Magazine - Year 1941 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
प्रेम का अमृत चखो।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
क्या तुम जानते हो कि सत्यशिव सुन्दर और मुक्त आत्मा इस हड्डियों की ठठरी में बद्ध होने के लिए क्यों रजामंद हुआ? सुनो, वह प्रेम का अमृत चखने के लिए इस मल-मूत्र की गठरी में बँधा है। उसी का जीवन धन्य है, वही सौभाग्यशाली है, जो प्रेम का आस्वादन करता है, उसने मनुष्य जन्म धारण करने का सच्चा फल पाया, जिसे परमेश्वर ने प्रेम का अलौकिक उपहार प्रदान किया है। प्रेम की बूँद हृदय में पड़ कर कैसे अमूल्य मोती उपजाती है, इसे कुँजड़े नहीं जौहरी ही जान सकते हैं। प्रेमी अपने लिए नहीं जीता, वह दधीचि के समान अपनी हड्डियाँ भी दूसरों को दे देता है। क्यों? इसलिए कि दूसरों को प्यार करता है। वे मूर्ख हैं, जो कहते हैं कि सज्जनों के साथ प्रेम और दुष्टों के साथ द्वेष करना चाहिए। वे नहीं जानते कि द्वेष का हथियार इतना पैना हीं है जितना प्रेम। बिना हड्डी के जीवों का अस्तित्व अस्थिर है, इसी प्रकार प्रेम रहित मनुष्य का जीवन डाँवा डोल है। आँधी में उड़ने वाली रुई की रतरह वह परिस्थितियों के वश में होकर उधर से इधर नाचता फिरता है और अन्त में नष्ट हो जाता है। सौंदर्य बाहर कहाँ ढूँढ़ते फिर रहे हो? अपने हृदय को टटोलो जरा देखो तो सही उसमें कितना सुन्दर प्रेम का रस भरा है, अन्यथा मनुष्य क्या है? मुट्ठी भर हड्डियों का ढाँचा मात्र है।
भाग 2 सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य अंक 9