Magazine - Year 1946 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
पहले अपनी सेवा और सहायता करो
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
इस संसार में अनेक प्रकार के पुण्य और परमार्थ हैं। शास्त्रों में नाना प्रकार के धर्म अनुष्ठानों का सविस्तार विधि विधान है और उनके सुविस्तृत महात्म्यों का वर्णन है। दूसरों की सेवा सहायता करना पुण्य कार्य है, इससे कीर्ति आत्म संतोष तथा सद्गति की प्राप्ति होती है।
पर इन सबसे बढ़ कर भी एक पुण्य परमार्थ है और वह है-आत्म निर्माण। अपने दुर्गुणों को, कुविचारों को, कुसंस्कारों को, ईर्ष्या, तृष्णा, क्रोध, डाह, क्षोभ, चिन्ता, भय एवं वासनाओं को विवेक की सहायता से आत्मज्ञान की अग्नि में जला देना इतना बड़ा यज्ञ है जिसकी तुलना सशस्त्र अश्वमेधों से नहीं हो सकती। अपने अज्ञान को दूर करके मन मन्दिर में ज्ञान का दीपक जलाना भगवान की सच्ची पूजा है। अपनी मानसिक तुच्छता, दीनता, हीनता, दासता, को हटाकर निर्भयता, सत्यता, पवित्रता एवं प्रसन्नता की आत्मिक प्रवृत्तियाँ बढ़ाना करोड़ मन सोना दान करने की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण है।
हर मनुष्य अपना-अपना आत्म निर्माण करे तो यह पृथ्वी स्वर्ग बन सकती है। फिर मनुष्यों को स्वर्ग जाने की इच्छा करने की नहीं, वरन् देवताओं के पृथ्वी पर आने की आवश्यकता अनुभव होगी। दूसरों की सेवा सहायता करना पुण्य है, पर अपनी सेवा सहायता करना इससे भी बड़ा पुण्य है। अपनी शारीरिक मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक स्थिति को ऊँचा उठाना, अपने को एक आदर्श नागरिक बनाना इतना बड़ा धर्म कार्य है जिसकी तुलना अन्य किसी भी पुण्य परमार्थ से नहीं हो सकती।