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Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar, and Sardar Patel University, Balaghat, have come together in a momentous Memorandum of Understanding.
Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar, and Sardar Patel University, Balaghat, have come together in a momentous Memorandum of Understanding. This partnership, spearheaded by the Honorable Chancellor Er. Diwakar Singh of Sardar Patel University and Honarable Pro Vice-Chancellor Dr. Chinmay Pandya, Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, signifies a landmark collaboration dedicated to fostering scientific, technological, and educational cooperation.
Together, we look forward to paving the way for innovation and knowledge exchange that will benefit both institutions and beyond.
...First Secretary at the Ghana High Commission His Excellency Mr. Conrad Nana Kojo Asiedu@ shantikunj and DSVV
With immense joy and reverence, we extend our heartfelt gratitude to His Excellency Mr. Conrad Nana Kojo Asiedu, First Secretary at the Ghana High Commission, for gracing us with his esteemed presence. It was an honor beyond measure to host such a distinguished guest.
During his visit, Mr. Asiedu was warmly welcomed by our Honorable Pro Vice-Chancellor, Dr. Chinmay Pandya, who graciously shared the profound essence of Indian sankriti and the significance of the Gayatri mantra.
Wandering through the sacred grounds of our University and experiencing the serenity of Shantikunj, Haridwar, Mr. Asiedu immersed himself in the spiritual aura that envelops our institution. Engaging...
International workshop @ Dev Sanskriti Vishwavidyalaya, Haridwar
Memorandum of Understanding (MOU) facilitated by Barbara Flores, Divine Values School (DVS), Centro Latinoamericano de Estudios Védicos (CLEV), and Dr. Chinmay Pandya, Pro Vice Chancellor, Dev Sanskriti Vishwavidyalaya.
Today marked a momentous occasion as we bid farewell to our esteemed guests from Divine Values School, Ecuador, at the valedictory session of our International Workshop on Ayurveda!
Under the gracious patronage of His Excellency Mr. Fernando Bucheli, the Honorable Ecuadorian Ambassador, and the insightful guidance of our Respected Pro Vice-Chancellor, Dr. Chinmay Pandya, these past days have been filled with profound exploratio...
देव संस्कृति विश्वविद्यालय प्रति कुलपति आद. डॉ. चिन्मय पंड्या जी विदेश प्रवास के क्रम में ब्रिटेन पहुंचे।
देव संस्कृति विश्वविद्यालय प्रति कुलपति आद. डॉ. चिन्मय पंड्या जी विदेश प्रवास के क्रम में ब्रिटेन पहुंचे। आयुर्वेद की दुर्लभ विधा के पुनर्जागरण एवं प्रतिष्ठापना के लिए प्रयासरत देव संस्कृति विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक रीति से संभावित शोध को आरंभ करने के संबंध में आद. डॉ. पंड्या की ब्रिटेन मेडिकल एसोसिएशन के प्रतिष्ठित डॉ. विल्मोट से विस्तृत चर्चा संपन्न हुई।
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देव संस्कृति विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों की सकारात्मक, सृजनात्मक एवं रचनात्मक अनुभतियों की अभिव्यक्ति का आयोजन: अभ्युदय 2024
अभ्युदय 2024: देव संस्कृति विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों की सकारात्मक, सृजनात्मक एवं रचनात्मक अनुभतियों की अभिव्यक्ति का आयोजन विद्यार्थियों द्वारा विद्यार्थियों हेतु।
विगत वर्ष भर में लगभग २००+ आयोजनों एवं गतिविधियों की प्रस्तुति। कार्यक्रम के शुभ अवसर पर उपस्थित विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति, कुलसचिव, संकायाध्यक्ष समेत आचार्यगणों ने विद्यार्थियों के पुरुषार्थ की सराहना की।
...आत्मचिंतन के क्षण
आत्म निरीक्षण और विचार पद्धति का कार्य उसी प्रकार चलाना चाहिए जिस प्रकार साहूकार अपनी आय और व्यय का ठीक-ठीक खाता रखते हैं। हमारी दुर्बलताओं और कुचेष्टाओं का खर्च-खाता भी हो और विवेक सत्याचरण तथा आत्म परिष्कार का जमा-खाता भी होना चाहिये। बचत का ठीक-ठीक अनुमान तभी लग सकता है। यदि अपनी जमा अधिक है तो आप सुसंस्कार बढ़ा रहे है। खर्च की अधिकता आप के संस्कारों का दीवालियापन प्रकट करती है। संस्कारों रुची धन एकत्रित करने के लिये सदाचरण की पूँजी बढ़ाना नितान्त आवश्यक है।
जिसमें पूरी शक्ति से काम करने की दृढ़ लगन है उसके मार्ग में चाहे कितना प्रबल विरोध का प्रवाह आये, वह उसकी गति को अवरुद्ध नहीं कर सकता, पीछे नहीं हटा सकता। आप आगे बढ़ने का प्रयत्न जितनी दृढ़ता के साथ करेंगे। सफलता उतनी ...
आत्मचिंतन के क्षण
आत्म-निर्माण के कार्य में सत्संग निःसन्देह सहायक होता है किन्तु आज की परिस्थितियों में इस क्षेत्र में जो विडंबना फैली है, उससे लाभ के स्थान पर हानि अधिक है। सड़े-गले, औंधे-सीधे, रूढ़िवादी, भाग्यवादी, पलायनवादी विचार इन सत्संगों में मिलते हैं। फालतू लोग अपना समुदाय बढ़ाने के लिए सस्ते नुस्खे बताते रहते हैं या किसी देवी देवता के कौतूहल भरे चरित्र सुनाकर उनके सुनने मात्र से स्वर्ग, मुक्ति आदि मिलने की आशा बँधाते रहते हैं। ऐसा विडम्बनापूर्ण सत्संग किसी का क्या हित साधेगा?
आज सत्संग की आवश्यकता स्वाध्याय से ही पूरी करनी पड़ती है। जहाँ जीवन को प्रेरणाप्रद मार्गदर्शन कर सकने की दृष्टि से उपयुक्त सत्संग मिल सके, वहाँ जाने और लाभ उठाने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए। पर जहाँ व्यर्थ की वि...
आत्मचिंतन के क्षण
मनुष्य अपनी वरिष्ठता का कारण अपने वैभव- पुरुषार्थ, बुद्धिबल- धनबल को मानता है, जबकि यह मान्यता नितान्त मिथ्या है। व्यक्तित्व का निर्धारण तो अपना ही स्व- अन्त:करण करता है। निर्णय, निर्धारण यहाँ से होते हैं। मन और शरीर स्वामिभक्त सेवक की तरह अन्त:करण की आकांशा पूरी करने के लिए तत्परता और स्फूर्ति से लगे रस्ते हैं। उन्नति- अवनति का भाग्य- विधान यही लिखा जाता है।
श्रद्धा अर्थात् सद्भाव, प्रज्ञा अर्थात् सद्ज्ञान एवं निष्ठा अर्थात् सत्कर्म। तीनों का समन्वित स्वरूप ही व्यक्तित्व का निर्माण करता है। श्रद्धा अन्तःकरण से प्रस्फुटित होने वाले आदर्शो के प्रति प्रेम है। इस गंगोत्री से निःसृत होने वाली पवित्र धारा ही सद्ज्ञान और सत्कर्म से मिलकर पतितपावनी गंगा का स्वरुप ले लेती ह...
आत्मचिंतन के क्षण
ईश्वर उपासना मानव जीवन की अत्यन्त महत्वपूर्ण आवश्यकता है। आत्मिक स्तर को सुविकसित, सुरक्षित एवं व्यवस्थित रखने के लिए हमारी मनोभूमि में ईश्वर के लिए समुचित स्थान रहना चाहिए और यह तभी संभव है जब उसका अधिक चिन्तन, मनन, अधिक सामीप्य, सान्निध्य प्राप्त करते रहा जाय। भोजन के बिना शरीर का काम नहीं चल सकता, साँस लिए बिना रक्ताभिषरण की प्रक्रिया बिगड़ जाती है। इसी प्रकार ईश्वर की उपेक्षा करने के उपरान्त आन्तरिक स्तर भी नीरस, चिन्ताग्रस्त, अनिश्चित, अनैतिक, अव्यवस्थित एवं आशंकित बना रहता है।
भौतिक सुख- साधन, बाहुबल और बुद्धिबल के आधार पर कमाये जा सकते हैं पर गुण-कर्म-स्वभाव की उत्कृष्टता पर निर्धारित समस्त विभूतियाँ हमारे आन्तरिक स्तर पर ही निर्भर रहती हैं। इस स्तर के सुदृढ़...
आत्मचिंतन के क्षण
जो अपनी पैतृक सम्पत्ति को जान लेता है, अपने वंश के गुण, ऐश्वर्य, शक्ति,सामर्थ्य आदि से पूर्ण परिचित हो जाता है, वह उसी उच्च परम्परा के अनुसार कार्य करता है, वैसा ही शुभ व्यवहार करता है, उसी उत्कृष्ट भूमि में निवास करता है। जब तक किसी को अपने शील गुण और वंश का ज्ञान नहीं होता, तभी तक वह दीन स्थिति में रहता है।
ईश्वर हमको पिता होने के कारण कभी नहीं भूलता, हम ही उनको मूढ़तावश भूल बैठते हैं, यही दुःख का कारण है। वह पानी जैसी चीजों में रस की तरह है, सूर्य और चन्द्र में प्रकाश है, वेदों में ॐ है, आकाश में विस्तार है, मनुष्य में उनकी हिम्मत है, जमीन में खुशबू की तरह है, आग में उसकी दमक है और तपस्वियों में उनका तप है।
गीता के शब्दों में, “जो मुझे (ईश...