Prem Aur Permeshwar प्रेम और परमेश्वर
प्रत्येक प्राणी में परमात्मा का निवास है। इस घट-घट वासी परमात्मा का जो दर्शन कर सके समझना चाहिए कि उसे ईश्वर का साक्षात्कार हो चुका। प्राणियों की सेवा करने से बढ़कर दूसरी ईश्वर भक्ति हो नहीं सकती। कल्पना के आधार पर धारणा-ध्यान द्वारा प्रभु को प्राप्त करने की अपेक्षा सेवा-धर्म अपना कर इसे साकार ब्रह्म-अखिल विश्व को सुन्दर बनाने के लिए संलग्न रहना-साधना का श्रेष्ठतम मार्ग है। अमुक भजन ध्यान से केवल ईश्वर को ही प्रसन्नता हुई या नहीं? इसमें सन्देह हो सकता है, पर दूसरों को सुखी एवं समुन्नत बनाने के लिए जिसने कुछ किया है उसे आत्म-सन्तोष, सहायता द्वारा सुखी हुए जीवों का आशीर्वाद और परमात्मा का अनुग्रह मिलना सुनिश्चित है।
प्रेम से बढ़कर इस विश्व में और कुछ भी आनन्दमय नहीं है। जिस व्यक्ति या वस्तु को हम प्रेम करते हैं वह हमें अतीव सुन्दर प्रतीत होने लगती है। इस समस्त विश्व को परमात्मा का साकार मान कर उसे अधिक सुन्दर बनाने के लिए यदि उदार बुद्धि से लोक मंगल के कार्यों में निरत रहा जावे तो यह ईश्वर के प्रति तथा उसकी पुण्य वृत्तियों के प्रति प्रेम प्रदर्शन करने का एक उत्तम मार्ग होगा। इस प्रकार की हुई ईश्वर उपासना कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। इसकी सार्थकता के प्रमाणस्वरूप तत्काल आत्मसन्तोष मिलता है। श्रेय की भावनाओं से ओत-प्रोत उदार हृदय ही स्वर्ग है। जिसे स्वर्ग अभीष्ट हो उसे अपना अन्तःकरण प्रेम और सेवा धर्म से परिपूर्ण बना लेना चाहिए।
ऋषि तिरुवल्लुवर
अखण्ड ज्योति जुलाई 1964 पृष्ठ 1
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