अनाचार से कैसे निपटें? (भाग १)
कीचड़ में कमल उगना एक सुयोग है। आमतौर से उसमें गंदे कीड़े ही कुलबुलाते रहते हैं। जिन्होंने लोकप्रवाह में बहने के लिए आत्म समर्पण कर दिया, समझना चाहिए उनके लिए नर-पशु स्तर का जीवनयापन ही भाग्य विधान जैसा बन गया। वे खाते, सोते, पाप बटोरते और रोते-कलपते मौत के मुँह में चले जाते हैं। स्रष्टा ने मनुष्य जीवन का बहुमूल्य जीवन धरोहर के रूप में दिया था, होना यह चाहिए था कि इस सुयोग का लाभ उठाकर अपनी अपूर्णता पूर्णता में बदली गयी होती और विश्वमानव की सेवा-साधना में संलग्न रहकर देवमानव की भूमिका में प्रवेश करके धन्य बना जाता, असंख्यों को सन्मार्ग में चलाकर सत्प्रवृत्तियों के संवर्धन का अजस्र पुण्य कमाया गया होता। यह तो बन नहीं पड़ता, उल्टे पाप का पिटारा सिर पर लादकर लंबे भविष्य को अन्धकारमय बनाया जाता है।
सत्य परायणों और न्यायनिष्ठों को समय-समय पर दूसरों की सहायता भी मिलती रही है, इतिहास इसका साक्षी है। यदि ऐसा न हुआ होता तो बहुसंख्यक कुकर्मियों ने इस संसार की समूची शालीनता का भक्षण कर लिया होता। सत्यनिष्ठ एकाकी होने के कारण सर्वत्र पराजित-पराभूत हो गए होते किन्तु ऐसा हुआ नहीं। प्रहलाद पथ के अनुयायी कष्ट सहकर भी अपनी विजय ध्वजा फहराते हैं। ईसा मरकर भी मरे नहीं, सुकरात की काया नष्ट होने पर भी उसका यश, वर्चस्व और दर्शन अपेक्षाकृत और भी प्रखर हुआ, व्यापक बना। गोवर्धन पर्वत उठाए जाने का संकल्प आरम्भ में असंभव लगता रहा होगा, पर समय ने सदुद्देश्य का साथ दिया और सत्संकल्प ने विजय दुंदुभी बजाई।
विलासिता, सज-धज और ठाट-बाट की आड़ में बढ़ता हुआ खर्च किसी को भी कुमार्ग पर ढकेल सकता है। सीमित और आवश्यक खर्च की पूर्ति तो सही हो सकती है, पर असाधारण खर्च की पूर्ति के लिए तो गलत तरीके ही अपनाने होते हैं।
अपराधी प्रवृत्ति एक प्रकार की छूत वाली बीमारी है जो पहले परिवार के नवोदित सदस्यों पर आक्रमण करती है। कुकर्मी लोगों की संतानें भी अनैतिक कार्यों में ही रुचि लेती हैं और उन्हीं की अभ्यस्त बनती हैं। इसके अतिरिक्त ऐसा भी होता है कि जिनके साथ उनकी घनिष्टता है, उन्हें भी उसी पतन के गर्त में गिरने का कुयोग बने। ऐसे लोग प्रयत्नपूर्वक अपना संपर्क क्षेत्र बढ़ाते हैं और उद्धत आचरणों के फलस्वरूप तत्काल बड़े लाभ मिलने के सब्जबाग दिखाते हैं। आरम्भ में हिचकने वालों की हिम्मत बढ़ाने के लिए कितने ही इस आधार पर बड़े-बड़े लाभ प्राप्त कर लेने के मन गढ़न्त वृतान्त सुनाते हैं। जिन्हें सच मानने और उस प्रकार का आचरण करने में अपनी भी उपयोगिता देखकर सहज ही तैयार हो जाते हैं। गिरोह बनता है और साथियों की सहायता से अपराधी लोगों का समुदाय बनता है। संगठित प्रयत्नों की सफलता सर्व विदित है। अनाचार पर उतारू लोग भी आक्रामक नीति अपनाकर आरम्भिक सफलता तो प्राप्त कर ही लेते हैं, पीछे भले ही उनके भयानक दुष्प्रिणाम भुगतने पड़ें।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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