Magazine - Year 1941 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
धर्म का परिपालन
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(ले0-श्री त्रिलोकनाथ शुक्ल, भेभौरा)
धर्म पालन करने के मार्ग में अनेक प्रकार की बाधायें उपस्थित होती हैं, जैसे मन की निर्बलता चित्त की चंचलता, आलस्य, स्वार्थपरता तथा स्वार्थ पूर्ण और बुरे विचार इत्यादि। मनुष्य यदि इन्हीं द्विविधाओं में पड़ा रहा, तो उसे स्वार्थपरता निश्चय ही आ घेरेगी और चरित्र घृणा के योग्य हो जाएगा, इसलिये जिस कार्य के करने की आत्मा प्रेरणा करे उसे बिना अपना स्वार्थ सोचे झटपट कर डालना चाहिये, इसी प्रकार जब स्वार्थ रहित परोपकार करने की आदत पड़ जाएगी, तो धर्म पालन करने में किसी प्रकार की बाधा न पड़ेगी । प्राचीन काल के जितने बड़े-बड़े महात्मा और धर्मात्मा हो गए हैं और जिन्होंने संसार के उपकार में अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया है, जिस कारण आज भी आदर और प्रेम से उनका नाम लिया जा रहा है, उन महापुरुषों ने अपने कर्तव्य को सब से श्रेष्ठ मानकर न्याय का बर्ताव किया है।
सत्यता और कर्तव्य पालन करने में बड़ा घना सम्बंध है, जो व्यक्ति अपना कर्तव्य पालन करता है, वह अपने कर्मों और वचनों से सत्यता का बर्ताव भी रखता है। सत्यता ही एक ऐसा अमूल्य रत्न है, जिसके सहारे मनुष्य प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त कर सकता है। संसार में असत्य से कोई काम अधिक समय तक नहीं चल सकता, इसलिये ही सत्य को सब से ऊँचा स्थान देना उचित है।
जो असत्य भाषण में अपनी चतुराई समझते हैं और झूठ बोल कर अपना स्वार्थ साधन करते हुए प्रसन्न होते हैं। ऐसे लोग ही समाज को नष्ट कर के दुःख और संतोष के फैलाने में मुख्य कारण होते हैं। हमारा परम कर्तव्य होना चाहिये कि सत्य को ग्रहण करते हुए कभी झूठ न बोलने की प्रतिज्ञा कर लें। चाहे उससे कितनी ही हानि क्यों न हो । यह कदापि न सोचना चाहिये कि मेरा पड़ोसी अनुचित कर्म करके इस वैभव को प्राप्त हुआ है।
उचित कर्म करने और सत्य बोलने से ही हमारा समाज में सम्मान हो सकेगा और आनन्द पूर्वक अपना जीवन भी बिता सकेंगे, क्योंकि उचित कर्म करने वाले को सभी चाहते हैं और अनुचित कर्म करने वाले से सभी घृणा करते हैं। उचित का मूल सत्य है, यदि हम सत्य को अपना धर्म मान लेंगे, तो धर्म पालन करने में कुछ भी कष्ट न होगा और अपने मन में सदा सुखी और सन्तुष्ट बने रहेंगे।