आत्मचिंतन के क्षण
जीवन को प्रगतिशील दिशा देने वाली प्रतिभा को सुविकसित करने हेतु स्वतः स्वर्णिम सूत्र-
(1) मस्तिष्क से असफल होने के विचारों को निकाल फेंके और अपनी अन्तर्निहित क्षमताओं को समझें।
(2) स्व-सहानुभूति को पृथक करके अपने दोष दुर्गुणों अथवा दुर्बलताओं को निरीक्षण-परिक्षण करें।
(3) अपने ही स्वार्थ के विषय में सोच-विचार बन्द करें, दूसरों की सेवा-सहायता को भी सोचें और कार्य रूप में परिणत करें।
(4) ईश्वर-प्रदत्त इच्छा शक्ति का सही समुचित प्रयोग करें। उसकी दिशा धारा को व्यर्थ-निरर्थक न बहने दें।
(5) जीवन लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए ही जीवनचर्या का निर्धारण करें।
(6) मानसिक ऊर्जा को नियंत्रित करके उपयोगी दिशा में नियोजित करें। चिन्तन की दिशा को सदैव सृजनात्मक बनाए रखें।
(7) जीवन के प्रत्येक दिन सुबह और शाम उस परब्रह्म की समर्थसत्ता के साथ संपर्क-
(8) सान्निध्य बिठाने का अभ्यास किया जाय, जो असंभव दिखने वाले कार्य को भी संभव बना सकने की शक्ति प्रदान करती है।
(9) ये वे महत्वपूर्ण सूत्र हैं जिनका अवलम्बन लेकर हर कोई अपनी प्रतिभा को कुण्ठित होने से बचा कर स्वयं को प्रगति के परम शिखर तक पहुँचा सकता है। प्रतिभा ही तो सफलता का बीज है।
~पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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