GURUDEV
विवेकहीन अन्धानुकरण
अंग्रेजों की आमदनी बहुत थी वे मनचाहा खर्च कर सकते थे। वे अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान की रक्षा के लिए इस गरम देश में रहकर भी अपने ठण्डे मुल्क की पोशाक पहनते थे, हिन्दुस्तानी भाषा जानते हुए भी अपनी मातृ भाषा में बोलने में ही गौरव अनुभव करते थे। उन्होंने अपने को श्रेष्ठ समझा और अपनी दृढ़ता से दूसरे की कमजोरी को प्रभावित किया। एक हम हैं जो उनकी दृढ़ता देश भक्ति ,स्वाभिमान एवं विशेषताओं को तो छू भी न सके उलटे बन्दर की तरह नकल बनाने लगे अपनी भाषा, संस्कृति, पोशाक, आहार, परम्परा आदि को तिलाञ्जलि देकर हमने पाया कुछ नहीं समझदार लोगों की आँखों में उपहासास्पद बने और खर्च भी बढ़ा लिये।
अब अंग्रेज भारत में नहीं हैं राजनैतिक गुलामी से भी छुटकारा मिल गया पर काले अंग्रेज अभी भी उनकी सांस्कृतिक ...
आकर्षक व्यक्तित्व बनाइये
सद्भावनायुक्त नागरिक ही आपको सामाजिक प्रतिष्ठा और मान-सम्मान देने वाले हैं। उनके दृष्टिकोण एवं विचारधारा पर आपकी सफलता अवलम्बित है। जैसा आपके आसपास वाले समझते हैं, वैसे ही वास्तव में आप हैं। समाज में आपके प्रत्येक कार्य की सूक्ष्म अलक्षित तरंगें निकला करती हैं, जो दूसरों पर प्रभाव डालती हैं।
भलाई, शराफत आदि सद्व्यहार वह धन है जो रात-दिन बढ़ता है। यदि दैनिक व्यवहार में आप यह नियम बना लें कि हम जिन लोगों के सम्पर्क में आयेंगे, उनके साथ सद्भावनायुक्त व्यवहार करेंगे, तो स्मरण रखिये आपके मित्र और हितैषियों की संख्या बढ़ती ही जायेगी। आप दूसरों को जितना प्रेम उदारता और सहानुभूति दिखलायेंगे, उनसे दस गुनी उदारता और सहानुभूति प्राप्त करेंगे। सद्व्यवहार दूसरे के अहं भाव की रक्षा करना वह...
लक्ष्य की दिशा में अग्रसर
मनुष्य उज्ज्वल भविष्य की मनोरम कल्पनाएँ किया करता है। सुखमय जीवन का स्वप्न देखता है। उन्नति की योजनाएँ बनाता है। सफलता के सूत्र ढूँढ़ता है। लक्ष्य की दिशा में अग्रसर होने के लिए हर तरह की कोशिशें करता है। पर जब वह पीछे मुड़कर उपलब्धियों का मूल्याँकन करना चाहता है तो पता चलता है कि उसकी मनचाही योजनाएँ या तो मन में धरी रही गईं अथवा उनका क्रियान्वयन आधा-अधूरा हो पाया। इससे इसे अपने पुरुषार्थ पर खीज भी आती है व आक्रोश भी कारण ढूँढ़ पाने में वह सफल नहीं हो पाता।
असफलताजन्य खीज की प्रतिक्रियाएँ प्रायः दो अतिवादी स्वरूपों में अभिव्यक्ति होती हैं। एक व्यक्ति अपने को नितान्त अयोग्य मानकर घोर निराशा में निमग्न हो जाता है। एवं सारा दोष, भाग्य, भगवान अथवा परिस्थितियों के मत्थे ...
आत्म विश्वास का शास्त्र
जीवन संग्राम का सबसे बड़ा शस्त्र आत्मविश्वास है। जिसे अपने ऊपर-अपने संकल्प बल और पुरुषार्थ के ऊपर भरोसा है वही सफलता के लिये अन्य साधनों को जुटा सकता है। आत्म संयम भी उसी के लिये सम्भव है जिसे अपने ऊपर भरोसा है। जिसने अपने गौरव को भुला दिया, जिसे अपने में कोई शक्ति दिखाई नहीं पड़ती जिसे अपने में केवल दीनता, अयोग्यता, एवं दुर्बलता ही दिखाई पड़ती है। ह किस बलबूते पर आगे बढ़ सकेगा? और कैसे इस संघर्ष भरी दुनियाँ में अपना अस्तित्व यम रख सकेगा। बहती धार में जिसके पैर उखड़ गया, उसे पानी बहा ले जाता है पर जो अपना हर कदम मजबूती से रखता है वह धीरे-धीरे तेज धार को भी पार कर लेता है।
हमें परमात्मा ने उतनी ही शक्ति दी है जितना कि किसी अन्य मनुष्य को। जिस मंजिल को दूसरे पार कर चुके हैं उसे...
अपना दृष्टिकोण बदलो
मित्रो ! सत्य! सत्य!! सत्य!!! अहा, कितना सुन्दर शब्द है। उच्चारण करते ही जिव्ह्य को शांति मिलती है, विचार करते ही मस्तिष्क शीतल हो जाता है, हृदयंगम करने से कलेजा ठंडक अनुभव करता है। झूठ के मायावी प्रपंचों में उलझ कर ईश्वर का राजकुमार-मनुष्य मानवता से पतित होकर पशु बन गया है। सत्य की अवहेलना करने का अभिशाप वह भुगत रहा है।
ईश्वर सत्य है, आत्मा सत्य है, प्रभु की त्रिगुणमयी लीला सत्य है, सर्वत्र सत्य ही सत्य व्याप्त हो रहा है। जीवन के कण-कण की एक ही प्यास है-'सत्य'। हमारा जीवन इसलिए है कि अखिल सत्य तत्त्व में विचरण करते हुए अमृत का पान करें। प्रभु ने कृपा करके हमें अपने संसार की सत्यरूपी वाटिका में भ्रमण करके आनंद लाभ करने के लिए भेजा है। परन्तु हाय, हम...
विचारों की शक्ति
मित्रो ! मिट्टी के खिलौने जितनी आसानी से मिल जाते हैं, उतनी आसानी से सोना नहीं मिलता। पापों की ओर आसानी से मन चला जाता है, किंतु पुण्य कर्मों की ओर प्रवृत्त करने में काफी परिश्रम करना पड़ता है। पानी की धारा नीचे पथ पर कितनी तेजी से अग्रसर होती है, किंतु अगर ऊँचे स्थान पर चढ़ाना हो, तो पंप आदि लगाने का प्रयत्न किया जाता है।
बुरे विचार, तामसी संकल्प ऐसे पदार्थ हैं, जो बड़ा मनोरंजन करते हुए मन में धँस जाते हैं और साथ ही अपनी मारक शक्ति को भी ले जाते हैं। स्वार्थमयी नीच भावनाओं को वैज्ञानिक विश्लेषण करके जाना गया है कि वे काले रंग की छुरियों के समान तीक्ष्ण एवं तेजाब की तरह दाहक होती हैं। उन्हें जहाँ थोड़ा-सा भी स्थान मिला कि अपने सदृश और भी बहुत-सी सामग्री खींच लेती हैं। विचारों...
व्यक्तित्व को विकसित कीजिए
मित्रो ! आप अपने व्यक्तित्व को विकसित कीजिए ताकि आप निहाल हो सकें। दैवी कृपा मात्र इसी आधार पर मिल सकती है और इसके लिए माध्यम है श्रद्धा। श्रद्धा मिट्टी से गुरु बना लेती है। पत्थर से देवता बना देती है। एकलव्य के द्रोणाचार्य मिट्टी की मूर्ति के रूप में उसे तीरंदाजी सिखाते थे। रामकृष्ण की काली भक्त के हाथों भोजन करती थी। उसी काली के समक्ष जाते ही विवेकानंद नौकरी-पैसा भूलकर शक्ति-भक्ति माँगने लगे थे।
आप चाहे मूर्ति किसी से भी खरीद लें। मूर्ति बनाने वाला खुद अभी तक गरीब है। पर मूर्ति में प्राण श्रद्धा से आते हैं। हम देवता का अपमान नहीं कर रहे। हमने खुद पाँच गायत्री माताओं की मूर्ति स्थापित की हैं, पर पत्थर में से हमने भगवान पैदा किया है श्रद्धा से। मीरा का गिरधर गोपाल चमत्कारी था...
सुखी वही, जिसने सुख की वासना छोड़ दी
‘‘जीवन की तृष्णा और सुख प्राप्ति की चाहत को दूर करो। किन्तु जो महत्त्वाकांक्षी हैं, उन्हीं की भाँति कठोर श्रम करो। जिन्हें जीवन की तृष्णा है, उन्हीं की भाँति सभी के जीवन का सम्मान करो। जो सुख के लिए जीवन यापन करते हैं, उन्हीं की भाँति सुखी रहो। अपने हृदय के भीतर पनपने वाले पाप के अंकुर को ढूँढक़र, उसे बाहर निकाल फेंको। यह अंकुर शिष्य के हृदय में भी यदा-कदा उसी तरह पनपने लगता है, जैसे कि वासना भरे मानव हृदय में। केवल महान वीर साधक ही उसे नष्ट कर डालने में सफल होते हैं। जो दुर्बल हैं, वे तो उसके बढऩे-पनपने के साथ भी नष्ट हो जाते हैं।’’
यह अनुभव सभी महान् शिष्यों का है। शिष्य के जीवन में तृष्णा और सुख की लालसा की कोई जगह नहीं है। मजे की बात...
सुगंधित जीवन
मित्रो ! विद्वान पुरुष सुगंधित पुष्पों के समान हैं। वे जहाँ जाते हैं, वहीं आनंद साथ ले जाते हैं। उनका सभी जगह घर है और सभी जगह स्वदेश है। विद्या धन है। अन्य वस्तुएँ तो उसकी समता में बहुत ही तुच्छ हैं। यह धन ऐसा है जो अगले जन्मों तक भी साथ रहता है। विद्या द्वारा संस्कारित की हुई बुद्घि आगामी जन्मों में क्रमश: उन्नति ही करती जाती है और उससे जीवन उच्चतम बनते हुए पूर्णता पाता है।
कुएँ को जितना गहरा खोदा जाए, उसमें से उतना ही अधिक जल प्राप्त होता जाता है। जितना अधिक अध्ययन किया जाए उतना ही ज्ञानवान बना जा सकता है। विश्व क्या है और इसमेंं कितनी आनंदमयी शक्ति भरी हुई है, इसे वही जान सकता है, जिसने विद्या पढ़ी है। ऐसी अनुपम संपत्ति का उपार्जन करने में न जाने क्यों लोग...
उपासना
मित्रो ! उपासना का मुख्य उद्देश्य है ईश्वर के सान्निध्य को प्राप्त करना। जप,तप,पूजा, अर्चा,ध्यान आदि जो कुछ भी किया जा रहा है, वह सब परमात्मा के लिये ही किया जा रहा है, ऐसा अनुभव किया जाना चाहिए। अनुभव करना चाहिये परमात्मा उसकी पूजा स्वीकार कर रहा है। वह उसकी प्रार्थना अथवा कीर्तन को सुन रहा है। इस प्रकार सच्ची भावना से की गयी उपासना चमत्कार की तरह फलवती होती है। ऐसी जीवंत उपासना व्यक्ति के जीवन पर एक स्थायी प्रभाव डालती है। जो उत्कृष्ट विचारों, निर्विकार स्वभाव तथा सत्कर्मों के रूप में परिलक्षित होता है।
उपासना करता हुआ जो भी व्यक्ति गुण, कर्म,स्वभाव, एवं मन, वचन तथा कर्म से उत्कृष्टï नहीं बना तो यही मानना होगा, उसने उपासना की ही नहीं, केवल उपासना करने का नाटक किय...