Magazine - Year 1948 - Version 2
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Language: HINDI
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कमाई के साथ साथ दान का भी ध्यान रखो।
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लालच की भावना का शरीर पर घातक असर हुए बिना नहीं रह सकता। इसलिए दान या उदारता को उसका निवारण उपाय बताया गया है। हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार पंच महायज्ञ आवश्यक है। गीता में भगवान कहते हैं-‘जो दूसरों को दिये बिना खाता है, वह चोर है। अपने लिये पकाने वाला पाप खाता है।’ बड़ी-2 इमारतों के ऊपर लोहे की एक ऐसी छड़ लगाई जाती हैं, जो आकाश से आने वाली बिजली को लेकर भूमि में चली जाने दें। यदि ऐसी छड़ें न लगाई जाए तो आकाश की बिजली के तीव्र प्रवाह को वह इमारत न सह सकेगी और फट जायेगी। दान की भावना ऐसी ही लौह शलाका है, जो मनुष्य जीवन को फटने से बचा लेती है। जिस प्रकार नित्य कमाना आवश्यक है, उसी तरह नित्य देना भी आवश्यक है। यों तो लालची भी देते हैं, अपनी स्त्री, पुत्रों को देते हैं। यह देना नहीं हुआ, इससे मार हलका नहीं होता। निस्वार्थ भाव से देना सच्चा दान है। जिसको जिस वस्तु का अभाव है, जो अपने बलबूते पर उस वस्तु को प्राप्त नहीं कर सकता, उसे वह देना दान है। सार्वजनिक कामों के लिए सामूहिक सेवा के लिये देना सबसे उत्तम दान है। विद्या और ज्ञान के प्रचार में जो दान दिया जाता है, वह ब्रह्म दान है। और इससे दूसरे जन्म में अवश्य ही मनुष्य जन्म मिलता है, क्योंकि ज्ञानदान का फल ज्ञान ही मिलना चाहिए और ज्ञान योनि केवल मनुष्य शरीर ही है।
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