Friday 22, November 2024
कृष्ण पक्ष सप्तमी, मार्गशीर्ष 2024
पंचांग 22/11/2024 • November 22, 2024
मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष सप्तमी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), कार्तिक | सप्तमी तिथि 06:08 PM तक उपरांत अष्टमी | नक्षत्र आश्लेषा 05:10 PM तक उपरांत मघा | ब्रह्म योग 11:33 AM तक, उसके बाद इन्द्र योग | करण बव 06:08 PM तक, बाद बालव |
नवम्बर 22 शुक्रवार को राहु 10:45 AM से 12:03 PM तक है | 05:10 PM तक चन्द्रमा कर्क उपरांत सिंह राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:52 AM सूर्यास्त 5:14 PM चन्द्रोदय 11:35 PM चन्द्रास्त 12:33 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - मार्गशीर्ष
- अमांत - कार्तिक
तिथि
- कृष्ण पक्ष सप्तमी - Nov 21 05:03 PM – Nov 22 06:08 PM
- कृष्ण पक्ष अष्टमी - Nov 22 06:08 PM – Nov 23 07:57 PM
नक्षत्र
- आश्लेषा - Nov 21 03:35 PM – Nov 22 05:10 PM
- मघा - Nov 22 05:10 PM – Nov 23 07:27 PM
मितव्ययी व्यक्ति |
स्वयं की खोज कैसे करें |
सफलताओं का आधार प्रचंड मनोबल |
भगवान का अनन्त भण्डार |
धर्म का प्रथम आधार है - आस्तिकता, ईश्वर विश्वास। परमात्मा की सर्वव्यापकता, समदर्शिता और न्यायशीलता पर आस्था रखना, आस्तिकता की पृष्ठभूमि है। यह मान्यता मनुष्य की दुष्प्रवृत्तियों पर अंकुश रख सकने में पूर्णतया समर्थ होती है। सर्वव्यापी ईश्वर की दृष्टि में हमारा गुप्त-प्रकट कोई आचरण अथवा भाव छिप नहीं सकता। समाज की, पुलिस की आँखों में धूल झोंकी जा सकती है, पर घट-घटवासी परमेश्वर से तो कुछ छिपाया नहीं जा सकता।
सत्कर्मों का या दुष्कर्मों का दण्ड आज नहीं तो कल मिलेगा ही, यह मान्यता वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन में नीति और कर्त्तव्य का पालन करते रहने की प्रेरणा देती है। सत्कर्म करने वाले को यदि प्रशंसा, मान्यता या सफलता नहीं मिली है तो ईश्वर भविष्य में देगा ही, यह आस्था उसे निराश नहीं होने देती और असफलताएँ मिलने पर भी वह सदाचरण के पथ पर आरूढ़ बना रहता है। इसी प्रकार कुकर्मी निर्भय नहीं हो पाता।
आस्तिकता धर्म का इसलिए प्रथम आवश्यक एवं अनिवार्य अंग माना गया है कि उससे हमारा सदाचरण अक्षुण्य बना रह सकता है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-६६ (६.१०)
हमारा साहित्य ज्ञान रथ के माध्यम से पंहुचाइए
उपासना क्या है |
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 22 November 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
सप्त ऋषि जिंदा हैं।कहां जिंदा हैं? रात को निकलते हैं मर गए नहीं बेटे मर नहीं सकते उनका यश अभी भी जिंदा है। श्री कृष्ण भगवान को बहेलिए ने तीर मारा था और उनको मरना पड़ा मरना पड़ा मरना पड़ेगा। लेकिन सप्तऋषि जिंदा है। धु्रव अभी भी जिंदा है रात को धु्रव निकलता है और सफर करने वाले आदमी, समुद्र में सफर करने वाले आदमी पता लगाते हैं धु्रव कहां निकला हुआ है और उत्तर कहां होना चाहिए? धु्रव अभी भी जिंदा है और महापुरुष हमेशा जिंदा रहते हैं इसका नाम है अमृत। अमृत उस चीज का नाम है अगर अपने आप से जानकारी की वजह से अध्यात्म ज्ञान की वजह से अपने स्वरूप को ऐसा निर्धारण कर लेता है कि कभी मौत नहीं हो सकती। जिनका यश दुनिया के परदे पर हमेशा बना रह सकता है और वह सितारों की तरीके से चमकते हैं जब मुसाफिर रात को रास्ता अपना भूल जाते हैं तो रास्ता दिखाने के लिए अपनी रोशनी चमकाते है वो तारे कौन तारे जैसे हम और आप में से कोई ऐसा हो महापुरुष तो वह तारे चमकाते हैं और उनके ऊपर हमेशा श्रद्धा के सुमन, श्रद्धा के सुमन बरसते रहते हैं।
पाबं
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
उपासना के लिए एक अनिवार्य शर्त यह है सच्चे भाव से चित लगाकर कि जाय 1 आजकल जिस जिस प्रकार बहुसंख्यक कहलाने वाले व्यक्ति दुनिया का दिखाने के लिए अथवा एक रस्म पूरी करने के लिए मंदिर में जाकर पूरी कर लेते हैं और नियम को पुरा करने के लिए एकाध माला भी जप लेते हैं उससे किसी बड़े सुफल कि आशा नहीं की जा सकती उपासना और साधन तो तभी सच्ची मानी जा सकती है जब कि मनुष्य उस समय समस्त सांसारिक विषयों और आस पास की बातों को भूलकर प्रभु को के ध्यान में निमग्न हो जाए जब मनुष्य इस प्रकार की संलग्नता और एकाग्रता में अपने इष्टदेव की उपासना करता है तभी वह अध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर हो सकता है और तभी वह दैवी कृपा का लाभ प्राप्त कर सकता है इसी तथ्य को समझने के लिए वेदों में बतलाया गया है की जब मनुष्य हृदय और आत्मा से सोम का अभिसव (परमात्मा की उपासना) करता है तव उसे स्वयमेव ईश्वरीय तेज के दर्शन होने लगते हैं और परमात्मा की कृपा अपने चारों तरफ से मेह की तरह बरसती जान पड़ती है।
संसार में जीवन निर्वाह करते हुए एक साधारण मनुष्य को अनेक विघ्न बाधाओं का सामना करना पड़ता है विपरीत परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ता है विरोधियों के साथ संघर्ष करना पड़ता है और लोगों की भली बुरी सब प्रकार की आलोचना को सहन करना पड़ता है इससे उसके जीवन में स्वभावतः उद्वेग अशाँति भय क्रोध आदि के अवसर आते हैं ऐसा मनुष्य अपने कष्टों के निवारणार्थ और मन और आत्मा की शाँति के लिए परमात्मा का आश्रय ग्रहण करता है। मन, वचन और कर्म से उसकी उपासना में संलग्न रहता है। तो उसकी अनास्था में परिवर्तन होने लगता है। जब साधनों में अग्रसर होकर वह अपने चारों आरे परमात्मा शक्ति की क्रीड़ा अनुभव करता है और वह समझने लगता है कि संसार में जो कुछ हो रहा हैं वह उस प्रभू की प्रेरणा और इच्छा का फल हैं तथा वह जो कुछ करता है उसका अंतिम परिणाम जीव के लिए शुभ होता है, चाहे वह तत्काल उसे न समझ सके, तब उसकी व्याकुलता और अशाँति दूर होने लगती हैं और उसे ऐसा अनुभव होता है मानो ग्रीष्म ऋतु में व्यथित श्राँत क्लाँत व्यक्ति को शीतल और शाँति दायक वर्षा ऋतु प्राप्त हो गयी। मनुष्यों को अपनी भिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए तरह तरह की साधनाएँ निकाली हैं। धन, संतान, वैभव, सम्मान, प्रभाव, विद्या, बुद्धि आदि की प्राप्ति के लिए लोग भाँति भाँति के उपायों का सहारा लेते हैं, जिससे उनकी योग्यतानुसार कम या अधिक परिणाम में सफलता भी प्राप्त होती है। पर आध्यात्मिक शाँति प्राप्त करने, साँसारिक तापों से छुटकारा पाने का एक मात्र उपाय यही है कि मनुष्य भिन्न भिन्न कामनाओं का मोह त्यागकर सच्चे हृदय से परमात्मा का आश्रय ले और शुद्ध भाव से उसकी स्तुति और प्रार्थना करें। हमें स्मरण रखना चाहिए कि सब प्रकार की कामनाओं को वास्तव में पूरा करने वाला भगवान ही हैं। इसलिए अगर हम उसकी पूजा करके आत्मिक शाँति प्राप्त कर लेंगे तो हमारी अन्य उचित कामनायें और आवश्यकतायें अपने आप पूरी हो जायेंगी।
कितने ही मनुष्य इस विवेचना से यह निष्कर्ष निकालेंगे कि परमात्मा के ध्यान में लीन होने से मनुष्य की कामनायें शाँत हो जायेंगी, उसमें संसार के प्रति विरक्तता के भाव का उदय हो जायेगा। इस प्रकार वह आत्मा संतोष का भाव प्राप्त कर लेगा। इस विचार में कुछ सच्चाई होने पर भी यह ख्याल करना कि परमात्मा की उपासना का साँसारिक कामनाओं से कोई संबंध नहीं, ठीक नहीं है। वेद में कहा गया हैं कि
“अपमिव प्रवणो यस्य “ दुँर्धरं राधो
विश्वायु शवसे अपावतम्। “
भगवान का धन कभी न रुकने वाला है। वह उसके उपासकों को इस प्रकार प्राप्त होता है जिस प्रकार नीचे की ओर बहता हुआ जल। वस्तुमान समय में भी अनेकों ऐसे व्यक्ति हो चुके हैं जो बहुत साधारण विद्या बुद्धि के होते हुए भी परमात्मा के भरोसे सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं और जो अपने और दूसरों के बड़े बड़े कार्यों को सहज ही पूरा कर देते हैं। हम अपने प्राचीन ग्रंथों में संतों, तपस्वियों ओर भक्तों के जिन चमत्कारों का वर्णन पढ़ते हैं उनसे तो यह बात स्पष्ट दिखलायी पड़ती है। कि ईश्वर की सच्चे हृदय से उपासना करने वालों को किसी साँसारिक संपदा का अभाव नहीं रहता।
मंत्र में यह भी कहा है कि परमात्मा के उपासक को उसके तेज के भी दर्शन होते हैं। विचार किया जाये तो वास्तव में यही उपासना के सत्य होने की कसौटी है। जो कोई भी एकाग्र चित्त से और तल्लीन होकर परमात्मा का ध्यान करेगा उसे कुछ समय उपराँत उसके तेज का अनुभव होना अवश्यम्भावी है। यह तेज ही साधक अंतर को प्रकाशित करके उसकी भ्रान्तियों को दूर कर देता है और उसे जीवन के सच्चे मार्ग को दिखलाता है। इसी प्रकार मनुष्य सच्चे ज्ञान का अधिकारी बनता है और सब प्रकार की भव बाधाओं को सहज में पार करने की सामर्थ्य प्राप्त करता हैं॥
अखण्ड ज्योति, अगस्त 1993
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