूसरे व्यक्तियों को क्यू में लगाता रहूँगा। सबके बाद में ‘मैं’ अंतिम व्यक्ति होऊँगा और स्वर्ग जाने की ख्वाहिश करूँगा। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक मैं लोगों को आगे बढ़ाता हुआ चला जाऊँगा। मित्रो! बुद्ध की वह मनोभूमि, ऋषि- मुनियों की वह मनोभूमि, जिसमें उन्होंने कहा-
न त्वहम् कामये राज्यं न सौख्यं न पुनर्भवं।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनाम् आर्तनाशनम्॥
तात्पर्य यह कि प्राणियों का आर्त और प्राणियों का दुःख निवारण करने के लिए यदि हमें मौका मिल जाता है तो यह हमारे लिए वरदान है और यही हमारा सौभाग्य है।
एक बार कुंती से भगवान् कृष्ण ने कहा कि हे कुंती! वरदान माँग। मैं अब जा रहा हूँ। मैं तो भगवान् हूँ, तू जानती है क्या? कुंती ने कहा- मैं जानती हूँ कि आप भगवान् हैं। मैं आपसे एक ही वरदान माँगती हूँ कि मुझे कष्टसाध्य जीवन दें, गरीब लोगों वाला जीवन जिऊँ ताकि मैं जान सकूँ कि गरीबी क्या होती है? कठिनाइयाँ क्या होती हैं? उनके कष्ट क्या होते हैं? यह सब मैं समझ सकूँ, ताकि उनकी सहायता कर सकूँ।
मित्रो! स्वर्ग, मनुष्य के देखने और सोचने का ढंग में- तरीके में है। यह किसी जगह विशेष का नाम नहीं है। कम- से स्वर्गलोक के उस जगह का पता लगा लिया गया है, चंद्रमा के बारे में जानकारी प्राप्त कर ली गई है कि कभी- कभी वह इतना गरम हो जाता है कि अगर कोई धातु रख दी जाये, तो वह भी पिघल जाएगी। रात में चंद्रमा इतना अधिक ठंडा हो जाता है कि यदि कोई चीज रख दी जाय, तो वह बर्फ बनकर जम जाएगी। ऐसा गरीब चंद्रमा- जहाँ न पानी है, न हवा, वहाँ अगर आपको भेज दिया जाय, तो आप कहेंगे कि गुरुजी आपने हमें कहाँ भेज दिया। हमें वापस बुला लीजिए। लोग चंद्रमा पर गये हैं, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि वहाँ ठहर सकें। वे केवल चंद मिनट चक्कर काटकर वापस आ गये हैं। इसी तरह शुक्रग्रह का पता लगा लिया गया है कि वहाँ कोयले का भंडार है। कार्बन गैस भरी पड़ी है। वहाँ आप बिलकुल जिंदा नहीं रह सकते। वहाँ आपका दम घुट जायेगा।
कुछ लोगों का विश्वास है कि भगवान् के पास जाने से स्वर्ग मिलता है। क्या वास्तव में स्वर्ग है? किसी ने देखा है स्वर्ग को? किसी ने देखा हो या नहीं, लेकिन मित्रो! मैंने स्वर्ग को देखा है और मैं चाहता हूँ कि आपको भी स्वर्ग दिखाऊँ। भगवान् के पास जाने से दो चीजें मिलती हैं- पहला- स्वर्ग दूसरा ‘मुक्ति’। परंतु स्वर्ग केवल देखने वाले तरीके का नाम है। आप चाहें, तो अपने में स्वर्ग का प्रयोग कर सकते हैं। आप कृपा करके उन लोगों का एहसान देखना व मानना शुरू कीजिए, जिनके बोझ से आपका शरीर लदा हुआ है। आप कृपा करके उस बूढ़ी माँ को देखिये। वह कृपा की देवी है, दया की देवी है, जिसने नौ महीने आपको अपने पेट में रखा, रक्त निचोड़ा, अपनी हड्डी गला दी। अपना सारा- का माँस निचोड़ करके हमारा एक पिंड बनाया। जब यह पिंड असहाय था तब और जमीन पर आने के बाद भी वह अपने लाल रक्त को सफेद दूध के रूप में पिलाती रही।
जब कोई व्यक्ति किसी को पचास सी.सी. खून दान दे देता है, तो जन्म भर एहसान करता है और कहता है- जब मरने के लिए बैठे थे, तब हमने आपको खून दिया था, बचाने के लिए। लेकिन मित्रो! जिसने हजारों सी.सी. रक्त आपको दूध के रूप में पिला दिया हो, उसके एहसान का क्या ठिकाना? काश! कभी आपने उस माँ को एहसान की दृष्टि से देखा होता, तो आपको मालूम होता कि देवता और कहीं नहीं हैं, कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है, देवता ‘माँ’ के रूप में आपके घर में ही है। क्या शारदा, सरस्वती को जानने की जरूरत है या लक्ष्मी को देखने के लिए आपको मुम्बई जाने की जरूरत है। नहीं, ‘माँ’ के रूप में आपके घर में ही बैठी हुई है। जहाँ आज हर आदमी मुआवज़ा चाहता है, बदला चाहता है, वहाँ त्याग की देवी- आपकी धर्मपत्नी अपने माता- पिता भाई- बहिन कुटुम्ब- परिवार को छोड़कर आती है और आपकी सेवा में दिन- रात लगी रहती है। आप जिस तरीके से उसे रखते रहे, वह उसी तरीके से रही और जीवन भर अपना सारा श्रम निचोड़ती रही। धर्मपत्नी अपना रूप और यौवन, अपनी भावनाएँ आपके ऊपर निचोड़ती रहती है, परंतु बदले में आपसे कुछ नहीं चाहती।
साथियो! त्याग और बलिदान का देवता आपके घर में बैठा है। उस त्याग और बलिदान के देवता का नाम है— भगतसिंह। उस देवता का नाम है- महर्षि दधीचि। मित्रो! हमने महर्षि दधीचि को तो नहीं देखा, लेकिन दधीचि के रूप में अपनी पत्नी को देखा है, जिन्होंने अपने जीवन का उत्सर्ग कर दिया मकसद के ऊपर। आपकी आँखों में ‘यदि कृतज्ञता के भाव आयें,’ तब आपको यह करना होगा कि नारी के उत्थान के लिए आपको आगे आना होगा। आप जाते तो गायत्री माता के मंदिर में हैं, लेकिन औरत को लातों से मारते हैं। जब वह बेचारी दर्द व शर्म के मारे चिल्लाती है, तब आप उसके मुँह में कपड़ा ठूँस देते हैं। तब वह सिसक- सिसक कर रोती है। धिक्कार है ऐसे लोगों, पर जो ऐसे कुकर्म करते हैं। मन में यह भावना लेकर चले थे गायत्री माता को प्रसन्न करने, उनसे वरदान माँगने चले थे, ऐसे दुष्ट, पिशाच, नीच लोगों को धिक्कार है। ऐसे ही पापी लोग नरक में जाते हैं। ऐसे लोग जहाँ कहीं भी जाएँगे, नरक बना देंगे, घर में भी, बाहर भी वे लोग नरक बना देंगे। घर- बाहर पृथ्वी- आकाश सारी जगह नरक विद्यमान रहेगा उनके लिए।
मित्रो! जो आँखें दुष्टता को देखती रहती हैं, दोष- दुर्गुणों को देखती हैं। जिनके भीतर कभी कोई संवेदना का भाव उत्पन्न नहीं होता। सारे जीवन में त्याग और सेवा के कृतज्ञता के भाव जब तक मनुष्य के जीवन में न आयें, तब तक स्वर्ग नहीं प्राप्त होता है। स्वर्ग अर्थात् कृतज्ञता के भाव। ये भाव जब- जब हमारी आँखों व दिल में आ जाते हैं, तब हमें छोटी- छोटी चीजें देवता के रूप में दिखायी देती हैं। दूसरे लोग हमारे ऊपर हँसा करते हैं, कहते हैं कि ये हैं हिंदू। ये क्या पूजते हैं? पत्थर। ये क्या पूजते हैं? पीपल। ये क्या पूजते हैं? घूरा। बेवकूफ वे लोग हैं, नहीं, हम लोग उनसे ज्यादा बुद्धिमान हैं। महत्त्वपूर्ण यह है कि जिस जानदार या बेजान चीज ने हमारे ऊपर एहसान किया है, उनके चरणों पर हमारा मस्तक झुका रहता है। अगर वह बेजान है, तो उससे हमें क्या मतलब! क्योंकि बेजान चक्की ही हमें अनाज पीस- पीसकर खिलाती है। जिस अन्न को हम ऐसे खा नहीं सकते थे, चबा नहीं सकते थे। उसको पीसकर हमारे खाने लायक बनाया। हमारे लिए पौष्टिक अन्न बनाया, जिसने हमारा पेट भरा। चक्की न हो, तो हम कहाँ से पेट भरेंगे? देवता चक्की नहीं, तो कौन है? जिसने बिना पारिश्रमिक माँगे अपना श्रम जारी रखा। हम उसकी पूजा न करें, तो किसकी पूजा करें। वह पत्थर है अवश्य, लेकिन इनसानों से तो पत्थर अच्छा है। उन देवताओं से तो पत्थर अच्छा है, जो देवता बकरा खाने के बाद, भैंसा खाने के बाद इनसान की सहायता करने को तैयार हो। ऐसे दुष्ट कसाई देवताओं से अच्छा तो पत्थर देवता है, जो हमारे चक्की पीसने के काम में आ जाता है।
घूरा- जो कूड़ा का ढेर भरा हुआ पड़ा रहता है। जिसने गंदगी एक स्थान पर एकत्र कर ली और अपने आपको गला दिया। गलाने के बाद अपने आप को खाद बना डाला, जो कि खेतों में डाली जाती है। जिससे कि अन्न की पैदावार, चावल, गेहूँ, मक्का, जौ, फल, सब्जी आदि अधिक मात्रा में होते हैं। अगर हम घूरे की पूजा नहीं करेंगे, तो किसकी पूजा करेंगे? ये बेजान घूरा है, बेजान चक्की है, पर हम तो बेजान नहीं हैं, हममें तो जान है। हर जानदार का एक फर्ज होता है कि जिन लोगों से हम सहायता लेते हैं और जिन लोगों की सेवाएँ प्राप्त कीं, जिन लोगों का स्नेह प्राप्त किया, उन सबके प्रति कृतज्ञता के भाव रखें। कृतज्ञता का भाव रखना मित्रो, केवल वैचारिक रूप से नहीं हो सकता। जिसके प्रति कृतज्ञता के भाव हैं, उसके प्रति कुछ प्रतिक्रिया- प्रतिध्वनि होनी ही चाहिए। हर ध्वनि की प्रतिध्वनि होती है। जैसे कुएँ में जो आवाज देते हैं, उसकी प्रतिध्वनि होती है और वही आवाज गूँजकर हमें पुनः सुनायी देती है। यहाँ मथुरा में एक प्रसिद्ध जगह है। जिसे पोतराकुण्ड कहते हैं। यहाँ पंडे लोग अपने यजमानों को ले जाते हैं। वहाँ उनसे कहलवाते हैं कि- यशोदा तेरा लाला जागै कि सोवै।’ इसमें अंतिम शब्द ‘सोवै’। अगर आप ऐसे कह दें कि यशोदा तेरा लाल सोवै कि जागै, तो एक सेकेण्ड बाद जागे शब्द की प्रतिध्वनि आयेगी।
मित्रो! कृतज्ञता के भाव जो हमारे अंतरंग में जाकर के टकराते हैं, तो इस शरीर रूपी गुंबद से एक भाव उत्पन्न होता है, एक कल्पना उत्पन्न होती है, एक आकांक्षा होती है कि जिन लोगों ने हमें अनुदान दिये हैं, हमारी सेवा- सहायता की है, उन लोगों के प्रति हमारा कोई फर्ज नहीं है क्या? क्या उनके ऋणों से मुक्ति नहीं पायी जा सकती है? मनुष्य के मन में जिस दिन ये भाव उत्पन्न होते हैं, उस दिन उसे चारों ओर देवता, दिखायी देते हैं। एक देवता वह अध्यापक दिखायी पड़ता है, जिसने प्राइमरी स्कूल में पढ़ाया था। जो रोज मुर्गा बनाता था और मार लगाता था, अगर मारता नहीं, तो आज हम और आप गाय, भैंस, बैल चरा रहे होते। मारा तो क्या हुआ, मुर्गा बनाया तो क्या हुआ, पढ़ाया भी इसी तरीके से कि अच्छी डिवीजन आती रही और पास होता गया। धन्यवाद है उस गुरु को जिसने हमें पढ़ाया। कैसा प्यार भरा गुरु था वह, जिसकी वजह से हमारे जीवन का सबसे स्वर्णिम समय बीता। छोटे- छोटे बालक, छोटे- छोटे स्कूलों में लम्बी- लम्बी जिंदगियाँ व्यतीत कीं, पर वैसा निर्मल और निश्चल प्रेम कहाँ देखा हमने?
हमने आपको कोका-कोला पिला दिया और पान भी खिलाये, लेकिन इस खिलाने, पिलाने के पीछे भी एक चाल थी। आपकी बेटी की शादी है- साड़ी खरीद ले जाइये। कितने दाम की साड़ी है? अरे दाम का क्या सोचना, दाम तो बाद में भी मिल जाएँगे। आप साड़ी ले जाइये, अजी हमारे और आपके पिताजी दोस्त थे। कोका-कोला पिलाया था, तब आपने मेरी जेब काट ली थी। हमने मित्रताएँ तो कर लीं, लेकिन स्वार्थ, छल- कपट और कामनाओं से भरी हुई। शतरंज की बिसात के तरीके से हमारी मित्रताएँ बनी रहीं। जब हमारा काम पूरा हुआ, तो हमने इस तरीके से आँखें फेर लीं, जैसे पिंजरे से निकलने के बाद तोता फेर लेता है। मित्रता का अर्थ हमारे जीवन से चला गया और अन्तःकरण तलाश करता फिर रहा है कि हमें कोई मित्र मिल जाये। परंतु मित्र कहाँ से मिले! मित्र के बिना, सखा के बिना, साथी के बिना पूरा जीवन एकाकी प्रेत- पिशाच सा मरघट में अकेले- अकेले बैठे रहते हैं जिनका अपना कोई भी नहीं।
मित्रो! शिकार खेलने वाले जंगल- जंगल घूमते रहते हैं। जंगलों में रहने वाले जानते हैं कि एक्कड़ नाम का एक जानवर होता है। जो झुण्ड में से निकलकर अलग चला जाता है, वह एक्कड़ कहलाता है। एक्कड़ सुअर बड़ा भयानक होता है। जंगल में जब मैं रहा, तो एक्कड़ जानवर को हमेशा तलाश करता रहा। झुण्ड से बाहर कभी हिरन रहने लगता है, तो वह बड़ा ही खूँखार हो जाता है। जहाँ भी मौका मिलता है, सींग घुसेड़ देता है किसी भी जानवर में। एक्कड़ बड़ा ही भयानक होता है, बड़ा ही खूँखार होता है, ऐसे ही अचानक हमला बोलता है। जंगल के सभी लोग जानते हैं कि इससे कैसे बचना चाहिए। इसी तरह जो व्यक्ति एक्कड़ के तरीके से रहते हैं, वे किसी को अपना सखा बना रहे हैं, किसी को मित्र बना रहे हैं, परंतु वस्तुतः उनका प्रेमी कोई भी नहीं। सब उनके लिए शतरंज की मोहरों के तरीके से हैं। जिनको यहाँ से उठाकर वहाँ रख देते हैं। जिससे गोटी लाल हो जाती है। अगर बात बन जाती है तो ठीक, अगर नहीं बनी तो उसको छोड़ देते हैं और दूसरी गोटी फिट करने की तिकड़म भिड़ाते रहते हैं।
मित्रो! हम याद करते हैं बचपन के उन लोगों को, जो कि ज्वार की रोटी लेकर आते थे और हम गेहूँ की रोटी ले जाया करते थे और आपस में मिल- बैठकर खाते थे। ब्राह्मण, बनिया और नाई सभी साथ बैठे हुए खाते थे। तब न तो किसी को जाति का ध्यान था, न ही ऊँच- नीच का, कि कौन ब्राह्मण है, कौन बनिया है और कौन नाई है? बड़े हो गये, तो जाति- बिरादरी के हमारे सामाजिक बंधनों से हमारा जीवन नष्ट- भ्रष्ट हो गया। बचपन में हमने नाई के लड़के के साथ जो रोटियाँ खायी थीं, याद आता है वह निश्चल प्रेम, कृतज्ञता का भावभरा जीवन। मित्रो, आकांक्षा उत्पन्न होती है और निश्चल प्रेम याद आता है। मन करता है कि वैसा ही प्रेम भरा जीवन दुबारा मिल जाये। ऐसा मालूम होता है कि यह खूबसूरत दुनिया जो न जाने कितने हीरे जवाहरातों से बनायी गयी है। छोटे बालक और अध्यापक जब याद आते हैं, जब हमको अपनी माँ याद आती है, जो हमको गोद में लिए फिरा करती थी, तब मालूम पड़ता है कि दुनिया कितनी खूबसूरत, प्यार से, आनन्द और उल्लास से भरी हुई है। हमको जब समाज का ज्ञान आता है तो मालूम पड़ता है कि न जाने हम कितने लोगों से शिक्षण पाते हुए चले गये। इतने सारे अपना ज्ञान हमारे पास रख गये।
मित्रो! आप एक गीता खरीद करके ले आते हैं, जिसमें भगवान् श्रीकृष्ण की लीला का ज्ञान, जो अर्जुन को मिला था, पढ़ते हैं। धन्य है वह गीता, धन्य है- प्रेस वाले, धन्य है वह छापाखाना वाला और धन्य है वह कागज बनाने वाला टाटा मिल, जो कागज के रीम बनाता हुआ चला गया। धन्य है वह, जिसने छापने की मशीनें बनायीं, जिससे हमें ढाई आने की गीता पढ़ने को मिल गयी। धन्यवाद उन सब लोगों को, जिनने इतना बेहतरीन काम किया, जिसकी वजह से गीता जैसी पवित्र व धार्मिक पुस्तक पढ़ने को मिल गयी। गहराई से सोचता हूँ, तो पता चलता है कि दुनिया में कितने बेहतरीन और खूबसूरत लोग रहते हैं। हमको इन सबसे एक ही बात समझ में आती है कि दुनिया में चारों तरफ प्रेम और सौहार्द्र बिखरा हुआ है। मित्रो, यही अमृत है और इसकी लहरों में आप उड़ते हुए और सरकते हुए चल सकते हैं। स्वर्ग है मक्के की रोटी में, स्वर्ग है फटे कपड़ों में, स्वर्ग है गरीबी में। रेशमी वस्त्र तो अंगारे के समान लगते हैं। मिठाइयाँ जो आप मजे से स्वाद ले- लेकर खाते हैं, उसमें जहर भरा हुआ है- पोटैशियम सायनाइड भरा हुआ है, जो कि आपका पेट फाड़ देगा। इसलिए आपने जो आकांक्षा भौतिकता के रूप में गाड़ रखी है कि मकान आपको मिल जाएगा, चीजें आपको मिल जाएँगी, तो आपको सुख- शांति मिल जाएगी- व्यर्थ है।
मित्रो! इससे आपके भीतर आकांक्षाएँ, तृष्णाएँ बढ़ती हुई चली जाती हैं कि अमुक चीज हमारे पास कम है और यह चीज हमको चाहिए। परंतु उनका उपयोग करना हमको कहाँ आता है? फिर भी उसको हम जोड़ना शुरू कर देते हैं। उसे जोड़ते हुए मुसीबतें हमारे पास आती हैं। बच्चे कहते हैं- माँ जी हमको यह चीज दोगी? वह कहती है- नहीं छोटी बच्ची कहती है- माताजी हमको दोगी? कहती है नहीं। यह तो जमा करके रखा जाएगा। बहुत मुनाफ़ा कमाया जाएगा। हमें वह कहानी याद आती है कि मधुमक्खी शहद जमा करती रही। एक दिन बंदर आया और छत्ता तोड़ करके चला गया। सारा- का शहद गिर पड़ा और सारी मक्खियाँ उसमें चिपककर मर गयीं। हमको जितना लाभ मिलता है, उसका हमको सदुपयोग करना आता है क्या? नहीं, हमको धन का सदुपयोग करना आता नहीं। हमको इतना सुंदर शरीर मिला है, उसका प्रयोग करना, उपयोग करना आता है क्या? नहीं। हमको इतना अच्छा स्वास्थ्य मिला हुआ है, उसका हमने सही उपयोग किया नहीं, फिर हम किस मुँह से ईश्वर के पास माँगने के लिए जाते हैं कि हमारा अच्छा स्वास्थ्य बना दीजिए। आपको जो धन मिला है, उसका क्या आपने सही कामों में उपयोग किया? नहीं। फिर आप किस मुँह से भगवान् के पास धन माँगने के लिए जाते हैं।
साथियो, आपको जो बुद्धि मिली है उसका आपने सही इस्तेमाल किया? नहीं। फिर आप भगवान् से बार- बार क्यों माँगते हैं? आपको इतनी विद्या बुद्धि मिली हुई थी कि आप दुनिया में शांति की धारा बहाते, उसको खूबसूरत बनाते, लेकिन आप तो संग्रह करने में लगे थे। जमा करने की बात सोचते रहे, स्वामी बनने की बात सोचते रहे, मालिक बनने की बात सोचते रहे, लेकिन आपके मन में उपयोग की बातें कहाँ आयीं? यदि उपयोग की बातें आपके मन में आतीं, तो आप सोचते कि जितना आपको मिला है वह पर्याप्त है, बहुत है। अगर आप इन सबका अच्छी तरह से प्रयोग कर सके होते, तो हम सोचते कि जितना भी आपके पास जो विद्या है, स्वास्थ्य है, जो धन है, इतने से ही सदुपयोग करके आप स्नेह- सौहार्द्र की धाराएँ बहा सकते हैं। फिर आनंद, उल्लास और संतोष आपके चारों ओर उमड़ता हुआ चला जा सकता है। कृतज्ञता आपके मन में उमड़ती हुई चली जा सकती है। पर इस्तेमाल करना हमको कहाँ आया?
मित्रो! उस स्वर्ग की कल्पना करना व्यर्थ है, जो कि मरने के बाद मिलता है। क्योंकि आपको यदि स्वर्ग भेज दिया जाए, तो थोड़े ही दिनों में आप स्वर्ग को भी नरक बना देंगे। अपने देश के एक प्रमुख नेता काहिरा मिश्र के एक होटल में ठहराये गये थे। वहाँ का खाना उनको पसंद नहीं आया, तो उन्होंने नौकर से कहा कि स्टोव पर चाय बना दे तथा खाना पका दे। स्टोव के धुएँ से कमरे की एक- दो दीवारें काली हो गयीं, तो उस होटल के मैनेजर ने कहा कि आपने हमारे कमरे की दीवारें गंदी कर दीं। उसने लंबा- चौड़ा बिल बनाकर उन नेता जी के पास भेजा और वह बिल उनको चुकाना पड़ा। यदि हम स्वर्ग नाम के स्थान पर जाएँ, तो वहाँ भी चारों तरफ गंदगी फैला देंगे और वही जगह थोड़े दिनों बाद नरक जैसी लगेगी। वहाँ कूड़े का ढेर लगा जाएगा, लोग गाँजा, चरस- शराब आदि का सेवन भी करेंगे। ये लोग कौन आ गये? ये भक्त आ गये, गायत्री स्तवन करने वाले आ गये। यहाँ लोग मंदिर के पीछे शौचालय की दीवारों पर पेशाब करते हैं। जगह- जगह गंदगी फैलाते हैं। बुरे व गंदे लोग जहाँ भी जाते हैं, वहाँ स्वर्ग को भी नरक बना देते हैं।
कभी- कभी हमें अकेले देहरादून एक्सप्रेस से हरिद्वार जाना पड़ता है। ट्रेन के डिब्बों पर लगी प्लेटो पर लिखा रहता है- बम्बई से देहरादून’ और जब हरिद्वार से मथुरा आना होता है, तो उसी ट्रेन की प्लेटो पर लिखा होता है- देहरादून से बम्बई इसका कारण जब हमने स्टेशन मास्टर से पूछा- तो उन्होंने बताया कि ये इन प्लेटो पर दोनों तरफ लिखा होता है। जब ट्रेन वापस जाती है, तो प्लेटें पलटा दी जाती हैं। विकृत दृष्टिकोण वाले लोगों को यदि स्वर्ग भेज दिया जाये, तो थोड़े ही दिनों में वहाँ की पेंटिंग को भी बदल दिया जाएगा। वहाँ का साइन बोर्ड बदल दिया जाएगा कि यह है- नरक अच्छे दृष्टिकोण वाले लोग चाहे वे गरीबी में रहें, चाहे केवल मक्के की रोटी खाकर जीवित रहें, किसी भी तरीके से रहें, लेकिन वे लोग हर स्थिति में थोड़े ही दिनों में स्वर्ग पैदा कर सकते हैं।
एक संत इमरसन हुए हैं, जिन्होंने अँग्रेजी भाषा में आध्यात्मिक जीवन के ऊपर बहुत- सी किताबें लिखी हैं- उनका एक मंत्र है कि ‘‘मुझे नरक में भेज दो, मैं उसे स्वर्ग बना दूँगा।’’ उनकी हर किताब के पहले पन्ने पर यही लिखा रहता है। किताब पहले पन्ने से शुरू होती है और हर किताब के पहले पन्ने पर लिखा है कि ‘स्वर्ग कहीं होता नहीं है, बनाया जाता है, निर्मित किया जाता है। वह मनुष्य की आँखों में रहता है, भावनाओं में रहता है, अंतःकरण में रहता है।’ आध्यात्मिकता का अंतिम परिणाम यही है। मित्रो! स्वर्ग है- विचार करने का सही तरीका और चीजों का देखने का सही दृष्टिकोण। इसी का अँग्रेजी नाम है- फिलॉसफी और हिंदी में दर्शन। यदि दुनिया को सही ढंग से देखना शुरू करें, तो न जाने क्या देखने को मिलेगा और आप आगे बढ़ते हुए, ऊँचे उठते हुए चले जाएँगे। यही है ईश्वर को प्राप्त करने का, रिश्ता मजबूत बनाने का सीधा व सरल मार्ग।
आज की बात समाप्त।
ॐ शान्तिः