अंडा खाइये और लकवा बुलाइये
इधर मूर्ख नेताओं वाले देश भारतवर्ष में तृतीय पंचवर्षीय योजना देश भर में मुर्गी पालन और अण्डा उत्पादन का अभियान चला रही थी उधर फ्लोरिडा अमेरिका का कृषि विभाग ‘अण्डों का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है’ उसकी शोध और परीक्षण कर रहा है। अट्ठारह महीनों के परीक्षण के बाद 1967 की हेल्थ बुलेटिन ने बताया- अण्डों में डी.डी.टी. विष पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिये अत्यधिक हानिकारक है।
कैलीफोर्निया के विश्व विख्यात डॉ. कैथेराइन निम्मो डी.सी.आर.एन. तथा डॉ. जे. एमन विल्किन्ज ने एक सम्मिलित रिपोर्ट में बताया-एक अण्डे में लगभग 4 ग्रेन ‘केले स्टरोल’ नामक अत्यन्त विषैला तत्व पाया जाता है। यह विष हृदय रोगों का मुख्य कारण है। इतनी सी मात्रा से ही हाई ब्लडप्रेशर, पित्ताशय में पथरी, गुर्दों की बीमारी तथा रक्त में जाने वाली धमनियों में घाव हो जाते हैं ‘इस स्थिति में अण्डों से स्वास्थ्य की बात सोचना मूर्खता ही है।’
इन डाक्टरों की यह रिपोर्ट पढ़कर विश्वभर के डॉक्टर चौंके और तब सारे संसार की प्रयोगशालाओं में परीक्षण होने लगे। उन परीक्षणों में न केवल उपरोक्त तथ्य पुष्ट हुये वरन् कुछ नई जानकारियाँ मिलीं जो इनसे भी भयंकर थीं।
उदाहरण के लिये इंग्लैंड के डॉ. राबर्ट ग्रास, इविंग डैविडसन तथा प्रोफेसर ओकड़ा ने कुछ पेट के बीमारों का- अण्डे खाने और अण्डे खाना छोड़ देने इन, दोनों परिस्थितियों में परीक्षण किया और पाया कि जब तक वे मरीज अण्डे खाते रहे तब तक उनका पाचन बिगड़ा रहा, पेचिश हुआ और ट्यूबर कुलैसिस बैक्टीरिया (टी.बी.) जन्म लेता दिखाई दिया।’
अमेरिका के डॉ. ई.वी.एम.सी. कालम ने तो इन तथ्यों का विधिवत प्रचार किया उन्होंने अपनी पुस्तक ‘न्यूअर नॉलेज आफ न्यूट्रिन पेज 171 में लिखा है’ अण्डों में कार्बोहाइड्रेट्स तथा कैल्शियम की कमी होती है। अतः यह पेट में सड़ाँद उत्पन्न करते हैं, यह सड़न ही अपच, मन्दाग्नि और अनेक रोगों के रूप में फूटती है साथ ही स्वभाव में चिड़चिड़ापन- थोड़े में क्रुद्ध हो जाना जैसी बुराइयाँ उत्पन्न करता है।
‘दि नेचर ऑफ डिसीज’ पत्रिका के द्वितीय वाल्यूम पेज 194 में चेतावनी देते हुए डॉ. जे.ई.आर.एम.सी. डोनाह एफ.आर.सी.पी. (इंग्लैंड) लिखते हैं- ‘कैसा पागलपन है कि जो अंडा आँतों में विष और घाव उत्पन्न करता है आज उन्हीं अण्डों की उपज में वृद्धि करने की व्यावसायिक योजनाएं तैयार की जा रही हैं।’
धार्मिक आध्यात्मिक और जीव दया जैसी अत्यधिक आवश्यक बातें उपेक्षित भी की जा सकती हैं पर क्या इन डाक्टरी निष्कर्षों को भी ठुकराया जा सकता है। अण्डा किसी भी अर्थ में स्वास्थ्य वर्धक नहीं। इंग्लैण्ड के डॉ. आर. जे. विलियम्स का कथन है आज जो लोग अण्डे खाकर स्वस्थ होने की कल्पना करते हैं वहीं कल जब एक्जिमा और लकवे जैसे भयंकर रोग से शिकार होंगे- तब पश्चाताप करेंगे कि घास की रोटी खा लेती तो अच्छा था अण्डा खाकर आत्मघात जैसा दुर्भाग्य तो सिर पर न पड़ता।
अखण्ड ज्योति, अक्टूबर १९७० पृष्ठ ३१
Recent Post
आत्मचिंतन के क्षण
आत्म निरीक्षण और विचार पद्धति का कार्य उसी प्रकार चलाना चाहिए जिस प्रकार साहूकार अपनी आय और व्यय का ठीक-ठीक खाता रखते हैं। हमारी दुर्बलताओं और कुचेष्टाओं का खर्च-खाता भी हो और विवेक सत्याचरण तथा आत...
आत्मचिंतन के क्षण
आत्म-निर्माण के कार्य में सत्संग निःसन्देह सहायक होता है किन्तु आज की परिस्थितियों में इस क्षेत्र में जो विडंबना फैली है, उससे लाभ के स्थान पर हानि अधिक है। सड़े-गले, औंधे-सीधे, रूढ़िवादी, भाग्यवाद...
आत्मचिंतन के क्षण
मनुष्य अपनी वरिष्ठता का कारण अपने वैभव- पुरुषार्थ, बुद्धिबल- धनबल को मानता है, जबकि यह मान्यता नितान्त मिथ्या है। व्यक्तित्व का निर्धारण तो अपना ही स्व- अन्त:करण करता है। निर्णय, निर्धारण यहाँ...
आत्मचिंतन के क्षण
ईश्वर उपासना मानव जीवन की अत्यन्त महत्वपूर्ण आवश्यकता है। आत्मिक स्तर को सुविकसित, सुरक्षित एवं व्यवस्थित रखने के लिए हमारी मनोभूमि में ईश्वर के लिए समुचित स्थान रहना चाहिए और यह तभी संभव है जब उसक...
आत्मचिंतन के क्षण
जो अपनी पैतृक सम्पत्ति को जान लेता है, अपने वंश के गुण, ऐश्वर्य, शक्ति,सामर्थ्य आदि से पूर्ण परिचित हो जाता है, वह उसी उच्च परम्परा के अनुसार कार्य करता है, वैसा ही शुभ व्यवहार करता ...
रचनात्मक आन्दोलनों के प्रति जन-जन में उत्साह जगाए
यह यज्ञभाव को जनजीवन में उतारने का चुनौतीपूर्ण समय है
विगत आश्विन नवरात्र के बाद से अब तक का समय विचार क्रान्ति ...
मनुष्य अनन्त शक्तियों का भाण्डागार है
मनुष्य अनन्त शक्तियों का भाण्डागार है। ये शक्तियाँ ही जीवन के उत्कर्ष का आधार हैं। शारीरिक, मानसिक, आत्मिक क्षमताओं का विकास, सफलता, सिद्धि, सुख और आनन्द की प्राप्ति सब इन्हीं आत्मशक्तियों के जागरण...
आत्मचिंतन के क्षण
जीवन का लक्ष्य खाओ पीओ मौज करो के अतिरिक्त कुछ और ही रहा होगा यदि हमने अपना अवतरण ईश्वर के सहायक सहयोगी के रूप में उसकी सृष्टि को सुन्दर समुन्नत बनाने के लिए हुआ अनुभव किया होता पर किया क्या जाय बु...
आत्मचिंतन के क्षण
एकाँगी उपासना का क्षेत्र विकसित कर अपना अहंकार बढ़ाने वाले व्यक्ति , ईश्वर के सच्चे भक्त नहीं कहे जा सकते। परमात्मा सर्व न्यायकारी है। वह, ऐसे भक्त को जो अपना सुख, अपना ही स्वार्थ सिद्ध करना च...
आत्मचिंतन के क्षण
किसी एक समुदाय के विचार किसी दूसरे समुदाय के विरुद्ध हो सकते हैं। किसी एक वर्ग का आहार -विहार दूसरे वर्ग के विपरीत पड़ सकता है। एक की भावनायें, मान्यतायें आदि दूसरे से टकरा सकती हैं। इसी विविधता, व...