Magazine - Year 1949 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
विडम्बना (Kavita)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
कहते मानव जाति आज उन्नति पथ पर बढ़ती जाती है? हाय, जहाँ पर रूप और यौवन के भी सौदे होते हैं,
जौहर की गर्वित ज्वाला के पावन अंगारे रोते हैं,
सतियों की प्रज्वलित चिता की कान्ति जहाँ पर बुझ जाती है,
वहीं पुरुष की पतित वासना निज क्रीड़ा स्थल पाती हैं॥1॥ कहते0
जहाँ दुखी माँ, नारी बनकर खुले बाजारों में आती है,
भाई के हाथों निज बहनों की अस्मत लूटी जाती है,
आज जहाँ कंचन पर इज्जत अपने को बलि चढ़वाती है,
वहीं पुरुष की पतित वासना निज क्रीड़ा स्थल पाती है॥2॥ कहते0
अरे! जहाँ मादक द्रव्यों में पैसा पानी बन बहता है,
जिस काले पीले पानी में विष का घोल घुला रहता है,
जहाँ ‘जहाँ को जन्नत करने’ जीभ गरल से लग जाती है,
वहीं पुरुष की भ्रमित वासना निज क्रीड़ा स्थल पाती है॥3॥ कहते0
जहाँ दूसरों का धन लेकर हाय हड़प करना आता है,
अन्धा स्वार्थ, हत्या, चोरी, लूट, डकैती करवाता है,
हँसते परिवारों की दुनिया क्षण में जहाँ उजड़ जाती है,
वहीं पुरुष की विकृत वासना निज क्रीड़ा स्थल पाती हैं॥ 4॥ कहते0
एक देश के दो लालों के मन में जहाँ भेद आते हैं,
जहाँ धर्म का ढोंग लिए, भाई-भाई से लड़ जाते हैं,
भिन्न प्रभु की मन्दिर मस्जिद में सत्ता मानी जाती है,
वहीं पुरुष की विकृत वासना निज क्रीड़ा स्थल पाती हैं॥5॥ कहते0
हाय! जहाँ पर कोई शोषित निज दुख में सिसकी भरता है,
गर्वित क्रोधी क्रूर पुरुष का दमन और शासन करता है,
अरे जहाँ पीड़ित मानवता अपने आँसू टपकाती है,
वहीं पुरुष की क्रूर वासना निज क्रीड़ा स्थल पाती है॥ 6॥ कहते0
अन्यायी का शस्त्र त्रसित जन पर भीषण चोटें करता है,
जहाँ शवों के ऊपर चढ़ खूनी दानवता इठलाती है,
वहीं पुरुष की क्रूर वासना निज क्रीड़ा स्थल पाती है॥ 7॥ कहते0
कहते मानव जाति आज उन्नति पथ पर बढ़ती जाती है?
*समाप्त*
(श्री कैलाशनाथ जी बुधवार)
(श्री कैलाशनाथ जी बुधवार)