Magazine - Year 1950 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
रहन सहन का स्तर कैसे ऊँचा करें?
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
रहन सहन का दर्जा ऊँचा करने के लिए हमें अपनी आदतों को देखना होगा। जिसकी जैसी आदतें हैं, उन्हीं के अनुसार आवश्यकताएँ बढ़ती घटती रहती हैं। प्रायः देखा गया है कि निम्न श्रेणी के व्यक्ति पान बीड़ी, मद्यपान, माँसाहार और मिठाइयों में रुपया व्यय कर डालते हैं, सिनेमा देखते हैं पर उनके बदन पर फटे कपड़े के अतिरिक्त कुछ नहीं होता। घर कच्चा और अंधेरा होता है। आदत मनुष्य का दूसरा स्वभाव कही गई है। जिसे पीने की आदत है, वह बिना पीने के संतुष्ट नहीं होगी, जो सिनेमा या मद्य का आदी है, वह उसी से संतुष्ट रहेगा। दो मनुष्य जिन्हें एक समान ही वेतन प्राप्त होता है, अपनी आदतों के कारण ऊँचे नीचे गरीब या समृद्ध दीखते हैं।
आदतें हमारे विवेक से बनती हैं। जो व्यक्ति समझदारी से अपनी आदतों का निर्माण करता है, वह आदतों का गुलाम नहीं, आदतें उसकी गुलाम होती हैं, वह उन पर राज्य करता है। रहन-सहन निर्धारण करने वाले दो प्रमुख तत्व हैं-(1) रुपया खर्च करने में विवेक बुद्धि का प्रयोग (2) व्यय की जाने वाली आमदनी। जो व्यक्ति अधिक रुपया पाता है, वह तो रहन सहन शिक्षा इत्यादि का दर्जा ऊँचा रख ही सकता है, किन्तु वह व्यक्ति भी जो विवेक बुद्धि से समझदारी से रुपया व्यय करता है, वह भी अपनी रहन सहन का दर्जा ऊँचा कर सकता है। खर्चीला रहन सहन यह नहीं बताता कि दर्जा वास्तव में ऊँचा है, या नहीं। कुछ अमीर लोग आमदनी न होने पर भी अमीरों की भाँति व्यय करते हैं।
प्रो॰ अमरनारायण अग्रवाल ने विवेक पूर्ण और अविवेक पूर्ण व्यय करने वाले दो व्यक्तियों के उदाहरण बड़े सुन्दर दिए हैं। वे उन्हीं के शब्दों में इस प्रकार हैं-“अजीत को 200) और आशीष को केवल 100) रु. प्रतिमास मिलते हैं। किन्तु अजीत बेपरवाह और बिना सोचे विचारे व्यय करता है। उसे शराब खोरी, सिनेमा आदि की बुरी लत हैं और वह उन पर अपनी आधी, या आधी से भी अधिक आय खर्च कर देता है। वह शेष को भी बिना विचारे होटल में खाना खाकर कीमती कपड़े पहन कर और सस्ते विलासिता के पदार्थों का प्रयोग कर व्यय करता है। उसके कुल उपयोग की गतिविधि बहुत नीची है, उसके रहन-सहन का दर्जा अवश्य नीचा होगा।
आशीष बहुत सोच समझ कर खर्च करता है। वह अपनी आय का उचित भाग स्वास्थ्य-वर्द्धक एवं शक्ति दायक आहार पर व्यय करता है, सस्ते पर खुले हवादार घर में रहता है और साफ टिकाऊ कपड़े पहनता है। वह कुछ रुपया शिक्षा पर भी व्यय करता है और आपातकाल के लिए भी कुछ बचा कर रखता है। उसके रहन सहन का दर्जा निःसंदेह ऊँचा है। यद्यपि अजीत की आय आशीष से दुगुनी है, तथापि आशीष के रहन सहन का दर्जा अजीत से ऊँचा है। इसका कारण यही है कि आशीष विवेक से खर्च करता है और अजीत बिना समझे बुझे लापरवाही से। अतः यह समझना मिथ्या है कि खर्चीला रहन सहन का दर्जा आवश्यक रूप से ऊँचा भी होता है, मिथ्यात्व पूर्ण है।”
भारतवर्ष एक निर्धन देश है। यहाँ नब्बे प्रतिशत गरीब बसते हैं। प्रति व्यक्ति की औसत आय भी न्यून है। आजकल महंगाई तेजी से बढ़ रही है। ऐसे समय में खर्चीले स्वभाव वाले गरीब आदमी बरबाद होने से नहीं बच सकते।
ऊँचा रहन-सहन का सच्चा अभिप्राय यही है कि मनुष्य की सभी विवेकशील आवश्यकताएँ आसानी से पूर्ण हो जाय, पौष्टिक भोजन, स्वस्थ हवादार घर और उचित शिक्षा, मनोरंजन एवं बचत हो। वह भविष्य में उन्नति और आत्म विकास के साथ संतोष और तृप्ति पा सके।
इन साधनों से काम लीजिये-
रहन सहन ऊँचा करने का प्रथम साधन है-विवेक। अर्थात् हमें चाहिये कि आप अधिक बचत करने में प्रयत्नशील रहें। इससे भी अधिक यह आवश्यक है कि जो कुछ हमें प्राप्त हो उसका विवेक पूर्ण व्यय किया जाय। प्रत्येक पैसे से अधिकतम लाभ उठाया जाय। विवेकहीनता के कारण भारतवासियों को सबसे अधिक कष्ट उठाना पड़ रहा है।
शिक्षा की वृद्धि की जाय। अर्थ शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। उद्योग धंधों की शिक्षा का प्रबन्ध होना चाहिए। प्रत्येक स्त्री पुरुष को उद्योगी बनाया जाय, आलस्य या पर्दे में न बैठने दिया जाय। स्त्रियाँ घरेलू धन्धे जैसे-कताई, बुनाई, रंगाई, पढ़ना, लिखना, सीना, पिरोना, कटाई इत्यादि का कार्य करें। कुछ बाहर नौकरियाँ भी कर सकती हैं। तीज त्यौहारों, विवाह, मृत्यु, और मुकदमेबाजी में, शराबखोरी और सस्ती चटोरी दिखावटी वस्तुओं से रुपया बचाकर निपुणता दायक पदार्थों में व्यय किया जाय।
समाज से झूठा दिखावा विलासिता फैशन निकाल दिया जाय। और ठोस पौष्टिक खाद्य पदार्थों, हवादार मकानों, शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि पर व्यय किया जाय।
सादा जीवन और उच्च विचार-इस नियम के अनुसार समाज का जीवन ढाला जाय। जैसे-2 मितव्ययिता और सादगी ग्रहण की जायेगी पर्याप्त भोजन, वस्त्र, शिक्षा प्राप्त होगी, हमारा स्तर ऊँचा होता जायेगा। मितव्ययिता को तो स्वभाविक एक अंग बना लेना चाहिए। जो आवश्यक खर्चे हैं, उन पर व्यय किया जाय, फिजूल खर्ची और विलासिता की संतुष्टि न की जाय।
जितना ही कम रुपया प्राप्त हो, उतनी ही विवेकशीलता से बजट बना कर जीवन रक्षक पदार्थों, तत्पश्चात् प्रतिष्ठा रक्षक और निपुणता रक्षक पदार्थों में व्यय करना चाहिए। पारिवारिक बजट बहुत सोच समझ कर विवेक पूर्ण रूप से बनाना चाहिए। बचत की रकम पहले ही पृथक् कर लेनी चाहिए।