Magazine - Year 1946 - Version 2
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Language: HINDI
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मानसिक विकास का अटल नियम
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(डा. दुर्गाशंकर जी नागर, उज्जैन)
जिस प्रकार के विचार हम नित्य किया करते हैं उन्हीं विचारों के अणुओं का मस्तिष्क में संग्रह होता रहता है। सारे दिन जो निठल्ले बैठे रह कर गपशप लगाया करते हैं, उनके मस्तिष्क में फालतू विचारों का कचरा ही इकट्ठा हुआ करता है और अन्य सद्गुणों के अणु शुष्क हो जाते हैं। जो व्यक्ति दुष्ट दुर्व्यसनों अथवा दुर्गुणों में फँसे रहते हैं, उनके मस्तिष्क में उसी प्रकार के अणुओं की वृद्धि होती रहती है।
मस्तिष्क का उपयोग उचित और सत्कार्यों में करने से, उसे आलसी निकम्मा न छोड़ने से मानसिक शक्ति का विकास होता है। सामान्य मनुष्य अपने सारे मस्तिष्क का उपयोग नहीं करता, केवल मस्तिष्क के अर्द्ध भाग को ही उपयोग में लाता है और मस्तिष्क के आधे भाग के अणु निष्क्रिय पड़े रहते हैं। बिना अध्ययन, सूक्ष्म विचार के मस्तिष्क संकुचित हो जाता है। दूसरों के आदेश व सम्मति पर जो मनुष्य अपना जीवन संचालन करते हैं उनकी बुद्धि इतनी सुस्त व मन्द हो जाती है कि स्वतः विचार नहीं कर सकते। अपने विचार करने का कार्य दूसरों से करवाते हैं किंचित मात्र भी अपने विचार रूपी यन्त्र का उपयोग नहीं करते। फलतः उनके मस्तिष्क संकीर्ण हो जाते हैं और उनका सारा जीवन दासता के बन्धन में ही व्यतीत होता है।
मस्तिष्क को उत्तम या निकृष्ट बनाना तुम्हारे हाथ में ही है। सोचो, विचारो तथा मनन करो। क्रोध करने से तुम्हारे मस्तिष्क में क्रोध करने वाले अणुओं की संख्या की वृद्धि होती है। चिंता, शोक, भय व खेद करने से इन्हीं, कुविचारों के अणुओं का तुम पोषण करते हो और मस्तिष्क को निर्बल बनाते हो। भूतकाल की दुर्घटनाओं या दुखद प्रसंग को स्मरण कर, खेद या शोक के वशीभूत होकर मस्तिष्क को निर्बल मत बनाओ। शरीर में बल होते हुए भी उसका उपयोग न करने से, बिना उपयोग से बल क्षीण होता है। इसी प्रकार बिना विचार के मस्तिष्क भी क्षीण होता है। नवीन विचारों का मन में स्वागत करने से मस्तिष्क का मानस व्यापार व्यापक होता है तथा मन प्रफुल्लित हो जाता है, जीवन व बल की वृद्धि होती है, मन व बुद्धि तेजस्वी बनते हैं। जो विचार हमारे मस्तिष्क में हैं, वे ही हमारे जीवन को बनाने वाले हैं। जिस कला के विचार तथा अभ्यास करोगे, उसी में निपुणता मिलेगी। मस्तिष्क के जिस भाग का उपयोग करोगे, उसी की शक्तियों का विकास होगा।