Magazine - Year 1948 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
कुटुम्ब के प्रति अपने कर्तव्य को न भूलिए।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
कुटुम्ब हृदय की जन्मभूमि है। कुटुम्ब एक देवता है जो सहानुभूति, सम्वेदना, मधुरता और प्रेम का गुप्त प्रभाव अपने में रखता है। जिस देवता के प्रभाव से हमें अपने कर्तव्य बहुत या भारी और अपने कष्ट तीक्ष्ण और कटु मालूम नहीं होते। मनुष्य को इस पृथ्वी पर जो सच्चा और अकृत्रिम सुख और दुःख से असंयुक्त सुख प्राप्त हो सकता है, वह कुटुम्ब का सुख है।
कुटुम्ब की यह देवता स्त्री है, सम्बन्ध में वह चाहे माता हो या पत्नी या भगिनी। निःसंदेह स्त्री जीवन का आधार यह प्रेम की यह मीठी चासनी है जो जीवन के रस से सींची गई है और उसको सुस्वादु बनाती है। यह उस अलौकिक प्रेम का, जो ईश्वरीय प्रेम कहलाता है, संसार में एक मूर्तिमान चित्र खींचा गया है। स्त्री जाति को परमात्मा ने उन स्निग्ध तत्वों से बनाया है जिनमें चिन्ता की जल धारा और शोक का प्रलेप ठहर ही नहीं सकते। इसके अतिरिक्त स्त्री जाति के ही प्रताप से हम अपना भविष्य बनाते हैं। बालक प्रेम का पहला पाठ अपनी माता के चुम्बन से सीखता है।
कुटुम्ब की कल्पना मानुषी कल्पना नहीं है, किन्तु ईश्वरीय रचना है और कोई मानुषी शक्ति इसको मिटा नहीं सकती। जन्म भूमि के समान किन्तु उससे भी बढ़कर कुटुम्ब हमारी सत्ता का एक मुख्य अंग है।
यदि तुम कुटुम्ब को स्वर्ग बनाना चाहते हो तो इसकी अधिष्ठात्री देवी स्त्री जाति का आदर करो और उनको गृहदेवी समझ कर पूजा करो। उनको केवल अपने बनावटी सुख और तुच्छ वासना पूर्ति का उपकरण न समझो, किन्तु वे एक देवी शक्ति हैं, जो ईश्वर की सृष्टि को सुन्दर और मनोरम बनाने वाली और तुम्हारे मस्तिष्क व हृदय को बल पहुँचाने वाली हैं। स्त्रियों पर प्रभुता रखने का यदि कोई कुसंस्कार तुम्हारे मस्तिष्क में समाया हुआ है, तो उसे निकाल दो।
हम पुरुष स्त्रियों के साथ बड़ा अनुचित और उद्दंड बर्ताव करते आये हैं और इस समय तक कर रहे हैं। हमें इस अपराध की छाया से भी दूर रहना चाहिए क्यों कि ईश्वर के समीप कोई अपराध इससे अधिक उग्र नहीं है, यह मानव जाति के एक कुटुम्ब को दो भागों में विभक्त करके एक भाग पर दूसरे की अधीनता स्थापित करता है।
पिता ईश्वर की दृष्टि में स्त्री पुरुष का कोई भेद नहीं है, इन दोनों से केवल मनुष्य की सत्ता का परिचय मिलता है जिस प्रकार एक वृक्ष मूल से दो शाखायें पृथक पृथक फूटती हैं, उसी प्रकार एक मनुष्य जाति की जड़ से स्त्री और पुरुष की दो शाखायें उत्पन्न हुई हैं। किसी प्रकार की विषमता इनमें नहीं है। रुचि और काम में कुछ भेद है सो यह तो पुरुषों में भी प्रायः देखा जाता है।
स्त्री को केवल अपने सुख और दुःख का साथी न समझो, किन्तु अपने मानसिक भावों हार्दिक अभिलाषाओं, अपने स्वाध्याय गृहस्थ यज्ञ और अपने उस पुरुषार्थ में भी, जो अपनी सामाजिक उन्नति के लिए तुम करते हो, उसको अपने बराबर की साथिनी और सहचरी समझो। उसको न केवल गृहस्थ जीवन व सामाजिक जीवन में किन्तु जातीय जीवन में भी अपनी सदा सहचरी और विश्वस्त मन्त्रिणी समझो। तुम दोनों मनुष्य रूप पक्षी के दो पर बन जाओ जिनके द्वारा आत्मा उस निर्दिष्ट स्थान पर पहुँच सके, जो हमारा भाग्य या प्रारब्ध कहा जाता है।
ईश्वर ने जो सन्तान तुमको दी है, उनसे प्यार करो, पर वह तुम्हारा प्रेम सच्चा और गहरा होना चाहिए। वह अनुचित लाड़ या झूठा स्नेह न हो जो तुम्हारी स्वार्थ परता और मूर्खता से उत्पन्न होता है और उनके जीवन को नष्ट करता है। तुम कभी इस बात को न भूलो कि तुम्हारे इन वर्तमान सन्तानों के रूप में इसलिए इनके प्रति अपने उस कर्तव्य का जो ईश्वर ने तुमको सौंपा है और जिसके तुम सबसे अधिक उत्तरदाता हो, पालन करो। तुम अपनी सन्तानों को केवल जीवन के सुख और इच्छापूर्ति की शिक्षा न दो। किन्तु उनको धार्मिक जीवन सदाचार और कर्तव्य पालन की भी शिक्षा दो इस स्वार्थमय समय में ऐसे माता पिता विशेषतः धनवानों में बिरले ही मिलेंगे, जो सन्तान की शिक्षा के भार को, जो उनके ऊपर हैं, ठीक ठीक परिणाम में तौल सकें।
तुम जैसे हो वैसी ही तुम्हारी सन्तानें भी होंगी, वे उतनी ही अच्छी या बुरी होंगी, जितने तुम आप अच्छे या बुरे हों। जब कि तुम अपने भाइयों के प्रति दयालु और उदार नहीं हो, के उनसे क्या आशा कर सकते हो कि वे उनके प्रति प्रेम और बुरी इच्छाओं को रोक सकेंगे, जब कि रात दिन तुमको विषय लोलुप और कामुक देखते हैं। वे किस प्रकार अपनी प्राकृतिक पवित्रता को स्थिर रख सकेंगे जबकि तुम अपने अश्लील और निर्लज्ज व्यवहारों से उनकी लज्जा को तोड़ने में संकोच नहीं करते। तुम कठोर साँचे हो जिनमें उनकी मुलायम प्रकृति ढाली जाती है। इसलिए यह तुम पर निर्भर है कि तुम्हारी सन्तान मनुष्य हों या मनुष्याकृति वाले-पशु।
----***----