Magazine - Year 1946 - Version 2
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Language: HINDI
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सब कुछ भगवान का है।
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(योगी अरविन्द घोष)
हमारे पास कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जिसे हम अपनी कह सकें, सब वस्तु भगवान की है, यह जीवन उसी के लिए है, हमारी वासना, हमारी कामना, हमारा मानवता, हमारा आदर्श, उचित-अनुचित, सम्भव-असम्भव जो कुछ ज्ञान है। उन सबको इसी भगवंत ज्ञान के अनुगामी करना होगा। हृदय की समस्त आशा आकाँक्षा एवं बुद्धि के सब विकारों को हटाना होगा धारणा करनी होगी कि यह जगत और हम अभिन्न हैं इस अनन्त कोटि ब्रह्माँड के भीतर सत् चित आनन्द स्थित है, यह सब उसी परब्रह्म के विकास हैं, वे ही इस विश्व पट पर ज्ञान, शक्ति और प्रेम की अनन्त लीला प्रगट करते और दिखलाते हैं। सभी प्रकार के भेद भावों को दूर प्रकट करते और दिखलाते हैं।
सभी प्रकार के भेदभावों को दूर करके उस विश्व शिल्पी के हाथ में अपने को खिलौने की तरह समर्पण करके निश्चिन्त होने से ही परम आनन्द मिल सकेगा। अहंकार इस उत्तम योग मार्ग का कंटक है। अहंकार दूर होने से भगवान की पूर्ण लीला हम लोगों के जीवन में कुँभ में अभिनीत होगी, पूर्ण ज्ञान, प्रेम, आनन्द और शान्ति से हमारा यह जीवन पूर्ण रूप से विकसित हो उठेगा और तभी हम दिव्य जीवन का उपयोग कर सकेंगे, क्योंकि तब हमारा जीवन भगवत् लीला का आधार स्वरूप बन जायगा। इस प्रकार आत्मोत्सर्ग यदि साधक अंशतः भी कर सकेंगे तो उनके कुसंस्कार की दुष्प्रवृत्तियाँ और बुरे कर्मों की ओर झुकाने वाली अन्धचेष्टा की वृत्तियाँ दूर हो जायेंगी।