Magazine - Year 1942 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
युद्ध से आत्म-रक्षा का उपाय
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(मनुष्यों को कुरान शरीफ का संदेश)
व मा ऽकाऽना रब्बुका लियुह्लि कल् कुरा वि जुल्मिब्व अहलुहा ऽमुस्लहू न्॥
सूरये हूद मं. 3 पारा 12 रु. 10
अर्थ-’और तेरा पालन कर्ता ऐसा नहीं है कि नगरियों को बल पूर्वक नष्ट करे (ऐसी अवस्था में जब कि) लोग वहाँ के नेक हों।’
महायुद्ध की विभीषिका हमारे चारों ओर जीभ लपलपा रही हैं, ऐसे समय में स्वभावतः पाठक के हृदयों में अनिष्ट की आशंका काँपती होगी। ऐसे समयों के लिए कुरान की उपरोक्त आयत बहुत ही धैर्य बंधाने वाली है। उसका आदेश है कि यदि हम नेक बनें और अपनी आत्मा को पवित्र बना लें, तो निस्संदेह अपनी नगरियों को बलपूर्वक नष्ट होने से बचा सकते हैं, इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। कुम्हार के जलते अवे में बिल्ली के बच्चों को जीवित रखने वाला हमें भी बचा सकता है। सीता जी अग्नि की लपटों में से बिना किसी प्रकार की क्षति के बाहर आती हैं, तो यह भी संभव है कि सत्य के उपासक व्यक्ति इस होली जैसे दावानल में से प्रह्लाद की तरह हंसते हुए निकले। ईश्वर हमारी रक्षा कर सकता है, वह पालनकर्ता हमारी नगरियों को नष्ट न होने देगा, बशर्ते लोग नेक बनें।
विपत्ति पास है और संकट निकट है, फिर भी धैर्य धारण करना चाहिये। क्योंकि परीक्षित ने सात दिन का अवसर पाकर बहुत कुछ कर लिया था, गणिका और अजामिल को तो कुछ क्षण ही प्राप्त हुए थे। हम लोग पापी हों, पिछला जीवन कितना ही बुरा रहा हो पर आज ही हमें प्रभु की शरण में जाना चाहिये, पिछले बुरे कर्मों के लिए क्षमा माँगते हुए आगे से ईश्वराराधन, आत्मशुद्धि, पवित्र आचरण एवं सत्य, प्रेम, न्याय, की उपासना में प्रवृत्त हो जाना चाहिए। सच्चे हृदय से शरण में आये हुए जनों का भगवान तिरस्कार नहीं करते और उनके पिछले पापों पर ध्यान न देकर तुरन्त ही गोद में उठा लेते हैं। ऐसे निष्काम शरणागतों की रक्षा और योगक्षेम की जिम्मेदारी उन प्रभु के ही कंधों पर ही पड़ जाती है।
प्रभु नहीं चाहते कि हमारी सुरम्य नगरियाँ बलपूर्वक नष्ट हो, अल्लाह को यह पसंद नहीं है कि उसका यह गुलज़ार चमन वीरान हो जाय। परन्तु जब मनुष्य अपनी मर्यादाओं को छोड़कर पापों में प्रवृत्त होता है और शैतान की उपासना करता है, तो उसका प्रतिफल मिलना आवश्यक हो जाता है। बढ़े हुए पापों को नष्ट करने के लिए जो निष्ठुर प्रतिकार करना पड़ता है, उसमें सदोषों के साथ निर्दोष भी पिसते हैं। इस विनाशलीला से बचने के लिए हमें उसी की छाया में अपना डेरा डालना होगा जो इस विभीषिका से हम सब को बचाने की पूरी-पूरी क्षमता रखता है और जिसकी दृष्टि मात्र से विपत्तियों के बड़े-बड़े बादल सहज में ही उड़ जाते हैं।
अखण्ड ज्योति के पाठक युद्ध या विपत्ति के बुरे से बुरे समाचार सुनकर भी घबरावें नहीं वरन् धैर्य धारण करें और दृढ़तापूर्वक, आज ही इस क्षण ही भगवान सत्यनारायण की शरण में अपने को अर्पण कर दें। पाप भावनाओं को छोड़कर अपने हृदय को पवित्र बना लें। नेक बनने का निरन्तर प्रयत्न करते रहें। इस प्रकार हमारी नेकी, हमारे शरीर, कुटुम्ब, परिवार, नगर तथा देश की रक्षा करेगी और अल्लाह बलपूर्वक हमें नष्ट न होने देगा।