स्वाध्याय-सन्दोह
“धर्म की उन्नति से अन्यान्य विषयों में उन्नति अवश्यम्भावी है। यदि रक्त साफ और ताजा रहे तो देह में रोग का कोई कीटाणु (जर्म) प्रवेश नहीं कर सकता। धर्म ही हम लोगों का रक्त है। यदि इस रक्त-प्रवाह में कोई बाधा न पहुँचे और वह शुद्ध तथा ताजा रहे तो सभी बातों में कल्याण होगा। यदि यह रक्त शुद्ध हो तो राजनैतिक, सामाजिक अथवा कोई भी बाहरी दोष हो इतना ही नहीं, हमारे देश की घोर दरिद्रता भी दूर हो जायेंगे। जब तक शरीर अपने में रोग के जीवाणु को प्रवेश नहीं करने देता जब तक देह की जीवनी शक्ति क्षीण होकर रोग के जीवाणु को प्रवेश करने और बढ़ने नहीं देती, तब तक संसार के किसी रोग जीवाणु में शक्ति नहीं कि वह शरीर में रोग उत्पादन कर सके।
सामाजिक जीवन को विषय में भी यही बात है। जिस समय जातीय-शरीर दुर्बल हो जाता है उस समय जगत के राजनैतिक, सामाजिक, मानसिक और शिक्षा सम्बन्धी विषयों में सब प्रकार के रोगाणु प्रवेश करते है और रोग उत्पन्न करते है। उस समय एक मात्र कर्तव्य होगा लोगों में शक्ति का संचार, रक्त का शुद्ध करना, शरीर को तेज युक्त करना जिससे वह सब तरह के बाहरी विषों को देह में प्रवेश करने से रोके और भीतरी विष को निकाल दे। हमारा धर्म ही हमारे तेज, वीर्य, और यही क्यों जातीय-जीवन की भी मूल भित्ति है।”
स्वामी विवेकानन्द
अखण्ड ज्योति 1961 जुलाई
Recent Post
आत्मचिंतन के क्षण
आत्म निरीक्षण और विचार पद्धति का कार्य उसी प्रकार चलाना चाहिए जिस प्रकार साहूकार अपनी आय और व्यय का ठीक-ठीक खाता रखते हैं। हमारी दुर्बलताओं और कुचेष्टाओं का खर्च-खाता भी हो और विवेक सत्याचरण तथा आत...
आत्मचिंतन के क्षण
आत्म-निर्माण के कार्य में सत्संग निःसन्देह सहायक होता है किन्तु आज की परिस्थितियों में इस क्षेत्र में जो विडंबना फैली है, उससे लाभ के स्थान पर हानि अधिक है। सड़े-गले, औंधे-सीधे, रूढ़िवादी, भाग्यवाद...
आत्मचिंतन के क्षण
मनुष्य अपनी वरिष्ठता का कारण अपने वैभव- पुरुषार्थ, बुद्धिबल- धनबल को मानता है, जबकि यह मान्यता नितान्त मिथ्या है। व्यक्तित्व का निर्धारण तो अपना ही स्व- अन्त:करण करता है। निर्णय, निर्धारण यहाँ...
आत्मचिंतन के क्षण
ईश्वर उपासना मानव जीवन की अत्यन्त महत्वपूर्ण आवश्यकता है। आत्मिक स्तर को सुविकसित, सुरक्षित एवं व्यवस्थित रखने के लिए हमारी मनोभूमि में ईश्वर के लिए समुचित स्थान रहना चाहिए और यह तभी संभव है जब उसक...
आत्मचिंतन के क्षण
जो अपनी पैतृक सम्पत्ति को जान लेता है, अपने वंश के गुण, ऐश्वर्य, शक्ति,सामर्थ्य आदि से पूर्ण परिचित हो जाता है, वह उसी उच्च परम्परा के अनुसार कार्य करता है, वैसा ही शुभ व्यवहार करता ...
रचनात्मक आन्दोलनों के प्रति जन-जन में उत्साह जगाए
यह यज्ञभाव को जनजीवन में उतारने का चुनौतीपूर्ण समय है
विगत आश्विन नवरात्र के बाद से अब तक का समय विचार क्रान्ति ...
मनुष्य अनन्त शक्तियों का भाण्डागार है
मनुष्य अनन्त शक्तियों का भाण्डागार है। ये शक्तियाँ ही जीवन के उत्कर्ष का आधार हैं। शारीरिक, मानसिक, आत्मिक क्षमताओं का विकास, सफलता, सिद्धि, सुख और आनन्द की प्राप्ति सब इन्हीं आत्मशक्तियों के जागरण...
आत्मचिंतन के क्षण
जीवन का लक्ष्य खाओ पीओ मौज करो के अतिरिक्त कुछ और ही रहा होगा यदि हमने अपना अवतरण ईश्वर के सहायक सहयोगी के रूप में उसकी सृष्टि को सुन्दर समुन्नत बनाने के लिए हुआ अनुभव किया होता पर किया क्या जाय बु...
आत्मचिंतन के क्षण
एकाँगी उपासना का क्षेत्र विकसित कर अपना अहंकार बढ़ाने वाले व्यक्ति , ईश्वर के सच्चे भक्त नहीं कहे जा सकते। परमात्मा सर्व न्यायकारी है। वह, ऐसे भक्त को जो अपना सुख, अपना ही स्वार्थ सिद्ध करना च...
आत्मचिंतन के क्षण
किसी एक समुदाय के विचार किसी दूसरे समुदाय के विरुद्ध हो सकते हैं। किसी एक वर्ग का आहार -विहार दूसरे वर्ग के विपरीत पड़ सकता है। एक की भावनायें, मान्यतायें आदि दूसरे से टकरा सकती हैं। इसी विविधता, व...