Magazine - Year 1943 - Version 2
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Language: HINDI
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धर्म स्वीकार करने से पहले
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(श्री स्वामी रामतीर्थ)
किसी धर्म को इसलिए अंगीकार मत करो कि वह सब से प्राचीन है। इसका सब से प्राचीन होना इस के सच्चे होने को कोई प्रमाण नहीं है। कभी-कभी पुराने से पुराने घरों को गिराना उचित होता है और पुराने वस्त्र अवश्य बदलने पड़ते हैं। यदि कोई नये-से-नया मार्ग या रीति विवेक की कसौटी पर खरी उतरे, तो वह उस ताजा गुलाब के फूल के सदृश उत्तम है जिस पर कि चमकती हुई ओस के कण शोभायमान हो रहे हों।
किसी धर्म को इसलिए स्वीकार मत करो, कि यह सब से नया है। सब से नई चीजें समय की कसौटी से न परखी जाने के कारण सर्वथा सर्व-श्रेष्ठ नहीं होती।
किसी धर्म को इस लिए मत स्वीकार करो कि उस पर विपुल जनसंख्या का विश्वास है, क्योंकि विपुल जनसंख्या का विश्वास तो वास्तव में शैतान अर्थात् अज्ञान के धर्म पर होता है। एक समय था कि जब विपुल जनसंख्या गुलामी की प्रथा को स्वीकार करती थी, परन्तु यह बात गुलामी की प्रथा के उचित होने का कोई प्रमाण नहीं हो सकता।
किसी धर्म पर इसलिये श्रद्धा मत करो कि उसे थोड़े से गिने-चुने लोगों ने माना हुआ है। कभी-कभी श्रवण जन-संख्या जो किसी धर्म को अंगीकार कर लेती है, (अज्ञान के) अन्धेरे में भ्राँत-बुद्धि होती है।
किसी वर्ग को इसलिये अंगीकार मत करो कि यह किसी त्यागी द्वारा अर्थात् ऐसे मनुष्य द्वारा प्राप्त हुआ है कि जिस ने सब कुछ त्यागा हुआ है, क्योंकि हमारी दृष्टि में कई ऐसे त्यागी आते हैं कि जिन्होंने सब कुछ त्यागा होता है, पर वे जानते कुछ भी नहीं हैं, और यथार्थ रूप से वे होते हैं।
किसी वर्ग को इसलिए अंगीकार मत करो कि वह युवराजों और भूपतियों द्वारा प्राप्त हुआ है। राजा लोगों में माया आध्यात्मिक धन का पूरा अभाव रहता है।
किस धर्म को इसलिये अंगीकार मत करो कि वह ऐसे मनुष्य का चलाया हुआ है कि जिसका चरित्र परम श्रेष्ठ है। अनेकशः परम श्रेष्ठ चरित्र के व्यक्ति खोए तत्व का निरूपण करने में असफल रहे हैं। हो सकता है कि किसी मनुष्य की पाचन शक्ति असाधारण रूप से प्रबल हो, तो भी उसे पाचन क्रिया का कुछ भी ज्ञान न हो। यह एक चित्रकार है जो कला चातुर्य का एक मनोहर, उत्कृष्ट और अत्युत्तम नमूना दिखलाता है, परन्तु वही चित्रकार सारे संसार भर में अत्यन्त कुरूप हो। ऐसे भी लोग हैं जो अत्यन्त कुरूप हैं पर तो भी ये सुन्दर तत्वों का निरूपण करते हैं। सुकरात इसी प्रकार का मनुष्य था।
किसी धर्म पर इस कारण श्रद्धा मत करो कि वह किसी बड़े प्रसिद्ध मनुष्य का चलाया हुआ है। सर आईजक न्यूटन एक बहुत प्रसिद्ध मनुष्य हुए हैं तो भी उसकी प्रकाश-सम्बन्धी निर्गम मीमाँसा (emissary theory of light) असत्य है।
जिस किसी चीज को स्वीकार करो या जिस किसी धर्म पर विश्वास करो, तो उसकी निजी श्रेष्ठता के कारण करो। उसकी स्वयं आप जाँच-पड़ताल करो। खूब छान-बीन करो।
अपनी स्वतन्त्रता को बुद्ध, ईसा मसीह, मोहम्मद या कृष्ण के हाथों न बेच डालो।
जब तक आप स्वयं अपने अन्तरतम के अन्धकार को दूर करने के लिये उद्यत नहीं होते, तब तक संसार में चाहे तीन सौ तेतीस अरब ईसा मसीह आ जायें, तो भी कोई भला नहीं हो सकता। दूसरों के आश्रय मत रहो।
सब धर्मों का लक्ष्य ‘अपने ऊपर से पड़ें को हटाना अर्थात् अपने आपका स्पष्ट निरूपण करना है।