Magazine - Year 1947 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
कहीं आप भी तो शेख चिल्ली नहीं हैं?
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
एक शेख चिल्ली ने मधुर कल्पनाओं में मस्त होकर अपने सिर पर रखे हुए तेल के घड़े को फोड़ दिया था, और मजूरी के पैसे मिलना तो दूर उलटा लात घूँसों से पिटा था। वह शेख चिल्ली निस्संदेह बेवकूफ था और उसकी बेवकूफी की हँसी उड़ाई जाती है।
हम देखते हैं कि हम सब भी प्रकारान्तर से शेख चिल्ली का पार्ट अदा कर रहे हैं। कमाने के लिए घुड़दौड़ लगाते हुए हम यह भूल नहीं देखते कि साथ ही कितना गंवाया जा रहा है। भौतिक सम्पदाओं के कमाने में, संग्रह में, भोग में, हमारा मन ललचाता रहता है और उसकी पूर्ति के लिए सोते जागते, मन, कर्म, वचन, से लगे रहते हैं। प्रयत्न से वस्तुओं की जितनी मात्रा मिलती है, तृष्णा उससे भी बहुत आगे बढ़ जाती है फलस्वरूप सदा अभाव ही बना रहता है, कंगाली कभी दूर ही नहीं हो पाती और सम्पदाओं के सुख से संतुष्ट होने का अवसर ही नहीं आ पाता। इस भूसी कूटने में ही जीवन की समाप्ति की घंटी बज जाती है। सुरदुर्लभ मानव जीवन को निरर्थक मृगतृष्णा में गँवाकर अन्त में घाटे के साथ लौटना पड़ता है। पिछली कमाई गुम जाती है और पाप की गठरी सिर पर होती है। इस दुहरे घाटे के साथ हम अपने घर वापिस लौटते हैं।
शेख चिल्ली ने तेल की मजूरी जैसे छोटे मामले में प्रमाद किया और सभ्य लोगों की दृष्टि में अपने को उपहासास्पद बनाया। पर हम लोग क्या हैं? जो मनुष्य जीवन जैसे महत्वपूर्ण मामले में इतना भयंकर प्रमाद बरत रहे हैं। हमारी बेवकूफी पर कितनी हँसी होगी? इसे हम लोग क्यों नहीं सोचते?