
अपने चिकित्सक स्वयं बनिये
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अपने आपको सुधारना या बिगाड़ना तुम्हारे ही हाथ में है। तुम्हें रोग और व्याधि, शुभ या अशुभ फल अपने कर्मों के ही कारण मिलता है। यदि तुम दास बनना चाहोगे, तो दास बने रहोगे। यदि तुम अपने आपको स्वामी बनाओगे, तो स्वामी बन जाओगे।
अपने मनोविकारों को रोको। अन्तःकरण के भाव किस प्रकार के हैं, इसका पूरा-पूरा ध्यान रखो। बुरे विचार, घातक चिंता तथा उपद्रवी शोकजनक दुर्भावनाओं को समूल नाश कर दो। अन्तःकरण में उत्साही, प्रसन्न एवं स्फूर्तिदायक विचारों का तथा दिव्य भावनाओं का संचार कर दो। संसार के असाध्य रोगों का उपचार सद्विचार ही है। परमात्मा का विचार ही सब व्याधियों को दूर करने वाला है। लोग तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार करते हैं, यह जानने की आवश्यकता नहीं। तुम सद्विचार करो, परमात्मा में अटल श्रद्धा और विश्वास रखो। इससे तुम्हें ज्ञात होगा कि व्याधियों का तुमसे जो सम्बन्ध था वह न्यून होता चला जा रहा है। ज्यों-ज्यों तुम्हारे सद्विचारों का बल बढ़ता जायेगा, त्यों-त्यों व्याधियाँ स्वयं निर्मूल होती जायेगी।