Saturday 21, December 2024
कृष्ण पक्ष षष्ठी, पौष 2024
पंचांग 21/12/2024 • December 21, 2024
पौष कृष्ण पक्ष षष्ठी, पिंगल संवत्सर विक्रम संवत 2081, शक संवत 1946 (क्रोधी संवत्सर), मार्गशीर्ष | षष्ठी तिथि 12:21 PM तक उपरांत सप्तमी | नक्षत्र पूर्व फाल्गुनी 06:14 AM तक उपरांत उत्तर फाल्गुनी | प्रीति योग 06:22 PM तक, उसके बाद आयुष्मान योग | करण वणिज 12:21 PM तक, बाद विष्टि 01:23 AM तक, बाद बव |
दिसम्बर 21 शनिवार को राहु 09:44 AM से 11:00 AM तक है | चन्द्रमा सिंह राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:13 AM सूर्यास्त 5:17 PM चन्द्रोदय 11:15 PM चन्द्रास्त 11:57 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2081, पिंगल
- शक सम्वत - 1946, क्रोधी
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- कृष्ण पक्ष षष्ठी - Dec 20 10:49 AM – Dec 21 12:21 PM
- कृष्ण पक्ष सप्तमी - Dec 21 12:21 PM – Dec 22 02:32 PM
नक्षत्र
- पूर्व फाल्गुनी - Dec 21 03:47 AM – Dec 22 06:14 AM
- उत्तर फाल्गुनी - Dec 22 06:14 AM – Dec 23 09:09 AM
गीताकार ने साधना क्रिया पर जोर देते हुए कहा है- ‘स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः।’ (गीता १८/४६) जो व्यक्ति सच्चाई के साथ अपना कार्य करता है, उसे ही सिद्धि मिलती है। कर्म साधना ही साध्य की अर्चना है।
साध्य कितना ही पवित्र, उत्कृष्ट, महान् क्यों न हो, यदि उस तक पहुँचने का साधन गलत है, दोषयुक्त है, तो साध्य की उपलब्धि भी असंभव है। उत्तम साध्य के लिए उत्तम साधनों का होना आवश्यक हे, अनिवार्य है। ठीक इसी तरह उत्कृष्ट साध्य-लक्ष्य का बोध न हो, तो उत्तम साधन भी हानिकारक सिद्ध हो जाते हैं।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सबसे बड़ी भूल हमारी यह होती है कि हम साध्य तो उत्तम चुन लेते हैं, महान् उत्कृष्ट लक्ष्य भी निर्धारित कर लेते हैं, लेकिन उसके अनुकूल साधनों के स्वरूप, उसकी उत्कृष्टता पर समुचित ध्यान नहीं देते। फलस्वरूप हमारे निज एवं सार्वजनिक सामाजिक जीवन में गतिरोध पैदा हो जाता है। हम अपने लक्ष्य को किसी भी तरह प्राप्त करने की कोशिश करते हैं तथा कई बार हम भ्रम में भटक कर गलत साधनों का उपयोग कर बैठते हैं। परिणामतः लक्ष्य के प्राप्त होने का जो संतोष एवं प्रसन्नता मिलनी चाहिए, उससे हम वंचित रह जाते हैं।
चाहे सामाजिक क्रांति हो या व्यक्तिगत साधना, लक्ष्य की प्राप्ति तभी संभव होगी, जब साधन और साध्य को जोड़कर मनुष्य साधन निष्ठ बनेगा।
उच्च पद, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए मनुष्य के सामने विस्तृत संसार पड़ा हुआ है, पुरुषार्थ और प्रयत्न के साथ मनुष्य कुछ भी प्राप्त कर सकता है। लेकिन वह इस राजमार्ग को न अपना कर दूसरों को नुकसान पहुँचाता है, बढ़ते हुओं की टाँग खींचता है, व्यर्थ ही संघर्ष पैदा करता है अथवा किसी की खुशामद-मिन्नतें करता है। ये दोनों ही साधन गलत हैं। इसके लिए व्यक्तिगत प्रयत्न आवश्यक है। अपने पुरुषार्थ के बल पर मनुष्य क्या नहीं प्राप्त कर सकता है?
लोग चलते हैं, जन सेवा का लक्ष्य लेकर, लेकिन वे जनता से अपनी सेवा कराने लगते हैं। बहुत से ज्ञानी उपदेशक धर्म पर चलने के लिए बड़े लम्बे-चौड़े उपदेश देते हैं, लेकिन उनके स्वयं के जीवन में अनेकों विकृतियाँ भरी पड़ी रहती हैं। देश सेवा के लिए, राष्ट्र को उन्नति और विकास की ओर अग्रसर करने के लिए लोग राजनीति में आते हैं, लेकिन अफसोस होता है जब वे पार्टीबाजी, सत्ता हथियाने के लिए, गुटबंदी के लिए परस्पर लड़ते-झगड़ते हैं, कूटनीति का गंदा खेल खेलते हैं, अपने घर भरते हैं, जनता की आँखों में धूल झोंकते हैं।
साधनों में इस तरह की भ्रष्टता व्यक्ति और समाज दोनों के लिए अहितकर सिद्ध होती है। इससे किसी का भी भला नहीं होता, सिद्धि उनसे बहुत दूर हट जाती है। जिस तरह साधनों की पवित्रता आवश्यक है, उसी तरह साध्य की उत्कृष्टता भी आवश्यक है। साध्य निकृष्ट हो और उसमें अच्छे साधनों को भी लगा दिया जाय, तो कोई हितकर परिणाम प्राप्त नहीं होगा। उलटे उससे व्यक्ति और समाज की हानि ही होगी। उत्कृष्ट साधन भी निकृष्ट लक्ष्य की पूर्ति के आधार बन कर समाज में बुराइयाँ पैदा करने लगते हैं। अतः जिनके पास साधन हैं, माध्यम हैं उन्हें आवश्यकता है उत्कृष्ट लक्ष्य के निर्धारण की।
सफलता प्राप्ति के लिए उत्कृष्ट लक्ष्य का चयन एवं उसके अनुकूल ही उत्कृष्ट साधनों का समुचित उपयोग आवश्यक होता है। साध्य और साधन की एकरूपता ही सफलता की आधारशिला होती है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
राम का शस्त्र न उठाने का कारण - रावण और विभीषण का संवाद"
भावी पीढ़ी समुन्नत स्तर की कैसे बने? | Bhavi Peedhi Samunnat Estar Ki Kaise Bane
साधना की गहराइयों से आता संदेश | Sadhana Ki Gaharaiyon Se Aata Sandesh
अनिद्रा का कारण शारीरिक श्रम न करना भी है।
Maa Ki Sharan Me Divya Shakti
संतों और बाजीगरी के बीच की भ्रांति | Santo Aur Bajigiri Ke Beech Ki Bhranti
अमृतवाणी:- पात्रता का विकास | Patrata Ka Vikas
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! आज के दिव्य दर्शन 21 December 2024 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी का अमृत सन्देश !!
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
सारी दुनिया में कम्युनिस्ट फैले हुए हैं यह किस तरीके से फैल गए कार्ल मास्क ने एक ने लिखा था और, और प्रत्येक कम्युनिस्ट ने यह काम किया घर-घर जाकर के लोगों को छोटी-छोटी पुस्तकों के रूप में कम्युनिज्म के सिद्धांत समझाए और समझा कर के लोगों को बताए सभाएं नहीं की उन्होंने जुलूस नहीं निकाले उन्होंने मीटिंगियाँ नहीं की उन्होंने कथाएं नहीं की उन्होंने, उन्होंने साहित्य पढ़ाया, साहित्य का प्रभाव टिकाऊ होता है और कथा का, कथा का प्रभाव टिकाऊ नहीं होता व्याख्यान का प्रभाव जिस समय तक आप व्याख्यान सुनेंगे उस समय तक तो आप पर प्रभाव पड़ेगा और आपकी बीवी और आपकी मां और आपके बच्चे अगर पूछें कि अभी आप सभा में गए थे और आप सत्संग में गए थे और मीटिंग में गए थे क्या कहा दांत निकाल देंगे अरे साहब कही तो बड़ी अच्छी बातें पर कुछ याद नहीं है लेकिन साहित्य,साहित्य में ऐसी बात नहीं है साहित्य से क्या क्या नहीं हुआ साहित्य का मूल्य आपको मालूम नहीं है क्योंकि आपने पढ़ा नही है |
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
पात्रता के अभाव में सांसारिक जीवन में किसी को शायद ही कुछ विशेष उपलब्ध हो पाता है। अपना सगा होते हुए भी एक पिता मूर्ख गैर जिम्मेदार पुत्र को अपनी विपुल सम्पत्ति नहीं सौंपता। कोई भी व्यक्ति निर्धारित कसौटियों पर खरा उतरकर ही विशिष्ट स्तर की सफलता अर्जित कर सकता है। मात्र माँगते रहने से कुछ नहीं मिलता, हर उपलब्धि के लिए उसका मूल्य चुकाना पड़ता है। बाजार में विभिन्न तरह की वस्तुएँ दुकानों में सजी होती हैं, पर उन्हें कोई मुफ्त में कहाँ प्राप्त कर पाता है? अनुनय विनय करने वाले तो भीख जैसी नगण्य उपलब्धि ही करतलगत कर पाते हैं। पात्रता के आधार पर ही शिक्षा, नौकरी, व्यवसाय आदि क्षेत्रों में भी विभिन्न स्तर की भौतिक उपलब्धियाँ हस्तगत करते सर्वत्र देखा जा सकता है।
अध्यात्म क्षेत्र में भी यही सिद्धान्त लागू होता है। भौतिक क्षेत्र की तुलना में अध्यात्म के प्रतिफल कई गुना अधिक महत्त्वपूर्ण, सामर्थ्यवान् और चमत्कारी हैं। किन्हीं-किन्हीं महापुरुषों को देख एवं सुनकर हर व्यक्ति के मुँह में पानी भर आता है तथा उन्हें प्राप्त करने के लिए मन ललचाता है, पर अभीष्ट स्तर का आध्यात्मिक पुरुषार्थ न कर पाने के कारण उस ललक की आपूर्ति नहीं हो पाती। पात्रता के अभाव में अधिकांश को दिव्य आध्यात्मिक विभूतियों से वंचित रह जाना पड़ता है जबकि पात्रता विकसित हो जाने पर बिना माँगें ही वे साधक पर बरसती हैं। उन्हें किसी प्रकार का अनुनय विनय नहीं करना पड़ता है। दैवी शक्तियाँ परीक्षा तो लेती हैं, पर पात्रता की कसौटी पर खरा सिद्ध होने वालों को मुक्तहस्त से अनुदान भी देती हैं।
यह सच है कि अध्यात्म का, साधना का चरम लक्ष्य सिद्धियाँ-चमत्कारों की प्राप्ति नहीं है, पर जिस प्रकार अध्यवसाय में लगे छात्र को डिग्री की उपलब्धि के साथ-साथ बुद्धि की प्रखरता का अतिरिक्त अनुदान सहज ही मिलता रहता है, उसी तरह आत्मोत्कर्ष की प्रचण्ड साधना में लगे साधकों को उन विभूतियों का भी अतिरिक्त अनुदान मिलता रहता है, जिसे लोक-व्यवहार की भाषा में सिद्धि एवं चमत्कार के रूप में जाना जाता है। पर चमत्कारी होते हुए भी ये प्रकाश की छाया जैसी ही हैं। प्रकाश की ओर चलने पर छाया पीछे-पीछे अनुगमन करती है। अन्धकार की दिशा में बढ़ने पर छाया आगे आ जाती है, उसे पकड़ने का प्रयत्न करने पर भी वे पकड़ में नहीं आतीं। इसी प्रकार अर्थात् दिव्यता की ओर-श्रेष्ठता की ओर परमात्म पथ की ओर बढ़ने पर छाया अर्थात् ऋद्धि-सिद्धियाँ साधक के पीछे-पीछे चलने लगती हैं। इसके विपरीत उन्हीं की प्राप्ति को लक्ष्य बनाकर चलने पर तो आत्म-विकास की साधना से वंचित बने रहने से वे पकड़ में नहीं आतीं।
दिव्यता की ओर बढ़ने का अर्थ है- अपने गुण, कर्म, स्वभाव को इतना परिष्कृत, परिमार्जित कर लेना कि आचरण में देवत्व प्रकट होने लगे। इच्छाएँ, आकांक्षाएँ देवस्तर की बन जाएँ। संकीर्णता, स्वार्थपरता हेय और तुच्छ लगने लगे। समष्टि के कल्याण की इच्छा एवं उमंग उठे और उसी में अपना भी हित दिखाई दे। दूसरों का कष्ट, दुःख अपना ही जान पड़े और उनके निवारण के लिए मन मचलने लगे। सभी मनुष्य समस्त प्राणी अपनी ही सत्ता के अभिन्न अंग लगने लगें। आत्म विकास की इस स्थिति पर पहुँचे हुए साधक की, ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ सहचरी बन जाती हैं। पर इन अलौकिक विभूतियों को प्राप्त करने के बाद वे उनका प्रयोग कभी भी अपने लिए अथवा संकीर्ण स्वार्थों के लिए नहीं करते। संसार के कल्याण के लिए ही वे उन शक्तियों का सदुपयोग करते हैं।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
Newer Post | Home | Older Post |